Monday, April 3, 2017

*तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,*
*और तू मेरे गाँव को गँवार कहता है।।*

*ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है,*
*तू बच्ची को भी हुस्न-ए-बहार कहता है।।*

*थक गया है हर शख़्स काम करते करते,*
*तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।।*

*गाँव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,*
*तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।।*

*मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,*
*तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।।*

*वो मिलने आते थे कलेजा साथ लाते थे,*
*तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।।*

*बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें,*
*तू अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।।*

*अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,*
*तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।।*
                  🙏🏻 🙏🏻

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