Monday, January 25, 2021

 'दिल छू लेने वाली कहानी...👌

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एक बूढ़ा व्यक्ति था जिसकी पत्नि का कुछ समय पहले ही निधन हो गया था। अब परिवार में केवल बेटा, बहु और एक छोटा सा पोता था, जिनके साथ वह बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वैसे तो परिवार सुख समृद्धि से परिपूर्ण था। किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन वह बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा-खासा नौजवान था, आज बुढ़ापे से हार गया था। अब उसके हाथ-पैर भी कांपने लगे थे और कोई भी काम ठीक ढ़ंग से नहीं कर पाते थे। आज उसे चलने के लिए लाठी की जरुरत पड़ने लगी थी और चेहरा झुर्रियों से भर चुका था। पत्नि की मृत्यु के बाद वे टूट से गए थे और बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहे थे। उनके घर की एक परम्परा बहुत पीढीयों से चली आ रही थी कि घर में शाम का खाना सभी साथ करते थे।


बेटा शाम को ऑफिस से घर आया तो उसे भूख बहुत तेज लगी थी सो जल्दी से भोजन करने के लिए बैठ गया, साथ में पिताजी भी बैठ गए। उसके पिताजी ने जैसे ही थाली उठाने की कोशिश की, तो थाली हाथ से छिटक गई और थोड़ी सब्जी टेबल पर गिर गई तो बहु-बेटे ने घृणा दृष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाना खाने लगे। बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथो से भोजन करना शुरू किया तो कभी खाना कपड़ों पर गिर जाता, कभी टेबल पर, तो कभी जमीन पर। बहु ने चिढ़ते हुए कहा, “हे राम, पिताजी तो कितनी गन्दी तरह से खाना खाते हैं, इन्हे देख कर घृणा आती है। मन करता है इनकी थाली किसी अलग कोने में लगा दिया करू। बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो।


उसका पोता यह सब मासूमियत से देख रहा था। अगले दिन पिताजी की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गई। अपनी भोजन की थाली एक कोने में लगी देखकर पिता जी को बहुत दु:ख हुआ लेकिन वे कर भी क्या सकते थे। सो वे बैठकर अपना भोजन करने लगे। भोजन करते-करते उन्हे वह समय याद आ रहा था जब वे अपने इसी बेटे को गोद में बिठाकर बड़े ही प्यार से भाेजन कराया करते थे और वह भी अपना खाना मेरे कपड़ो पर गिराया करता था , लेकिन मैंने कभी भी उसे खाना खिलाना बन्द नहीं किया। मुझे कभी घृणा नहीं आई। बूढ़े पिता यही सोचते हुए रोज की तरह कांपते हाथों से खाना खाने लगे। खाना कभी इधर गिरता, तो कभी उधर गिर जाता। वे ठीक तरह से खाना भी नहीं खा पा रहे थे। उनका पोता, लगातार अपना खाना छोड़कर अपने दादाजी की तरफ देखे जा रहा था तो उसकी माँ ने पूछा, “क्या हुआ बेटे, तुम दादाजी की तरफ क्या देख रहे हो? तुम अपना खाना क्यों नहीं खा रहे?“


बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला, “माँ, मैं देख रहा हूँ कि अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। जब मैं बड़ा होऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जायेंगे, तब मैं भी आप लोगो को इसी तरह कौने में भोजन दिया करूँगा।“बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही दोनों काँप उठे जैसे उन्हे किसी ने खींच के चांटा मार दिया हो। बच्चे की बात उनके मन में बैठ गई थी क्योंकि बच्चे ने मासूमियत के साथ एक बहुत बड़ी सीख दे दी थी।


ऐसा कहते हैं कि बच्चे और बूढ़े एक समान होते हैं लेकिन दोनों के व्यवहार में बहुत फर्क हो जाता है। बच्चे जब छोटे होते हैं और स्वयं अपने हाथ से खा-पी नहीं सकते, तब बड़े उनकी मदद करते हैं, लेकिन जब उम्र बढ़ जाने पर भोजन करते समय बड़ों के हाथ कांपते हैं, तब उन्हीं बच्चों द्वारा उन्हें ताने मारे जाते हैं। बच्चे जब छोटे होते हैं और स्वयं चल-फिर नहीं पाते, तब बड़े उन्हें चलना-फिरना सिखाते हैं, लेकिन जब उम्र बढ़ जाने पर बड़ों के पैर कांपते हैं, तब उन्हीं बच्चों द्वारा उन्हें चलने में मदद करने में, सहारा देने में शर्म महसूस होती है।


इस छोटी सी कहानी का केवल इतना ही उद्देश्य है कि जब बड़ों के हाथ-पैर कांपने लगें, तो उन्हें आपके प्रेम, आपके स्नेह की ज्यादा जरूरत होती है क्योंकि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है। उन्होंने आपको सालों सम्भाला है, उन्हें भी कुछ साल सम्भाल लीजिए, ताकि जब आप बूढ़े होकर फिर से बच्चा बनें, तो आपको भी कोई उतने ही प्रेम और स्नेह से सम्भालने में खुशी अनुभव कर सके।

 'प्रेरणादायक कहानी...👌

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एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।


एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।


उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी।


ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।


कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौन सा उस में फँसना है?


निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया।


मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा. जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।


हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई. और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।


उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई,  जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था।


अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।


तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी।


कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।


खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया।


कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया।


चूहा अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ....।


शिक्षा :- अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।


समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।


ये जरूरी थोड़े है मतलब पड़े तब ही किसी काम आये..बिना मतलब के भी तो किसी के काम आया जा सकता है यही तो इंसानियत है.


