*मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,*
*आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।*
*लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,*
*मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।*
*छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,*
*जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।*
*मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,*
*छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।*
*कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,*
*क्योंकि आखिरी ठिकाना मेरा मिटटी का घर अपना जानता हूँ*
*बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,*
*आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!!*
*आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।*
*लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,*
*मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।*
*छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,*
*जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।*
*मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,*
*छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।*
*कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,*
*क्योंकि आखिरी ठिकाना मेरा मिटटी का घर अपना जानता हूँ*
*बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,*
*आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!!*
No comments:
Post a Comment