Sunday, August 20, 2017

एक माचिस की तिल्ली,
          एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे,
          *कुछ घण्टे में राख.....*
बस इतनी-सी है
          *आदमी की औकात !!!!*

एक बूढ़ा बाप,
          शाम को मर गया ,
अपनी सारी ज़िन्दगी ,
          परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट ,
          तो कहीं फुसफुसाहट ....
अरे जल्दी ले जाओ
          *कौन रखेगा सारी रात...*
बस इतनी-सी है
          *आदमी की औकात!!!!*

मरने के बाद नीचे देखा ,
          नज़ारे नज़र आ रहे थे,
उसकी मौत पे .....
          कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ ज़बरदस्ती,
          रो रहे थे ...........
नहीं रहा.. ... चला गया...
          *चार दिन करेंगे बात.....*
बस इतनी-सी है
          *आदमी की औकात!!!!!*

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा,
          सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी...
          अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी...
बाद में उस तस्वीर पे,
          *जाले भी कौन करेगा साफ़.*
बस इतनी-सी है
          *आदमी की औकात !!!!!!*

जिन्दगी भर,
          मेरा- मेरा- मेरा किया....
अपने लिए कम ,
          अपनों के लिए ज्यादा जीया...
कोई न देगा साथ...
          जायेगा खाली हाथ....
तिनका ले जाने की भी,
           *नही है औकात ???*
बस इतनी-सी है,
          *आदमी की औकात*

 *तो फिर घमंड कैसा ?????*

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