Wednesday, August 28, 2019

वो भारत की अनपढ़ पीढ़ी

जो हम सबको बहुत डाँटती थी -
कहती थी

 “नल धीरे खोलो... पानी बदला लेता है!
अन्न नाली में न जाए, नाली का कीड़ा बनोगे!

          सुबह-सुबह तुलसी पर जल चढाओ,
          बरगद पूजो,
          पीपल पूजो,
         आँवला पूजो,

      मुंडेर पर चिड़िया के लिए पानी रखा कि नहीं?

     हरी सब्जी के छिलके गाय के लिए अलग बाल्टी में डालो।

  अरे कांच टूट गया है। उसे अलग रखना। कूड़े की बाल्टी में न डालना, कोई जानवर मुँह न मार दे।

      .. ये हरे छिलके कूड़े में किसने  डाले, कही भी जगह नहीं मिलेगी........

      यह पीढ़ी इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थी पर पर्यावरण की चिंता करती थी, क्योंकि वह शास्त्रों की श्रुति परंपरा की शिष्य थी।
     
और हम चार किताबें पढ़ कर  उस पीढ़ी की आस्थाओं को कुचलते हुये धरती को विनाश की कगार पर ले आये।

             
और हम "आधुनिक" हो गये।🌹🍁

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