 💐 परेरणादायी  मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स 💐❣️


🔰शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।


सुझाव :  किसी भी विषय को मज़ेदार बनाने के लिए उसके प्रायोगिक उपयोग को समझे | 


🔰शिक्षा भविष्य का पासपोर्ट है कल का उन लोगों के लिए  जो आज इसकी तैयारी करते हैं 


सुझाव : पड़ने  के लिए बैठने से पहले क्रिस्टल क्लियर प्लान बनाएं।


🔰तम जहां हो वहीं से  शुरू करो। जो तुम्हारे पास है, उसका उपयोग करो। जो तुम कर सकतो हो वो करो


सुझाव :  आलस्य के कारण कल पर अपनी पढ़ाई  को  न टाले | 


🔰शरू करने के लिए आपको महान नहीं होना चाहिए, लेकिन शुरू करके आपको महान बनना होगा। 



सुझाव :   अपने बड़े लक्ष्य को छोटे लक्ष्यों में विभाजित करें।


🔰शरुआत करने का तरीका है कि आप बात करना छोड़ दें और करना शुरू करें


सुझाव :   एक समय में एक चीज पर ध्यान दें। 


🔰आज से एक साल बाद आप कामना कर सकते हैं कि  काश आप आज ही शुरू हो गए होते



सुझाव :   समय बहुत कीमती है। इसकी कद्र करे


🔰मरी सलाह है, कल कभी मत करो जो तुम आज  कर सकते हो। प्रोक्रिस्टिनेशन समय का चोर है। पकड़ो इसे


सुझाव :   कल करे सो आज कर , आज करे सो अभी


🔰यदि आप उड़ नहीं सकते, तो दौड़े। अगर आप दौड़ नहीं सकते, तो चलिए। यदि आप नहीं चल सकते हैं, तो रेंगे   , लेकिन आप जो भी करे ..आगे बढ़ते रहे


सुझाव :   रोज़  कम से कम 1 घंटा ज़रूर पड़े


🔰मने सुना और मै भुल गया । मैंने देखा और मुझे याद है। जब मै करता हूं,तब मैं समझता हूं। 



सुझाव :   दोहराना सीखने की कुंजी है। 


सफलता सकारात्मक सोच के साथ आपकी सकारात्मक कार्रवाई से मिलती है।   


सुझाव :   केवल सोचने से कुछ नहीं होता है आपको कुछ करना होगा| 


हमें हार नहीं माननी चाहिए और हमें समस्या को हमें हराने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। 


सुझाव :   जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं 


🔰यदि आप इसे सरलता से नहीं समझा सकते , तो आप इसे अच्छी तरह से समझे नहीं है  


सुझाव :   अपनी सीख को दूसरों के साथ बांटे 


शिक्षक दरवाजा खोलते हैं, लेकिन आपको प्रवेश खुद करना होता है 


सुझाव :   खुद पढ़ाई करे, यह बहुत ज़रूरी है 


बीता हुए कल  से सीखो। आज के लिए जियो। आने वाले कल की आशा करो 


सुझाव :   अपनी असफलताओं से सीखें। 


🔰सीखने की खूबसूरत बात यह है कि कोई भी इसे आपसे दूर नहीं कर सकता है। 


सुझाव :   आप अपने भविष्य के लिए पढ़ाई कर रहे हैं। 


🔰अपने बहाने की तुलना में मजबूत हो।


सुझाव :   अपने मन को नियंत्रित करना सीखें।  


🔰तयारी सफलता की कुंजी है। 


सुझाव :   अपने अध्ययन के लिए एक समय सारणी बनाएं। 


🔰सफलता बार-बार और दिन-प्रतिदिन के छोटे प्रयासों का योग है


सुझाव :  दिन के अंत में अपने पूरे दिन का विश्लेषण करें।


🔰यह हमेशा असंभव सा लगता है जब तक कि पूरा न हो जाय


सुझाव :   शीशे के सामने खड़े होकर बोले मै टॉपर  हूँ 


🔰जानना पर्याप्त नहीं है; हम लागू करना चाहिए। कामना पर्याप्त नहीं है; हमें करना चाहिए 


सुझाव :   जो कुछ भी आप सीखते हैं, उसे  कागज पर व्यक्त करें।


🔰असफलता मुझे कभी भी पछाड़ नहीं पाएगी यदि सफल होने का मेरा संकल्प काफी मजबूत है 


सुझाव :   खुद के प्रति वचनबद्ध रहें


 एक् शिक्षाप्रद कहानी 


🌸🍁🌻 🌿🌷🍁🌻💐🌷🍁🌻 🌿🌷🍁🌸


एक गांव में एक किसान रहता था। वह रोज सुबह झरनों से साफ पानी लाने के लिए दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वह डंडे में बांधकर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एकदम सही था ✅। इस तरह रोज घर पहुंचते-पहुंचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।


सही घड़े को इस बात का घमंड 😎 था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा 😩 रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पहुंचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार जाती है।😢


 फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा,  'मैं खुद पर शर्मिंदा हूं और आपसे माफी मांगना चाहता हूं।'


किसान ने पूछा, 'क्यों ❓ तम किस बात से शर्मिंदा हो❓' 


फूटा घड़ा बोला, 'शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूं, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुंचाना चाहिए था, बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूं। मेरे अंदर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है।' 😔


किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुख हुआ और वह बोला, 'कोई बात नहीं, मैं चाहता हूं कि आज लौटते वक्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों 🌸🌺🌷🌼🌻💐 को देखो। घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया। ☺️


ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुंचते-पहुंचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था।' वह मायूस 😢 होकर किसान से माफी मांगने लगा।


किसान बोला, 'शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे।' वो बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अंदर की कमी को जानता था, और मैंने उसका फायदा उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे।


तुम रोज थोड़ा-थोड़ा कर उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत 😊 बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान ☝️ को अर्पित कर पाता हूं और अपने घर  🏡को सुन्दर बना पाता हूं। तुम्हीं सोचो, 'यदि तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ❓


हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं। यानी आप जैसे हैं वैसे ही रहिए। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वैसा ही स्वीकारना चाहिए जैसा वह है। उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब फूटा घड़ा भी अच्छे घड़े से कीमती हो जाएगा 

 आज का प्रेरक प्रसङ्ग


          !! मन !!

