Tuesday, April 13, 2021

 फ़िक्र उसकी करो जो क़रीब है,

दूर की चीज़ों का ज़िक्र भुलाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर,

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

काँटें तो तय हैं ही सफ़र में

उन्हें फूलों की तरह सजाना होगा,

चेहरे पर एक लेकर मुस्कान

ग़मों से रिश्ता मिटाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

तेरी ख़ामोशियों को मिटा कर

तुझे तेरे शोर को बढ़ाना होगा,

शब्दों की क़ायनात का हुनर

अब दुनिया को दिखाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

नहीं बनना है तुझे कोई भीड़

तेरे अन्दर भी एक ज़माना होगा,

तू कर यक़ीन एक ख़ुद पर भी

तुझे नहीं ख़ुद को आज़माना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

वक़्त को मानकर तेरा हमसफ़र

तुझे क़दम से क़दम मिलाना होगा,

तेरे पल पल को समेटकर बना

तेरा ख़ुद का एक आशियाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

खुल कर साँसें लेने के लिए

तुझे तेरे हर डर को हराना होगा,

कर एक ज़िद तू आँसुओं से भी

कि रो कर भी तुझे मुसकुराना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

जो जुड़ा है सिर्फ़ तुझसे ही

उसे तो तुझे मिल ही जाना होगा,

खड़ी होगी मौत जब बाँहें फैलाकर

न चाहते हुए भी तुझे जाना होगा !

इसलिए कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

पहले तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

 ^🌈परेरणादायक प्रसंग-शिक्षा का निचोड़🌈^^^

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काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा... "गुरुवर! शिक्षा का निचोड़ क्या है? संत ने मुस्करा कर कहा..."एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।" कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा... "वत्स! इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।" शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा... "क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?" शिष्य ने कहा... "गुरुवर! कमरे में सांप है।" संत ने कहा... "यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।" शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला... "सांप वहां से जा नहीं रहा है।" संत ने कहा... "इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।" शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा... "गुरुवर! वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।" संत ने कहा... "वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है। यही शिक्षा का निचोड़ है।" वास्तव में अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रमजाल पाल लेते हैं और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश निरंतर स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।

 तुम और वो लड़की रात के तीसरे पहर चैट कर रहे हो।   

बात करते करते तुम्हे कामुकता का अहसास होता है। 

तुम बिना सोचे बिना एक पल गवाए उससे एक न्यूड फोटो की मांग कर देते हो। 

वो कहती है की वो नहीं दे सकती। 

तुम अपने जिद्द पर अड़े रहते हो। 

वो तुम्हे समझाने की कोशिश करती है। 

तुम उसे तुमपर यकींन करने को कहते हो। 

वो कहती है शादी के बाद देख लेना वो तुम्हारी ही तो है। 

तुम फिर भी नहीं मानते। 


फिर वो तुम्हे वेट करने को कहती है। 

तुम बड़े सब्र से इंतज़ार करते हो। 

फिर वो तस्वीरें भेज देती है। 

तुम खुश हो जाते हो। 

तुम उसे देख कर थोड़ी देर के हस्थमैथुन के बाद शांत हो जाते हो। 

अब वो तस्वीरें तुम्हे भद्दी लगने लगती है। 

फिर तुम अपने दोस्तों में रोब ज़माने के लिए उसकी तस्वीरें अपने दोस्तों को भेजते हो ये कह कर की वो देख कर डिलीट कर देंगे। लेकिन उनमे से कोई उसे कही और फॉरवर्ड कर देता है। फिर वो एक ऐसे हाथो में पहुँचता है जो उसे शोशल साइट पर उपलोड कर देता है  

और तो और वो उसे टैग भी कर देता है।  

वो उन तस्वीरों को देखती है। 

तुम्हे मैसेज करती है और मिन्नतें करती है और डिलीट करने को कहती है। लेकिन तुम कहते हो की ये तुमने नहीं किया है। 

वो फिर कहती है की तुम डिलीट कर दोगे तो वो तुम्हे और सारी तस्वीरें देगी। 

तुम कहते हो की तुम्हे नहीं पता की वो तस्वीरें कैसे लीक हो गयी।  

 लोग अब उन तस्वीरों को लाइक और रियेक्ट करना शुरू करते है। 

कुछ लोग गंदे कमेंट करते है ,कुछ बचाव करते है ,कुछ देख के उदास होते है,कुछ देख के हसंने लगते है। 

उस लड़की की सहेलिया अब उसकी न्यूड तस्वीर देखती है ,कुछ हताश हो जाती है कुछ को बेहद ख़ुशी मिलती है। 

कुछ उसके बचाव में कुछ कहती है लेकिन क्या फायदा लोग उसे देख चुके थे। 

कुछ लोग उन तस्वीरों को शेयर कर देते है तो कुछ सेव कर लेते है तो कुछ उस लोग उसके रिलेटिव को फॉरवर्ड कर देते है। 


अगले दिन वो स्कूल जाती है। 

उसे देख कर उसके ही साथी फब्तियां कसना शुरू करते है। 

क्लास टीचर ने खड़ा हो कर सब कुछ क्लास के सामने ही बताने का आर्डर दे डाला है उसे अब। 

लेकिन उसके मुंह से बोल नहीं निकल रहे। 


आखिर में उसे प्रिंसिपल ऑफिस में सारे टीचरों के सामने लाया जाता है जहा वो सुन्न खड़ी है। 

आखिर में उसके पेरेंट्स को बुलाया जाता है ,माँ बाप हाथ जोड़ते है लेकिन प्रिंसिपल को अपने स्कूल की इज्जत प्यारी है ,और इन बैठकों का रिजल्ट ये निकला की उसे स्कूल से निकाल दिया गया। 


वो घर आयी ,और पहला काम ये हुआ की उसे जी भर कर पीटा गया ,पहले बाप ने पीटा फिर उसी भाई ने उन्ही हाथों से मुक्के बरसाए जिसपर उसने राखी बाँधी थी। 

उसका फ़ोन छीन लिया गया ,उसकी जिंदगी अब लगभग बर्बाद हो चुकी थी। 

उसने कई दिनों तक कमरे में खुद को बंद रखने के बाद बाहर निकलने की सोची। 

बाहर लोग उसे देख कर इशारे करने लगे थे ,उनकी फुसफुसाहट उसके कानो में गूंज की तरह थी। 

वो घर वापस आ गयी। 

बहुत सोचा उसने ,बहुत हिम्मत जुटाई मगर ख़ुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आया। 

शायद यही उसे अब आराम दे सकता था। 

उसने चूहे मारने की दवा ढुंढी और बिना एक पल गवाए गले में उतार लिया ,दस मिनट के अंदर वो इस दुनिया से निकल चुकी थी। 


उसके माँ बाप ने उसके रूम का दरवाजा खटखटाया मगर कोई जवाब नहीं मिला। जब जवाब कुछ देर तक नहीं आया तो दरवाजा तोड़ा गया ,वो पलंग के एक कोने में मरी पड़ी थी। 

उसकी लाश देख कर माँ बाप को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ की अभी जो लड़की चल फिर रही थी ,लाश बन चुकी है। 


रिलेटिव दोस्त सहेलियों  टीचर सबको ये खबर जल्द ही मिल गयी उस लड़के को भी। 

सभी को बुरा लगा उस लड़के को भी। 

उसे पछतावा हुआ वो रोने लगा और खुद को कोसने लगा लेकिन वक़्त मुड़कर  वापस कहा आता है। 

उसकी लाश सफेद कफ़न में सबके सामने रखी थी , जो उसे देख कर फब्तियां कस रहे थे ,सभी रो रहे थे .

लेकिन अब उसे फर्क नहीं पड़ने वाला कुछ , वो अब जा चुकी है। 


जिंदगी बिजली जैसी है ,आपका अपना भी इससे झटके दे सकता है। 

👍👍👍👍👍👍

 🌹 अतरात्मा की आवाज़ 🌹


एक दिन, एक गरीब किसान, एक व्यापारी जो उपरवाले का परम भक्त था, उसके पास अपनी जमीन बेचने गया और बोला, ''सेठजी, मेरी 2 एकड़ जमीन आप रख लो। ''


व्यापारी बोला, ''क्या कीमत है ?''


गरीब बोला, ''50 हजार रुपये। ''


व्यापारी थोड़ी देर सोच कर बोला, ''वो ही खेत जिसमें ट्यूबवेल लगा है ?''


गरीब, ''जी, आप मुझे 50 हजार से कुछ कम भी देंगे, तो जमीन आपको दे दूँगा। ''


व्यापारी ने आँखें बंद कीं, 5 मिनट सोच कर बोला, ''नहीं, मैं उसकी कीमत 2 लाख रुपये दूँगा। ''


गरीब, ''पर मैं तो 50 हजार मांग रहा हूँ, आप 2 लाख क्यों देना चाहते हैं ?''


व्यापारी बोला, ''तुम जमीन क्यों बेच रहे हो ?''


गरीब बोला, ''बेटी की शादी करनी है, इसीलिए मज़बूरी में बेचना है, पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं ?''


