Monday, January 25, 2021

 प्रेरणादायक कहानी...👌

पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.


                       ✍️✍️


एक समय की बात है...एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे...


समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.


पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी. सन्त बहुत दु:खी हुए.


उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.


थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,


सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.


स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.


थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.


सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.


वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?


उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : —


मैं एक मछुआरा हूँ मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.


मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.


कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.


सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ,जो देखा उसके बारे में मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.


कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.


⭕️'शिक्षा.....✍️


किसी के प्रति कोई निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.

 1) मिलता तो बहुत है 

इस जिंदगी में,

बस हम गिनती उसी की करते है,

जो हासिल न हो सका ...


2) दौलत सिर्फ रहन सहन का 

स्तर बदल सकती है;

बुद्धि नियत और तकदीर नहीं ...


3) प्रेम, सम्मान और अपमान...

ये एक निवेश की तरह है,

जितना हम दूसरों को देते है,

वो हमें जरूर 

ब्याज सहित वापस मिलता है ...


4) आलोचना मे छिपा हुआ "सत्य"

                  "और"

       प्रशंसा में छिपा "झूठ"

   यदि मनुष्य समझ जाये तो...

आधी समस्याओं का समाधान

     अपने आप हो जायेगा।।


5) सफलता हमेशा आपको निजी तौर पर 

गले लगाती है ... लेकिन असफलता आपको

हमेशा सार्वजनिक रूप से थप्पड़ मारती है ...


🍀 आपका दिन मंगलमय हो 🌸

 1) ❛यहाँ सब खामोश हैं

कोई आवाज़ नहीं करता

सच बोलकर, कोई किसी को 

नाराज़ नहीं करता❜


2) ❛दुनिया तो ख़ामोशी भी सुनती है,

लेकिन पहले धूम मचानी पड़ती है❜


3) ❛वो अफ़साना 

जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन

उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा❜


4) ❛एक सच...

तज़ुर्बा ग़लत फैसलों से बचाता है

उससे भी बड़ा सच...

तज़ुर्बा गलत फैसलों से ही आता है❜


5) ❛जीवन मे अपमान, असफलता,

धोखे जैसी बातों को सीधे गटक जायें

उन्हें चबाते रहेंगे, अर्थात याद करतें रहेंगें

तो आपका जीवन कड़वा ही होगा❜

 चिड़ियाघर का ऊंट !!


एक ऊंटनी और उसका बच्चा एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे. बच्चे ने पूछा, “माँ, हम ऊँटों का ये कूबड़ क्यों निकला रहता है?”


“बेटा हम लोग रेगिस्तान के जानवर हैं, ऐसी जगहों पर खाना-पानी कम होता है, इसलिए भगवान ने हमें अधिक से अधिक फैट स्टोर करने के लिए ये कूबड़ दिया है. जब भी हमें खाना या पानी नहीं मिलता हम इसमें मौजूद फैट का इस्तेमाल कर खुद को जिंदा रख सकते हैं” ऊंटनी ने उत्तर दिया.


बच्चा कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, “अच्छा, हमारे पैर लम्बे और पंजे गोल क्यों हैं?”


“इस तरह का आकार हम ऊँटों को रेत में आराम से लम्बी दूरी तय करने में मदद करता है, इसलिए” माँ ने समझाया.


बच्चा फिर कुछ देर सोचता रहा और बोला, “अच्छा माँ ये बताओ कि हमारी पलकें इतनी घनी और लम्बी क्यों होती हैं?”


“ताकि जब तेज हवाओं के कारण रेत उड़े तो वो हमारी आँखों के अन्दर ना जा सके” माँ मुस्कुराते हुए बोली.


बच्चा थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, “अच्छा तो ये कूबड़ फैट स्टोर करने के लिए है… लम्बे पैर रेगिस्तान में तेजी से बिना थके चलने के लिए है… पलकें रेत से बचाने के लिए है… लेकिन तब हम इस चिड़ियाघर में क्या कर रहे हैं?”


शिक्षा:-

दोस्तों, यही सवाल हमें खुद से पूछना चाहिए. ईश्वर ने हर एक इंसान को विशेष बनाया है. हर व्यक्ति में इतनी क्षमता है कि वह कुछ बड़ा… कुछ महान कर सकता है. लेकिन ज्यादातर लोग चिड़ियाघर का ऊंट बन जाते हैं… अपने अन्दर मौजूद अपार योग्यताओं का प्रयोग ही नहीं करते… बेजुबान जानवर तो मजबूर हैं… लेकिन एक इंसान होने के नाते हमें मजबूर नहीं मजबूत बनाना चाहिए और अपने अन्दर के गुणों को पहचान कर अपना सुंदर जीवन जीने की हर कोशिश करनी चाहिए.

