उफनाई है और चढ़ी हैं
दुख से नदियां फूट पड़ी है ।
पहले दिन छोटे लगते थे
अब लगता है रात बड़ी है
।
बाजारों में प्यार बढ़ा है
घर में पर तक़रार बढ़ी है
।
महंगे कपडे , लंबी गाड़ी
आंख मगर उजड़ी-उजड़ी है ।
एक झोली भर ख़्वाब मिले हैं
आंखों से तो नींद उड़ी है ।
सपने थक कर घर लौटे हैं
देहरी पर एक आस खड़ी है ।
सबकी मुश्किल हर लेती है
घर के मुखिया की पगड़ी है ।
दुख से नदियां फूट पड़ी है ।
पहले दिन छोटे लगते थे
अब लगता है रात बड़ी है
।
बाजारों में प्यार बढ़ा है
घर में पर तक़रार बढ़ी है
।
महंगे कपडे , लंबी गाड़ी
आंख मगर उजड़ी-उजड़ी है ।
एक झोली भर ख़्वाब मिले हैं
आंखों से तो नींद उड़ी है ।
सपने थक कर घर लौटे हैं
देहरी पर एक आस खड़ी है ।
सबकी मुश्किल हर लेती है
घर के मुखिया की पगड़ी है ।
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