*कुछ अदभुत जोड़ियाँ..*
*धन* तभी सार्थक हैं,
जब *धर्म* भी साथ हो।
*विशिष्टता* तभी सार्थक हैं,
जब *शिष्टता* भी साथ हो।
*सुंदरता* तभी सार्थक हैं,
जब *चरित्र* भी शुद्ध हो।
*संपत्ति* तभी सार्थक हैं,
जब *स्वास्थ्य* भी अच्छा हो।
*मंदिर* जाना तभी सार्थक हैं,
जब *हृदय* में भाव हो।
अच्छा *व्यापार* तभी सार्थक हैं,
जब *व्यवहार* भी अच्छा हो।
*ज्ञानी* होना तभी सार्थक हैं,
जब *सरलता* भी साथ हो।
*प्रसिद्धि* तभी सार्थक हैं,
जब मन में *निरअहंकारिता* हो।
*बुद्धिमता* तभी सार्थक हैं,
जब *विवेक* भी साथ हो।
*अतिथि* बनकर जाना तभी सार्थक हैं
जब वहां *सत्कार* हो।
*परिवार* का होना तभी सार्थक हैं,
जब उसमें *प्यार* और आदर हो।
*रिश्ते* तभी तक सार्थक हैं,
जब तक आपस में *विश्वाश* हो।
*बहुत ज्यादा परखने से,*
*बहुत अच्छे अच्छे रिश्ते भी टूट जाते हैं*
*धन* तभी सार्थक हैं,
जब *धर्म* भी साथ हो।
*विशिष्टता* तभी सार्थक हैं,
जब *शिष्टता* भी साथ हो।
*सुंदरता* तभी सार्थक हैं,
जब *चरित्र* भी शुद्ध हो।
*संपत्ति* तभी सार्थक हैं,
जब *स्वास्थ्य* भी अच्छा हो।
*मंदिर* जाना तभी सार्थक हैं,
जब *हृदय* में भाव हो।
अच्छा *व्यापार* तभी सार्थक हैं,
जब *व्यवहार* भी अच्छा हो।
*ज्ञानी* होना तभी सार्थक हैं,
जब *सरलता* भी साथ हो।
*प्रसिद्धि* तभी सार्थक हैं,
जब मन में *निरअहंकारिता* हो।
*बुद्धिमता* तभी सार्थक हैं,
जब *विवेक* भी साथ हो।
*अतिथि* बनकर जाना तभी सार्थक हैं
जब वहां *सत्कार* हो।
*परिवार* का होना तभी सार्थक हैं,
जब उसमें *प्यार* और आदर हो।
*रिश्ते* तभी तक सार्थक हैं,
जब तक आपस में *विश्वाश* हो।
*बहुत ज्यादा परखने से,*
*बहुत अच्छे अच्छे रिश्ते भी टूट जाते हैं*
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