Sunday, February 13, 2022

 *भगवान का साथ*



एक बुजुर्ग दरिया के किनारे पर जा रहे थे। एक जगह देखा कि दरिया की सतह से एक कछुआ निकला और पानी के किनारे पर आ गया। 


उसी किनारे से एक बड़े ही जहरीले बिच्छु ने दरिया के अन्दर छलांग लगाई और कछुए की पीठ पर सवार हो गया। कछुए ने तैरना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग बड़े हैरान हुए।


उन्होंने उस कछुए का पीछा करने की ठान ली। इसलिए दरिया में तैर कर उस कछुए का पीछा किया। 


वह कछुआ दरिया के दूसरे किनारे पर जाकर रूक गया। और बिच्छू उसकी पीठ से छलांग लगाकर दूसरे किनारे पर चढ़ गया और आगे चलना शुरू कर दिया। 


वह बुजुर्ग भी उसके पीछे चलते रहे। आगे जाकर देखा कि जिस तरफ बिच्छू जा रहा था उसके रास्ते में एक भगवान् का भक्त ध्यान साधना में आँखे बन्द कर भगवान् की भक्ति कर रहा था।


उस बुजुर्ग ने सोचा कि अगर यह बिच्छू उस भक्त को काटना चाहेगा तो मैं करीब पहुँचने से पहले ही उसे अपनी लाठी से मार डालूँगा। 


लेकिन वह कुछ कदम आगे बढे ही थे कि उन्होंने देखा दूसरी तरफ से एक काला जहरीला साँप तेजी से उस भक्त को डसने के लिए आगे बढ़ रहा था। इतने में बिच्छू भी वहाँ पहुँच गया।


उस बिच्छू ने उसी समय सांप डंक के ऊपर डंक मार दिया, जिसकी वजह से बिच्छू का जहर सांप के जिस्म में दाखिल हो गया और वह सांप वहीं अचेत हो कर गिर पड़ा था। इसके बाद वह बिच्छू अपने रास्ते पर वापस चला गया।


थोड़ी देर बाद जब वह भक्त उठा, तब उस बुजुर्ग ने उसे बताया कि भगवान् ने उसकी रक्षा के लिए कैसे उस कछुवे को दरिया के किनारे लाया, फिर कैसे उस बिच्छु को कछुए की पीठ पर बैठा कर साँप से तेरी रक्षा के लिए भेजा।


 वह भक्त उस अचेत पड़े सांप को देखकर हैरान रह गया। उसकी आँखों से आँसू निकल आए, और वह आँखें बन्द कर प्रभु को याद कर उनका धन्यवाद करने लगा,


 तभी ""प्रभु"" ने अपने उस भक्त से कहा, जब वो बुजुर्ग जो तुम्हे जानता तक नही, वो तुम्हारी जान बचाने के लिए लाठी उठा सकता है। और फिर तू तो मेरी भक्ति में लगा हुआ था तो फिर तुझे बचाने के लिये मेरी लाठी तो हमेशा से ही तैयार रहती है...!


 जय श्री राम

  स्वयं का करें मूल्यांकन


एक व्यक्तिने सन्तसे पूछा : जीवनका मूल्य क्या है ?

सन्तने उसे एक पत्थर दिया और कहा, “जाओ और इस पत्थरका मूल्य पता करके आओ; परन्तु ध्यान रखना, इसे विक्रय नहीं करना है । वह व्यक्ति उस पत्थरको फल विक्रय करनेवालेके पास लेकर गया और बोला, “इसका मूल्य क्या है ?”