व्यापारी बोला, ''मुझे जमीन खरीदनी है, किसी की मजबूरी नहीं। अगर आपकी जमीन की कीमत मुझे मालूम है तो मुझे आपकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाना, मेरा ऊपरवाला कभी खुश नहीं होगा। ये मेरी अंतरात्मा की आवाज़ है। ''


ऐसी जमीन या कोई भी साधन, जो किसी की मजबूरियों को देख के खरीदा जाये, वो जिंदगी में सुख नहीं देता, आने वाली पीढ़ी मिट जाती है। 


व्यापारी ने कहा, ''मेरे मित्र, तुम खुशी खुशी, अपनी बेटी की शादी की तैयारी करो, 50 हजार की व्यवस्था हम गांव वाले मिलकर कर लेंगे, तेरी जमीन भी तेरी ही रहेगी। 

मेरे उपरवाले ने सदा ही हारे का साथ निभाया है तो मै किसी की भी मजबूरी का क्यूँ फायदा उठाऊं, देने वाला ऊपरवाला है, मेरा क्या है। ''


गरीब किसान दोनों हाथ जोड़कर, नीर भरी आँखों के साथ दुआयें देता चला गया।


शिक्षा :

दोस्तो, उपरवाले ने हमारे देश को हर प्रकार की वस्तु और अपार प्राकर्तिक सम्पदा से नवाज़ा है। लोग भोले-भाले और मेहनती हैं। दुनिया, हमारे युवाओं और उद्यमियों का लोहा मानती है। यदि हमारे नेता अंतरात्मा की आवाज़ सुन, निस्वार्थ सच्ची जनसेवा करते तो भारत कब का दुनिया का सबसे खुशहाल देश बन गया होता।


दोस्तो, किसी की मजबूरी न खरीदें। किसी के दर्द, मजबूरी को समझ कर, परोपकार करना ही सच्चा तीर्थ है, उपरवाले की सच्ची भक्ति की निशानी है।

 प्रारम्भ की कहानी-बेताल पच्चीसी 


बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करते थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा।


उस नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था। एक दिन देवता ने प्रसन्न होकर उसे एक फल दिया और कहा कि इसे जो भी खायेगा, वह अमर हो जायेगा। ब्रह्मण ने वह फल लाकर अपनी पत्नी को दिया और देवता की बात भी बता दी। ब्राह्मणी बोली, “हम अमर होकर क्या करेंगे? हमेशा भीख माँगते रहेंगें। इससे तो मरना ही अच्छा है। तुम इस फल को ले जाकर राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ।”


यह सुनकर ब्राह्मण फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास गया और सारा हाल कह सुनाया। भर्तृहरि ने फल ले लिया और ब्राह्मण को एक लाख रुपये देकर विदा कर दिया। भर्तृहरि अपनी एक रानी को बहुत चाहता था। उसने महल में जाकर वह फल उसी को दे दिया। रानी की मित्रता शहर-कोतवाल से थी। उसने वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वेश्या के पास जाया करता था। वह उस फल को उस वेश्या को दे आया। वेश्या ने सोचा कि यह फल तो राजा को खाना चाहिए। वह उसे लेकर राजा भर्तृहरि के पास गई और उसे दे दिया। भर्तृहरि ने उसे बहुत-सा धन दिया; लेकिन जब उसने फल को अच्छी तरह से देखा तो पहचान लिया। उसे बड़ी चोट लगी, पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं। उसने महल में जाकर रानी से पूछा कि तुमने उस फल का क्या किया। रानी ने कहा, “मैंने उसे खा लिया।” राजा ने वह फल निकालकर दिखा दिया। रानी घबरा गयी और उसने सारी बात सच-सच कह दी। भर्तृहरि ने पता लगाया तो उसे पूरी बात ठीक-ठीक मालूम हो गयी। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने सोचा, यह दुनिया माया-जाल है। इसमें अपना कोई नहीं। वह फल लेकर बाहर आया और उसे धुलवाकर स्वयं खा लिया। फिर राजपाट छोड, योगी का भेस बना, जंगल में तपस्या करने चला गया।


भर्तृहरि के जंगल में चले जाने से विक्रम की गद्दी सूनी हो गयी। जब राजा इन्द्र को यह समाचार मिला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की रखवाली के लिए भेज दिया। वह रात-दिन वहीं रहने लगा।


भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका। राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते होते?”

देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो।”

दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।”


इसके बाद देव ने कहा, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल का राज करता था। कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर शम्शान में पिशाच बना सिरस के पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।”


इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। राजा फिर राज करने लगा।


एक दिन की बात है कि शान्तिशील नाम का एक योगी राजा के पास दरबार में आया और उसे एक फल देकर चला गया। राजा को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी को बताया था, कहीं यह वही तो नहीं है! यह सोच उसने फल नहीं खाया, भण्डारी को दे दिया। योगी आता और राजा को एक फल दे जाता।


संयोग से एक दिन राजा अपना अस्तबल देखने गया था। योगी वहीं पहुँच और फल राजा के हाथ में दे दिया। राजा ने उसे उछाला तो वह हाथ से छूटकर धरती पर गिर पड़ा। उसी समय एक बन्दर ने झपटकर उसे उठा लिया और तोड़ डाला। उसमें से एक लाल निकला, जिसकी चमक से सबकी आँखें चौंधिया गयीं। राजा को बड़ा अचरज हुआ। उसने योगी से पूछा, “आप यह लाल मुझे रोज़ क्यों दे जाते हैं?”

योगी ने जवाब दिया, “महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी, इनके घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।”


राजा ने भण्डारी को बुलाकर पीछे के सब फल मँगवाये। तुड़वाने पर सबमें से एक-एक लाल निकला। इतने लाल देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। उसने जौहरी को बुलवाकर उनका मूल्य पूछा। जौहरी बोला, “महाराज, 

Monday, January 25, 2021

 एक राजा के पास कई हाथी थे, 

लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी,समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। 


बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था, 

इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था। 


समय गुजरता गया  ...


और एक समय ऐसा भी आया, 

जब वह वृद्ध दिखने लगा। 

        

 अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था। इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे।


 एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया। 


उस हाथी ने बहुत कोशिश की, 

लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।


 उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है। 


हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।

 

राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे। 


जब बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं निकला तो राजा ने अपने सबसे अनुभवी मंत्री को बुलवाया।


 मंत्री ने आकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ। 


सुनने वालोँ को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा, जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया।


आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा। 


पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया। 


अब मंत्री ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी।


☀️"सिख :- हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यदि हमारे मन में एक बार उत्साह - उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता।


जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे।


कभी - कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है।

 एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया।


शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”


शिकारी बोला, “ मैं तुम्हे मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।”


बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।”


“बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।


बाज ने बताना शुरू किया-


मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना।


पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना।


और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुखी मत होना।


शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रस्ते आगे बढ़ने लगा।


कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “ शिकारी, एक बात बताओ…अगर मैं तुम्हे कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”


शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “ क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?”


बाज बोला, “ दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा इसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीबी भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।”


यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।


बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची साखा पर जा बैठा और बोला, “ कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हे एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नही किया…दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।



यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा…तभी बाज फिर बोला, तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।


 इस कहानी - से हमें ये सीख मिलती है कि हमे किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुक्सान होने या असफलता मिलने पर दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।

 कल्पना शक्ति के प्रयोग ☜


✽ सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि तुम बहुत प्रसन्न हो। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें-- आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण-- जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। 


✽ अपने बिस्तर से बहुत विधायक व आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा-- कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। 


सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं।


✽ जब रात को तुम सोते हो तो कल्पना करो कि तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो….जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो, तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो।तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो….जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो, तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो।तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो….जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो, तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो। बस एक बात पर निरंतर ध्यान रखना है कि नींद के आने तक तुम्हें कल्पना करते जाना है ताकि कल्पना नींद में प्रवेश कर जाए, वे दोनों एक दूसरे में घुलमिल जाएं।


✽ किसी नकारात्मक बात की कल्पना मत करें, क्योंकि जिन व्यक्तियों में निषेधात्मक कल्पना करने की क्षमता होती है, अगर वे ऐसी कल्पना करते हैं तो वह वास्तविकता में बदल जाती है। 


✽ अगर तुम कल्पना करते हो कि तुम बीमार पड़ोगे तो तुम बीमार पड़ जाते हो। अगर तुम सोचते हो कि कोई तुमसे कठोरता से बात करेगा तो वह करेगा ही।


 तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी। तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी। तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी। तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। उसे नकार दें, छोड़ दें उसे,फेंक दें उसे।


✽ एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो - बिना किसी कारण के।एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो - बिना किसी कारण के।एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो - बिना किसी कारण के।

 ⭕️"प्रेरणादायक कहानी- ध्यान से पढ़िए..✍️

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बहुत पहले आप ने एक चिड़िया की कहानी सुनी होगी...


जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था...


चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...


हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...


भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था...


फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...


राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है। 

चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...


वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि राजा बढ़ई को सजा नहीं देता...

बढ़ई पेड़ नहीं काटता...

पेड़ उसका दाना नहीं देता...

महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...


चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...


राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...

बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...

पेड़ दाना देने को राजी नहीं।

हाथी बिगड़ गया...

उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..

तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?


चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...

चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।


अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया...उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं...पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ...


चींटी डर गई...भाग कर वो हाथी के पास गई...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया...उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो.मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा...


निष्कर्ष-🤭

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आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा...आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी...हर शेर को सवा शेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं...


आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा... यकीन कीजिए...हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं...


हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है..!!       


बड़े सपनो को पाने वाले हर व्यक्ति को सफलता और असफलता के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है


पहले लोग मजाक उड़ाएंगे,फिर लोग साथ छोड़ेंगे, फिर विरोध करेंगे


फिर वही लोग कहेंगे हम तो पहले से ही जानते थे की एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे!


रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा,

प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा..! 


थक कर ना बैठ, ऐ मंजिल के मुसाफ़िर मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा !!