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सुबह होते  ही, एक भिखारी नरेन्द्रसिंह के घर पर भिक्षा मांगने के लिए पहुँच गया।  भिखारी ने  दरवाजा खटखटाया, नरेन्द्रसिंह बाहर आये पर उनकी जेब में देने के लिए कुछ न निकला।  वे कुछ दु:खी होकर घर के अंदर गए और एक बर्तन उठाकर भिखारी को दे दिया। भिखारी के जाने के थोड़ी देर बाद ही वहां नरेन्द्रसिंह की पत्नी आई और बर्तन न पाकर चिल्लाने लगी- “अरे! क्या कर दिया आपने चांदी का बर्तन भिखारी को दे दिया।  दौड़ो-दौड़ो और उसे वापिस लेकर आओ।”


नरेन्द्रसिंह दौड़ते हुए गए और भिखारी को रोककर कहा- “भाई मेरी पत्नी ने मुझे जानकारी दी है कि यह गिलास चांदी का है, कृपया इसे सस्ते में मत बेच दीजियेगा। ”वहीँ पर खड़े नरेन्द्रसिंह के एक मित्र ने उससे पूछा- मित्र! जब आपको  पता चल गया था कि ये गिलास चांदी का है तो भी उसे गिलास क्यों ले जाने दिया?” नरेन्द्रसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा- “मन को इस बात का अभ्यस्त बनाने के लिए कि वह बड़ी से बड़ी हानि में भी कभी दुखी और निराश न हो!”


शिक्षा– मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें।  मन उदास हो गया तो आपके कार्य करने की गति धीमी हो जाएगी। इसलिए मन को हमेशा प्रसन्न रखने का प्रयास करें।

 एक कहानी.....!!

🌴💚


एक घर में एक बेटी ने जनम लिया, 

जन्म होते ही माँ का स्वर्गवास हो गया। 


बाप ने बेटी को गले से लगा लिया रिश्तेदारों ने 

लड़की के जन्म से ही ताने मारने शुरू कर दिए 

कि पैदा होते ही माँ को खा गयी मनहूस

पर बाप ने कुछ नही कहा अपनी बेटी को, बेटी का पालन पोषण शुरू किया, खेत में काम करता और  बेटी को भी खेत ले जाता, काम भी करता और भाग कर बेटी को भी  संभालता।



रिश्तेदारों ने बहुत समझाया के दूसरा विवाह कर लो पर बाप ने किसी की नही सुनी और पूरा धयान बेटी की और रखा। बेटी बड़ी हुयी स्कूल गयी फिर कॉलेज। हर क्लास में फर्स्ट आयी। बाप बहुत खुश होता लोग बधाइयाँ देते।



बेटी अपने बाप के साथ खेत में काम करवाती, फसल अच्छी होने लगी, रिश्तेदार ये सब देख कर चिढ़ गए। जो उसको मनहूस कहते थे वो सब चिढ़ने लग गए।


लड़की एक दिन अच्छा पढ़ लिख कर पुलिस में SP बन गयी।

एक दिन किसी मंत्री ने उसको सम्मानित करने का फैसला लिया और समागम का बंदोबस्त करने के आदेश दिए। समागम उनके ही गाँव में रखा गया। 


मंत्री ने समागम में लोगों को समझाया के बेटा बेटी में फर्क नही करना चाहिए, बेटी भी वो सभ कर सकती है जो बेटा कर सकता है।भाषण के बाद मंत्री ने लड़की को स्टेज पर बुलाया और कुछ कहने को कहा।


 लड़की ने माइक पकड़ा और कहा-

मैं आज जो भी हूं अपने बाबुल(पिता) की वजह से हूं जो लोगो के ताने सह कर भी मुझे यहाँ तक ले आये। मेरे पालन पोषण के लिए दिन रात एक कर दिया। मैंने माँ नहीं देखी और न ही कभी पिता से कहा के माँ कैसी थी, क्योकि अगर में पूछती तो बाप को लगता के शायद मेरे पालन पोषण में कोई कमी रह गयी। मेरे लिये मेरे पिता से बढ़ कर कुछ नही। 



बाप सामने लोगो में बैठ कर आंसू बहा रहा था। बेटी की भी बोलते बोलते आँखे भर आयी।उसने मंत्री से पिता को स्टेज पर बुलाने की अनुमति ली। 


बाप स्टेज पर आया और बेटी को गले लगाकर बोला-रोती क्यों है बेटी तुं तो मेरा शेर पुत्तर है

 तुं ही कमजोर पड़ गया तो मेरा क्या होगा मैंने तुझको सारी उम्र हँसते देखना है।



बाप बेटी का प्यार देखकर सब की आँखे नम हो गयी। 


मंत्री ने बेटी के गले में सोने का मेडल डाला।


 लड़की ने मैडल उतार कर बाप के गले में डाल दिया। 



मंत्री ने बोला ये क्या किया तो लड़की बोली मैडल को उसकी सही जगह पहुँचा दिया। 

इसके असली हक़दार मेरे पिता जी हैं। 

समागम में तालियाँ बज उठी...!!


🌴💚


यह उन लोगों के लिए सबक है जो बेटियों को चार दीवारी में रखना पसंद करते हैं पर ये फूल बाहर खिलेंगे अगर आप पानी लगाकर इन फूलों की देखभाल करोगे।

 नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..


1) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- करते नहीं कोई यात्रा,

- पढ़ते नहीं कोई किताब,

- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,

- करते नहीं किसी की तारीफ़।


2) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:

- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,

- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।


3) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के, 

- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,

- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,

- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या

- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।


4) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।


5) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,

- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,

- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,

- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।

तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!

 आज का प्रेरक प्रसङ्ग


   !! सत्य का साथ कभी न छोड़े !!

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स्वामी विवेकानंद जी प्रारंभ से ही मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे | जब वह अपने साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे | एक दिन कक्षा में वो कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया | मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी | “कौन बात कर रहा है ?” मास्टर जी ने तेज आवाज़ में पूछा |


सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ़ इशारा कर दिया | मास्टर जी क्रोधित हो गए | उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबंधित प्रश्न पूछने लगे | जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया तब मास्टर जी ने स्वामी जी से वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हो | उन्होनें आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया | यह देख कर मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात – चीत कर रहे थे |


फिर क्या था | उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी | सभी छात्र एक एक कर बेंच पर खड़े होने लगे | स्वामी जी ने भी यही किया | मास्टर जी बोले नरेन्द्र तुम बैठ जाओ ! नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था | स्वामी जी ने आग्रह किया | सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए |


कहानी से सीख :-

**इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मार्ग कितना भी कठिन क्यों न हों | सदा सत्य का साथ देना चाहिए |__

 प्रेरणादायक कहानी...👌

पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.


                       ✍️✍️


एक समय की बात है...एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे...


समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.


पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी. सन्त बहुत दु:खी हुए.


उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.


थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,


सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.


स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.


थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.


सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.


वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?


उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : —


मैं एक मछुआरा हूँ मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.


मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.


कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.


सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ,जो देखा उसके बारे में मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.


कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.


⭕️'शिक्षा.....✍️


किसी के प्रति कोई निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.

 1) मिलता तो बहुत है 

इस जिंदगी में,

बस हम गिनती उसी की करते है,

जो हासिल न हो सका ...


2) दौलत सिर्फ रहन सहन का 

स्तर बदल सकती है;

बुद्धि नियत और तकदीर नहीं ...


3) प्रेम, सम्मान और अपमान...

ये एक निवेश की तरह है,

जितना हम दूसरों को देते है,

वो हमें जरूर 

ब्याज सहित वापस मिलता है ...


4) आलोचना मे छिपा हुआ "सत्य"

                  "और"

       प्रशंसा में छिपा "झूठ"

   यदि मनुष्य समझ जाये तो...

आधी समस्याओं का समाधान

     अपने आप हो जायेगा।।


5) सफलता हमेशा आपको निजी तौर पर 

गले लगाती है ... लेकिन असफलता आपको

हमेशा सार्वजनिक रूप से थप्पड़ मारती है ...


🍀 आपका दिन मंगलमय हो 🌸

 1) ❛यहाँ सब खामोश हैं

कोई आवाज़ नहीं करता

सच बोलकर, कोई किसी को 

नाराज़ नहीं करता❜


2) ❛दुनिया तो ख़ामोशी भी सुनती है,

लेकिन पहले धूम मचानी पड़ती है❜


3) ❛वो अफ़साना 

जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन

उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा❜


4) ❛एक सच...

तज़ुर्बा ग़लत फैसलों से बचाता है

उससे भी बड़ा सच...

तज़ुर्बा गलत फैसलों से ही आता है❜


5) ❛जीवन मे अपमान, असफलता,

धोखे जैसी बातों को सीधे गटक जायें

उन्हें चबाते रहेंगे, अर्थात याद करतें रहेंगें

तो आपका जीवन कड़वा ही होगा❜

 चिड़ियाघर का ऊंट !!


एक ऊंटनी और उसका बच्चा एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे. बच्चे ने पूछा, “माँ, हम ऊँटों का ये कूबड़ क्यों निकला रहता है?”


“बेटा हम लोग रेगिस्तान के जानवर हैं, ऐसी जगहों पर खाना-पानी कम होता है, इसलिए भगवान ने हमें अधिक से अधिक फैट स्टोर करने के लिए ये कूबड़ दिया है. जब भी हमें खाना या पानी नहीं मिलता हम इसमें मौजूद फैट का इस्तेमाल कर खुद को जिंदा रख सकते हैं” ऊंटनी ने उत्तर दिया.


बच्चा कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, “अच्छा, हमारे पैर लम्बे और पंजे गोल क्यों हैं?”


“इस तरह का आकार हम ऊँटों को रेत में आराम से लम्बी दूरी तय करने में मदद करता है, इसलिए” माँ ने समझाया.


बच्चा फिर कुछ देर सोचता रहा और बोला, “अच्छा माँ ये बताओ कि हमारी पलकें इतनी घनी और लम्बी क्यों होती हैं?”


“ताकि जब तेज हवाओं के कारण रेत उड़े तो वो हमारी आँखों के अन्दर ना जा सके” माँ मुस्कुराते हुए बोली.


बच्चा थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, “अच्छा तो ये कूबड़ फैट स्टोर करने के लिए है… लम्बे पैर रेगिस्तान में तेजी से बिना थके चलने के लिए है… पलकें रेत से बचाने के लिए है… लेकिन तब हम इस चिड़ियाघर में क्या कर रहे हैं?”


शिक्षा:-

दोस्तों, यही सवाल हमें खुद से पूछना चाहिए. ईश्वर ने हर एक इंसान को विशेष बनाया है. हर व्यक्ति में इतनी क्षमता है कि वह कुछ बड़ा… कुछ महान कर सकता है. लेकिन ज्यादातर लोग चिड़ियाघर का ऊंट बन जाते हैं… अपने अन्दर मौजूद अपार योग्यताओं का प्रयोग ही नहीं करते… बेजुबान जानवर तो मजबूर हैं… लेकिन एक इंसान होने के नाते हमें मजबूर नहीं मजबूत बनाना चाहिए और अपने अन्दर के गुणों को पहचान कर अपना सुंदर जीवन जीने की हर कोशिश करनी चाहिए.

 ख़ुद में रह कर वक़्त बिताओ तो अच्छा है,

ख़ुद का परिचय ख़ुद से कराओ तो अच्छा है..
इस दुनिया की भीड़ में चलने से तो बेहतर,
ख़ुद के साथ में घूमने जाओ तो अच्छा है..
अपने घर के रोशन दीपक देख लिए अब,
ख़ुद के अन्दर दीप जलाओ तो अच्छा है..
तेरी, मेरी इसकी उसकी छोडो भी अब,
ख़ुद से ख़ुद की शक्ल मिलाओ तो अच्छा है..
बदन को महकाने में सारी उम्र काट ली,
रूह को अब अपनी महकाओ तो अच्छा है..
दुनिया भर में घूम लिए हो जी भर के अब,
वापस ख़ुद में लौट के आओ तो अच्छा है..
तन्हाई में खामोशी के साथ बैठ कर,
ख़ुद को ख़ुद की ग़ज़ल सुनाओ तो अच्छा है..❜

