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महिलाएं बस एक अच्छा दोस्त चाहती हैं।।
वो बांटना चाहती है अपने रत-जगे जो अक्सर किसी अस्पताल की बेंच पर या किसी दूर जाने वाली गाड़ी के इंतजार में काटे होते हैं!
वो बांटना चाहती है अपने आंसू जो अक्सर रति-क्रीड़ा के बाद,पति के मुंह फेरकर सोने के बाद बहाए होते हैं!
वो बांटना चाहती है वो फस्ट्रेशन जो अक्सर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते वक़्त उनके गाल पर जमा देती है!
वो बांटना चाहती है वो जलन जो अक्सर तवे पर रोटी सेंकते वक़्त उसकी अंगुलियों के पोरों पर महसूस होती है!
वो बांटना चाहती है वो बातें जो अक्सर वो किसी को कह नही पाती!
वो बांटना चाहती है वो स्वेद जो अक्सर गृह-कार्यो की थकान के कारण उसकी कमर पर उभर आता है!
वो बांटना चाहती है वो पहाड़ जैसे भारी धूप के टुकड़े जो अक्सर पति व बच्चों के चले जाने के बाद,उससे काटे नही कटते!
वो बांटना चाहती है अपने सफेद होते बालों की सफेदी व अपनी हिना की खुश्बू,जिसके लिए पतिदेव को अवकाश नही है!
वो बांटना चाहती है अपनी सोने के पिंजरे वाली कैद!
वो चाहती हैं एक ऐसा दोस्त जिससे खुलकर सब-कुछ बोल सके,जिसे कुछ भी बोलने से पहले एक पल को भी सोचना न पड़े!
पर भूल जाती हैं ये चालीस पार औरतें कि- - - - -
मर्द सैक्स के लालच के बिना प्रेम कर ही नही पाता!
यहां हर सहानुभूति अक्सर चिरायंध से ही भरी होती है!
वो जब प्रश्न करती है प्रेम के,भावनाओं के,गजलों के तो प्रतिप्रश्न में उनसे पूछे जाते हैं ब्रा के साइज व पैंटी के रंग के प्रश्न!
वो जब भेजती अपने विचार तो बदले में भेजी जाती है ..... की फोटोज़!
वो चाहती है हिरण सोने का और अक्सर बिछड़ जाते हैं उनसे उनके राम!
महिलाएं बस एक अच्छा दोस्त चाहती हैं।।
वो बांटना चाहती है अपने रत-जगे जो अक्सर किसी अस्पताल की बेंच पर या किसी दूर जाने वाली गाड़ी के इंतजार में काटे होते हैं!
वो बांटना चाहती है अपने आंसू जो अक्सर रति-क्रीड़ा के बाद,पति के मुंह फेरकर सोने के बाद बहाए होते हैं!
वो बांटना चाहती है वो फस्ट्रेशन जो अक्सर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते वक़्त उनके गाल पर जमा देती है!
वो बांटना चाहती है वो जलन जो अक्सर तवे पर रोटी सेंकते वक़्त उसकी अंगुलियों के पोरों पर महसूस होती है!
वो बांटना चाहती है वो बातें जो अक्सर वो किसी को कह नही पाती!
वो बांटना चाहती है वो स्वेद जो अक्सर गृह-कार्यो की थकान के कारण उसकी कमर पर उभर आता है!
वो बांटना चाहती है वो पहाड़ जैसे भारी धूप के टुकड़े जो अक्सर पति व बच्चों के चले जाने के बाद,उससे काटे नही कटते!
वो बांटना चाहती है अपने सफेद होते बालों की सफेदी व अपनी हिना की खुश्बू,जिसके लिए पतिदेव को अवकाश नही है!
वो बांटना चाहती है अपनी सोने के पिंजरे वाली कैद!
वो चाहती हैं एक ऐसा दोस्त जिससे खुलकर सब-कुछ बोल सके,जिसे कुछ भी बोलने से पहले एक पल को भी सोचना न पड़े!
पर भूल जाती हैं ये चालीस पार औरतें कि- - - - -
मर्द सैक्स के लालच के बिना प्रेम कर ही नही पाता!
यहां हर सहानुभूति अक्सर चिरायंध से ही भरी होती है!
वो जब प्रश्न करती है प्रेम के,भावनाओं के,गजलों के तो प्रतिप्रश्न में उनसे पूछे जाते हैं ब्रा के साइज व पैंटी के रंग के प्रश्न!
वो जब भेजती अपने विचार तो बदले में भेजी जाती है ..... की फोटोज़!
वो चाहती है हिरण सोने का और अक्सर बिछड़ जाते हैं उनसे उनके राम!
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