फ़िक्र उसकी करो जो क़रीब है,
दूर की चीज़ों का ज़िक्र भुलाना होगा !
कल को ख़ुदा पर छोड़ कर,
तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!
काँटें तो तय हैं ही सफ़र में
उन्हें फूलों की तरह सजाना होगा,
चेहरे पर एक लेकर मुस्कान
ग़मों से रिश्ता मिटाना होगा !
कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;
तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!
तेरी ख़ामोशियों को मिटा कर
तुझे तेरे शोर को बढ़ाना होगा,
शब्दों की क़ायनात का हुनर
अब दुनिया को दिखाना होगा !
कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;
तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!
नहीं बनना है तुझे कोई भीड़
तेरे अन्दर भी एक ज़माना होगा,
तू कर यक़ीन एक ख़ुद पर भी
तुझे नहीं ख़ुद को आज़माना होगा !
कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;
तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!
वक़्त को मानकर तेरा हमसफ़र
तुझे क़दम से क़दम मिलाना होगा,
तेरे पल पल को समेटकर बना
तेरा ख़ुद का एक आशियाना होगा !
कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;
तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!
खुल कर साँसें लेने के लिए
तुझे तेरे हर डर को हराना होगा,
कर एक ज़िद तू आँसुओं से भी
कि रो कर भी तुझे मुसकुराना होगा !
कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;
तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!
जो जुड़ा है सिर्फ़ तुझसे ही
उसे तो तुझे मिल ही जाना होगा,
खड़ी होगी मौत जब बाँहें फैलाकर
न चाहते हुए भी तुझे जाना होगा !
इसलिए कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;
पहले तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!
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