 ख़ुद में रह कर वक़्त बिताओ तो अच्छा है,

ख़ुद का परिचय ख़ुद से कराओ तो अच्छा है..
इस दुनिया की भीड़ में चलने से तो बेहतर,
ख़ुद के साथ में घूमने जाओ तो अच्छा है..
अपने घर के रोशन दीपक देख लिए अब,
ख़ुद के अन्दर दीप जलाओ तो अच्छा है..
तेरी, मेरी इसकी उसकी छोडो भी अब,
ख़ुद से ख़ुद की शक्ल मिलाओ तो अच्छा है..
बदन को महकाने में सारी उम्र काट ली,
रूह को अब अपनी महकाओ तो अच्छा है..
दुनिया भर में घूम लिए हो जी भर के अब,
वापस ख़ुद में लौट के आओ तो अच्छा है..
तन्हाई में खामोशी के साथ बैठ कर,
ख़ुद को ख़ुद की ग़ज़ल सुनाओ तो अच्छा है..❜

 जागरूक माँ - खुशहाल विवाहिता बेटी

एक सब्जी की दुकान पर जहाँ से मैं अक्सर सब्जियाँ लेता हूँ, जब मैं पहुँचा तो सब्जी वाली महिला फोन पर किसी से बात कर रही थी अत: मैंने कुछ क्षण रुकना ही ठीक समझा, उस महिला ने रुकने का संकेत भी किया तो रुक गया और उसकी बात मेरे कान में भी पड़ रही थी।
वह अपनी उस बेटी से बात कर रही थी जिसकी शादी मात्र तीन चार दिन पहले ही हुई थी।
वह कह रही थी "देखो बेटी मायके की याद आती है यह तो ठीक है लेकिन ससुराल ही अब तुम्हारा अपना घर है"। तुम्हें अब अपना सारा ध्यान केवल अपने घर के लिए ही लगाना है। बार बार फोन मत किया करो और अपने ससुराल वालों से छिपकर तो बिलकुल भी नहीं। जब भी यहाँ फोन करना तो सास या पति के सामने करना।
तुम अपने फोन पर मेरे फोन आने का इंतजार कभी मत करना। मुझे जब भी बात करना होगा तो मैं तुम्हारी सास के नंबर पर लगाऊँगी।तब तुम भी बात कर लिया करना।
बेटी! "अब ससुराल में हो जरा जरा सी बात पर तुनकना छोड़ दो, सहनशक्ति रखो। अपना घर कैसे चलाना है ये सब अपनी सास से सीखो। एक बात ध्यान रखो प्यार एवं इज्जत दोगी तो ही स्नेह और इज्जत पाओगी। ठीक है। सुखी रहो"
मैंने प्रशंसा के भाव में कहा "बहुत सुंदर समझाया आपने"
उस महिला ने कहा कि "बहन एवं माँ को बेटी के परिवार में कभी भी अनावश्यक दखल नहीं देनी चाहिये"। उन्हें अपने घर की बातों को भी बिना मतलब के इधर उधर नहीं करना चाहिये। वहाँ यदि कोई समस्या हो तो समस्या का हल खुद ही ढूँढ़ो।
मैं उस देवी का मुँह देखता रह गया। सभी माँ को इसी तरह से सोचना चाहिए ताकि बेटी अपने ससुराल रूपी घर को खुद का ही घर समझे।
स्वर्ग तो खुद के आचरण, संस्कार, व्यवहार एवं किरदार में छिपा है लेकिन हिरन के समान मृगतृष्णा में भ्रमित हैं और इसी कारण स्वर्ग जैसा घर नरक में तब्दील होकर रह गया होता है।
जागरूक माँ - खुशहाल विवाहिता बेटी

 एक प्रसिद्ध लेखक पत्रकार और राजनयिक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जो बेहद ही हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी है। उनकी पत्रकारिता देश ही नहीं अपितु विदेश में भी प्रसिद्ध है। उन्होंने वैसे जगह पर भी पत्रकारिता की है जहां अन्य पत्रकारों के लिए संभव नहीं है।उनकी हसमुख प्रवृत्ति और हाजिर जवाब का कोई सानी नहीं है। एक समय की बात है पुष्पेंद्र एक सभा को संबोधित कर रहे थे , सभा में जनसैलाब उमड़ा था , लोग उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से आए हुए थे।

जब वह अपना भाषण समाप्त कर बाहर निकले , तब उनकी ओर एक भीड़ ऑटोग्राफ के लिए बढ़ी। पुष्पेंद्र उनसे बातें करते हुए ऑटोग्राफ दे रहे थे। तभी एक नौजवान उस भीड़ से पुष्पेंद्र के सामने आया उस नौजवान ने उनसे कहा –
” मैं आपका बहुत बड़ा श्रोता और प्रशंसक हूं , मैं साहित्य प्रेमी हूं , जिसके कारण मुझे आपकी लेखनी बेहद रुचिकर लगती है। इस कारण आप मेरे सबसे प्रिय लेखक भी हैं। मैंने आपकी सभी पुस्तकें पढ़ी है और आपके व्यक्तित्व को अपने जीवन में उतारना चाहता हूं। किंतु मैं ऐसा क्या करूं जिससे मैं एक अलग पहचान बना सकूं। आपकी तरह ख्याति पा सकूं।”
ऐसा कहते हुए उस नौजवान ने अपनी पुस्तिका ऑटोग्राफ के लिए पुष्पेंद्र की ओर बढ़ाई।
इसके बाद मजेदार बात हुई
पुष्पेंद्र ने उस समय कुछ नहीं कहा और उसकी पुस्तिका में कुछ शब्द लिखें और ऑटोग्राफ देकर उस नौजवान को पुस्तिका वापस कर दी।
इस पुस्तिका में यह लिखा हुआ था – ” आप अपना समय स्वयं को पहचान दिलाने के लिए लगाएं , किसी दूसरे के ऑटोग्राफ से आपकी पहचान नहीं बनेगी। जो समय आप दूसरे लोगों को लिए देते हैं वह समय आप स्वयं के लिए दें। ”
नौजवान इस जवाब को पढ़कर बेहद प्रसन्न हुआ और उसने पुष्पेंद्र को धन्यवाद कहा कि –
” मैं आपका यह वचन जीवन भर याद रखूंगा और अपनी एक अलग पहचान बना कर दिखाऊंगा। ”

 एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं।

उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है।
महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई।
उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी।
क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।
" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया।
असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"
'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"
दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई।
महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"
एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी।
एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है।
अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई।
कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है |
इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"
'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती...
एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा
"सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।
यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।
तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा,
"मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे।
सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..?
लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"
और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।
'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।
अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।
मैरे पास ये कहानी आई थी।
मैंने इसे पढ़ा तो हृदय को छू गई इसलिये पोस्ट कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों भी बहुत पसंद आएगी।

 एक बादशाह सर्दियों की शाम जब अपने महल में दाखिल हो रहा था तो एक बूढ़े दरबान को देखा जो महल के सदर दरवाज़े पर पुरानी और बारीक वर्दी में पहरा दे रहा था।

बादशाह ने उसके करीब अपनी सवारी को रुकवाया और उस बूढ़े दरबान से पूछने लगा ;
"सर्दी नही लग रही ?"
दरबान ने जवाब दिया "बोहत लग रही है हुज़ूर ! मगर क्या करूँ, गर्म वर्दी है नही मेरे पास, इसलिए बर्दाश्त करना पड़ता है।"
"मैं अभी महल के अंदर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूँ तुम्हे।"
दरबान ने खुश होकर बादशाह को फर्शी सलाम किया और आजिज़ी का इज़हार किया।
लेकिन बादशाह जैसे ही महल में दाखिल हुआ, दरबान के साथ किया हुआ वादा भूल गया।
सुबह दरवाज़े पर उस बूढ़े दरबान की अकड़ी हुई लाश मिली और करीब ही मिट्टी पर उसकी उंगलियों से लिखी गई ये तहरीर भी ;
"बादशाह सलामत ! मैं कई सालों से सर्दियों में इसी नाज़ुक वर्दी में दरबानी कर रहा था, मगर कल रात आप के गर्म लिबास के वादे ने मेरी जान निकाल दी।"
सहारे इंसान को खोखला कर देते है और उम्मीदें कमज़ोर कर देती है।
अपनी ताकत के बल पर जीना शुरू कीजिए, खुद की सहन शक्ति, ख़ुद की ख़ूबी पर भरोसा करना सीखें।
आपका आपसे अच्छा साथी,
दोस्त, गुरु, और हमदर्द कोई नही हो सकता।....

 'परिवर्तन का नियम...

