Friday, January 29, 2016

ये दुनियाँ ठीक वैसी है जैसी आप इसे देखना पसन्द करते हैं।
    यहाँ पर किसी को "गुलाबों में काँटे" नजर आते हैं तो किसी को "काँटों में गुलाब".
   किसी को दो रातों के बीच एक दिन नजर आता है तो किसी को दो सुनहरे दिनों के बीच एक काली रात।
   किसी को "भगवान में पत्थर" नजर आता है और किसी को "पत्थर में भगवान"।
   
      "जैसी जीसकी सोच"

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