 "एकाग्रता कैसे बढ़ाए " 


🔰सवाल : नमस्ते दीदी 😊 म कॉम्पीटिशन का एग्जाम दे रही हु लेकिन मै कभी कभी बहुत इस बात को लेकर नर्वस हो जाती हु..की कभी कभी ध्यान भटक जाता हैं : मेरी तैयारी भी अच्छी होते हुए भी.. मै पेपर देते समय कुछ आता हुआ भी गलत कर देती हु कुछ उपाय बताये क्या करना चाहिए..... मै जब से राजयोग मैडिटेशन ग्रुप ज्वाइन किया हैं तब से मेरे मै बहुत कुछ सुधार आया हैं.. और मै अब सकरात्मक रह पाती हु और सोच पाती हु....🙏🙏  💞✍️✍️🌹


 

जवाब : Student को पढ़ाई करने के लिए मंन बुद्धि का उपयोग करना होता है। तो सबसे पहले मन क्या चीज है बुद्धि क्या चीज है और उनका कार्य क्या है शरीर में कौन सी जगह पर रहती है यह जानना बहुत जरूरी।


मन और बुद्धि आत्मा की शक्ति आत्मा दोनों आंखों के बीच  भ्रुकुटी में रहती है। हम कहते हैं कि मेरा मन है,तो में आत्मा मन, बुद्धि  की मालिक हूं। अगर मालिक अपने सीट से कर्मचारी को आर्डर करें कुछ काम दे तो करना पड़ता है।मालिक अपने सीट से कर्मचारी को आर्डर करें कुछ काम दे तो करना पड़ता है।मालिक अपने सीट से कर्मचारी को आर्डर करें कुछ काम दे तो करना पड़ता है। तो इसी प्रकार से यह मन बुद्धि आत्मा के कहने पर आर्डर पर कार्य करती रहती है। लेकिन हम यह भूल जाने के कारण हमें पता नहीं था कि हम आत्मा मन के  मालिक होते हुए भी मन के गुलाम हो गए है।



मन भटकता है मन लगता नहीं मन मानता नहीं क्योंकि हम मालिक पन को भूल गए। तो मैं आत्मा मालिक हूं इस स्मृति की सीट पर सेट होना है 



भ्रुकुटी आसन पर आत्मा इस देह की मालिक है कर्मेंद्रियों की मालिक है ,और मन बुद्धि की मालिक है। और 


मैं आत्मा महान आत्मा हू सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूं सर्वशक्तिमान  पिता की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा इस ग्रुप भ्रुकुटी  के मध्य में सीट के आसन पर बैठ कर के मन बुद्धि को हम जब आर्डर करते हैं कि हे मन अब तुम्हारा भटकना बंद करो और मन को उस परमात्मा  पिता ज्योति बिंदु को याद करो । 



क्योंकि उनके साथ हमारा सर्व संबंधों का नाता है मात-पिता, टीचर, साथी और साजन का संबंध है। और संबंध  के आधार पर हमें प्राप्ति भी बहुत होती है। सुख शांति प्रेम आनंद, और ज्ञान की प्राप्ति होती है। मन का यह स्वभाव है कि जहां संबंध है और जहां पर प्राप्ति है वहीं पर जाता है।मन की कंट्रोलर बुद्धि है बुद्धि को परमात्मा की याद में एकाग्र करने से मन का भटकना शांत हो जाता है।


पढ़ाई पढ़ने के लिए मन बुद्धि की एकाग्रता बहुत जरूरी है एकाग्रता आने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ विधि है। मेडिटेशन जब  भी आप पढ़ाई पढ़ने बैठेंगे तो पहले 2 मिनट मन बुद्धि को उस परमात्मा पिता की याद में एकाग्र करना  है  एकाग्र होने के बाद आप जितना समय चाहे  उतना समय पढ़ाई पढ़ सकते हैं। और पढ़ा हुआ एकाग्र बुद्धि में बैठ जाता है।


✅एग्जाम देते समय शुरुआत में और बीच-बीच में 1 मिनट का अभ्यास करते रहे तो मन बुद्धि की एकाग्रता रहेगी किसी भी बात का टेंशन भय से मुक्त रहेंगे।


 मन की अवस्था एक रस अचल अडोल रहेगी। मन में हलचल होने से भयभीत होकर जो आता है वह भी भूल जाते हैं। इसीलिए यह अभ्यास आपको बहुत मदद करेगा इसको हम मेडिटेशन करते हैं।


🔰अभ्यास इस तरह से करें👇


मैं आत्मा ज्योति 🌟 सवरूप बिंदु 💫रप लाइट भृकुटी के बीच में विराजमान है मैं इस देह की मालिक हूं सभी कर्मेंद्रियों की मालिक और मन बुद्धि की मालिक हूं मैं  मास्टर सर्वशक्तिमान हूं। ऊपर से महाज्योति सर्वशक्तिमान की किरने मुझ आत्मा पर आ रही है, मन शांत और बुद्धि एकाग्र हो रही है। अनुभव करें बुद्धि के नेत्र से देखे।


नोट: जिन भाई बहनों ने राजयोग मेडिटेशन कोर्स नहीं किया है उन्हे नए ग्रुप का लिंक जल्द शेयर किया जाएगा यही पर , तब आप जुड़ सकते है।

 प्रेरणादायक कहानी...👌

पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.


                       ✍️✍️


एक समय की बात है...एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे...


समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.


पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी. सन्त बहुत दु:खी हुए.


उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.


थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,


सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.


स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.


थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.


सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.


वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?


उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : —


मैं एक मछुआरा हूँ मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.


मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.


कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.


सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ,जो देखा उसके बारे में मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.


कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.


⭕️'शिक्षा.....✍️


किसी के प्रति कोई निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.

 'जल्दीबाजी में निर्णय लेने से बचें.

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एक बार की बात है एक राजा था। उसका एक बड़ा-सा राज्य था। एक दिन उसे देश घूमने का विचार आया और उसने देश भ्रमण की योजना बनाई और घूमने निकल पड़ा। जब वह यात्रा से लौट कर अपने महल आया। उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा का कहना था कि मार्ग में जो कंकड़ पत्थर थे वे मेरे पैरों में चुभ गए और इसके लिए कुछ इंतजाम करना चाहिए।


कुछ देर विचार करने के बाद उसने अपने सैनिकों व मंत्रियों को आदेश दिया कि देश की संपूर्ण सड़कें चमड़े से ढंक दी जाएं। राजा का ऐसा आदेश सुनकर सब सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो निश्चित ही था कि इस काम के लिए बहुत सारे रुपए की जरूरत थी। लेकिन फिर भी किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद राजा के एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने राजा के पास जाकर डरते हुए कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ।


अगर आप इतने रुपयों को अनावश्यक रूप से बर्बाद न करना चाहें तो एक अच्छी तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और अनावश्यक रुपयों की बर्बादी भी बच जाएगी।


राजा आश्चर्यचकित था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की बात कही थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की सड़कों को चमड़े से ढंकने के बजाय आप चमड़े के एक टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज की दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए जूता बनवाने का आदेश दे दिया।


यह कहानी..हमें एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है कि हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। दूसरों से राय मशवरा करके भी समस्याओं का हल खोजने में मदद मिलती है ।

 खाली हाँथ है जाना👈🏿👐


▪️कछ समय पहले की बात है । एक बहुत धनी आदमी था । एक बार उसके मन में भी किसी संत से ज्ञान लेने की इच्छा हुई । लेकिन उसके मन में धन का बहुत अहंकार था । वो संत के पास गया । तो वे सच्चे संत तुरन्त समझ गये कि - इसके मन में धन का बेहद अहंकार है ।


▪️लकिन ये बात उन्होंने अपने मन में ही रहने दी । सेठ ने उन सन्त से ज्ञान मंत्र लिया ।


▪️और बोला - महाराज जी ! मेरे पास बहुत धन है । किसी चीज की कमी हो । तो बोलना । मेरे योग्य कोई सेवा हो । तो बताना ।


▪️सत उसकी इस बात के पीछे छिपे अहंकार को समझ गये । और उन्होंने उसी पल उसका अहंकार दूर करने की सोची । वे कुछ देर सोचते रहे ।


▪️फिर उन्होंने कहा - और तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं । पर मेरे कपड़ों को सीने के लिए सुई की अक्सर जरूरत पड़ जाती है । अतः यदि तुम मेरा काम करना ही चाहते हो । तो मेरे शरीर त्यागने के बाद । जब कभी तुम ऊपर ( मृत्यु के बाद ) आओ । तो मेरे लिये अपने साथ एक सुई लेते आना ।


▪️सठ को एक सुई का इंतजाम करना बेहद मामूली बात ही लगी। इसलिये वह झोंक में एकदम बोला - ठीक है महाराज !


▪️लकिन वो जल्दी में ये बात बोल तो गया । परन्तु फिर उसको ध्यान आया कि - ये कैसे हो सकता है ? मरने के बाद मैं भला सुई कैसे ले जा सकता हूँ । और अगर सुई लेकर भी जाता हूँ तो उसे कैसे पता चलेगा कि मैं आपके लिए सुई लेकर आ गया हूँ और सबसे बड़ी बात मरने के बाद वो सुई तो वहीँ की वही रह जायेगी ।


  इस बात के ध्यान में आते ही संत की बात का सही मतलब सेठ की समझ में भली भांति आ गया कि - किसी के मरने के बाद ना तो हम किसी को कुछ दे सकते हैं और ना ही वो कुछ ले जा सकता है । जिस धन पर मैं अभी गर्व कर रहा हूँ । वो सब यहीं का यहीं ही पड़ा रह जायेगा । और मैं एक सुई जैसी मामूली चीज भी अपने साथ नहीं ले जा सकता । तब उसका सारा अभिमान चूर चूर हो गया । और वो क्षमा माँगता हुआ संत के चरणों में गिर पड़ा  ।


       💠💠🔅शभ रात्रि 🔅💠💠

 🙏जीवन बदलने वाली  कहानी🙏🌹



पिता और पुत्र साथ-साथ टहलने निकले,वे दूर खेतों 🌾🌿की तरफ निकल आये, तभी पुत्र 👱 न देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते 👞👟🥾उतरे पड़े हैं, जो ...संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर 👳‍♀ क थे.


पुत्र को मजाक 🧐सझा. उसने पिता से कहा  क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार 😃 बनायें,आखिर ... मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है. पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा.🤨


पुत्र बोला ~ हम ये जूते👞👟🥾 कहीं छुपा कर झाड़ियों🌲 क पीछे छुप जाएं.जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा😂 आएगा.उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द  ☺️म जीवन भर याद रखूंगा.