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ज़िंदगी में कभी कभी ऐसा वक़्त भी आता है। जब इंसान अंदर से टूट जाता है। अंदर से मर सा जाता है।
ऐसा लगता है, सारी परेशनिया मेरी ज़िंदगी में ही क्यूँ है। ऐसा लगता है, मुसीबतों ने चारों तरफ़ से घेर लिया हो।
जैसे किसी चक्रवुह में फँस गए हो। हर चीज़ में फ़ेल हो जाते है.Relationship में , कैरीअर में हर चीज़ में हार जाते है।
ऐसा लगता है जैसे हर बात उलटी हो रही है, हर चीज़ ग़लत हो रही है।
और मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा है। ऐसे दुखो में उलझ के रह जाते है जैसे कोई रास्ता ही नही दिखाई देता।
लगता है कोई अपना नही यहाँ, जो मेरी प्रॉब्लम को solve कर सके।
मेरे दुःख को समझ सके, कई लोग तो इतने टूट जाते है अंदर से।
उन्हें लगता है ऐसी ज़िंदगी से तो हम मर जाए, अगर ज़िंदगी में इतने ही दुःख है तो क्या फ़ायदा ऐसे जीवन का।
एक बात आप हमेशा याद रखना, दुःख चाहे कितना भी बड़ा क्यूँ ना हो। पर हिम्मत दुःख से हमेशा बड़ी होती है।
जब भी आपकी ज़िंदगी में कोई दुःख आए, कोई परेशानी आए, तो अपनी हिम्मत को इतना बड़ा कर दो।
कि आप का दुःख उसके आगे छोटा पड़ जाए। हर इंसान को इस दौर से गुज़रना ही होता है।
ये परेशनिया, ये दुःख इंसान को अंदर से बहुत मज़बूत बना देती है।
ज़िंदगी में कभी आपके सामने कोई दरवाज़ा बंद हो जाए। तो समझ लेना कि अब कोई बड़ा दरवाज़ा खुलने वाला है।
लाइफ़ का कोई चैप्टर बंद हो जाए। कोई कहानी ख़त्म हो जाए तो टूटने की ज़रूरत नही है।
ये आपकी ज़िंदगी का सिर्फ़ एक चैप्टर है।
बस ज़रूरत है एक पेज पलटने की। जैसे ही आप एक पेज पलटेंगे आपकी ज़िंदगी में नया चैप्टर शुरू हो जाएगा।
जिसमें बहुत सारी नयी बातें होगी।
कभी हम रिश्तों में हार जाते है। कभी हम कैरीअर में हार जाते है। कभी अपनो से हार जाते है। कभी तो ज़िंदगी से ही हार जाते है।
जब कोई रिश्ता टूटता है या दिल टूटता है लोग उस दर्द को सह नही पाते।
और जब कुछ वक़्त गुज़र जाता है तो लोग कहते है अच्छा हुआ वो रिश्ता मेरी ज़िंदगी से चला गया।
अगर उस रिश्ते में हम रहते तो हमारी तो ज़िंदगी ख़राब हो जाती।
कई बार कुछ चीज़े हमारी ज़िंदगी में ऐसी होती है हमें लगता है कि हमारे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है।
आगे चलके वो चीज़े हमारे बेहतर भविष्य को लेकर आती है।
आप जितने भी सफल लोगों की कहानिया सुनेगे या पढ़ेगे, वो यही कहते है। अगर ज़िंदगी में हमने दुखो को नही देखा होता।
चुनौतियो का सामना ना किया होता तो आज हम इस मुक़ाम पर नही होते।
आपको लगता है ये मुसीबत, परेशानी, दर्द, दुःख मेरी ज़िंदगी में क्यूँ आयी है वो इसलिए आयी है कि आप अपने बेहतर भविष्य की तरफ़ देखे।
आप वहाँ से हट जाए, अभी जिस जगह आप है। क्योंकि जिस जगह आप है, वो जगह आपके लिए सही नही है।
जिसके इंसान के साथ आज आप है वो इंसान आपके लिए सही नही है। आपका बेहतर भविष्य आपका इंतज़ार कर रहा है।

 पढ़िए बहुत रहस्मय... सच्चाई

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मेरे मन में सुदामा के सम्बन्ध में एक बड़ी शंका थी कि एक विद्वान् ब्राह्मण जो जीवन भर कष्ट भोगता रहा अपने बाल सखा कृष्ण से छुपाकर चने कैसे खा सकता है ..?_
आज एक भुदेव् की कृपा से ज्ञात हुआ तो सोचा आप सबका भी ज्ञान वर्धन करूँ इसके पीछे की कथा बताकर...
बताते हैं सुदामा की दरिद्रता, और चने की चोरी के पीछे एक बहुत ही रोचक और त्याग-पूर्ण कथा है- एक अत्यंत गरीब निर्धन बुढ़िया भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते उसे रात हो गयी। बुढ़िया ने सोंचा अब ये चने रात मे नही, प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर खाऊँगी ।*
यह सोंचकर उसने चनों को कपडे में बाँधकर रख दिए और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। बुढ़िया के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये। चोरों ने चनों की पोटली देख कर समझा इसमे सोने के सिक्के हैं अतः उसे उठा लिया। चोरो की आहट सुनकर बुढ़िया जाग गयी और शोर मचाने लगी। शोर-शराबा सुनकर गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे। चने की पोटली लेकर भागे चोर पकडे जाने के डर से संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। इसी संदीपन मुनि के आश्रम में भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
चोरों की आहट सुनकर गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता ने पुकारा- कौन है ?? गुरुमाता को अपनी ओर आता देख चोर चने की पोटली छोड़कर वहां से भाग गये। इधर भूख से व्याकुल बुढ़िया ने जब जाना कि उसकी चने की पोटली चोर उठा ले गए हैं, तो उसने श्राप दे दिया- "मुझ दीनहीन असहाय के चने जो भी खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा"।
उधर प्रात:काल आश्रम में झाडू लगाते समय गुरुमाता को वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमे चने थे। उसी समय सुदामा जी और श्री कृष्ण जंगल से लकडी लाने जा रहे थे। गुरुमाता ने वह चने की पोटली सुदामा को देते हुए कहा बेटा! जब भूख लगे तो दोनो यह चने खा लेना।
सुदामा जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। उन्होंने ज्यों ही चने की पोटली हाथ मे ली, सारा रहस्य जान गए। सुदामा ने सोचा- गुरुमाता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना, लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो मेरे प्रभु के साथ साथ तीनो लोक दरिद्र हो जाएंगे। नही-नही मै ऐसा नही होने दूँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा। मै ये चने स्वयं खा लूँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा और सुदामा ने कृष्ण से छुपाकर सारे चने खुद खा लिए। अभिशापित चने खाकर सुदामा ने स्वयं दरिद्रता ओढ़ ली लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को बचा लिया।
अद्वतीय त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले सुदामा, चोरी-छुपे चने खाने का अपयश भी झेलें तो यह बहुत अन्याय है पर आज मन की इस गहन शंका का निवारण हो गया.!
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गलती आपकी हो या मेरी
रिश्ता तो हमारा है ना....