फल बेचनेवाला व्यक्ति उस चमकते हुए पत्थरको देखकर बोला, “१२ सन्तरे ले जाओ और इसे मुझे दे दो ।”

आगे एक तरकारीवालेने उस चमकीले पत्थरको देखा और कहा, “एक बोरी आलू ले जाओ और इस पत्थरको मेरे पास छोड जाओ ।”


वह व्यक्ति आगे एक सोना बेचनेवालेके पास गया और उसे पत्थर दिखाया । सुनार उस चमकीले पत्थरको देखकर बोला, “मुझे ५० लाखमें बेच दो ।”

उसने मना कर दिया, तो सुनार बोला, “२ करोड रुपयोंमें दे दो या तुम स्वयं ही बता दो कि इसका मूल्य क्या है, जो तुम मांगोगे वह दूंगा ।”

उस व्यक्तिने सुनारसे कहा, “मेरे गुरुने इसे विक्रय करनेसे मना किया है ।”


आगे वह व्यक्ति हीरे बेचनेवाले एक जौहरीके पास गया और उसे वह पत्थर दिखाया । 

जौहरीने जब उस बहुमूल्य रत्नको देखा, तो पहले उसने रत्नके पास एक लाल वस्त्र बिछाया, तत्पश्चात उस बहुमूल्य रत्नकी परिक्रमा लगाई, माथा टेका ।

तब जौहरी बोला, “कहांसे लाया है ये बहुमूल्य रत्न ? सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, सम्पूर्ण विश्वको बेचकर भी इसका मूल्य नहीं लगाया जा सकता, ये तो अनमोल है ।“


वह व्यक्ति विस्मित होकर सीधे सन्तके पास आया । अपनी आपबीती बताई और बोला, “अब बताएं भगवान, मानवीय जीवनका मूल्य क्या है ?"

सन्त बोले, “सन्तरेवालेको दिखाया, उसने इसका मूल्य १२ सन्तरेके समान बताया । तरकारीवालेके पास गया, उसने इसका मूल्य एक बोरी आलू बताया । आगे सुनारने इसका मूल्य २ कोटि रुपये' बताया और जौहरीने इसे 'बहुमूल्य' बताया ।  


अब ऐसा ही मानवीय मूल्यका भी है । तू निस्सन्देह हीरा है; परन्तु, सामनेवाला तेरा मूल्य, अपने स्तर, अपने ज्ञान, अपने सामर्थ्यसे लगाएगा ।

घबराओ मत ! संसारमें तुम्हारा अभिज्ञान करनेवाले भी मिल जाएंगे ।”

 भगवान बुद्ध के प्रमुख उपदेश*


*♦️ 1. वर्तमान का ध्यान रखो*


मनुष्य को कभी भी अपने बीते हुए कल में नहीं उलझना चाहिए और ना ही भविष्य के स्वप्न बुनने चाहिए। मनुष्य को अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए।


♦️ *2. क्रोध से मात्र हानि है*


क्रोध से किसी और का नहीं, बल्कि स्वयं मनुष्य की ही हानि होती है। क्रोधित होने का अर्थ है कि जलता हुआ कोयला हाथ में लेकर किसी और पर फेंकना, जो सबसे पहले स्वयं आपको ही जलाएगा।


♦️ *3. हजार विजय से पूर्व स्वयं पर विजय है आवश्यक*


मनुष्य को किसी भी युद्ध में विजय प्राप्त करने से पूर्व स्वयं पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। जब तक मनुष्य ऐसा नहीं करता है, तब तक सारी विजय व्यर्थ ही मानी जाएंगी।


♦️ *4. सुखद संघर्ष है मूलमंत्र*


किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने वाली यात्रा बहुत आवश्यक होती है। मनुष्य को अपना लक्ष्य मिले या न मिले, लेकिन लक्ष्य प्राप्ति के लिए की जाने वाली यात्रा अच्छी होना चाहिए। इसका अनुभव जीवन भर हमारे साथ रहता है।


♦️ *5. बांटने से कम नहीं होती प्रसन्नता*


प्रसन्नता उस रोशनी के समान है, जिसे आप जितना दूसरों को देंगे, वो उतना ही और बढ़ेगी। जैसे कि एक जलता हुआ दीप, हजार दीप जलाकर रोशनी फैला सकता है, लेकिन इससे उसकी रोशनी पर कोई प्रभाव नहीं होगा, वैसे ही प्रसन्नता बांटने से बढ़ती हैं।

  

*🙏🏼बुद्ध पूर्णिमा की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!*

 साधना क्या है..🤔


पत्थर पर यदि बहुत पानी एकदम से डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा।


फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा। 


किन्तु वह पानी यदि बूंद-बूंद पत्थर पर एक ही जगह पर गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा।


इसी प्रकार निश्चित स्थान पर नाम स्मरण की साधना की जाएगी तो उसका परिणाम अधिक होता है ।


चक्की में दो पाटे होते हैं। 


उनमें यदि एक स्थिर रहकर, दूसरा घूमता रहे तो अनाज पिस जाता है और आटा बाहर आ जाता है। 


यदि दोनों पाटे एक साथ घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं पिसेगा और परिश्रम व्यर्थ होगा।


इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाटे हैं - 


एक मन और दूसरा शरीर। 


उसमें मन स्थिर पाटा है और शरीर घूमने वाला पाटा है। 


अपने मन को भगवान के प्रति स्थिर किया जाए और शरीर से गृहस्थी के कार्य किए जाएं। 


प्रारब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में बैठकर उसे घूमाता है और घूमाता रहेगा, 


लेकिन मन रूपी पाटे को सिर्फ भगवान के प्रति स्थिर रखना है। 


देह को तो प्रारब्ध पर छोड़ दिया जाए और मन को नाम-सुमिरन में विलीन कर दिया जाए - 


यही नाम साधना है।

 ज्ञान वाणी ।। 


प्रेरक प्रसंग


!! सोच बदलो, जिंदगी बदल जायेगी !!

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एक गाँव में सूखा पड़ने की वजह से गाँव के सभी लोग बहुत परेशान थे, उनकी फसलें खराब हो रही थी, बच्चे भूखे-प्यासे मर रहे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था की इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाय। उसी गाँव में एक विद्वान महात्मा रहते थे। गाँव वालो ने निर्णय लिया उनके पास जाकर इस समस्या का समाधान माँगने के लिये, सब लोग महात्मा के पास गये और उन्हें अपनी सारी परेशानी विस्तार से बतायी, महात्मा ने कहा कि आप सब मुझे एक हफ्ते का समय दीजिये मैं आपको कुछ समाधान ढूँढ कर बताता हूँ।


गाँव वालों ने कहा ठीक है और महात्मा के पास से चले गये। एक हफ्ते बीत गये लेकिन साधु महात्मा कोई भी हल ढूँढ न सके और उन्होंने गाँव वालों से कहा कि अब तो आप सबकी मदद केवल ऊपर बैठा वो भगवान ही कर सकता है। अब सब भगवान की पूजा करने लगे भगवान को खुश करने के लिये, और भगवान ने उन सबकी सुन ली और उन्होंने गाँव में अपना एक दूत भेजा। गाँव में पहुँचकर दूत ने सभी गाँव वालो से कहा कि “आज रात को अगर तुम सब एक-एक लोटा दूध गाँव के पास वाले उस कुएं में बिना देखे डालोगे तो कल से तुम्हारे गाँव में घनघोर बारिश होगी और तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जायेगी।” इतना कहकर वो दूत वहां से चला गया।


गाँव वाले बहुत खुश हुए और सब लोग उस कुएं में दूध डालने के लिये तैयार हो गये लेकिन उसी गाँव में एक कंजूस इंसान रहता था उसने सोचा कि सब लोग तो दूध डालेगें ही अगर मैं दूध की जगह एक लोटा पानी डाल देता हूँ तो किसको पता चलने वाला है। रात को अंधेरे में कुएं में दूध डालने के बाद सारे गाँव वाले सुबह उठकर बारिश के होने का इंतेजार करने लगे लेकिन मौसम वैसा का वैसा ही दिख रहा था और बारिश के होने की थोड़ी भी संभावना नहीं दिख रही थी। 


