Saturday, December 21, 2019

*..बुढापा..*

*किसी ने द्वार खटखटाया*
*मैं लपककर आया*
*जैसे ही दरवाजा खोला*
*तो सामने बुढ़ापा खड़ा था*
*भीतर आने के लिए*
*जिद पर अड़ा था..*

*मैंने कहा -*
*"नहीं भाई!*
*अभी नहीं*
*अभी तो यह घर मेरा है..''*

*वह  हँसा और*
*बोला-*
 ...
*घर न तेरा है न मेरा है*
*चिड़िया रैन बसेरा है..'*

*मैंने कहा -*
*".. अभी तो कुछ दिन रहने दे,*
*अभी तक*
 *अपने ही लिए जीया हूँ ..*
*अब अकल आई है*
*तो कुछ दिन*
*दूसरों के लिए भी जीने दे..''*

*बुढ़ापा बोला -*
*"अगर ऐसी बात है*
*तो चिंता मत कर..*
*उम्र भले ही तेरी बढ़ेगी*
*मगर बुढ़ापा नहीं आएगा,*
*तू जब तक दूसरों के लिए जीएगा*
*खुद को जवान ही पाएगा..''*

*बढ़ती उम्र का लुत्फ़ उठाइये*

*जय हिंद*

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