Sunday, February 13, 2022

 

आत्मा जब शरीर छोड़ कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चल कर साथ नहीं देता, जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।


एक व्यक्ति था। उसके तीन मित्र थे। एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था। दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता। तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब-तब मिलता था।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उस व्यक्ति को अदालत में जाना था किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर।


अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?


वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।


उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इनकार कर दिया।


अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है। फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।


दूसरे मित्र ने कहा - मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊंगा , अंदर तक नहीं | वह बोला - बाहर के लिए तो मैं ही बहुत हूं मुझे तो अंदर के लिए गवाह चाहिए |


 फिर वह थक हार कर अपने तीसरा मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था , और अपनी समस्या सुनाई |


 तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरंत उसके साथ चल दिया | अब आप सोच रहे होंगे कि वह तीन मित्र कौन है...? 



        कथा का सार:—

 जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं | सबसे पहला मित्र है हमारा अपना " शरीर " हम जहां भी जायेगे , शरीर रूपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है | एक पल एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता |


 दूसरों मित्र है शरीर के " संबंधी " जैसे : माता-पिता , भाई-बहन , चाचा चाची इत्यादि जिनके साथ रहते हैं , जो सुबह - दोपहर - शाम मिलते हैं |

 

 और तीसरा मित्र है :- हमारे " कर्म " जो सदा ही साथ जाते हैं |


 अब आप सोचिये की आत्मा ज़ब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है , उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चल कर साथ नहीं देता , जैसे की उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया |


दूसरा मित्र - संबंधी श्मशान घाट तक यानि अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है | तथा वहा से फिर वापस लोट जाते है |


और तीसरा मित्र आपके कर्म है | कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे | अगर हमारे कर्म हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा | 


अगर हमअच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत मे जाने की जरूरत नहीं होंगी | धर्मराज भी हमारे लिये स्वर्ग के दरवाजे खोल देंगे |               


सदा जपते रहिए

हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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