Wednesday, August 28, 2019

हाथों में थी मेहंदी और सर पे था घूंघट
किसी की तरफ कदम बढ़ाए जा रही थी
सात फेरों के हर उस वचन में वो हर पल
किसी के साथ को भुलाए जा रही थी

वरमाला थी डाली उसने जब उसको
क्या पता उसने किया था याद किसको
उसपर जब उसने वरमाला थी डाली
वो कैसे भी कर के मुस्कुराए जा रही थी

इक नाम लिख गया था हाथों पे उसके
इक नाम मिट गया था साँसों से उसके
फिर भी ये उसकी ही हिम्मत थी जो कि
लकीरों पे उसको रचाये जा रही थी

आई  जो  बारी  फेरों  की  उस  दिन
निकली वो अपने अंधेरों से उस दिन
दिल  पे  था पत्थर पर पीछे न देखा
कदम नए सफर पर उठाये जा रही थी

हुई  विदा  जब  नए  घर  में  आई
उसने  पुरानी  कहानी  मिटाई
भुला कर के उसने था सब कुछ मिटाया
वो घर को नया घर बनाये जा रही थी

था अगले जन्म का वचन मेरा उससे
नहीं हटा पाया मैं मन मेरा उससे
मगर वो बंधी थी तो फिर खुल न पाई
वो मेरे वचन को मिटाए जा रही थी

सारांश....⚘⚘

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