Saturday, September 2, 2017

ज़ुबान कड़वी सही मेरी मगर ,दिल साफ़ रखता हु !!
कब कौन कैसे बदलेगा सबका हिसाब रखता हु..!!

जिंदगी भी कितनी अजीब है.. मुस्कुराओ तो लोग जलते है...
तन्हा रहो तो सवाल करते है...!!

 लुट लेते है अपने ही वरना,
गैरों को कहां पता इस दील की दीवार कहां से कमजोर है.

 नफरत के बाज़ार में जीने का अलग ही मज़ा है , लोग रुलाना नहीं छोड़ते हम हसना नहीं छोड़ते।

ज़िन्दगी गुज़र जाती है ये ढूँढने में कि.....ढूंढना क्या है..!!
अंत में तलाश सिमट जाती है इस सुकून में कि... जो मिला.. वो भी कहाँ साथ लेकर जाना है .. !!...

फुर्सत निकालकर आओ कभी मेरी महफ़िल में,
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में..ii

*मेरी आवाज को महफूज कर लो..... मेरे दोस्तों....*
*मेरे बाद बहुत सन्नाटा होगा..... तुम्हारी महफ़िल में*!!!!

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