गुमान न कर अपने दिमाग पे मेरे दोस्त, जितना तेरा दिमाग हे उतना तो मेरा दिमाग खराब रेहता हे !!
न कहा करो हर बार की हम छोड़ देंगे तुमको, न हम इतने आम हैं, न ये तेरे बस की बात है..!!
भाई की पहोंच दिल्ली से लेकर कब्रस्तान तक हैं, आवाज दिल्ली तक जाती हैं ओर दुश्मन कब्रस्तान तक ।
मेरी खामोसी को कमजोरी ना समझ ऐ काफिर.. गुमनाम समन्दर ही खौफ लाता है ।
हम आहिर हे, प्यार से मांग लो 'जान हाजिर' वरना तलवारों से इतिहास लिखना हमारी परंपरा हे ।।
माँ ने कहा था कभी किसीका दिल मत तोडना.. इसलिए हमने दिल को छोड के बाक़ी सब तोड़ा !!
हमारी गोली जान नही लेती बोस.. दुसरो के अन्दर जानवर जगा देती हे ।
क्या करे बुरी आदत हे हमारी.. नर्क के दरवाजे के सामने खड़े होकर पाप करते हे !!
आहिरों का बस यही अंदाज हे, जब आते हे तो गरमी अपने आप बढ़ जाती हे ।
तुम गरदन जुकाने की बात करते हो, हम वौ है जो आंख उठाने वालो की गरदन प्रसाद मै बाट देते है..।।
शायरी का बादशाह हुं और कलम मेरी रानी, अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी ।
हथियार तो सिर्फ सोंख के लिए रखा करते हे, खौफ के लिए तो बस नाम ही काफी हे ।
अकल कितनी भी तेज ह़ो नसीब के बिना नही जित सकती, बिरबल काफी अकलमंद होने के बावजूद.. कभी बादशाह नही बन सका ।
पसंन्द आया तो दिल में, नही तो दिमाग में भी नही ।
जिंदगीमें बडी शिद्दत से निभाओ अपना किरदार, कि परदा गिरने के बाद भी तालीयाँ बजती रहे...।।
हम आज भी शतरंज़ का खेल अकेले ही खेलते हे, क्युकी दोस्तों के खिलाफ चाल चलना हमे आता नही ..।
मेरे लफ्जों से न कर मेरे किरदार का फेसला, तेरा वजूद मिट जाएगा मेरी हकिगत ढूंढते ढूंढते !
तू मोहब्बत है मेरी इसीलिए दूर है मुझसे.. अगर जिद होती तो शाम तक बाहों में होती ।
जी भर गया है तो बता दो, हमें इनकार पसंद है इंतजार नहीं..!
मुझको पढ़ पाना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं, मै वो किताब हूँ जिसमे शब्दों की जगह जज्बात लिखे है...!!
मेरी फितरत में नहीं अपना गम बयां करना, अगर तेरे वजूद का हिस्सा हूँ तो महसूस कर तकलीफ मेरी..।।
जनाब मत पूछिए हद हमारी गुस्ताखियों की, हम आईना ज़मीं पर रखकर आसमां कुचल दिया करते है ।
इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर 'ऐ बेखबर' शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं।।।
मुझमे खामीया बहुत सी होगी मगर, एक खूबी भी है.. मे कीसी से रीश्ता मतलब के लीये नही रखता.
खून अभी वो ही है ना ही शोक बदले ना ही जूनून, सून लो फिर से, रियासते गयी है रूतबा नही, रौब ओर खोफ आज भी वही हें |
जीत हासिल करनी हो तो काबिलियत बढाओ, किस्मत की रोटी तो कुत्तेको भी नसीब होती है.!!
हम उस ऊंचाई पर हे जहा तुम्हारे सर से ज्यादा उंचाई पर हमारे पांव रहते हे ।
उसने कहा मत देख मेरे सपने, मुझे पाने की तेरी औकात नही, मेंने भी हस कर कहा, पगली आना हो तो आजा मेरे सपनो मे.. हकीकत मे आने की तेरी औकात नही.
तेरे ही नाम से ज़ाना जाता हूं मैं, ना जाने ये 'शोहरत' है या 'बदनामी'.. बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं.. अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती..!!
तुम जिन्दगी में आ तो गये हो मगर ख्याल रखना, हम 'जान' दे देते हैं मगर 'जाने' नहीं देते !!
इसी बात से लगा लेना मेरी शोहरत का अन्दाजा.. वो मुझे सलाम करते है, जिन्हे तु सलाम करता हैं !!
वो मंज़िल ही बदनसीब थी जो हमें पा ना सकी.. वरना जीत की क्या औकात जो हमें ठुकरा दे ।
किसी की क्या मजाल जो खरीद सकता हमको, वो तो हम ही बिक गये खरीददार देख के !
ज़हासे तेरी बादशाही खत्म होंती हे, वहासे मेरी नवाबी सुरु होती हे !
