Tuesday, October 9, 2018


छलक़ जायें जो पैमाने,तो पलकों की ख़ता है क्या..!!
दगा जब वक्त देता है,
तो लम्हों की ख़ता है क्या..!
ख़फा अपने ही होते हैं,तो अपनों की ख़ता है क्या..!!
भरे हैं जाम अश्कों से,
जरा सी ठेस लगते ही,
छलक़ जायें जो पैमाने,तो पलकों की ख़ता है क्या..!!
बहुत चुन-चुन के लिखे थे,
किताबे-इश्क़ के नुस्खे,
पढा ग़र ख़त नहीं कोई,तो लफ्जों की ख़ता है क्या..!!
रिवाजे़-इश्क़ ग़र तुमने,
निभायें हैं मोहब्बत से,
अगर कोई बेवफा कह दे,तो रस्मों की ख़ता है क्या..!!
झपकती आँख है जैसे,
बदलने लगते हो करवट,
उचट ग़र नींद जाती है, तो सपनों की ख़ता है क्या..!!
कसम खा करके मिलने की,
अगर किस्मत से,
मुकर जाता है ग़र कोई,तो कसमों की ख़ता है क्या.,!!

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