पिता, पुत्र की बात को सुन  गम्भीर 🤫हये और बोले " बेटा ! किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना ❌. जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं,वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं. तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है,✅



 तो आओ .. आज हम इन जूतों👞👟🥾 म कुछ सिक्के  💰💷डाल दें और छुप कर 👀 दखें कि ... इसका मजदूर👳‍♀ पर क्या प्रभाव पड़ता है.पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों  🌲🌿म छुप गए.


मजदूर 👳‍♀ जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों 👞👟🥾की जगह पर आ गया. उसने जैसे ही एक पैर 👢 जते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ 😲, उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा कि ...अन्दर कुछ सिक्के 💰💷 पड़े थे.


उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से  🧐उन्हें देखने लगा.फिर वह इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार 🤝शख्स कौन है ?


दूर-दूर तक कोई नज़र👀 नहीं आया, तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए. अब उसने दूसरा जूता उठाया,  उसमें भी सिक्के पड़े थे.


मजदूर भाव विभोर  ☺️हो गया.

वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ ...आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा 😭. वह हाथ जोड़ 🙏 बोला 


हे भगवान् 🙏 ! आज आप ही ☝️ किसी रूप में यहाँ आये थे, समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके  माध्यम से जिसने भी ये मदद दी,उसका लाख-लाख धन्यवाद 🙌🙏.आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी 🤒🤧🤕को दवा और भूखे बच्चों 👦को रोटी🍜🥪 मिल सकेगी.तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद.🙏☺️


मजदूर की बातें सुन ... बेटे की आँखें 👁भर आयीं.😥😩


पिता 👨‍🦳न पुत्र👱 को सीने से लगाते हुयेे कहा क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में इस गरीब के आँसू😢 और  दिए हुये आशीर्वाद🤚 तम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या ❓


    बेटे ने कहा पिताजी .. आज आपसे मुझे जो सीखने ✍️🙇 को मिला है, उसके आनंद ☺️ को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ. अंदर में एक अजीब सा सुकून☺️ ह.


आज के प्राप्त सुख 🤗और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा. आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था.आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ कि 

 

लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है। 

 क्रोध की चिंगारी?

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जानिए आज विशेष 📋📈

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✔️ एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। वे चलते चलते एक गांव के पास स्थित एक बगीचे में पहुंचे। बुद्ध के आने की खबर आसपास के गांवों में पहुंच गई और देखते ही देखते उनके दर्शन को हजारों लोग एकत्रित हो गए। 


✔️ व सभी बुद्ध का दर्शन पाकर बेहद प्रसन्न हुए और वे सभी बुद्ध की अमृतवाणी सुनने की आस में वहीं उनके निकट बैठ गए। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मौन बैठे थे। शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोग बुद्ध से कुछ सुनने की आस लगाए बैठे थे, परंतु बुद्ध तो अपने आप में ही खोए अभी भी मौन बैठे थे। शिष्यों को लगा कि तथागत कहीं अस्वस्थ तो नहीं है? 


✔️ आखिर एक शिष्य ने उनसे पूछ ही लिया- तथागत, आज आप शांत क्यों बैठे हैं? आपको सुनने की प्रतीक्षा में यहां दूर-दूर से आए हजारों लोग बैठे हैं। फिर आप मौन क्यों हैं ? क्या हममें से किसी शिष्य से ऐसी गलती हो गई है, जिससे कि आप नाराज हैं ? तभी किसी अन्य शिष्य ने पूछा- भगवन, कहीं आप अस्वस्थ तो नहीं हैं ? परंतु बुद्ध अभी भी मौन थे। सच तो यह था कि हर पल आनंद में स्थित रहने वाले बुद्ध न तो नाराज थे और न ही अस्वस्थ। 


✔️ व तो सभा में बैठे हुए हजारों लोगों के चित्त के चित्र को अपने ध्यानस्थ नेत्रों से पलभर में ही देख रहे थे कि सभा में बैठे प्रत्येक व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है ? उसके चित्त की दशा क्या है ? इसलिए वे अपने तरीके से ही लोगों के चित्त की शल्यक्रिया किया करते थे। वे अपने तरीके से लोगों की मानसिक उलझनों को दूर करने का प्रयास करते थे।


✔️ उस समय वेमौन में ही सभा में बैठे किसी व्यक्ति के मन से उठ रही क्रोध की अदृश्य चिंगारी को देख रहे थे। वे अभी भी शांत ही बैठे थे कि तभी सभा से कुछ दूरी पर खड़ा एक व्यक्ति जोर चिल्लाया-'आज मुझे सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई है? मुझे प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं मिली?' इसी बीच एक शिष्य ने उसका पक्ष लेते हुए कहा कि उस व्यक्ति को सभा में आने की अनुमति प्रदान की जाए।'


✔️ बद्ध मौन से बाहर आए और बोले- 'नहीं, उसे सभा में आने की आज्ञा नहीं दी जा सकती है।' यह सुन शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति महात्मा बुद्ध द्वारा किसी को अनुमति न दिया जाना वास्तव में सबके लिए आश्चर्यजनक था। 


✔️ बद्ध की दृष्टि में तो मानव-मानव में कोई भेद नहीं था। बुद्ध की यह प्रतिक्रिया निश्चित ही सबको विस्मय और आश्चर्य में डालने वाली थी। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोगों के मनोभावों को बखूबी समझ रहे थे। इसलिए बुद्ध ने कहा- 'इस व्यक्ति के अंदर अदृश्य रूप में क्रोध की ज्वाला तो पहले से ही धधक रही थी, जो अब बाहर प्रकट हो रही है। जैसे- अग्नि अपने संपर्क में आनेवाली हर चीज को भस्मीभूत कर देती है, वैसे ही क्रोधी व्यक्ति के भीतर से निकलकर आसपास के लोगों में भी क्रोध की चिंगारी सुलगा देती है । इसलिए क्रोधी व्यक्ति को छूने से कोई भई जल सकता है और अपनी हानि कर सकता है।'


✔️ बद्ध आगे बोले- 'क्रोध पलभर में ही व्यक्ति की सारी अच्छाई को नष्ट कर सकता है और उससे कुछ भी अनिष्ट करवा सकता है । क्रोध की अग्नि पल भर में ही व्यक्ति के भीतर की करुणा और प्रेम जैसी उच्चतर भावनाओं को सोख लेती है। 


✔️ करोध, हिंसा का ही प्रकट रूप है। जिस व्यक्ति में क्रोध की अग्नि जल रही है, वह व्यक्ति अहिंसक हो ही नहीं सकता। भला जो स्वयं को अपने क्रोध की चिंगारी से पल-पल जला रहा हो, वह दूसरों के साथ अहिंसक कैसे हो सकता है।

 

✔️ इसलिए ऐसे व्यक्ति को सभा से, समूह से समाज के दूर ही रहना चाहिए।' सभा में बैठे क्रोधी व्यक्ति को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था । वह दौड़ता हुआ आया व बुद्ध के चरणों में माथा टेककर बिलखने लगा । 


✔️ परेम और करुणा की प्रतिमूर्ति बुद्ध ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरा और बोले-वत्स, क्रोध दहकते हुए उस कोयले के समान है, जिसे व्यक्ति दूसरों को जलाने के लिए अपने पास,अपने अंदर रखे रहता है और उससे हर पल वह स्वयं ही जलता रहता है, इसलिए क्रोध से बाहर निकलो। अपने अंदर प्रेम करुणा और सहिष्णुता के जल को भरकर अपने भीतर जल रही क्रोध को अग्नि को, चिंगारी को सदा-सदा के लिए बुझा सकते हों। क्रोध के शांत होते ही, समाप्त होते ही तुम शांति को प्राप्त होगे और तुम्हें तुम्हारे अंदर से ही सुख की प्राप्ति होने लगेगी।

 आज का प्रेरक प्रसङ्ग


   !! भगवान सबको देखता हैं !!

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एक बार एक गाँव में एक भला आदमी बिक्री से दुखी था| यह देख एक चोर को उस पर दया आ गई| वह उस बेरोजगार आदमी के पास गया और बोला, “मेरे साथ चलो, चोरी में बहुत सारा धन मिलेगा” आदमी बैकर बैठे-बैठे परेशान हो गया था| इसलिए वह उस चोर के साथ चोरी करने को तैयार हो गया| लेकिन अब समस्या यह थी की उसे चोरी करना आती नहीं थी| उसने साथी से कहा, “मुझे चोरी करना आती तो नहीं है, फिर कैसे करूँगा|” चोर ने कहा” तुम उसकी चिंता मत करो, मैं तुम्हें सब सिखा दूंगा”


अगले दिन दोनों रात के अँधेरे में गाँव से दूर एक किसान का पका हुआ खेत काटने पहुँच गए| वह खेत गाँव से दूर जंगल में था, इसीलिए वहां रात में कोई रखवाली के लिए आता जाता न था| लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिहाज़ से उसने अपने नए साथी को खेत की मुंडेर पर रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और किसी के आने पर आवाज लगाने को कहकर खुद खेत में फसल चोरी करने पहुँच गया| नए साथी ने थोड़ी ही देर में अपने साथी को आवाज लगे, “भर जल्दी उठो, यहाँ से भाग चलो…खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है” चोर ने जैसे ही अपने साथी की बात सुनी वह फसल काटना छोड़ उठकर भागने लगा|


कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पुछा, “मालिक कहाँ खड़ा था? कैसे देख रहा था? नए चोर ने सहजता पूर्वः जवाब दिया, “मित्र! इश्वर हर जगह मौजूद है| इस संसार में जो कुछ भी है उसी का है और वह सब कुछ देख रहा है| मेरी आत्मा ने कहा, इश्वर यह भी मौजूद है और हमें चोरी करते हुए देख रहा है…इस स्थती में हमारा भागना ही उचित था| पहले चोर पर बेरोजगार आदमी की बातों का इतना प्रभाव पड़ा की उसने चोरी करना ही छोड़ दिया|

  रात्रि कहानी 💞💞💞

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एक बार बुरी आत्माओं ने भगवान से शिकायत की कि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया जाता है, अच्छी आत्माएं इतने शानदार महल में रहती हैं और हम सब खंडहरों में, आखिर ये भेदभाव क्यों है, जबकि हम सब आप ही की संतान हैं।


भगवान ने उन्हें समझाया, ” मैंने तो सभी को एक जैसा ही बनाया पर तुम ही अपने कर्मो से बुरी आत्माएं बन गयीं।


पर भगवान के समझाने पर भी बुरी आत्माएं भेदभाव किये जाने की शिकायत करतीं रहीं।


इसपर भगवान ने कुछ देर सोचा और सभी अच्छी-बुरी आत्माओं को बुलाया और बोले, “ बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है, आज से तुम लोगों को रहने के लिए मैंने जो भी महल या खँडहर दिए थे वो सब नष्ट हो जायेंगे, और अच्छी और बुरी आत्माएं अपने अपने लिए दो अलग-अलग शहरों का निर्माण करेंगी। ”


तभी एक आत्मा बोली, “ लेकिन इस निर्माण के लिए हमें ईंटें कहाँ से मिलेंगी ?”