पैदा तो में भी शरीफ हुवा था, पर शराफत से अपनी कभी नही बनी ।
न कहा करो हर बार की हम छोड़ देंगे तुमको, न हम इतने आम हैं, न ये तेरे बस की बात है..!!
भाई की पहोंच दिल्ली से लेकर कब्रस्तान तक हैं, आवाज दिल्ली तक जाती हैं ओर दुश्मन कब्रस्तान तक ।
मेरी खामोसी को कमजोरी ना समझ ऐ काफिर.. गुमनाम समन्दर ही खौफ लाता है ।
हम आहिर हे, प्यार से मांग लो 'जान हाजिर' वरना तलवारों से इतिहास लिखना हमारी परंपरा हे ।।
माँ ने कहा था कभी किसीका दिल मत तोडना.. इसलिए हमने दिल को छोड के बाक़ी सब तोड़ा !!
हमारी गोली जान नही लेती बोस.. दुसरो के अन्दर जानवर जगा देती हे ।
क्या करे बुरी आदत हे हमारी.. नर्क के दरवाजे के सामने खड़े होकर पाप करते हे !!
आहिरों का बस यही अंदाज हे, जब आते हे तो गरमी अपने आप बढ़ जाती हे ।
तुम गरदन जुकाने की बात करते हो, हम वौ है जो आंख उठाने वालो की गरदन प्रसाद मै बाट देते है..।।
शायरी का बादशाह हुं और कलम मेरी रानी, अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी ।
हथियार तो सिर्फ सोंख के लिए रखा करते हे, खौफ के लिए तो बस नाम ही काफी हे ।
अकल कितनी भी तेज ह़ो नसीब के बिना नही जित सकती, बिरबल काफी अकलमंद होने के बावजूद.. कभी बादशाह नही बन सका ।
पसंन्द आया तो दिल में, नही तो दिमाग में भी नही ।
जिंदगीमें बडी शिद्दत से निभाओ अपना किरदार, कि परदा गिरने के बाद भी तालीयाँ बजती रहे...।।
हम आज भी शतरंज़ का खेल अकेले ही खेलते हे, क्युकी दोस्तों के खिलाफ चाल चलना हमे आता नही ..।
मेरे लफ्जों से न कर मेरे किरदार का फेसला, तेरा वजूद मिट जाएगा मेरी हकिगत ढूंढते ढूंढते !
तू मोहब्बत है मेरी इसीलिए दूर है मुझसे.. अगर जिद होती तो शाम तक बाहों में होती ।
जी भर गया है तो बता दो, हमें इनकार पसंद है इंतजार नहीं..!
मुझको पढ़ पाना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं, मै वो किताब हूँ जिसमे शब्दों की जगह जज्बात लिखे है...!!
मेरी फितरत में नहीं अपना गम बयां करना, अगर तेरे वजूद का हिस्सा हूँ तो महसूस कर तकलीफ मेरी..।।
जनाब मत पूछिए हद हमारी गुस्ताखियों की, हम आईना ज़मीं पर रखकर आसमां कुचल दिया करते है ।
इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर 'ऐ बेखबर' शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं।।।
मुझमे खामीया बहुत सी होगी मगर, एक खूबी भी है.. मे कीसी से रीश्ता मतलब के लीये नही रखता.
खून अभी वो ही है ना ही शोक बदले ना ही जूनून, सून लो फिर से, रियासते गयी है रूतबा नही, रौब ओर खोफ आज भी वही हें |
जीत हासिल करनी हो तो काबिलियत बढाओ, किस्मत की रोटी तो कुत्तेको भी नसीब होती है.!!
हम उस ऊंचाई पर हे जहा तुम्हारे सर से ज्यादा उंचाई पर हमारे पांव रहते हे ।
उसने कहा मत देख मेरे सपने, मुझे पाने की तेरी औकात नही, मेंने भी हस कर कहा, पगली आना हो तो आजा मेरे सपनो मे.. हकीकत मे आने की तेरी औकात नही.
तेरे ही नाम से ज़ाना जाता हूं मैं, ना जाने ये 'शोहरत' है या 'बदनामी'.. बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं.. अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती..!!
तुम जिन्दगी में आ तो गये हो मगर ख्याल रखना, हम 'जान' दे देते हैं मगर 'जाने' नहीं देते !!
इसी बात से लगा लेना मेरी शोहरत का अन्दाजा.. वो मुझे सलाम करते है, जिन्हे तु सलाम करता हैं !!
वो मंज़िल ही बदनसीब थी जो हमें पा ना सकी.. वरना जीत की क्या औकात जो हमें ठुकरा दे ।
किसी की क्या मजाल जो खरीद सकता हमको, वो तो हम ही बिक गये खरीददार देख के !
ज़हासे तेरी बादशाही खत्म होंती हे, वहासे मेरी नवाबी सुरु होती हे !
पैदा तो में भी शरीफ हुवा था, पर शराफत से अपनी कभी नही बनी ।
No comments:
Post a Comment