💔 💘 *Heart Touching* 💘 💔
*एक कवि नदी के किनारे खड़ा था - तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था। तो तभी कवि ने उस शव से पूछा कौन हो तुम……*
ओ सुकुमारी बह रही नदियां के जल में……
कोई तो होगा तेरा अपना मानव निर्मित इस भू-तल मे……
*किस घर की तुम बेटी हो किस क्यारी की कली हो तुम……*
*किसने तुमको छला है बोलो क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम……*
किसके नाम की मेंहदी बोलो दोनो हांथो-पैरो पर रची है तेरे……
बोलो किसके नाम की बिंदिया मांथे पर लगी है तेरे……
*लगती हो तुम राजकुमारी या देव लोक से आई हो……*
*उपमा रहित ये रूप तुम्हारा ये रूप कहाँ से लायी हो……*
🙏🙏 *दूसरा दृश्य* 🙏🙏
*कवि की बाते सुनकर लड़की की आत्मा बोलती है..…*
कवि राज मुझ को क्षमा करो मै गरीब पिता की बेटी हुँ……
इसलिये मृत मीन की भांती जल धारा पर लेटी हुँ……
*रूप रंग और सुन्दरता ही मेरी पहचान बताते है……*
*कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी, सुहागन मुझे बनाते है……*
पित के सुख को सुख समझा पित के दुख में दुखी थी मैं……
जीवन के इस तन्हा पथ पर पति के संग चली थी मैं……
*पति को मेने दीपक समझा उसकी लौ में जली थी मैं……*
*माता-पिता का साथ छोड उसके रंग में ढली थी मैं……*
पर वो निकला सौदागर लगा दिया मेरा भी मोल……
दौलत और दहेज़ की खातिर पिला दिया जल में विष घोल……
*दुनिया रुपी इस उपवन में छोटी सी एक कली थी मैं……*
*जिस को माली समझा उसी के द्वारा छली थी मैं……*
इश्वर से अब न्याय मांगने शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं……
दहेज़ की लोभी इस संसार मैं दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ में……
*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!*
*आपसे अनुरोध है इस कविता को शेयर जरुर करे ……*✍🙏
*एक कवि नदी के किनारे खड़ा था - तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था। तो तभी कवि ने उस शव से पूछा कौन हो तुम……*
ओ सुकुमारी बह रही नदियां के जल में……
कोई तो होगा तेरा अपना मानव निर्मित इस भू-तल मे……
*किस घर की तुम बेटी हो किस क्यारी की कली हो तुम……*
*किसने तुमको छला है बोलो क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम……*
किसके नाम की मेंहदी बोलो दोनो हांथो-पैरो पर रची है तेरे……
बोलो किसके नाम की बिंदिया मांथे पर लगी है तेरे……
*लगती हो तुम राजकुमारी या देव लोक से आई हो……*
*उपमा रहित ये रूप तुम्हारा ये रूप कहाँ से लायी हो……*
🙏🙏 *दूसरा दृश्य* 🙏🙏
*कवि की बाते सुनकर लड़की की आत्मा बोलती है..…*
कवि राज मुझ को क्षमा करो मै गरीब पिता की बेटी हुँ……
इसलिये मृत मीन की भांती जल धारा पर लेटी हुँ……
*रूप रंग और सुन्दरता ही मेरी पहचान बताते है……*
*कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी, सुहागन मुझे बनाते है……*
पित के सुख को सुख समझा पित के दुख में दुखी थी मैं……
जीवन के इस तन्हा पथ पर पति के संग चली थी मैं……
*पति को मेने दीपक समझा उसकी लौ में जली थी मैं……*
*माता-पिता का साथ छोड उसके रंग में ढली थी मैं……*
पर वो निकला सौदागर लगा दिया मेरा भी मोल……
दौलत और दहेज़ की खातिर पिला दिया जल में विष घोल……
*दुनिया रुपी इस उपवन में छोटी सी एक कली थी मैं……*
*जिस को माली समझा उसी के द्वारा छली थी मैं……*
इश्वर से अब न्याय मांगने शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं……
दहेज़ की लोभी इस संसार मैं दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ में……
*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!*
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