 आज का प्रेरक प्रसंग

कहानियाँ जो जिंदगी बदल दे🚩🇮🇳
!!!---: व्यर्थ के सपने :---!!!
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एक बार की बात है। एक गरीब किसान एक जमीदार के पास गया और बोला –आप एक साल के लिए अपना एक खेत मुझे उधार दे दीजिये। मैं उस खेत में मेहनत करके अपने लिए अनाज उगाऊँगा। जमींदार एक दयालु व्यक्ति था। उसने उस किसान को एक खेत एक साल के लिए उधार दे दिया।
साथ ही साथ उस किसान की मदद के लिए उसने पाँच व्यक्ति भी दिए। वह किसान उन पाँच व्यक्तियों को लेकर घर आ गया और उस खेत में काम करने लगा। एक दिन उस किसान ने सोचा। जब पाँच लोग इस खेत में काम कर रहे है तो मैं क्यों करूं?
किसान काम छोड़कर अपने घर वापस आ गया और मीठे- मीठे सपने देखने लगा। एक साल बाद मेरे खेत में आनाज ऊगेगा। उसे बेचने पर मेरे पास बहुत से पैसे आयेंगे और उन पैसों से मैं बहुत कुछ खरीदूँगा।
उस किसान को जो पाँच व्यक्ति मिले थे। वे खेत में अपनी मर्जी से काम कर रहे थे। जब उनका मन करता था। वे खेत में पानी दे देते थे। जब मन करता था। वे खेत में खाद डाल देते थे। उस खेत में लगी फसल धीरे–धीरे बड़ी हो रही थी लेकिन वह किसान अपनी फसलों को देखने खेत में नहीं आया। वह हर रोज सपने देखता रहता था।
अब फसल काटने का समय आ चुका था। किसान अपने सपनों के साथ खेत में पहुँचा। फसल देखते ही वह चौंक गया क्योकि फसल अच्छी नहीं थी। उस फसल से उसे उतना पैसा भी नहीं मिल रहा था। जो उसने फसल उगाने में खर्च किया था।एक साल पूरा हो चुका था।
वह जमींदार किसान से अपना खेत लेने वापस आया। उस जमींदार को देखकर वह किसान रोने लगा और फिर से एक साल का वक़्त माँगने लगा। किसान की बात सुनकर जमींदार बोला–यह मौका बार – बार नहीं मिलता। यह कहकर वह जमींदार वहाँ से चला गया।
वह दयालु जमींदार भगवान था। वह गरीब किसान हम सभी व्यक्ति है। वह खेत हमारा शरीर है। पाँच व्यक्ति जो किसान की मदद के लिए दिए गए थे। वे हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है। अब आप इन पाँच ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग किस तरिके से करते है, ये हम पर निर्भर है।
शिक्षा;-
एक समय ऐसा भी आयेगा। जब भगवान् हमसे यह शरीर वापस माँगेंगे। उस समय वह आपसे पुछेंगे–मैंने तुम्हे पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ दी। मुझे बताओ तुमने इनका किस तरिके से उपयोग किया। बात को गांठ बांध लीजिए यह मौका बार –बार नहीं मिलता।

 "जीवन का रहस्य"

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एक बहुत पुरानी कथा है। एक बार एक साधु किसी गाँव से हो कर तीर्थ को जा रहे थे। थकान हुई तो उस गाँव में एक बरगद के पेड़ के नीचे जा बैठे। वहीँ पास में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। उधर से एक साधु गुजरे।
उन्होंने एक मजदूर से पूछा- यहां क्या बन रहा है? उसने कहा- देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं?
साधु ने कहा- हां, देख तो रहा हूँ ।लेकिन यहां बनेगा क्या? मजदूर झुंझला कर बोला- मालूम नहीं। यहां पत्थर तोड़ते- तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा।
साधु आगे बढ़े। एक दूसरा मजदूर मिला। साधु ने पूछा – यहां क्या बनेगा? मजदूर बोला- देखिए साधु बाबा, यहां कुछ भी बने। चाहे मंदिर बने या जेल, मुझे क्या। मुझे तो दिन भर की मजदूरी के 100 रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है।
साधु आगे बढ़े तो तीसरा मजदूर मिला। साधु ने उससे पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर ने कहा- मंदिर। इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूं। ये सारे मजदूर इसी गांव के हैं। मैं एक- एक छेनी चला कर जब पत्थरों को गढ़ता हूं तो छेनी की आवाज में मुझे मधुर संगीत सुनाई पड़ता है।
मैं आनंद में हूँ । कुछ दिनों बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा और यहां धूमधाम से पूजा होगी। मेला लगेगा। कीर्तन होगा। मैं यही सोच कर मस्त रहता हूं। मेरे लिए यह काम, काम नहीं है। मैं हमेशा एक मस्ती में रहता हूं। मंदिर बनाने की मस्ती में। मैं रात को सोता हूं तो मंदिर की कल्पना के साथ और सुबह जगता हूं तो मंदिर के खंभों को तराशने के लिए चल पड़ता हूं।
बीच- बीच में जब ज्यादा मस्ती आती है तो भजन गाने लगता हूं। जीवन में इससे ज्यादा काम करने का आनंद कभी नहीं आया।
शिक्षा:-साधु ने कहा- यही जीवन का रहस्य है मेरे भाई। बस नजरिया का फर्क है। एक ही काम को कई लोग कर रहे हैं, किन्तु सबका नजरिया अलग-अलग है । कोई काम को बोझ समझ रहा है और उसका पूरा जीवन झुंझलाते और हाय- हाय करते बीत जाता है। लेकिन कोई काम को आनंद समझ कर जीवन का आनंद ले रहा है।

