Monday, April 26, 2021

 ☀️'आलस को दूर कर देने वाली कहानी'☀️
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दुर्गादास नाम का एक धनी किसान था, वह बहुत आलसी था वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था
उसके आलस और कुप्रबन्ध से उसके घर की व्यवस्था बिगड़ गयी उसको खेती में हानि होने लगी गायों के दूध-घी से भी उसे कोई अच्छा लाभ नहीं होता था
एक दिन दुर्गादास का मित्र हरिश्चंद्र उसके घर आया हरिश्चंद्र ने दुर्गादास के घर का हाल देखा उसने यह समझ लिया कि समझाने से आलसी दुर्गादास अपना स्वभाव नहीं छोड़ेगा इसलिये उसने अपने मित्र दुर्गादास की भलाई करने के लिये उससे कहा- मित्र तुम्हारी विपत्ति देखकर मुझे बड़ा दुःख हो रहा है तुम्हारी दरिद्रता को दूर करने का एक सरल उपाय मैं जानता हूँ
दुर्गादास- कृपा करके वह उपाय तुम मुझे बता दो मैं उसे अवश्य करूँगा
हरिश्चंद्र उससे कहा सब पक्षियों के जागने से पहले ही मानसरोवर रहने वाला एक सफेद हंस पृथ्वी पर आता है वह दो पहर दिन चढ़े लौट जाता है यह तो पता नहीं कि वह कब कहाँ आवेगा; किन्तु जो उसका दर्शन कर लेता है, उसको कभी किसी बात की कमी नहीं होती
दुर्गादास बोला कुछ भी हो, मैं उस हंस का दर्शन अवश्य करूँगा
हरिश्चंद्र चला गया, दुर्गादास दूसरे दिन बड़े सबेरे उठा, वह घर से बाहर निकला और हँस की खोज में खलिहान में गया वहाँ उसने देखा कि एक आदमी उसके ढेर से गेहूँ अपने ढेर में डालने के लिये उठा रहा है दुर्गादास को देखकर वह लज्जित हो गया और क्षमा माँगने लगा
खलिहान से वह घर लौट आया और गोशाला में गया, वहाँ का रखवाला गाय का दूध दुहकर अपनी स्त्री के लोटे में डाल रहा था दुर्गादास ने उसे डांटा घरपर जलपान करके हंस की खोज में वह फिर निकला और खेत पर गया उसने देखा कि खेत पर अबतक मजदूर आये ही नहीं थे, वह वहाँ रुक गया जब मजदूर आये तो उन्हें देर से आने का उसने उलाहना दिया इस प्रकार वह जहाँ गया, वहीं उसकी कोई-न-कोई हानि रुक गयी
सफेद हंस की खोज में दुर्गादास प्रतिदिन सबेरे उठने और घुमने लगा अब उसके नौकर ठीक काम करने लगे उसके यहाँ चोरी होनी बंद हो गयी पहले वह रोगी रहता था अब उसका स्वास्थ्य भी ठीक हो गया
जिस खेत से उसे थोडा बहुत अन्न मिलता था, उससे अब ज्यादा मिलने लगा गोशाला से दूध बहुत अधिक आने लगा
एक दिन फिर दुर्गादास का मित्र हरिश्चंद्र उसके घर आया, दुर्गादास ने कहा- मित्र सफेद हंस तो मुझे अब तक नहीं दिखा किन्तु उसकी खोज में लगने से मुझे लाभ बहुत हुआ है
हरिश्चंद्र हँस पड़ा और बोला- परिश्रम करना ही वह सफेद हंस है परिश्रम के पंख सदा उजले होते हैं जो परिश्रम न करके अपना काम नौकरों पर छोड़ देता है, वह हानि उठाता है और जो स्वयं करता है, वह सम्पत्ति और सम्मान पाता है
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह कहानी आपके आलस को अवश्य दूर कर देगी...

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