“जब पृथ्वी पर कोई इंसान सच या झूठ बोलेगा तो यहाँ पर उसके बदले में ईंटें तैयार हो जाएंगी।  सभी ईंटें मजबूती में एक सामान होंगी, अब ये तुम लोगों को तय करना है कि तुम सच बोलने पर बनने वाली ईंटें लोगे या झूठ बोलने पर!”, भगवान ने उत्तर दिया ।


बुरी आत्माओं ने सोचा, पृथ्वी पर झूठ बोलने वाले अधिक लोग हैं इसलिए अगर उन्होंने झूठ बोलने पर बनने वाली ईंटें ले लीं तो एक विशाल शहर का निर्माण हो सकता है, और उन्होंने भगवान से झूठ बोलने पर बनने वाली ईंटें मांग ली।


दोनों शहरों का निर्माण एक साथ शुरू हुआ, पर कुछ ही दिनों में बुरी आत्माओं का शहर विशाल रूप लेने लगा, उन्हें लगातार ईंटों के ढेर मिलते जा रहे थे और उससे उन्होंने एक शानदार महल बना लिया।  वहीँ अच्छी आत्माओं का निर्माण धीरे -धीरे चल रहा था, काफी दिन बीत जाने पर भी उनके शहर का एक ही हिस्सा बन पाया था।


कुछ दिन और ऐसे ही बीते, फिर एक दिन अचानक एक अजीब सी घटना घटी।  बुरी आत्माओं के शहर से ईंटें गायब होने लगीं … दीवारों से, छतों से, इमारतों की नीवों से,… हर जगह से ईंटें गायब होने लगीं और देखते -देखते उनका शहर खंडहर का रूप लेने लगा। परेशान आत्माएं तुरंत भगवान के पास भागीं और पुछा, “ हे प्रभु, हमारे महल से अचानक ये ईंटें गायब क्यों होने लगीं …हमारा महल शहर तो फिर से खंडहर बन गया ?”


भगवान मुस्कुराये और बोले, “ ईंटें गायब होने लगीं!! अच्छा -अच्छा, लगता है जिन लोगों ने झूठ बोला था उनका झूठ पकड़ा गया, और इसीलिए उनके झूठ बोलने से बनी ईंटें भी गायब हो गयीं।


मित्रों,इस कहानी से हमें कई ज़रूरी बातें सीखने को मिलती है, जो हम बचपन से सुनते भी आ रहे हैं पर शायद उसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते :


झूठ की उम्र छोटी होती है, आज नहीं तो कल झूठ पकड़ा ही जाता है।


झूठ और बेईमानी के रास्ते पर चल कर सफलता पाना आसान लगता है पर अंत में वो हमें असफल ही बनाता है।


वहीँ सच्चाई से चलने वाले धीरे -धीरे आगे बढ़ते हैं पर उनकी सफलता स्थायी होती है. अतः हमें हमेशा सच्चाई की बुनियाद पर अपने सफलता की इमारत खड़ी करनी चाहिए, झूठ और बेईमानी की बुनियाद पर तो बस खंडहर ही बनाये जा सकते है ।

 एक् शिक्षाप्रद कहानी 


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एक गांव में एक किसान रहता था। वह रोज सुबह झरनों से साफ पानी लाने के लिए दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वह डंडे में बांधकर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एकदम सही था ✅। इस तरह रोज घर पहुंचते-पहुंचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।


सही घड़े को इस बात का घमंड 😎 था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा 😩 रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पहुंचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार जाती है।😢


 फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा,  'मैं खुद पर शर्मिंदा हूं और आपसे माफी मांगना चाहता हूं।'


किसान ने पूछा, 'क्यों ❓ तम किस बात से शर्मिंदा हो❓' 


फूटा घड़ा बोला, 'शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूं, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुंचाना चाहिए था, बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूं। मेरे अंदर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है।' 😔


किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुख हुआ और वह बोला, 'कोई बात नहीं, मैं चाहता हूं कि आज लौटते वक्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों 🌸🌺🌷🌼🌻💐 को देखो। घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया। ☺️


ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुंचते-पहुंचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था।' वह मायूस 😢 होकर किसान से माफी मांगने लगा।


किसान बोला, 'शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे।' वो बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अंदर की कमी को जानता था, और मैंने उसका फायदा उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे।


तुम रोज थोड़ा-थोड़ा कर उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत 😊 बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान ☝️ को अर्पित कर पाता हूं और अपने घर  🏡को सुन्दर बना पाता हूं। तुम्हीं सोचो, 'यदि तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ❓


हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं। यानी आप जैसे हैं वैसे ही रहिए। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वैसा ही स्वीकारना चाहिए जैसा वह है। उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब फूटा घड़ा भी अच्छे घड़े से कीमती हो जाएगा ll

 Best Motivational Line 💐❣️


Ⓜ️अपनी ज़िंदगी की सारी हदें आपने खुदनाई हैं। इन हदो को तोड़ने के बाद आप कामयाब हो जाओगे।


Ⓜ️एक दिन आपका सारा जीवन आपकी आंखों के सामने से होकर गुजरेगा। सुनिश्चित करें कि यह देखने लायक हो।


Ⓜ️यह आपकी सोच ही है जो आपको राजा भी बना सकती हैं और रंक भी बना सकती हैं। इसलिए अपनी सोच बदलो जिंदगी बदलो।


Ⓜ️गलती होने के डर से कुछ भी ना करना सबसे बड़ी गलती हैं।


Ⓜ️लगातार प्रैक्टिस, आपको उस काम मे महान बना देगी।


Ⓜ️खद को इतना काबिल बना दो कि कामयाबी आपके पास आने के लिये मजबूर हो जाये।


Ⓜ️जयादा सोचने से बचो क्योकि ये आपको अंदर ही अंदर खोखला कर देगा।


Ⓜ️अपने शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाओ, क्योकि पुरी जिंदगी आपको इसी के साथ रहना हैं।


Ⓜ️खद को शांत कर लो, आपमे गजब की शक्ति आ जायेगी।


Ⓜ️आप जो कुछ भी बनना चाहते हो, वो बनने के लिए कभी भी देर नही होती हैं।


Ⓜ️आपमे अपनी खुद की दुनिया बनाने का सामर्थ्य हैं। आप असंभव को भी सम्भव बना सकते हो।


Ⓜ️जब भी रास्ते में मुसीबतें आए तो घबराना मत। नदी की तरह अपने रास्ते से सब कुछ हटाते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाना।


Ⓜ️अभी तक मिली असफलताओं से निराश ना हो, दुगुने उत्साह से लगे रहो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।


Ⓜ️ तम अभी तक अपनी असली औकात नही जानते, वरना ऐसे न बैठे रहते।


Ⓜ️ अभी आप पर दुनिया वाले हंसते हैं, तो चिंता मत कीजिये। जिस दिन आप सफल हो गए, या तो वे आपके आगे पीछे घूमेंगे या फिर कभी शक्ल नही दिखाएंगे।


Ⓜ️आप खुद में दृढ़ विश्वास करे, अच्छा महसूस करे और कड़ी मेहनत करते रहे, यही रहस्य है किस्मत के दरवाजे को खोलने का।

 'दिल छू लेने वाली कहानी...👌

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एक बूढ़ा व्यक्ति था जिसकी पत्नि का कुछ समय पहले ही निधन हो गया था। अब परिवार में केवल बेटा, बहु और एक छोटा सा पोता था, जिनके साथ वह बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वैसे तो परिवार सुख समृद्धि से परिपूर्ण था। किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन वह बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा-खासा नौजवान था, आज बुढ़ापे से हार गया था। अब उसके हाथ-पैर भी कांपने लगे थे और कोई भी काम ठीक ढ़ंग से नहीं कर पाते थे। आज उसे चलने के लिए लाठी की जरुरत पड़ने लगी थी और चेहरा झुर्रियों से भर चुका था। पत्नि की मृत्यु के बाद वे टूट से गए थे और बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहे थे। उनके घर की एक परम्परा बहुत पीढीयों से चली आ रही थी कि घर में शाम का खाना सभी साथ करते थे।


बेटा शाम को ऑफिस से घर आया तो उसे भूख बहुत तेज लगी थी सो जल्दी से भोजन करने के लिए बैठ गया, साथ में पिताजी भी बैठ गए। उसके पिताजी ने जैसे ही थाली उठाने की कोशिश की, तो थाली हाथ से छिटक गई और थोड़ी सब्जी टेबल पर गिर गई तो बहु-बेटे ने घृणा दृष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाना खाने लगे। बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथो से भोजन करना शुरू किया तो कभी खाना कपड़ों पर गिर जाता, कभी टेबल पर, तो कभी जमीन पर। बहु ने चिढ़ते हुए कहा, “हे राम, पिताजी तो कितनी गन्दी तरह से खाना खाते हैं, इन्हे देख कर घृणा आती है। मन करता है इनकी थाली किसी अलग कोने में लगा दिया करू। बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो।


