Tuesday, November 15, 2016

❣मेरी बर्बादी
किस हद पे उतर आई है
 बेरहम याद है और
 रात ये हरजाई है❣

❣आग इक हमने इस सीने में
सुलगाई है
दूसरी आग भी जमाने ने
अब लगाई है❣

❣कई बरसों से हम
तुमसे मिले ही नहीं
फिर भी तुम पास हो,
ये कैसी जुदाई है❣

❣हमने उसको ही
नजाकत से अपनाया है
वो कली जो
 किसी गुलशन में मुरझाई है❣

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