देर तक बारिश का इंतजार करने के बाद सब लोग उस कुएं के पास गये और जब उस कुएं में देखा तो कुआं पानी से भरा हुआ था और उस कुएं में दूध की एक बूंद भी नहीं थी। सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे और समझ गये कि बारिश अभी तक क्यों नहीं हुई। और वो इसलिये क्योंकि उस कंजूस व्यक्ति की तरह सारे गाँव वालों ने भी यही सोचा था कि सब लोग तो दूध डालेगें ही, मेरे एक लोटा पानी डाल देने से क्या फर्क पड़ने वाला है। और इसी चक्कर में किसी ने भी कुवे में दूध का एक बूँद भी नहीं डाला और कुवे को पानी से भर दिया।


संदेश - हो सकता है यह कथा संपूर्ण काल्पनिक हो परंतु इसी तरह की गलती आज कल हम अपने वास्तविक जीवन में भी करते रहते हैं, हम सब सोचते है कि हमारे एक के कुछ करने से क्या होने वाला है लेकिन हम ये भूल जाते है कि “बूंद-बूंद से सागर बनता है।“


अगर आप अपने देश, समाज, घर में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं, कुछ बेहतर करना चाहते हैं तो खुद को बदलिये और बेहतर बनाईये बाकी सब अपने आप हो जायेगा जायेगा।

 ज्ञान वाणी। 


एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला। ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी,ऐ लड़के इधर आ।


लड़का दौड़कर आया।


उसने पानी का गिलास भरकर सेठ की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा, कितने पैसे में? 


लड़के ने कहा - पच्चीस पैसे।


सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में देगा क्या?


यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया।


उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे, जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्करा कर मौन रहा।


जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा।

महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के पीछे- पीछे गए।


बोले : ऐ लड़के ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?


वह लड़का बोला, 


महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी। वे तो केवल पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे। 


महात्मा ने पूछा -


लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी।


लड़के ने जवाब दिया -


महाराज, जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट नहीं पूछता। 


वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है। फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं? 


पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है।


ठीक इसी प्रकार जिन्हें ईश्वर और जीवन में कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते। पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती,वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं। वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते।


अगर भगवान नहीं है तो उसका ज़िक्र क्यो??


और अगर भगवान है तो फिर फिक्र क्यों ???


" मंज़िलों से गुमराह भी ,कर देते हैं कुछ लोग ।।

हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता..


अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया ...


तो बेशक कहना...


जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी

और जो भी पाया वो प्रभु/गुरु की मेहरबानी थी!  


जन्म अपने हाथ में नहीं ;

मरना अपने हाथ में नहीं ;

पर जीवन को अपने तरीके से जीना अपने हाथ में होता है ; मस्ती करो मुस्कुराते रहो ;

सबके दिलों में जगह बनाते रहो ।I

जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं और जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से, इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय भरपूर हास्य भरा हो। बस यही सच्चा जीवन है..


संदेश -निस्वार्थ भाव से कर्म करें और फल ईश्वर पर छोड़ दें।

 

आत्मा जब शरीर छोड़ कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चल कर साथ नहीं देता, जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।


एक व्यक्ति था। उसके तीन मित्र थे। एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था। दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता। तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब-तब मिलता था।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उस व्यक्ति को अदालत में जाना था किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर।


अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?


वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।


उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इनकार कर दिया।


अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है। फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।


दूसरे मित्र ने कहा - मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊंगा , अंदर तक नहीं | वह बोला - बाहर के लिए तो मैं ही बहुत हूं मुझे तो अंदर के लिए गवाह चाहिए |


 फिर वह थक हार कर अपने तीसरा मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था , और अपनी समस्या सुनाई |


 तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरंत उसके साथ चल दिया | अब आप सोच रहे होंगे कि वह तीन मित्र कौन है...? 