 बहुत ही अनमोल कहानी...

थोड़ा बड़ा पोस्ट है, पर एक बार जरूर पढ़ियेगा ।।
☢️"रिश्ते हैं प्यार के ...👭👫"
पिताजी जोऱ से चिल्लाते हैं....... ।
मैं दौड़कर आता हू , और पूछता हु । क्या बात है पिताजी ?
पिताजी :- तूझे पता नहीं है, आज तेरी बहन आ रही है ? वह इस बार हम सभी के साथ अपना जन्मदिन मनायेगी ।
अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ,
हाँ और सुन... तू अपनी नई गाड़ी लेकर जा जो तूने कल खरीदी है... उसे अच्छा लगेगा
मैं :- लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा दोस्त ले गया है सुबह ही... और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ये कहकर ले गया कि गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है।
पिताजी :- ठीक है तो तू स्टेशन तो जा किसी की गाड़ी लेकर या किराया की करके ? उसे बहुत खुशी मिलेगी ।
मै :- अरे वह बच्ची है क्या जो आ नहीं सकेगी?
आ जायेगी आप चिंता क्यों करते हो कोई टैक्सी या आटो लेकर----- ।
पिताजी :- तूझे शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए? घर मे गाड़ियाँ होते हुए भी घर की बेटी किसी टैक्सी या आटो से आयेगी?
मैं :- ठीक है आप जाओ मुझे बहुत काम है मैं जा नहीं सकता ।
पिताजी :- तूझे अपनी बहन की थोड़ी भी फिकर नहीं? शादी हो गई तो क्या बहन पराई हो गई ?
क्या उसे हम सबका प्यार पाने का हक नहीं?
तेरा जितना अधिकार है इस घर में , उतना ही तेरी बहन का भी है। कोई भी बेटी या बहन मायके छोड़ने के बाद पराई नहीं होती।
मैं :- मगर मेरे लिए वह पराई हो चुकी है और इस घर पर सिर्फ मेरा अधिकार है ।
तडाक ...... तडाक.....
अचानक पिताजी का हाथ उठ जाता है मुझपर
और तभी माँ आ जाती है ।
मम्मी :- आप कुछ शरम तो कीजिए ऐसे जवान बेटे पर हाँथ बिलकुल नहीं उठाते।
पिताजी - तुमने सुना नहीं इसने क्या कहा ?
अपनी बहन को पराया कहता है ये वही बहन है जो इससे एक पल भी जुदा नहीं होती थी--
हर पल इसका ख्याल रखती थी। पाकेट मनी से भी बचाकर इसके लिए कुछ न कुछ खरीद देती थी। बिदाई के वक्त भी हमसे ज्यादा अपने भाई से गले लगकर रोई थी। और ये आज उसी बहन को पराया कहता है।
मैं :-(मुस्कुराकर) "बुआ का भी तो आज ही जन्मदिन है ना पापा" वह कई बार इस घर मे आई है "मगर हर बार अॉटो से आई है ".आपने कभी भी अपनी गाड़ी लेकर उन्हें लेने नहीं गये...
माना वह आज वह तंगी मे है मगर कल वह भी बहुत अमीर थी । आपको मुझको इस घर को उन्होंने दिल खोलकर सहायता और सहयोग किया है। बुआ भी इसी घर से बिदा हुई थी फिर रश्मि दी और बुआ मे फर्क कैसा। रश्मि मेरी बहन है तो बुआ भी तो आपकी बहन है।
"पापा" आप मेरे मार्गदर्शक हो आप मेरे हीरो हो मगर बस इसी बात से मैं हरपल अकेले में रोता हूँ। की.....
तभी बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आती है.... ।
तब तक पापा भी मेरी बातों से पश्चाताप की
आग मे जलकर रोने लगे और इधर मैं भी~~
कि दीदी दौड़कर पापा मम्मी से गले मिलती है..
लेकिन उनकी हालत देखकर पूछती है कि क्या हुआ पापा ?
पापा - तेरा भाई आज मेरा भी पापा बन गया है ।
रश्मि - ए पागल... !! नई गाड़ी न? बहुत ही अच्छी है मैंने ड्राइवर को पीछे बिठाकर खुद चलाके आई हूँ और कलर भी मेरी पसंद का है।
मैं :- "happy birthday to you Di..."
वह गाड़ी आपकी है और हमारे तरफ से आपको "birthday gift.."!
बहन सुनते ही खुशी से उछल पड़ती है कि तभी "बुआ" भी अंदर आती है ।
बुआ :- क्या भैया आप भी न ??? न फोन न कोई खबर , अचानक भेज दी गाड़ी आपने, भागकर आई हूँ खुशी से~~~
"ऐसा लगा कि पापा आज भी जिंदा हैं .."
इधर पिताजी अपनी पलकों मे आँसू लिये मेरी ओर देखते हैं ~~~
और मैं पापा को चुप रहने का इशारा करता हु ।
इधर बुआ कहती जाती है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ । कि "मुझे बाप जैसा भैया मिला,"
ईश्वर करे मुझे हर जन्म मे आप ही भैया मिले...
"पापा -मम्मी को पता चल गया था कि..ये सब प्रिंस की करतूत है,
मगर आज फिर एक बार रिश्तों को मजबूती से जुड़ते देखकर वह अंदर से खुशी से टूटकर रोने लगे। उन्हें अब पूरा यकीन था कि...मेरे जाने के बाद भी मेरा बेटा रिश्तों को सदा हिफाजत से रखेगा~
"बेटी और बहन"
ये दो बेहद अनमोल शब्द हैं जिनकी उम्र बहुत कम होती है । क्योंकि शादी के बाद बेटी और बहन किसी की पत्नी तो किसी की भाभी और किसी की बहू बनकर रह जाती है। शायद.... लड़कियाँ इसी लिए मायके आती होंगी कि...
उन्हें फिर से "बेटी और बहन" शब्द सुनने को बहुत मन करता होगा !!

