Monday, April 26, 2021

           *!! असली सौंदर्य !!*
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युवराज भद्रबाहु को अपनी सुंदरता पर बहुत अभिमान था। एक दिन वह महामंत्री के पुत्र सुकेशी के साथ घूमते हुए शमशान पहुंच गए, जहां मुर्दे जल रहे थे। भद्रबाहु ने पूछा- ये लोग यहां पर क्यों एकत्रित हुए हैं?  सुकेशी ने जवाब दिया- मित्रवर इनका एक स्नेही जन मर गया है। ये लोग उसका दाह संस्कार कर रहे हैं। अभिमानी भद्रबाहु ने कहा- लगता है वह कुरूप व्यक्ति रहा होगा तभी ये लोग उसे जला रहे हैं। यदि सुदंर होता तो उसे सहेज कर रखते। सुकेशी ने कहा- युवराज चाहे कितना भी सुंदर क्यों न हो, यदि व्यक्ति प्राण मुक्त हो चुका होता है तो उसे कोई घर में नहीं रखता।
यह सुनते ही भद्रबाहु विचार करने लगा क्या मेरा भी यह हश्र होगा। वह इसी चिंता में घुलने लगा। राजा ने उसकी खिन्नता दूर करने के बहुत प्रयास किए, किंतु वे सफल नहीं हो पाए। अंत में राजा युवराज को गुरु महाआचार्य के पास ले गए। महाआचार्य ने कहा- वत्स यह बताओ जिस भवन में तुम निवास करते हो, वह भवन जीर्ण शीर्ण हो जाए तो उस भवन में तुम रहोगे या दूसरे भवन में जाओगे। भद्रबाहु ने जवाब दिया- गुरुदेव वह भवन तो बदलना ही पड़ेगा। तब महाआचार्य ने कहा- यह शरीर भी भवन के समान है। जब तक वह शरीर नष्ट नहीं होता तब तक आत्मा इसमें रहती है। 
शरीर नाशवान है, इसलिए उदास मत होओ। आत्मा को पहचानो। महाआचार्य की बात सुनकर भद्रबाहु के ज्ञानचक्षु खुल गए।
*शिक्षा:-*
मनुष्य कायिक सौंदर्य के प्रति चिंतित व अभिमान से भरा रहता है जबकि वह नाशवान है। हमेशा आत्मा को सुदंर बनाने की चिंता करनी चाहिए।

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