Monday, February 27, 2017

नज़र की सीध में देखें,
ज़रा आराम हो जाए
ज़माने की हिमाक़त भी,
ज़रा नाक़ाम हो जाए
ये जहाँ यूँ भी नहीं झुकता,
किसी के भी झुकाने पर
तो दिल के हम भी मालिक हैं,
नहीं चलते इशारों पर
किसी को दें सज़ा हम क्यों,
ये चर्चा आम हो जाए
ज़माने की हिमाक़त भी,
ज़रा नाक़ाम हो जाए
परायों की है महफ़िल ये
मगर दिल तो ये अपना है
कहे कोई हमें कुछ भी
हमारा भी तो इक सपना है
करेंगे हर जुगत हम भी,
कि अपना नाम हो जाए
ज़माने की हिमाक़त भी,
ज़रा नाक़ाम हो जाए
भिड़े तक़दीर से हरदम
बचे तदबीर से ही हम
यूँ ही दिल के हिंडोलों में भला
फिर क्यों ना झूलें हम
ख़ुशी जो दिल को मिले,
तो क्यों न दिल क़ुर्बान हो जाए
ज़माने की हिमाक़त भी
ज़रा नाक़ाम हो जाए
नज़र की सीध में देखें,
ज़रा आराम हो जाए
ज़माने की हिमाक़त भी,
ज़रा नाक़ाम हो जाए
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