 अवश्य पढ़े बहुत सुंदर कहानी

👌👌
एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है।
वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई।
वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था।
उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों ही करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फंस गए।
दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।
थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है?
बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं।
गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारी उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है?
उस बाघ ने कहा, तुम भी तो फंस गई हो और मरने के करीब हो। तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी ही है।
गाय ने मुस्कुराते हुए कहा,.... बिलकुल नहीं। मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां पर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा। तुम्हें कौन ले जाएगा?
थोड़ी ही देर में सच में ही एक आदमी वहां पर आया और गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया।
जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे की तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे। वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे, क्योंकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।
*गाय ----समर्पित ह्रदय का प्रतीक है।*
*बाघ ----अहंकारी मन है।*
और
*मालिक---- ईश्वर का प्रतीक है।*
*कीचड़---- यह संसार है।*
और
*यह संघर्ष---- अस्तित्व की लड़ाई है।*
किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है, लेकिन मैं ही सब कुछ हूं, मुझे किसी के सहयोग की आवश्यकता नहीं है, यही अहंकार है, और यहीं से विनाश का बीजारोपण हो जाता है।
*ईश्वर से बड़ा इस दुनिया में सच्चा हितैषी कोई नहीं होता, क्यौंकि वही अनेक रूपों में हमारी रक्षा करता है।

 *क्या भगवान हमें देख रहे है ?*

हमारे घर के पास एक डेरी वाला है. वह
डेरी वाला एसा है कि आधा किलो घी में
अगर घी 50२ ग्राम तुल गया तो 2 ग्राम
घी निकाल लेता था।
एक बार मैं आधा किलो घी लेने गया. उसने मुझे 90 रूपय ज्यादा दे दिये ।
मैंने कुछ देर सोचा और पैसे लेकर
निकल लिया। मैंने मन में सोचा कि
2-2 ग्राम से तूने जितना बचाया था
बच्चू अब एक ही दिन में निकल गया।
मैंने घर आकर अपनी गृहल्क्षमी को
कुछ नहीं बताया और घी दे दिया।
उसने जैसे ही घी डब्बे में पलटा आधा
घी बिखर गया, मुझे झट से “बेटा चोरी
का माल मोरी में” वाली कहावत याद
आ गयी, और साहब यकीन मानीये वो
घी किचन की सिंक में ही गिरा था।
इस वाकये को कई महीने बीत गये थे। परसों शाम को मैं वेज रोल लेने गया,
उसने भी मुझे सत्तर रूपय ज्याद दे
दिये, मैंने मन ही मन सोचा चलो बेटा
आज फिर चैक करते हैं की क्या वाकई भगवान हमें देखता है। मैंने रोल पैक
कराये और पैसे लेकर निकल लिया।
आश्चर्य तब हुआ जब एक रोल
अचानक रास्ते में ही गिर गया,
घर पहुँचा, बचा हुआ रोल टेबल
पर रखा, जूस निकालने के लिये
अपना मनपसंद काँच का गिलास
उठाया… अरे यह क्या गिलास
हाथ से फिसल कर टूट गया।
मैंने हिसाब लगाय करीब - करीब
सत्तर में से साठ रूपय का नुकसान
हो चुका था, मैं बडा आश्चर्यचकित
था।
और अब सुनिये ये भगवान तो मेरे
पीछे ही पड गया जब कल शाम को सुभिक्षा वाले ने मुझे तीस रूपये
ज्याद दे दिये। मैंने अपनी धर्म-पत्नी
से पूछा क्या कहती हो एक ट्राई और
मारें।
उन्होने मुस्कुराते हुये कहा – जी नहीं,
और हमने पैसे वापस कर दिये। बाहर आकर हमारी धर्म-पत्नी जी ने कहा–
वैसे एक ट्राई और मारनी चाहिये थी।
कहना था कि उन्हें एक ठोकर लगी
और वह गिरते-गिरते बचीं।
मैं सोच में पड गया कि क्या वाकई
भगवान हमें देख रहा है।
हाँ भगवान हमें हर पल हर क्षण देख
रहा है, हम बहुत सी जगह पोस्टर
लगे देखते हैं आप कैमरे की नजर में
हैं। पर याद रखना हम हर क्षण पल
प्रतिपल उसकी नजर में हैं।
*वो हर पल गलत कार्य करने से पहले*
*और बाद में भी हमें आगाह करता है।*
*लेकिन यह समझना न समझना हमारे*
*विवेक पर निर्भर करता है*

