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Sunday, August 2, 2015

आज मनायें रक्षाबन्धन

आज मनायें रक्षाबन्धन
अतीत से नव-स्फूर्ति लेकर
वर्तमान में दृढ़ उद्यम कर
भविष्य में दृढ़ निष्ठा रखकर
कर्मशील हम रहे निरन्तर ॥१॥
बलिदानों की परम्परा से
स्वराज्य है यह पावन जिनसे
वंदन उनको कृतज्ञता से
ध्येय-भाव का करें जागरण ॥२॥
स्वार्थ-द्वेष को आज त्यागकर
अहं-भाव का पाश काटकर
अपना सब व्यक्तित्व भुलाकर
विराट का हम करते दर्शन ॥३॥
अरुण-केतु को साक्षी रखकर
निश्चय वाणी आज गरजकर
शुभ-कृति का यह मंगल अवसर
निष्ठा मन में रहे चिरंतन ॥४॥
 
ऐ मेरे वतन्

ऐ मेरे वतन् के लोगों
तुम् खूब् लगा लो नारा
ये शुभ् दिन् है हम् सब् का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर् मत् भूलो सीमा पर्
वीरों ने है प्राण् गँवा
कुछ् याद् उन्हें भी कर् लो -२
जो लौट् के घर् न आये -२
ऐ मेरे वतन् के लोगों
ज़रा आँख् में भर् लो पानी
जो शहीद् हु हैं उनकी
ज़रा याद् करो क़ुरबानी
जब् घायल् हु हिमालय्
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब् तक् थी साँस् लड़े वो
फिर् अपनी लाश् बिछा दी
संगीन् पे धर् कर् माथा
सो गये अमर् बलिदानी
जो शहीद्॥।
जब् देश् में थी दीवाली
वो खेल् रहे थे होली
जब् हम् बैठे थे घरों में
वो झेल् रहे थे गोली
थे धन्य जवान् वो आपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद्॥।
को सिख् को जाट् मराठा
को गुरखा को मदरासी
सरहद् पे मरनेवाला
हर् वीर् था भारतवासी
जो खून् गिरा पर्वत् पर्
वो खून् था हिंदुस्तानी
जो शहीद्॥।
थी खून् से लथ्-पथ् काया
फिर् भी बन्दूक् उठाके
दस्-दस् को एक् ने मारा
फिर् गिर् गये होश् गँवा के
जब् अन्त्-समय् आया तो
कह् गये के अब् मरते हैं
खुश् रहना देश् के प्यारों
अब् हम् तो सफ़र् करते हैं
क्या लोग् थे वो दीवाने
क्या लोग् थे वो अभिमानी
जो शहीद्॥।
तुम् भूल् न जा उनको
इस् लिये कही ये कहानी
जो शहीद्॥।
जय् हिन्द्॥। जय् हिन्द् की सेना -२
जय् हिन्द् जय् हिन्द् जय् हिन्द्