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🌞 श्राद्ध कर्म 🌞
☀ कब, क्यों और कैसे ? ☀
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🍁 भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृ पक्ष (आश्विन मास के कृष्ण पक्ष) में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं । शास्त्रों में बताया गया है कि पितृ पक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं । इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें, जिससे पितृगण नाराज हों ।
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⚡ पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए -
🍁 पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जमाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए । इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं । ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़ कर लाना चाहिए । अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं । जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं ।
🍁 पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए । बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए । हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकाल कर गाय, कौआ, कुत्ता या बिल्ली को देना चाहिए । मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है ।
🍁 शाम के समय घर के द्वार पर एक मिट्टी का दीपक दक्षिण दिशा की तरफ (पड़ी हुयी रुई की सफेद बत्ती) जला कर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए ।
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⚡ हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए । इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं । जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं । जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं -
💎 प्रतिपदा तिथि 💎
🍁 इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है । इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है । यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्यु तिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं ।
💎 पंचमी तिथि 💎
🍁 जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए ।
💎 नवमी तिथि 💎
🍁 सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है । यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है । इसलिए इसे मातृ नवमी भी कहते हैं । मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है ।
💎 एकादशी एवं द्वादशी तिथि 💎
🍁 एकादशी व द्वादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं । अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो ।
💎 चतुर्दशी तिथि 💎
🍁 इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध किया जाता है । जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की 'त्रयोदशी तिथि' को करने के लिए कहा गया है ।
☀ सर्व पितृ मोक्ष ☀
💎 अमावस तिथि 💎
🍁 किसी कारण से पितृ पक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है । शास्त्र अनुसार - इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है । यही नहीं, जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए । बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्ध पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए । यही उचित भी है ।
🍁 पिंड दान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें । जो इस प्रकार श्राद्ध आदि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं ।
💎 विशेष 💎
🍁 श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए । यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृत मंत्र है -
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देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च,
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत।
(वायु पुराण के अनुसार)
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🍁 श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें । वैसे सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे का समय उत्तम है । प्रातः एवं सायं काल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है । हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है । ‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊधर्व कक्षा में पितृ लोक है, जहां पितृ रहते हैं । पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता । जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है, उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं । यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है । स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ, सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है ।
🍁 हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता । मोह वश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आस-पास ही घूमता रहता है । श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है, इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है ।
🍁 ऐसा कुछ भी नहीं है कि इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों को जो भोजन खिलाया जाता है, वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है । वास्तव में श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है, जिस योनि में वह प्राणी (जीव आत्मा) है ।
🍁 पितृ लोक में गया हुआ प्राणी, श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत हुए को खाता है । यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया तो श्राद्ध में दिया हुआ अन्न, उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनि में प्राप्त होगा । गंधर्व बन गया हो तो वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है । पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करेगा । यदि नाग योनि मिली तो श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति को प्राप्त होगा । दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर, श्राद्ध का अन्न - अनेक अन्न-पान और भोग्य, रस आदि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करेगा ।
🍁 सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्मिक शांति मिलती है । तभी वे हम पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं ।
🍁 श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाती है । इस अवसर पर तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए । गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है ।
🍁 जिस दिन श्राद्ध करें, उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें । श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें । पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो ज्यादा अच्छा है । केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता ।
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