 🌿🍁🌿🕌🕌🕌🌿🍁🌿

अच्छा दिखने के लिये मत जिओ 

          बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ


🌿🍁🌿🕌🕌🕌🌿🍁🌿

   जो झुक सकता है वह सारी 

          दुनिया को झुका सकता है


🌿🍁🌿🕌🕌🕌🌿🍁🌿

   अगर बुरी आदत समय पर न बदली जाये 

          तो बुरी आदत समय बदल देती है


🌿🍁🌿🕌🕌🌿🍁🌿

   चलते रहने से ही सफलता है,

          रुका हुआ तो पानी भी बेकार हो जाता है


🌿🍁🌿🕌🌿🍁🌿

  🕌झठे दिलासे से स्पष्ट इंकार बेहतर है


🌿🍁🕌🌿🍁🌿

   अच्छी सोच, अच्छी भावना,

          अच्छा विचार मन को हल्का करता है


🌿🍁🌿🕌🕌🌿🍁🌿 

   मुसीबत सब पर आती है,

          कोई *बिखर* जाता है 

            और कोई निखर जाताहै.

 


🌹🌻🌾 🌾🌻🌹

         हर किसी के अन्दर अपनी  

      "ताकत"और अपनी"कमज़ोरी"

होती है...

        "मछली"जंगल मे नही दौड. 

      सकती और"शेर"पानी मे राजा

नही बन सकता.....!!


                  इसलिए 

                "अहमियत"

            सभी को देनी चाहिये....

 📚★ प्रेरणादायक कहानी ★📚


               🔥● कोई वजन नहीं ●🔥



◆ एक महात्मा तीर्थयात्रा के सिलसिले में पहाड़ पर चढ़ रहे थे। पहाड़ ऊंचा था। दोपहर का समय था और सूर्य भी अपने चरम पर था। तेज धूप, गर्म हवाओं और शरीर से टपकते पसीने की वजह से महात्मा काफी परेशान होने के साथ दिक्कतों से बेहाल हो गए। महात्माजी सिर पर पोटली रखे हुए, हाथ में कमंडल थामे हुए दूसरे हाथ से लाठी पकड़कर जैसे-तैसे पहाड़ चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। बीच-बीच में थकान की वजह से वह सुस्ता भी लेते थे।


◆ पहाड़ चढ़ते - चढ़ते जब महात्माजी को थकान महसूस हुई तो वह एक पत्थर के सहारे टिककर बैठ गए। थककर चूर हो जाने की वजह से उनकी सांस ऊपर-नीचे हो रही थी। तभी उन्होंने देखा कि एक लड़की पीठ पर बच्चे को उठाए पहाड़ पर चढ़ी आ रही है। वह लड़की उम्र में काफी छोटी थी और पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने के बाद भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। वह बगैर थकान के पहाड़ पर कदम बढ़ाए चली आ रही थी। पहाड़ चढ़ते-चढ़ते जैसे ही वह लड़की महात्मा के नजदीक पहुंची, महात्माजी ने उसको रोक लिया। लड़की के प्रति दया और सहानुभूति जताते हुए उन्होंने कहा कि  बेटी पीठ पर वजन ज्यादा है, धूप तेज गिर रही है, थोड़ी देर सुस्ता लो।


 ◆ उस लड़की ने बड़ी हैरानी से महात्मा की तरफ देखा और कहा कि  महात्माजी, आप यह क्या कह रहे हैं ! वजन की पोटली तो आप लेकर चल रहे हैं मैं नहीं। मेरी पीठ पर कोई वजन नहीं है। मैं जिसको उठाकर चल रही हूं, वह मेरा छोटा भाई है और इसका कोई वजन नहीं है।


महात्मा के मुंह से उसी वक्त यह बात निकली -  क्या अद्भुत वचन है। ऐसे सुंदर वाक्य तो मैंने वेद, पुराण, उपनिषद और दूसरे धार्मिक शास्त्रों में भी नहीं देखे हैं...!!!


◆ सच में जहां आसक्ती है,ममत्व है, वही पर बोझ है वजन है..... जहां प्रेम है वहां कोई बोझ नहीं वजन नहीं..