 जागरूक माँ - खुशहाल विवाहिता बेटी

एक सब्जी की दुकान पर जहाँ से मैं अक्सर सब्जियाँ लेता हूँ, जब मैं पहुँचा तो सब्जी वाली महिला फोन पर किसी से बात कर रही थी अत: मैंने कुछ क्षण रुकना ही ठीक समझा, उस महिला ने रुकने का संकेत भी किया तो रुक गया और उसकी बात मेरे कान में भी पड़ रही थी।
वह अपनी उस बेटी से बात कर रही थी जिसकी शादी मात्र तीन चार दिन पहले ही हुई थी।
वह कह रही थी "देखो बेटी मायके की याद आती है यह तो ठीक है लेकिन ससुराल ही अब तुम्हारा अपना घर है"। तुम्हें अब अपना सारा ध्यान केवल अपने घर के लिए ही लगाना है। बार बार फोन मत किया करो और अपने ससुराल वालों से छिपकर तो बिलकुल भी नहीं। जब भी यहाँ फोन करना तो सास या पति के सामने करना।
तुम अपने फोन पर मेरे फोन आने का इंतजार कभी मत करना। मुझे जब भी बात करना होगा तो मैं तुम्हारी सास के नंबर पर लगाऊँगी।तब तुम भी बात कर लिया करना।
बेटी! "अब ससुराल में हो जरा जरा सी बात पर तुनकना छोड़ दो, सहनशक्ति रखो। अपना घर कैसे चलाना है ये सब अपनी सास से सीखो। एक बात ध्यान रखो प्यार एवं इज्जत दोगी तो ही स्नेह और इज्जत पाओगी। ठीक है। सुखी रहो"
मैंने प्रशंसा के भाव में कहा "बहुत सुंदर समझाया आपने"
उस महिला ने कहा कि "बहन एवं माँ को बेटी के परिवार में कभी भी अनावश्यक दखल नहीं देनी चाहिये"। उन्हें अपने घर की बातों को भी बिना मतलब के इधर उधर नहीं करना चाहिये। वहाँ यदि कोई समस्या हो तो समस्या का हल खुद ही ढूँढ़ो।
मैं उस देवी का मुँह देखता रह गया। सभी माँ को इसी तरह से सोचना चाहिए ताकि बेटी अपने ससुराल रूपी घर को खुद का ही घर समझे।
स्वर्ग तो खुद के आचरण, संस्कार, व्यवहार एवं किरदार में छिपा है लेकिन हिरन के समान मृगतृष्णा में भ्रमित हैं और इसी कारण स्वर्ग जैसा घर नरक में तब्दील होकर रह गया होता है।
जागरूक माँ - खुशहाल विवाहिता बेटी

 एक प्रसिद्ध लेखक पत्रकार और राजनयिक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जो बेहद ही हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी है। उनकी पत्रकारिता देश ही नहीं अपितु विदेश में भी प्रसिद्ध है। उन्होंने वैसे जगह पर भी पत्रकारिता की है जहां अन्य पत्रकारों के लिए संभव नहीं है।उनकी हसमुख प्रवृत्ति और हाजिर जवाब का कोई सानी नहीं है। एक समय की बात है पुष्पेंद्र एक सभा को संबोधित कर रहे थे , सभा में जनसैलाब उमड़ा था , लोग उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से आए हुए थे।

जब वह अपना भाषण समाप्त कर बाहर निकले , तब उनकी ओर एक भीड़ ऑटोग्राफ के लिए बढ़ी। पुष्पेंद्र उनसे बातें करते हुए ऑटोग्राफ दे रहे थे। तभी एक नौजवान उस भीड़ से पुष्पेंद्र के सामने आया उस नौजवान ने उनसे कहा –
” मैं आपका बहुत बड़ा श्रोता और प्रशंसक हूं , मैं साहित्य प्रेमी हूं , जिसके कारण मुझे आपकी लेखनी बेहद रुचिकर लगती है। इस कारण आप मेरे सबसे प्रिय लेखक भी हैं। मैंने आपकी सभी पुस्तकें पढ़ी है और आपके व्यक्तित्व को अपने जीवन में उतारना चाहता हूं। किंतु मैं ऐसा क्या करूं जिससे मैं एक अलग पहचान बना सकूं। आपकी तरह ख्याति पा सकूं।”
ऐसा कहते हुए उस नौजवान ने अपनी पुस्तिका ऑटोग्राफ के लिए पुष्पेंद्र की ओर बढ़ाई।
इसके बाद मजेदार बात हुई
पुष्पेंद्र ने उस समय कुछ नहीं कहा और उसकी पुस्तिका में कुछ शब्द लिखें और ऑटोग्राफ देकर उस नौजवान को पुस्तिका वापस कर दी।
इस पुस्तिका में यह लिखा हुआ था – ” आप अपना समय स्वयं को पहचान दिलाने के लिए लगाएं , किसी दूसरे के ऑटोग्राफ से आपकी पहचान नहीं बनेगी। जो समय आप दूसरे लोगों को लिए देते हैं वह समय आप स्वयं के लिए दें। ”
नौजवान इस जवाब को पढ़कर बेहद प्रसन्न हुआ और उसने पुष्पेंद्र को धन्यवाद कहा कि –
” मैं आपका यह वचन जीवन भर याद रखूंगा और अपनी एक अलग पहचान बना कर दिखाऊंगा। ”

 एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं।

उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है।
महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई।
उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी।
क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।
" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया।
असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"
'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"
दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई।
महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"
एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी।
एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है।
अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई।
कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है |
इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"
'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती...
एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा
"सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।
यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।
तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा,
"मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे।
सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..?
लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"
और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।
'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।
अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।
मैरे पास ये कहानी आई थी।
मैंने इसे पढ़ा तो हृदय को छू गई इसलिये पोस्ट कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों भी बहुत पसंद आएगी।

 एक बादशाह सर्दियों की शाम जब अपने महल में दाखिल हो रहा था तो एक बूढ़े दरबान को देखा जो महल के सदर दरवाज़े पर पुरानी और बारीक वर्दी में पहरा दे रहा था।

बादशाह ने उसके करीब अपनी सवारी को रुकवाया और उस बूढ़े दरबान से पूछने लगा ;
"सर्दी नही लग रही ?"
दरबान ने जवाब दिया "बोहत लग रही है हुज़ूर ! मगर क्या करूँ, गर्म वर्दी है नही मेरे पास, इसलिए बर्दाश्त करना पड़ता है।"
"मैं अभी महल के अंदर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूँ तुम्हे।"
दरबान ने खुश होकर बादशाह को फर्शी सलाम किया और आजिज़ी का इज़हार किया।
लेकिन बादशाह जैसे ही महल में दाखिल हुआ, दरबान के साथ किया हुआ वादा भूल गया।
सुबह दरवाज़े पर उस बूढ़े दरबान की अकड़ी हुई लाश मिली और करीब ही मिट्टी पर उसकी उंगलियों से लिखी गई ये तहरीर भी ;
"बादशाह सलामत ! मैं कई सालों से सर्दियों में इसी नाज़ुक वर्दी में दरबानी कर रहा था, मगर कल रात आप के गर्म लिबास के वादे ने मेरी जान निकाल दी।"
सहारे इंसान को खोखला कर देते है और उम्मीदें कमज़ोर कर देती है।
अपनी ताकत के बल पर जीना शुरू कीजिए, खुद की सहन शक्ति, ख़ुद की ख़ूबी पर भरोसा करना सीखें।
आपका आपसे अच्छा साथी,
दोस्त, गुरु, और हमदर्द कोई नही हो सकता।....