उसका पोता यह सब मासूमियत से देख रहा था। अगले दिन पिताजी की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गई। अपनी भोजन की थाली एक कोने में लगी देखकर पिता जी को बहुत दु:ख हुआ लेकिन वे कर भी क्या सकते थे। सो वे बैठकर अपना भोजन करने लगे। भोजन करते-करते उन्हे वह समय याद आ रहा था जब वे अपने इसी बेटे को गोद में बिठाकर बड़े ही प्यार से भाेजन कराया करते थे और वह भी अपना खाना मेरे कपड़ो पर गिराया करता था , लेकिन मैंने कभी भी उसे खाना खिलाना बन्द नहीं किया। मुझे कभी घृणा नहीं आई। बूढ़े पिता यही सोचते हुए रोज की तरह कांपते हाथों से खाना खाने लगे। खाना कभी इधर गिरता, तो कभी उधर गिर जाता। वे ठीक तरह से खाना भी नहीं खा पा रहे थे। उनका पोता, लगातार अपना खाना छोड़कर अपने दादाजी की तरफ देखे जा रहा था तो उसकी माँ ने पूछा, “क्या हुआ बेटे, तुम दादाजी की तरफ क्या देख रहे हो? तुम अपना खाना क्यों नहीं खा रहे?“


बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला, “माँ, मैं देख रहा हूँ कि अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। जब मैं बड़ा होऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जायेंगे, तब मैं भी आप लोगो को इसी तरह कौने में भोजन दिया करूँगा।“बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही दोनों काँप उठे जैसे उन्हे किसी ने खींच के चांटा मार दिया हो। बच्चे की बात उनके मन में बैठ गई थी क्योंकि बच्चे ने मासूमियत के साथ एक बहुत बड़ी सीख दे दी थी।


ऐसा कहते हैं कि बच्चे और बूढ़े एक समान होते हैं लेकिन दोनों के व्यवहार में बहुत फर्क हो जाता है। बच्चे जब छोटे होते हैं और स्वयं अपने हाथ से खा-पी नहीं सकते, तब बड़े उनकी मदद करते हैं, लेकिन जब उम्र बढ़ जाने पर भोजन करते समय बड़ों के हाथ कांपते हैं, तब उन्हीं बच्चों द्वारा उन्हें ताने मारे जाते हैं। बच्चे जब छोटे होते हैं और स्वयं चल-फिर नहीं पाते, तब बड़े उन्हें चलना-फिरना सिखाते हैं, लेकिन जब उम्र बढ़ जाने पर बड़ों के पैर कांपते हैं, तब उन्हीं बच्चों द्वारा उन्हें चलने में मदद करने में, सहारा देने में शर्म महसूस होती है।


इस छोटी सी कहानी का केवल इतना ही उद्देश्य है कि जब बड़ों के हाथ-पैर कांपने लगें, तो उन्हें आपके प्रेम, आपके स्नेह की ज्यादा जरूरत होती है क्योंकि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है। उन्होंने आपको सालों सम्भाला है, उन्हें भी कुछ साल सम्भाल लीजिए, ताकि जब आप बूढ़े होकर फिर से बच्चा बनें, तो आपको भी कोई उतने ही प्रेम और स्नेह से सम्भालने में खुशी अनुभव कर सके।

 'प्रेरणादायक कहानी...👌

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एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।


एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।


उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी।


ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।


कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौन सा उस में फँसना है?


निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया।


मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा. जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।


हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई. और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।


उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई,  जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था।


अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।


तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी।


कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।


खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया।


कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया।


चूहा अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ....।


शिक्षा :- अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।


समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।


ये जरूरी थोड़े है मतलब पड़े तब ही किसी काम आये..बिना मतलब के भी तो किसी के काम आया जा सकता है यही तो इंसानियत है.


 💐 परेरणादायी  मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स 💐❣️


🔰शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।


सुझाव :  किसी भी विषय को मज़ेदार बनाने के लिए उसके प्रायोगिक उपयोग को समझे | 


🔰शिक्षा भविष्य का पासपोर्ट है कल का उन लोगों के लिए  जो आज इसकी तैयारी करते हैं 


सुझाव : पड़ने  के लिए बैठने से पहले क्रिस्टल क्लियर प्लान बनाएं।


🔰तम जहां हो वहीं से  शुरू करो। जो तुम्हारे पास है, उसका उपयोग करो। जो तुम कर सकतो हो वो करो


सुझाव :  आलस्य के कारण कल पर अपनी पढ़ाई  को  न टाले | 


🔰शरू करने के लिए आपको महान नहीं होना चाहिए, लेकिन शुरू करके आपको महान बनना होगा। 



सुझाव :   अपने बड़े लक्ष्य को छोटे लक्ष्यों में विभाजित करें।


🔰शरुआत करने का तरीका है कि आप बात करना छोड़ दें और करना शुरू करें


सुझाव :   एक समय में एक चीज पर ध्यान दें। 


🔰आज से एक साल बाद आप कामना कर सकते हैं कि  काश आप आज ही शुरू हो गए होते



सुझाव :   समय बहुत कीमती है। इसकी कद्र करे


🔰मरी सलाह है, कल कभी मत करो जो तुम आज  कर सकते हो। प्रोक्रिस्टिनेशन समय का चोर है। पकड़ो इसे


सुझाव :   कल करे सो आज कर , आज करे सो अभी


🔰यदि आप उड़ नहीं सकते, तो दौड़े। अगर आप दौड़ नहीं सकते, तो चलिए। यदि आप नहीं चल सकते हैं, तो रेंगे   , लेकिन आप जो भी करे ..आगे बढ़ते रहे


सुझाव :   रोज़  कम से कम 1 घंटा ज़रूर पड़े


🔰मने सुना और मै भुल गया । मैंने देखा और मुझे याद है। जब मै करता हूं,तब मैं समझता हूं। 



सुझाव :   दोहराना सीखने की कुंजी है। 


सफलता सकारात्मक सोच के साथ आपकी सकारात्मक कार्रवाई से मिलती है।   


सुझाव :   केवल सोचने से कुछ नहीं होता है आपको कुछ करना होगा| 


हमें हार नहीं माननी चाहिए और हमें समस्या को हमें हराने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। 


सुझाव :   जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं 


🔰यदि आप इसे सरलता से नहीं समझा सकते , तो आप इसे अच्छी तरह से समझे नहीं है  


सुझाव :   अपनी सीख को दूसरों के साथ बांटे 


शिक्षक दरवाजा खोलते हैं, लेकिन आपको प्रवेश खुद करना होता है 


सुझाव :   खुद पढ़ाई करे, यह बहुत ज़रूरी है 


बीता हुए कल  से सीखो। आज के लिए जियो। आने वाले कल की आशा करो 


सुझाव :   अपनी असफलताओं से सीखें। 


🔰सीखने की खूबसूरत बात यह है कि कोई भी इसे आपसे दूर नहीं कर सकता है। 


सुझाव :   आप अपने भविष्य के लिए पढ़ाई कर रहे हैं। 


🔰अपने बहाने की तुलना में मजबूत हो।


सुझाव :   अपने मन को नियंत्रित करना सीखें।  


🔰तयारी सफलता की कुंजी है। 


सुझाव :   अपने अध्ययन के लिए एक समय सारणी बनाएं। 


🔰सफलता बार-बार और दिन-प्रतिदिन के छोटे प्रयासों का योग है


सुझाव :  दिन के अंत में अपने पूरे दिन का विश्लेषण करें।


🔰यह हमेशा असंभव सा लगता है जब तक कि पूरा न हो जाय


सुझाव :   शीशे के सामने खड़े होकर बोले मै टॉपर  हूँ 


🔰जानना पर्याप्त नहीं है; हम लागू करना चाहिए। कामना पर्याप्त नहीं है; हमें करना चाहिए 


सुझाव :   जो कुछ भी आप सीखते हैं, उसे  कागज पर व्यक्त करें।


🔰असफलता मुझे कभी भी पछाड़ नहीं पाएगी यदि सफल होने का मेरा संकल्प काफी मजबूत है 


सुझाव :   खुद के प्रति वचनबद्ध रहें


 एक् शिक्षाप्रद कहानी 


🌸🍁🌻 🌿🌷🍁🌻💐🌷🍁🌻 🌿🌷🍁🌸


एक गांव में एक किसान रहता था। वह रोज सुबह झरनों से साफ पानी लाने के लिए दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वह डंडे में बांधकर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एकदम सही था ✅। इस तरह रोज घर पहुंचते-पहुंचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।


सही घड़े को इस बात का घमंड 😎 था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा 😩 रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पहुंचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार जाती है।😢


 फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा,  'मैं खुद पर शर्मिंदा हूं और आपसे माफी मांगना चाहता हूं।'


किसान ने पूछा, 'क्यों ❓ तम किस बात से शर्मिंदा हो❓' 


फूटा घड़ा बोला, 'शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूं, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुंचाना चाहिए था, बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूं। मेरे अंदर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है।' 😔


किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुख हुआ और वह बोला, 'कोई बात नहीं, मैं चाहता हूं कि आज लौटते वक्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों 🌸🌺🌷🌼🌻💐 को देखो। घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया। ☺️


ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुंचते-पहुंचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था।' वह मायूस 😢 होकर किसान से माफी मांगने लगा।


किसान बोला, 'शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे।' वो बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अंदर की कमी को जानता था, और मैंने उसका फायदा उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे।


तुम रोज थोड़ा-थोड़ा कर उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत 😊 बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान ☝️ को अर्पित कर पाता हूं और अपने घर  🏡को सुन्दर बना पाता हूं। तुम्हीं सोचो, 'यदि तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ❓


हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं। यानी आप जैसे हैं वैसे ही रहिए। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वैसा ही स्वीकारना चाहिए जैसा वह है। उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब फूटा घड़ा भी अच्छे घड़े से कीमती हो जाएगा 

 आज का प्रेरक प्रसङ्ग


          !! मन !!

