कोई टोपी तो कोई अपनी पगड़ी बेच देताहै..
मिले अगर भाव अच्छा, जज भी कुर्सी बेच देता है,....
तवायफ फिर भी अच्छी, के वो सीमित है कोठेतक.
पुलिस वाला तो चौराहे पर वर्दी बेच देता है,..
जला दी जाती है ससुराल में अक्सरवही बेटी..
जिस बेटी की खातिर बाप किडनी बेच देता है,..
ये कलयुग है, कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं इसमे
कली, फल फूल, पेड़ पौधे सब माली बेच देता है,.
किसी ने मुहब्बत में दिल हारा है तो क्यूँ हैरत है लोगों को.
युद्धिष्ठिर तो जुएँ में अपनी पत्नी बेच देता है...!
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मिले अगर भाव अच्छा, जज भी कुर्सी बेच देता है,....
तवायफ फिर भी अच्छी, के वो सीमित है कोठेतक.
पुलिस वाला तो चौराहे पर वर्दी बेच देता है,..
जला दी जाती है ससुराल में अक्सरवही बेटी..
जिस बेटी की खातिर बाप किडनी बेच देता है,..
ये कलयुग है, कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं इसमे
कली, फल फूल, पेड़ पौधे सब माली बेच देता है,.
किसी ने मुहब्बत में दिल हारा है तो क्यूँ हैरत है लोगों को.
युद्धिष्ठिर तो जुएँ में अपनी पत्नी बेच देता है...!
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