        कथा का सार:—

 जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं | सबसे पहला मित्र है हमारा अपना " शरीर " हम जहां भी जायेगे , शरीर रूपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है | एक पल एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता |


 दूसरों मित्र है शरीर के " संबंधी " जैसे : माता-पिता , भाई-बहन , चाचा चाची इत्यादि जिनके साथ रहते हैं , जो सुबह - दोपहर - शाम मिलते हैं |

 

 और तीसरा मित्र है :- हमारे " कर्म " जो सदा ही साथ जाते हैं |


 अब आप सोचिये की आत्मा ज़ब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है , उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चल कर साथ नहीं देता , जैसे की उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया |


दूसरा मित्र - संबंधी श्मशान घाट तक यानि अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है | तथा वहा से फिर वापस लोट जाते है |


और तीसरा मित्र आपके कर्म है | कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे | अगर हमारे कर्म हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा | 


अगर हमअच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत मे जाने की जरूरत नहीं होंगी | धर्मराज भी हमारे लिये स्वर्ग के दरवाजे खोल देंगे |               


सदा जपते रहिए

हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

 


भला आदमी


एक बार एक धनी पुरुष ने एक मंदिर बनवाया | मंदिर में भगवान की पूजा करने के लिए एक पुजारी | मंदिर के खर्च के लिए बहुत सी भूमि, खेत और बगीचे मंदिर के नाम लगाएं | उन्होंने ऐसा प्रबंध किया था कि जो मंदिरों में भूखे, दीन दुखी या साधु-संतों आवे, वे वहां दो-चार दिन ठहर सके और उनको भोजन के लिए भगवान का प्रसाद मंदिर से मिल जाया करे | अब उन्हें एक ऐसे मनुष्य की आवश्यकता हुई जो मंदिर की संपत्ति का प्रबंध करें और मंदिर के सब कामों को ठीक-ठीक चलाता रहे !


बहुत से लोग उस धनी पुरुष के पास आए | वे लोग जानते थे कि यदि मंदिर की व्यवस्था का काम मिल जाए तो वेतन अच्छा मिलेगा | लेकिन उस धनी पुरुष ने सबको लौटा दिया | वह सब से कहता था – ‘ मुझे एक भला आदमी चाहिए, मैं उसको अपने आप छाट लूंगा |’


बहुत से लोग मन ही मन में उस धनी पुरुष को गालियां देते थे | बहुत लोग उसे मूर्ख या पागल बतलाते थे | लेकिन वह धनी पुरुष किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था | जब मंदिर के पट खुलते थे और लोग भगवान के दर्शन के लिए आने लगते थे तब वह धनी पुरुष अपने मकान की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले लोगों को चुपचाप देखता रहता था |


एक दिन में एक मनुष्य मंदिर में दर्शन करने आया | उसके कपड़े मैले और फटे हुए थे वह बहुत पढ़ा लिखा भी नहीं जान पड़ता था | जब वह भगवान का दर्शन करके जाने लगा तब धनीपुर उसने अपने पास बुलाया और कहा – ‘ क्या आप इस मंदिर की व्यवस्था संभालने का काम करेंगे ?’

वह मनुष्य बड़े आश्चर्य में पड़ गया | उसने कहा – ‘मैं तो बहुत पढ़ा लिखा नहीं हूं मैं इतने बड़े मंदिर का प्रबंध कैसे कर सकूंगा ?’


धनी पुरुष ने कहा – ‘मुझे बहुत विद्वान नहीं चाहिए मैं तो एक भले आदमी को मंदिर का प्रबंधक बनाना चाहता हूं |’


उस मनुष्य ने कहा – ‘आपने इतने मनुष्य में मुझे ही क्यों भला आदमी माना |’


धनी पुरुष बोला – ‘मैं जानता हूं कि आप भले आदमी हैं | मंदिर के रास्ते में एक ईंट का टुकड़ा गड़ा रह गया था और उसका एक कौना ऊपर निकला था मैं उधर से बहुत दिनों से देख रहा था कि उस मंदिर के टुकड़े की नोक से लोगों को ठोकर लगती थी लोग गिरते थे लुढ़कते थे और उठ कर चलते थे | आपको उस टुकड़े से ठोकर नहीं लगी किंतु आपने उसे देख कर ही उखाड़ देने का यतन किया मैं देख रहा था कि आप मेरे मजदूर से फावड़ा मांगकर ले गए और उस टुकड़े को खोदकर आपने वहां की भूमि भी बराबर कर दी |’