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सुबह होते  ही, एक भिखारी नरेन्द्रसिंह के घर पर भिक्षा मांगने के लिए पहुँच गया।  भिखारी ने  दरवाजा खटखटाया, नरेन्द्रसिंह बाहर आये पर उनकी जेब में देने के लिए कुछ न निकला।  वे कुछ दु:खी होकर घर के अंदर गए और एक बर्तन उठाकर भिखारी को दे दिया। भिखारी के जाने के थोड़ी देर बाद ही वहां नरेन्द्रसिंह की पत्नी आई और बर्तन न पाकर चिल्लाने लगी- “अरे! क्या कर दिया आपने चांदी का बर्तन भिखारी को दे दिया।  दौड़ो-दौड़ो और उसे वापिस लेकर आओ।”


नरेन्द्रसिंह दौड़ते हुए गए और भिखारी को रोककर कहा- “भाई मेरी पत्नी ने मुझे जानकारी दी है कि यह गिलास चांदी का है, कृपया इसे सस्ते में मत बेच दीजियेगा। ”वहीँ पर खड़े नरेन्द्रसिंह के एक मित्र ने उससे पूछा- मित्र! जब आपको  पता चल गया था कि ये गिलास चांदी का है तो भी उसे गिलास क्यों ले जाने दिया?” नरेन्द्रसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा- “मन को इस बात का अभ्यस्त बनाने के लिए कि वह बड़ी से बड़ी हानि में भी कभी दुखी और निराश न हो!”


शिक्षा– मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें।  मन उदास हो गया तो आपके कार्य करने की गति धीमी हो जाएगी। इसलिए मन को हमेशा प्रसन्न रखने का प्रयास करें।

 एक कहानी.....!!

🌴💚


एक घर में एक बेटी ने जनम लिया, 

जन्म होते ही माँ का स्वर्गवास हो गया। 


बाप ने बेटी को गले से लगा लिया रिश्तेदारों ने 

लड़की के जन्म से ही ताने मारने शुरू कर दिए 

कि पैदा होते ही माँ को खा गयी मनहूस

पर बाप ने कुछ नही कहा अपनी बेटी को, बेटी का पालन पोषण शुरू किया, खेत में काम करता और  बेटी को भी खेत ले जाता, काम भी करता और भाग कर बेटी को भी  संभालता।



रिश्तेदारों ने बहुत समझाया के दूसरा विवाह कर लो पर बाप ने किसी की नही सुनी और पूरा धयान बेटी की और रखा। बेटी बड़ी हुयी स्कूल गयी फिर कॉलेज। हर क्लास में फर्स्ट आयी। बाप बहुत खुश होता लोग बधाइयाँ देते।



बेटी अपने बाप के साथ खेत में काम करवाती, फसल अच्छी होने लगी, रिश्तेदार ये सब देख कर चिढ़ गए। जो उसको मनहूस कहते थे वो सब चिढ़ने लग गए।


लड़की एक दिन अच्छा पढ़ लिख कर पुलिस में SP बन गयी।

एक दिन किसी मंत्री ने उसको सम्मानित करने का फैसला लिया और समागम का बंदोबस्त करने के आदेश दिए। समागम उनके ही गाँव में रखा गया। 


मंत्री ने समागम में लोगों को समझाया के बेटा बेटी में फर्क नही करना चाहिए, बेटी भी वो सभ कर सकती है जो बेटा कर सकता है।भाषण के बाद मंत्री ने लड़की को स्टेज पर बुलाया और कुछ कहने को कहा।


 लड़की ने माइक पकड़ा और कहा-

मैं आज जो भी हूं अपने बाबुल(पिता) की वजह से हूं जो लोगो के ताने सह कर भी मुझे यहाँ तक ले आये। मेरे पालन पोषण के लिए दिन रात एक कर दिया। मैंने माँ नहीं देखी और न ही कभी पिता से कहा के माँ कैसी थी, क्योकि अगर में पूछती तो बाप को लगता के शायद मेरे पालन पोषण में कोई कमी रह गयी। मेरे लिये मेरे पिता से बढ़ कर कुछ नही। 



बाप सामने लोगो में बैठ कर आंसू बहा रहा था। बेटी की भी बोलते बोलते आँखे भर आयी।उसने मंत्री से पिता को स्टेज पर बुलाने की अनुमति ली। 


बाप स्टेज पर आया और बेटी को गले लगाकर बोला-रोती क्यों है बेटी तुं तो मेरा शेर पुत्तर है

 तुं ही कमजोर पड़ गया तो मेरा क्या होगा मैंने तुझको सारी उम्र हँसते देखना है।



बाप बेटी का प्यार देखकर सब की आँखे नम हो गयी। 


मंत्री ने बेटी के गले में सोने का मेडल डाला।


 लड़की ने मैडल उतार कर बाप के गले में डाल दिया। 



मंत्री ने बोला ये क्या किया तो लड़की बोली मैडल को उसकी सही जगह पहुँचा दिया। 

इसके असली हक़दार मेरे पिता जी हैं। 

समागम में तालियाँ बज उठी...!!


🌴💚


यह उन लोगों के लिए सबक है जो बेटियों को चार दीवारी में रखना पसंद करते हैं पर ये फूल बाहर खिलेंगे अगर आप पानी लगाकर इन फूलों की देखभाल करोगे।

 नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..


1) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- करते नहीं कोई यात्रा,

- पढ़ते नहीं कोई किताब,

- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,

- करते नहीं किसी की तारीफ़।


2) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:

- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,

- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।


3) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के, 

- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,

- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,

- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या

- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।


4) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।


5) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:

- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,

- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,

- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,

- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।

तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!

 आज का प्रेरक प्रसङ्ग


   !! सत्य का साथ कभी न छोड़े !!

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स्वामी विवेकानंद जी प्रारंभ से ही मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे | जब वह अपने साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे | एक दिन कक्षा में वो कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया | मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी | “कौन बात कर रहा है ?” मास्टर जी ने तेज आवाज़ में पूछा |


सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ़ इशारा कर दिया | मास्टर जी क्रोधित हो गए | उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबंधित प्रश्न पूछने लगे | जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया तब मास्टर जी ने स्वामी जी से वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हो | उन्होनें आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया | यह देख कर मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात – चीत कर रहे थे |


फिर क्या था | उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी | सभी छात्र एक एक कर बेंच पर खड़े होने लगे | स्वामी जी ने भी यही किया | मास्टर जी बोले नरेन्द्र तुम बैठ जाओ ! नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था | स्वामी जी ने आग्रह किया | सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए |


कहानी से सीख :-

**इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मार्ग कितना भी कठिन क्यों न हों | सदा सत्य का साथ देना चाहिए |__

 प्रेरणादायक कहानी...👌

पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.


                       ✍️✍️


एक समय की बात है...एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे...


समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.


पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी. सन्त बहुत दु:खी हुए.


उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.


थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,


सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.


स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.


थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.


सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.


वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?


उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : —


मैं एक मछुआरा हूँ मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.


मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.


कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.


सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ,जो देखा उसके बारे में मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.


कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.


⭕️'शिक्षा.....✍️


किसी के प्रति कोई निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.

 1) मिलता तो बहुत है 

इस जिंदगी में,

बस हम गिनती उसी की करते है,

जो हासिल न हो सका ...


2) दौलत सिर्फ रहन सहन का 

स्तर बदल सकती है;

बुद्धि नियत और तकदीर नहीं ...


3) प्रेम, सम्मान और अपमान...

ये एक निवेश की तरह है,

जितना हम दूसरों को देते है,

वो हमें जरूर 

ब्याज सहित वापस मिलता है ...


4) आलोचना मे छिपा हुआ "सत्य"

                  "और"

       प्रशंसा में छिपा "झूठ"

   यदि मनुष्य समझ जाये तो...

आधी समस्याओं का समाधान

     अपने आप हो जायेगा।।


5) सफलता हमेशा आपको निजी तौर पर 

गले लगाती है ... लेकिन असफलता आपको

हमेशा सार्वजनिक रूप से थप्पड़ मारती है ...


🍀 आपका दिन मंगलमय हो 🌸

 1) ❛यहाँ सब खामोश हैं

कोई आवाज़ नहीं करता

सच बोलकर, कोई किसी को 

नाराज़ नहीं करता❜


2) ❛दुनिया तो ख़ामोशी भी सुनती है,

लेकिन पहले धूम मचानी पड़ती है❜


3) ❛वो अफ़साना 

जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन

उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा❜


4) ❛एक सच...

तज़ुर्बा ग़लत फैसलों से बचाता है

उससे भी बड़ा सच...

तज़ुर्बा गलत फैसलों से ही आता है❜


5) ❛जीवन मे अपमान, असफलता,

धोखे जैसी बातों को सीधे गटक जायें

उन्हें चबाते रहेंगे, अर्थात याद करतें रहेंगें

तो आपका जीवन कड़वा ही होगा❜

 चिड़ियाघर का ऊंट !!


एक ऊंटनी और उसका बच्चा एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे. बच्चे ने पूछा, “माँ, हम ऊँटों का ये कूबड़ क्यों निकला रहता है?”


“बेटा हम लोग रेगिस्तान के जानवर हैं, ऐसी जगहों पर खाना-पानी कम होता है, इसलिए भगवान ने हमें अधिक से अधिक फैट स्टोर करने के लिए ये कूबड़ दिया है. जब भी हमें खाना या पानी नहीं मिलता हम इसमें मौजूद फैट का इस्तेमाल कर खुद को जिंदा रख सकते हैं” ऊंटनी ने उत्तर दिया.


बच्चा कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, “अच्छा, हमारे पैर लम्बे और पंजे गोल क्यों हैं?”


“इस तरह का आकार हम ऊँटों को रेत में आराम से लम्बी दूरी तय करने में मदद करता है, इसलिए” माँ ने समझाया.