 'परिवर्तन का नियम...

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ज़िंदगी में कभी कभी ऐसा वक़्त भी आता है। जब इंसान अंदर से टूट जाता है। अंदर से मर सा जाता है।
ऐसा लगता है, सारी परेशनिया मेरी ज़िंदगी में ही क्यूँ है। ऐसा लगता है, मुसीबतों ने चारों तरफ़ से घेर लिया हो।
जैसे किसी चक्रवुह में फँस गए हो। हर चीज़ में फ़ेल हो जाते है.Relationship में , कैरीअर में हर चीज़ में हार जाते है।
ऐसा लगता है जैसे हर बात उलटी हो रही है, हर चीज़ ग़लत हो रही है।
और मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा है। ऐसे दुखो में उलझ के रह जाते है जैसे कोई रास्ता ही नही दिखाई देता।
लगता है कोई अपना नही यहाँ, जो मेरी प्रॉब्लम को solve कर सके।
मेरे दुःख को समझ सके, कई लोग तो इतने टूट जाते है अंदर से।
उन्हें लगता है ऐसी ज़िंदगी से तो हम मर जाए, अगर ज़िंदगी में इतने ही दुःख है तो क्या फ़ायदा ऐसे जीवन का।
एक बात आप हमेशा याद रखना, दुःख चाहे कितना भी बड़ा क्यूँ ना हो। पर हिम्मत दुःख से हमेशा बड़ी होती है।
जब भी आपकी ज़िंदगी में कोई दुःख आए, कोई परेशानी आए, तो अपनी हिम्मत को इतना बड़ा कर दो।
कि आप का दुःख उसके आगे छोटा पड़ जाए। हर इंसान को इस दौर से गुज़रना ही होता है।
ये परेशनिया, ये दुःख इंसान को अंदर से बहुत मज़बूत बना देती है।
ज़िंदगी में कभी आपके सामने कोई दरवाज़ा बंद हो जाए। तो समझ लेना कि अब कोई बड़ा दरवाज़ा खुलने वाला है।
लाइफ़ का कोई चैप्टर बंद हो जाए। कोई कहानी ख़त्म हो जाए तो टूटने की ज़रूरत नही है।
ये आपकी ज़िंदगी का सिर्फ़ एक चैप्टर है।
बस ज़रूरत है एक पेज पलटने की। जैसे ही आप एक पेज पलटेंगे आपकी ज़िंदगी में नया चैप्टर शुरू हो जाएगा।
जिसमें बहुत सारी नयी बातें होगी।
कभी हम रिश्तों में हार जाते है। कभी हम कैरीअर में हार जाते है। कभी अपनो से हार जाते है। कभी तो ज़िंदगी से ही हार जाते है।
जब कोई रिश्ता टूटता है या दिल टूटता है लोग उस दर्द को सह नही पाते।
और जब कुछ वक़्त गुज़र जाता है तो लोग कहते है अच्छा हुआ वो रिश्ता मेरी ज़िंदगी से चला गया।
अगर उस रिश्ते में हम रहते तो हमारी तो ज़िंदगी ख़राब हो जाती।
कई बार कुछ चीज़े हमारी ज़िंदगी में ऐसी होती है हमें लगता है कि हमारे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है।
आगे चलके वो चीज़े हमारे बेहतर भविष्य को लेकर आती है।
आप जितने भी सफल लोगों की कहानिया सुनेगे या पढ़ेगे, वो यही कहते है। अगर ज़िंदगी में हमने दुखो को नही देखा होता।
चुनौतियो का सामना ना किया होता तो आज हम इस मुक़ाम पर नही होते।
आपको लगता है ये मुसीबत, परेशानी, दर्द, दुःख मेरी ज़िंदगी में क्यूँ आयी है वो इसलिए आयी है कि आप अपने बेहतर भविष्य की तरफ़ देखे।
आप वहाँ से हट जाए, अभी जिस जगह आप है। क्योंकि जिस जगह आप है, वो जगह आपके लिए सही नही है।
जिसके इंसान के साथ आज आप है वो इंसान आपके लिए सही नही है। आपका बेहतर भविष्य आपका इंतज़ार कर रहा है।

 पढ़िए बहुत रहस्मय... सच्चाई

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मेरे मन में सुदामा के सम्बन्ध में एक बड़ी शंका थी कि एक विद्वान् ब्राह्मण जो जीवन भर कष्ट भोगता रहा अपने बाल सखा कृष्ण से छुपाकर चने कैसे खा सकता है ..?_
आज एक भुदेव् की कृपा से ज्ञात हुआ तो सोचा आप सबका भी ज्ञान वर्धन करूँ इसके पीछे की कथा बताकर...
बताते हैं सुदामा की दरिद्रता, और चने की चोरी के पीछे एक बहुत ही रोचक और त्याग-पूर्ण कथा है- एक अत्यंत गरीब निर्धन बुढ़िया भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते उसे रात हो गयी। बुढ़िया ने सोंचा अब ये चने रात मे नही, प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर खाऊँगी ।*
यह सोंचकर उसने चनों को कपडे में बाँधकर रख दिए और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। बुढ़िया के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये। चोरों ने चनों की पोटली देख कर समझा इसमे सोने के सिक्के हैं अतः उसे उठा लिया। चोरो की आहट सुनकर बुढ़िया जाग गयी और शोर मचाने लगी। शोर-शराबा सुनकर गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे। चने की पोटली लेकर भागे चोर पकडे जाने के डर से संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। इसी संदीपन मुनि के आश्रम में भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
चोरों की आहट सुनकर गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता ने पुकारा- कौन है ?? गुरुमाता को अपनी ओर आता देख चोर चने की पोटली छोड़कर वहां से भाग गये। इधर भूख से व्याकुल बुढ़िया ने जब जाना कि उसकी चने की पोटली चोर उठा ले गए हैं, तो उसने श्राप दे दिया- "मुझ दीनहीन असहाय के चने जो भी खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा"।
उधर प्रात:काल आश्रम में झाडू लगाते समय गुरुमाता को वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमे चने थे। उसी समय सुदामा जी और श्री कृष्ण जंगल से लकडी लाने जा रहे थे। गुरुमाता ने वह चने की पोटली सुदामा को देते हुए कहा बेटा! जब भूख लगे तो दोनो यह चने खा लेना।
सुदामा जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। उन्होंने ज्यों ही चने की पोटली हाथ मे ली, सारा रहस्य जान गए। सुदामा ने सोचा- गुरुमाता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना, लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो मेरे प्रभु के साथ साथ तीनो लोक दरिद्र हो जाएंगे। नही-नही मै ऐसा नही होने दूँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा। मै ये चने स्वयं खा लूँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा और सुदामा ने कृष्ण से छुपाकर सारे चने खुद खा लिए। अभिशापित चने खाकर सुदामा ने स्वयं दरिद्रता ओढ़ ली लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को बचा लिया।
अद्वतीय त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले सुदामा, चोरी-छुपे चने खाने का अपयश भी झेलें तो यह बहुत अन्याय है पर आज मन की इस गहन शंका का निवारण हो गया.!
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गलती आपकी हो या मेरी
रिश्ता तो हमारा है ना....