उस मनुष्य ने कहा – “यह तो कोई बात नहीं है रास्ते में पड़े कांटे, कंकड़ और पत्थर लगने योग्य पत्थर, ईटों को हटा देना तो प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है |’


धनी पुरुष ने कहा – ‘अपने कर्तव्यों को जानने और पालन करने वाले लोग ही भले आदमी होते हैं |’


वह मनुष्य मंदिर का प्रबंधक बन गया उसने मंदिर का बड़ा सुंदर प्रबंध किया |


"मित्रों:- इस कहानी का सार अथवा यही है कि –“हर मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए |”

 1950 के दशक में हावर्ड यूनिवर्सिटी के विख्यात साइंटिस्ट कर्ट ने चूहों पर एक अजीबोगरीब शोध किया था


कर्ट ने एक जार को पानी से भर दिया और उसमें एक चूहे को फेंक दिया


पानी से भरे जार में गिरते ही चूहा हड़बड़ाने लगा


जार से बाहर निकलने के लिये ज़ोर लगाने लगा


चंद मिनट फड़फड़ाने के पश्चात चूहे ने हथियार डाल दिये और वह उस जार में डूब गया


कर्ट ने उस समय अपने शोध में थोड़ा सा बदलाव किया


उन्होंने एक चूहे को पानी से भरे जार में डाला, चूहा जार से बाहर आने के लिये ज़ोर लगाने लगा, जिस समय चूहे ने ज़ोर लगाना बन्द कर दिया और वह डूबने को था उसी समय कर्ड ने उस चूहे को मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया


कर्ट ने चूहे को ठीक उसी क्षण जार से बाहर निकाल लिया जब वह डूबने की कगार पर था, चूहे को बाहर निकाल कर कर्ट ने उसे सहलाया


कुछ समय तक उसे जार से दूर रखा और फिर एक दम से उसे पुनः जार में फेंक दिया


पानी से भरे जार में दोबारा फेंके गये चूहे ने फिर जार से बाहर निकलने की जद्दोजेहद शुरू कर दी लेकिन पानी में पुनः फेंके जाने के पश्चात उस चूहे में कुछ ऐसे बदलाव देखने को मिले जिन्हें देख कर स्वयं कर्ट भी हैरान रह गये


कर्ट सोच रहे थे के चूहा बमुश्किल 15 - 20 मिनट संघर्ष करेगा और फिर उसकी शारीरिक क्षमता जवाब दे देगी और वह जार में डूब जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ


चूहा जार में तैरता रहा, जीवन बचाने के लिये सँघर्ष करता रहा


60 घँटे, जी हाँ 60 घँटे तक चूहा पानी के जार में अपने जीवन को बचाने के लिये सँघर्ष करता रहा


कर्ट यह देख कर आश्चर्यचकित रह गये


जो चूहा 15 मिनट में परिस्थितियों के समक्ष हथियार डाल चुका था वही चूहा 60 घँटे से परिस्थितियों से जूझ रहा था और हार मानने को तैयार नहीं था


कर्ट ने अपने इस शोध को एक नाम दिया और वह नाम था "The HOPE Experiment"


Hope यानि आशा


कर्ट ने शोध का निष्कर्ष बताते हुये कहा के जब चूहे को पहली बार जार में फेंका गया वह डूबने की कगार पर पहुंच गया


उसी समय उसे मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया गया, उसे नवजीवन प्रदान किया गया


उस समय चूहे के मन मस्तिष्क में "आशा" का संचार हो गया, उसे महसूस हुआ के एक हाथ है जो विकटतम परिस्थिति से उसे निकाल सकता है


जब पुनः उसे जार में फेंका गया तो चूहा 60 घँटे तक सँघर्ष करता रहा, वजह था वह हाथ, वजह थी वह आशा, वजह थी वह उम्मीद


इस परीक्षा की घड़ी में उम्मीद बनाये रखिये


सँघर्षरत रहिये, सांसे टूटने मत दीजिये, मन को हारने मत दीजिये


जिसने हाथ ने हमें इस जार में फेंका है वो ही हाथ हमें इससे बाहर भी निकाल लेगा


उस हाथ पर विश्वास रखिये