Saturday, May 28, 2022

 !!!जिस किसी ने लिखा?क्या खूब लिखा?!!!

*भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है।*

*दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,*

*अगर सबसे कम बोल-चाल है,*

*तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में।*


*एक समय तक दोनों अंजान होते हैं,* 

*एक दूसरे के बढ़ते शरीरों की उम्र से, फिर धीरे से अहसास होता है,* 

*हमेशा के लिए बिछड़ने का।*


*जब लड़का,*

*अपनी जवानी पार कर,* 

*अगले पड़ाव पर चढ़ता है,*

*तो यहाँ,*

*इशारों से बाते होने लगती हैं,* 

*या फिर,* 

*इनके बीच मध्यस्थ का* *दायित्व निभाती है माँ*


*पिता अक्सर पुत्र की माँ से कहता है,जा,* *"उससे कह देना"*

*और,* 

*पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहता है,*

*"पापा से पूछ लो ना"*


*इन्हीं दोनों धुरियों के बीच,*

*घूमती रहती है माँ।* 


*जब एक,* 

*कहीं होता है,*

*तो दूसरा,*

*वहां नहीं होने की,*

*कोशिश करता है,*


*शायद,*

*पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं।*

*जबकि,* 

*वो डर नज़दीकी का नहीं है,* 

*डर है,*

*उसके बाद बिछड़ने का।* 


*भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को,* 

*कभी कहा हो,* 

*कि बेटा,* 

*मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ*


*पिता के अनंत रौद्र का उत्तराधिकारी भी वही* *होता है,*

*क्योंकि,*

*पिता, हर पल ज़िन्दगी में,* 

*अपने बेटे को,*

*अभिमन्यु सा पाता है।*


*पिता समझता है,*

*कि इसे सम्भलना होगा*, 

*इसे मजबूत बनना* *होगा, ताकि*, 

*ज़िम्मेदारियो का बोझ,* 

*इसका वध न कर सके।*

*पिता सोचता है,*

*जब मैं चला जाऊँगा*, 

*इसकी माँ भी चली* *जाएगी,*

*बेटियाँ अपने घर चली जायेंगी,*

*तब, रह जाएगा सिर्फ ये,*

*जिसे, हर-दम, हर-कदम,* 

*परिवार के लिए,*

*आजीविका के लिए*,

*बहु के लिए,*

*अपने बच्चों के लिए,* 

*चुनौतियों से,*

*सामाजिक जटिलताओं से,* 

*लड़ना होगा।*


*पिता जानता है कि,* 

*हर बात,* 

*घर पर नहीं बताई जा सकती,*

*इसलिए इसे,* 

*खामोशी से ग़म छुपाने सीखने होंगें।*


*परिवार के विरुद्ध खड़ी,*

*हर विशालकाय मुसीबत को,* 

*अपने हौसले से,*

*छोटा करना होगा।*

*ना भी कर सके*

*तो ख़ुद का वध करना होगा।*

*इसलिए,* 

*वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता,*


*पिता जानता है कि,*

*प्रेम कमज़ोर बनाता है।*

*फिर कई बार उसका प्रेम,* 

*झल्लाहट या गुस्सा बनकर,*

*निकलता है,* 


*वो गुस्सा अपने बेटे की कमियों के लिए नहीं होता,*

*वो झल्लाहट है,*

*जल्द निकलते समय के लिए,* 

*वो जानता है,* 

*उसकी मौजूदगी की,*

*अनिश्चितताओं को।*


*पिता चाहता है*, 

*कहीं ऐसा ना हो कि,* 

*इस अभिमन्यु का वध*, 

*मेरे द्वारा दी गई,* 

*कम शिक्षा के कारण हो जाये,*

*पिता चाहता है कि,*

*पुत्र जल्द से जल्द सीख ले,* 

*वो गलतियाँ करना बंद करे,*

*क्योंकि गलतियां सभी की माफ़ हैं,* 

*पर मुखिया की नहीं,*


*यहाँ मुखिया का वध सबसे पहले होता है।*


*फिर,* 

*वो समय आता है जबकि,* 

*पिता और बेटे दोनों को,* 

*अपनी बढ़ती उम्र का,* 

*एहसास होने लगता है,* 

*बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है,* 

*कड़ी कमज़ोर होने लगती है*।


*पिता की सीख देने की लालसा,* 

*और,* 

*बेटे का,* 

*उस भावना को नहीं समझ पाना*, 

*वो सौम्यता भी खो देता है,*

*यही वो समय होता है जब,* 

*बेटे को लगता है कि*, 

*उसका पिता ग़लत है*, 

*बस इसी समय को* *समझदारी से निकालना होता है,* 

*वरना होता कुछ नहीं है,*

*बस बढ़ती झुर्रियां और बूढ़ा होता शरीर*

*जल्द बीमारियों को घेर लेता है।* 

*फिर,* 

*सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखती है,* 

*पर,*

*पीछे रात भर से जागा, पिता नहीं दिखता,*

*पिता की उम्र और झुर्रियां,*

*और बढ़ती जाती है।*


*ये समय चक्र है,*

*जो बूढ़ा होता शरीर है बाप के रूप में उसे एक और बूढ़ा शरीर झांकता है आसमान से,* 

*जो इस बूढ़े होते शरीर का बाप है,*


*हे मेरे महान पिता..*

*मेरे गौरव,*

*मेरे आदर्श,* 

*मेरा संस्कार,* 

*मेरा स्वाभिमान,*

*मेरा अस्तित्व...*

No comments:

Post a Comment