 आज का प्रेरक प्रसंग

कहानियाँ जो जिंदगी बदल दे🚩🇮🇳
!!!---: व्यर्थ के सपने :---!!!
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एक बार की बात है। एक गरीब किसान एक जमीदार के पास गया और बोला –आप एक साल के लिए अपना एक खेत मुझे उधार दे दीजिये। मैं उस खेत में मेहनत करके अपने लिए अनाज उगाऊँगा। जमींदार एक दयालु व्यक्ति था। उसने उस किसान को एक खेत एक साल के लिए उधार दे दिया।
साथ ही साथ उस किसान की मदद के लिए उसने पाँच व्यक्ति भी दिए। वह किसान उन पाँच व्यक्तियों को लेकर घर आ गया और उस खेत में काम करने लगा। एक दिन उस किसान ने सोचा। जब पाँच लोग इस खेत में काम कर रहे है तो मैं क्यों करूं?
किसान काम छोड़कर अपने घर वापस आ गया और मीठे- मीठे सपने देखने लगा। एक साल बाद मेरे खेत में आनाज ऊगेगा। उसे बेचने पर मेरे पास बहुत से पैसे आयेंगे और उन पैसों से मैं बहुत कुछ खरीदूँगा।
उस किसान को जो पाँच व्यक्ति मिले थे। वे खेत में अपनी मर्जी से काम कर रहे थे। जब उनका मन करता था। वे खेत में पानी दे देते थे। जब मन करता था। वे खेत में खाद डाल देते थे। उस खेत में लगी फसल धीरे–धीरे बड़ी हो रही थी लेकिन वह किसान अपनी फसलों को देखने खेत में नहीं आया। वह हर रोज सपने देखता रहता था।
अब फसल काटने का समय आ चुका था। किसान अपने सपनों के साथ खेत में पहुँचा। फसल देखते ही वह चौंक गया क्योकि फसल अच्छी नहीं थी। उस फसल से उसे उतना पैसा भी नहीं मिल रहा था। जो उसने फसल उगाने में खर्च किया था।एक साल पूरा हो चुका था।
वह जमींदार किसान से अपना खेत लेने वापस आया। उस जमींदार को देखकर वह किसान रोने लगा और फिर से एक साल का वक़्त माँगने लगा। किसान की बात सुनकर जमींदार बोला–यह मौका बार – बार नहीं मिलता। यह कहकर वह जमींदार वहाँ से चला गया।
वह दयालु जमींदार भगवान था। वह गरीब किसान हम सभी व्यक्ति है। वह खेत हमारा शरीर है। पाँच व्यक्ति जो किसान की मदद के लिए दिए गए थे। वे हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है। अब आप इन पाँच ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग किस तरिके से करते है, ये हम पर निर्भर है।
शिक्षा;-
एक समय ऐसा भी आयेगा। जब भगवान् हमसे यह शरीर वापस माँगेंगे। उस समय वह आपसे पुछेंगे–मैंने तुम्हे पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ दी। मुझे बताओ तुमने इनका किस तरिके से उपयोग किया। बात को गांठ बांध लीजिए यह मौका बार –बार नहीं मिलता।

 "जीवन का रहस्य"

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एक बहुत पुरानी कथा है। एक बार एक साधु किसी गाँव से हो कर तीर्थ को जा रहे थे। थकान हुई तो उस गाँव में एक बरगद के पेड़ के नीचे जा बैठे। वहीँ पास में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। उधर से एक साधु गुजरे।
उन्होंने एक मजदूर से पूछा- यहां क्या बन रहा है? उसने कहा- देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं?
साधु ने कहा- हां, देख तो रहा हूँ ।लेकिन यहां बनेगा क्या? मजदूर झुंझला कर बोला- मालूम नहीं। यहां पत्थर तोड़ते- तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा।
साधु आगे बढ़े। एक दूसरा मजदूर मिला। साधु ने पूछा – यहां क्या बनेगा? मजदूर बोला- देखिए साधु बाबा, यहां कुछ भी बने। चाहे मंदिर बने या जेल, मुझे क्या। मुझे तो दिन भर की मजदूरी के 100 रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है।
साधु आगे बढ़े तो तीसरा मजदूर मिला। साधु ने उससे पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर ने कहा- मंदिर। इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूं। ये सारे मजदूर इसी गांव के हैं। मैं एक- एक छेनी चला कर जब पत्थरों को गढ़ता हूं तो छेनी की आवाज में मुझे मधुर संगीत सुनाई पड़ता है।
मैं आनंद में हूँ । कुछ दिनों बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा और यहां धूमधाम से पूजा होगी। मेला लगेगा। कीर्तन होगा। मैं यही सोच कर मस्त रहता हूं। मेरे लिए यह काम, काम नहीं है। मैं हमेशा एक मस्ती में रहता हूं। मंदिर बनाने की मस्ती में। मैं रात को सोता हूं तो मंदिर की कल्पना के साथ और सुबह जगता हूं तो मंदिर के खंभों को तराशने के लिए चल पड़ता हूं।
बीच- बीच में जब ज्यादा मस्ती आती है तो भजन गाने लगता हूं। जीवन में इससे ज्यादा काम करने का आनंद कभी नहीं आया।
शिक्षा:-साधु ने कहा- यही जीवन का रहस्य है मेरे भाई। बस नजरिया का फर्क है। एक ही काम को कई लोग कर रहे हैं, किन्तु सबका नजरिया अलग-अलग है । कोई काम को बोझ समझ रहा है और उसका पूरा जीवन झुंझलाते और हाय- हाय करते बीत जाता है। लेकिन कोई काम को आनंद समझ कर जीवन का आनंद ले रहा है।

 बहुत ही अनमोल कहानी...