बच्चा फिर कुछ देर सोचता रहा और बोला, “अच्छा माँ ये बताओ कि हमारी पलकें इतनी घनी और लम्बी क्यों होती हैं?”


“ताकि जब तेज हवाओं के कारण रेत उड़े तो वो हमारी आँखों के अन्दर ना जा सके” माँ मुस्कुराते हुए बोली.


बच्चा थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, “अच्छा तो ये कूबड़ फैट स्टोर करने के लिए है… लम्बे पैर रेगिस्तान में तेजी से बिना थके चलने के लिए है… पलकें रेत से बचाने के लिए है… लेकिन तब हम इस चिड़ियाघर में क्या कर रहे हैं?”


शिक्षा:-

दोस्तों, यही सवाल हमें खुद से पूछना चाहिए. ईश्वर ने हर एक इंसान को विशेष बनाया है. हर व्यक्ति में इतनी क्षमता है कि वह कुछ बड़ा… कुछ महान कर सकता है. लेकिन ज्यादातर लोग चिड़ियाघर का ऊंट बन जाते हैं… अपने अन्दर मौजूद अपार योग्यताओं का प्रयोग ही नहीं करते… बेजुबान जानवर तो मजबूर हैं… लेकिन एक इंसान होने के नाते हमें मजबूर नहीं मजबूत बनाना चाहिए और अपने अन्दर के गुणों को पहचान कर अपना सुंदर जीवन जीने की हर कोशिश करनी चाहिए.

 ख़ुद में रह कर वक़्त बिताओ तो अच्छा है,

ख़ुद का परिचय ख़ुद से कराओ तो अच्छा है..
इस दुनिया की भीड़ में चलने से तो बेहतर,
ख़ुद के साथ में घूमने जाओ तो अच्छा है..
अपने घर के रोशन दीपक देख लिए अब,
ख़ुद के अन्दर दीप जलाओ तो अच्छा है..
तेरी, मेरी इसकी उसकी छोडो भी अब,
ख़ुद से ख़ुद की शक्ल मिलाओ तो अच्छा है..
बदन को महकाने में सारी उम्र काट ली,
रूह को अब अपनी महकाओ तो अच्छा है..
दुनिया भर में घूम लिए हो जी भर के अब,
वापस ख़ुद में लौट के आओ तो अच्छा है..
तन्हाई में खामोशी के साथ बैठ कर,
ख़ुद को ख़ुद की ग़ज़ल सुनाओ तो अच्छा है..❜

 जागरूक माँ - खुशहाल विवाहिता बेटी

एक सब्जी की दुकान पर जहाँ से मैं अक्सर सब्जियाँ लेता हूँ, जब मैं पहुँचा तो सब्जी वाली महिला फोन पर किसी से बात कर रही थी अत: मैंने कुछ क्षण रुकना ही ठीक समझा, उस महिला ने रुकने का संकेत भी किया तो रुक गया और उसकी बात मेरे कान में भी पड़ रही थी।
वह अपनी उस बेटी से बात कर रही थी जिसकी शादी मात्र तीन चार दिन पहले ही हुई थी।
वह कह रही थी "देखो बेटी मायके की याद आती है यह तो ठीक है लेकिन ससुराल ही अब तुम्हारा अपना घर है"। तुम्हें अब अपना सारा ध्यान केवल अपने घर के लिए ही लगाना है। बार बार फोन मत किया करो और अपने ससुराल वालों से छिपकर तो बिलकुल भी नहीं। जब भी यहाँ फोन करना तो सास या पति के सामने करना।
तुम अपने फोन पर मेरे फोन आने का इंतजार कभी मत करना। मुझे जब भी बात करना होगा तो मैं तुम्हारी सास के नंबर पर लगाऊँगी।तब तुम भी बात कर लिया करना।
बेटी! "अब ससुराल में हो जरा जरा सी बात पर तुनकना छोड़ दो, सहनशक्ति रखो। अपना घर कैसे चलाना है ये सब अपनी सास से सीखो। एक बात ध्यान रखो प्यार एवं इज्जत दोगी तो ही स्नेह और इज्जत पाओगी। ठीक है। सुखी रहो"
मैंने प्रशंसा के भाव में कहा "बहुत सुंदर समझाया आपने"
उस महिला ने कहा कि "बहन एवं माँ को बेटी के परिवार में कभी भी अनावश्यक दखल नहीं देनी चाहिये"। उन्हें अपने घर की बातों को भी बिना मतलब के इधर उधर नहीं करना चाहिये। वहाँ यदि कोई समस्या हो तो समस्या का हल खुद ही ढूँढ़ो।
मैं उस देवी का मुँह देखता रह गया। सभी माँ को इसी तरह से सोचना चाहिए ताकि बेटी अपने ससुराल रूपी घर को खुद का ही घर समझे।
स्वर्ग तो खुद के आचरण, संस्कार, व्यवहार एवं किरदार में छिपा है लेकिन हिरन के समान मृगतृष्णा में भ्रमित हैं और इसी कारण स्वर्ग जैसा घर नरक में तब्दील होकर रह गया होता है।
जागरूक माँ - खुशहाल विवाहिता बेटी

 एक प्रसिद्ध लेखक पत्रकार और राजनयिक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जो बेहद ही हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी है। उनकी पत्रकारिता देश ही नहीं अपितु विदेश में भी प्रसिद्ध है। उन्होंने वैसे जगह पर भी पत्रकारिता की है जहां अन्य पत्रकारों के लिए संभव नहीं है।उनकी हसमुख प्रवृत्ति और हाजिर जवाब का कोई सानी नहीं है। एक समय की बात है पुष्पेंद्र एक सभा को संबोधित कर रहे थे , सभा में जनसैलाब उमड़ा था , लोग उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से आए हुए थे।

जब वह अपना भाषण समाप्त कर बाहर निकले , तब उनकी ओर एक भीड़ ऑटोग्राफ के लिए बढ़ी। पुष्पेंद्र उनसे बातें करते हुए ऑटोग्राफ दे रहे थे। तभी एक नौजवान उस भीड़ से पुष्पेंद्र के सामने आया उस नौजवान ने उनसे कहा –
” मैं आपका बहुत बड़ा श्रोता और प्रशंसक हूं , मैं साहित्य प्रेमी हूं , जिसके कारण मुझे आपकी लेखनी बेहद रुचिकर लगती है। इस कारण आप मेरे सबसे प्रिय लेखक भी हैं। मैंने आपकी सभी पुस्तकें पढ़ी है और आपके व्यक्तित्व को अपने जीवन में उतारना चाहता हूं। किंतु मैं ऐसा क्या करूं जिससे मैं एक अलग पहचान बना सकूं। आपकी तरह ख्याति पा सकूं।”
ऐसा कहते हुए उस नौजवान ने अपनी पुस्तिका ऑटोग्राफ के लिए पुष्पेंद्र की ओर बढ़ाई।
इसके बाद मजेदार बात हुई
पुष्पेंद्र ने उस समय कुछ नहीं कहा और उसकी पुस्तिका में कुछ शब्द लिखें और ऑटोग्राफ देकर उस नौजवान को पुस्तिका वापस कर दी।
इस पुस्तिका में यह लिखा हुआ था – ” आप अपना समय स्वयं को पहचान दिलाने के लिए लगाएं , किसी दूसरे के ऑटोग्राफ से आपकी पहचान नहीं बनेगी। जो समय आप दूसरे लोगों को लिए देते हैं वह समय आप स्वयं के लिए दें। ”
नौजवान इस जवाब को पढ़कर बेहद प्रसन्न हुआ और उसने पुष्पेंद्र को धन्यवाद कहा कि –
” मैं आपका यह वचन जीवन भर याद रखूंगा और अपनी एक अलग पहचान बना कर दिखाऊंगा। ”

 एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं।

उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है।
महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई।
उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी।
क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।
" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया।
असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"
'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"
दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई।
महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"
एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी।
एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है।
अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई।
कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है |
इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"
'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती...
एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा
"सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।
यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।
तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा,
"मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे।
सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..?
लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"
और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।
'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।
अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।
मैरे पास ये कहानी आई थी।
मैंने इसे पढ़ा तो हृदय को छू गई इसलिये पोस्ट कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों भी बहुत पसंद आएगी।

 एक बादशाह सर्दियों की शाम जब अपने महल में दाखिल हो रहा था तो एक बूढ़े दरबान को देखा जो महल के सदर दरवाज़े पर पुरानी और बारीक वर्दी में पहरा दे रहा था।

बादशाह ने उसके करीब अपनी सवारी को रुकवाया और उस बूढ़े दरबान से पूछने लगा ;
"सर्दी नही लग रही ?"
दरबान ने जवाब दिया "बोहत लग रही है हुज़ूर ! मगर क्या करूँ, गर्म वर्दी है नही मेरे पास, इसलिए बर्दाश्त करना पड़ता है।"
"मैं अभी महल के अंदर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूँ तुम्हे।"
दरबान ने खुश होकर बादशाह को फर्शी सलाम किया और आजिज़ी का इज़हार किया।
लेकिन बादशाह जैसे ही महल में दाखिल हुआ, दरबान के साथ किया हुआ वादा भूल गया।
सुबह दरवाज़े पर उस बूढ़े दरबान की अकड़ी हुई लाश मिली और करीब ही मिट्टी पर उसकी उंगलियों से लिखी गई ये तहरीर भी ;
"बादशाह सलामत ! मैं कई सालों से सर्दियों में इसी नाज़ुक वर्दी में दरबानी कर रहा था, मगर कल रात आप के गर्म लिबास के वादे ने मेरी जान निकाल दी।"
सहारे इंसान को खोखला कर देते है और उम्मीदें कमज़ोर कर देती है।
अपनी ताकत के बल पर जीना शुरू कीजिए, खुद की सहन शक्ति, ख़ुद की ख़ूबी पर भरोसा करना सीखें।
आपका आपसे अच्छा साथी,
दोस्त, गुरु, और हमदर्द कोई नही हो सकता।....