शादी को सालभर होने को आया था मगर वो हमेशा अपनी पत्नी से कहता रहता की .... मेरी जिंदगी तो एक खुली किताब की तरह है …जो चाहे सो पढ़ लो...
पत्नी ने हैरानी से उसकी और देखा
तो वह बोला ... खुली किताब ... मेरी जिंदगी रंगीन रही है
वो कभी बहाने से अपने कालेज में लड़कियों से छेड़छाड़ करने या उनके साथ किए गए फ्लर्ट के किस्से सुनाता
एकबार तो उसने आलमारी से एक पुरानी डायरी निकालकर उसमें रखी एक फोटो दिखाकर कहा कि एक समय पर ये उसकी गर्लफ्रेंड रही थी देखो कितनी खूबसूरत है। उस जमाने में ऐसी और भी साथ पढ़ने वाली लड़कियां उसपर जान छिड़कती थी….
पत्नी सदैव उसकी बातों पर चुपचाप मुस्कुराती रहती कुछ कहती नहीं जैसे उसपर इन बातों का कोई असर ही नहीं होता था। इस चुप्पी और मुस्कुराहट को दिनबादिन देखते हुए एक दिन वो पत्नी से प्रश्न कर ही बैठा ...यार एक बात तो बताओ ... मैं तो हमेशा अपनी जिंदगी की किताब खोलकर तुम्हारे सामने रख देता हूं और तुम हो कि बस चुपचाप मुस्कुराती रहती हो कभी तुम भी तो अपनी जिंदगी की किताब खोलकर हमें उसके किस्से सुनाओ
चुप रहनेवाली पत्नी मुस्कुराती हुई अचानक गम्भीर हो गई और फिर अपने पति से बोली....
मैं तो तुम्हारे जीवन की रंगीन किताब सुनकर हमेशा मुस्कुराती रही हूं
लेकिन सच कहो …. मेरी जिंदगी की किताब में भी यदि ऐसे ही कुछ पन्ने निकल गए तो क्या तुम भी ऐसे ही मुस्कुरा सकोगे
उसने एकबार अपनी पत्नी की ओर देखा फिर शर्मिंदगी से उसका सिर झुक गया था
No comments:
Post a Comment