थोड़ा बड़ा पोस्ट है, पर एक बार जरूर पढ़ियेगा ।।
☢️"रिश्ते हैं प्यार के ...👭👫"
पिताजी जोऱ से चिल्लाते हैं....... ।
मैं दौड़कर आता हू , और पूछता हु । क्या बात है पिताजी ?
पिताजी :- तूझे पता नहीं है, आज तेरी बहन आ रही है ? वह इस बार हम सभी के साथ अपना जन्मदिन मनायेगी ।
अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ,
हाँ और सुन... तू अपनी नई गाड़ी लेकर जा जो तूने कल खरीदी है... उसे अच्छा लगेगा
मैं :- लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा दोस्त ले गया है सुबह ही... और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ये कहकर ले गया कि गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है।
पिताजी :- ठीक है तो तू स्टेशन तो जा किसी की गाड़ी लेकर या किराया की करके ? उसे बहुत खुशी मिलेगी ।
मै :- अरे वह बच्ची है क्या जो आ नहीं सकेगी?
आ जायेगी आप चिंता क्यों करते हो कोई टैक्सी या आटो लेकर----- ।
पिताजी :- तूझे शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए? घर मे गाड़ियाँ होते हुए भी घर की बेटी किसी टैक्सी या आटो से आयेगी?
मैं :- ठीक है आप जाओ मुझे बहुत काम है मैं जा नहीं सकता ।
पिताजी :- तूझे अपनी बहन की थोड़ी भी फिकर नहीं? शादी हो गई तो क्या बहन पराई हो गई ?
क्या उसे हम सबका प्यार पाने का हक नहीं?
तेरा जितना अधिकार है इस घर में , उतना ही तेरी बहन का भी है। कोई भी बेटी या बहन मायके छोड़ने के बाद पराई नहीं होती।
मैं :- मगर मेरे लिए वह पराई हो चुकी है और इस घर पर सिर्फ मेरा अधिकार है ।
तडाक ...... तडाक.....
अचानक पिताजी का हाथ उठ जाता है मुझपर
और तभी माँ आ जाती है ।
मम्मी :- आप कुछ शरम तो कीजिए ऐसे जवान बेटे पर हाँथ बिलकुल नहीं उठाते।
पिताजी - तुमने सुना नहीं इसने क्या कहा ?
अपनी बहन को पराया कहता है ये वही बहन है जो इससे एक पल भी जुदा नहीं होती थी--
हर पल इसका ख्याल रखती थी। पाकेट मनी से भी बचाकर इसके लिए कुछ न कुछ खरीद देती थी। बिदाई के वक्त भी हमसे ज्यादा अपने भाई से गले लगकर रोई थी। और ये आज उसी बहन को पराया कहता है।
मैं :-(मुस्कुराकर) "बुआ का भी तो आज ही जन्मदिन है ना पापा" वह कई बार इस घर मे आई है "मगर हर बार अॉटो से आई है ".आपने कभी भी अपनी गाड़ी लेकर उन्हें लेने नहीं गये...
माना वह आज वह तंगी मे है मगर कल वह भी बहुत अमीर थी । आपको मुझको इस घर को उन्होंने दिल खोलकर सहायता और सहयोग किया है। बुआ भी इसी घर से बिदा हुई थी फिर रश्मि दी और बुआ मे फर्क कैसा। रश्मि मेरी बहन है तो बुआ भी तो आपकी बहन है।
"पापा" आप मेरे मार्गदर्शक हो आप मेरे हीरो हो मगर बस इसी बात से मैं हरपल अकेले में रोता हूँ। की.....
तभी बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आती है.... ।
तब तक पापा भी मेरी बातों से पश्चाताप की
आग मे जलकर रोने लगे और इधर मैं भी~~
कि दीदी दौड़कर पापा मम्मी से गले मिलती है..
लेकिन उनकी हालत देखकर पूछती है कि क्या हुआ पापा ?
पापा - तेरा भाई आज मेरा भी पापा बन गया है ।
रश्मि - ए पागल... !! नई गाड़ी न? बहुत ही अच्छी है मैंने ड्राइवर को पीछे बिठाकर खुद चलाके आई हूँ और कलर भी मेरी पसंद का है।
मैं :- "happy birthday to you Di..."
वह गाड़ी आपकी है और हमारे तरफ से आपको "birthday gift.."!
बहन सुनते ही खुशी से उछल पड़ती है कि तभी "बुआ" भी अंदर आती है ।
बुआ :- क्या भैया आप भी न ??? न फोन न कोई खबर , अचानक भेज दी गाड़ी आपने, भागकर आई हूँ खुशी से~~~
"ऐसा लगा कि पापा आज भी जिंदा हैं .."
इधर पिताजी अपनी पलकों मे आँसू लिये मेरी ओर देखते हैं ~~~
और मैं पापा को चुप रहने का इशारा करता हु ।
इधर बुआ कहती जाती है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ । कि "मुझे बाप जैसा भैया मिला,"
ईश्वर करे मुझे हर जन्म मे आप ही भैया मिले...
"पापा -मम्मी को पता चल गया था कि..ये सब प्रिंस की करतूत है,
मगर आज फिर एक बार रिश्तों को मजबूती से जुड़ते देखकर वह अंदर से खुशी से टूटकर रोने लगे। उन्हें अब पूरा यकीन था कि...मेरे जाने के बाद भी मेरा बेटा रिश्तों को सदा हिफाजत से रखेगा~
"बेटी और बहन"
ये दो बेहद अनमोल शब्द हैं जिनकी उम्र बहुत कम होती है । क्योंकि शादी के बाद बेटी और बहन किसी की पत्नी तो किसी की भाभी और किसी की बहू बनकर रह जाती है। शायद.... लड़कियाँ इसी लिए मायके आती होंगी कि...
उन्हें फिर से "बेटी और बहन" शब्द सुनने को बहुत मन करता होगा !!