*तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,*
*और तू मेरे गाँव को गँवार कहता है।।*
*ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है,*
*तू बच्ची को भी हुस्न-ए-बहार कहता है।।*
*थक गया है हर शख़्स काम करते करते,*
*तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।।*
*गाँव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,*
*तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।।*
*मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,*
*तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।।*
*वो मिलने आते थे कलेजा साथ लाते थे,*
*तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।।*
*बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें,*
*तू अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।।*
*अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,*
*तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।।*
🙏🏻 🙏🏻
*और तू मेरे गाँव को गँवार कहता है।।*
*ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है,*
*तू बच्ची को भी हुस्न-ए-बहार कहता है।।*
*थक गया है हर शख़्स काम करते करते,*
*तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।।*
*गाँव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,*
*तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।।*
*मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,*
*तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।।*
*वो मिलने आते थे कलेजा साथ लाते थे,*
*तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।।*
*बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें,*
*तू अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।।*
*अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,*
*तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।।*
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