Sunday, July 9, 2017

क्या हुआ तुमको अगर
चेहरे बदलना आ गया,
हमको भी हालात के
साँचे में ढलना आ गया ।

रोशनी के वास्ते धागे को
जलते देखकर,
ली नसीहत मोम ने
उसको पिघलना आ गया ।

शुक्रिया ऎ पत्थरो,
बेहद तुम्हारा शुक्रिया,
सर झुकाकर जो मुझे
रस्ते पे चलना आ गया ।

सरफिरी आँधी का
थोड़ा-सा सहारा क्या मिला,
धूल को इंसान के सर तक
उछलना आ गया ।

बिछ गये फिर खु़द-ब-खु़द
रास्तो में कितने ही गुलाब,
जब हमें काँटों पे नंगे पाँव
चलना आ गया ।

चाँद को छूने की कोशिश में
तो नाकामी मिली,
हाँ मगर, नादान बच्चे को
उछलना आ गया ।

पहले बचपन, फिर जवानी,
फिर बुढ़ापे के निशान,
उम्र को भी देखिए कपड़े
बदलना आ गया ।

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