Sunday, November 22, 2015

 न हो शोहरत तो गुमनामी का भी खतरा नहीं होता,
बहुत मशहूर होना भी बहुत अच्छा नहीं होता ।

फसादों, हादसों, जंगों में ही हम एक होते हैं,
कोई आफ़त न आए तो कोई अपना नहीं होता ।



समझने लगता है दुनिया को बच्चा पैदा होते ही,
अब इस दुनिया में बच्चा बन के वो पैदा नहीं होता ।

अंधेरा घर में, बाहर रोशनी, ऐसा भी होता है,
किसी का दिल तो होता है बुरा, चेहरा नहीं होता ।




 दिन सलीके से उगा .....
....रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ
  ..... रोज़ ज़माने से रही ।

चंद लम्हों को ही बनती हैं
..... मुसव्विर आँखें
ज़िन्दगी.... रोज़ .... तो
 ...... तस्वीर बनाने से रही ।



फ़ासला, चांद बना देता है...
...... हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो....
....... आने से रही ।

शहर में सबको कहाँ मिलती है ...
..... रोने की जगह
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ ....
..... हँसने - हँसाने से रही ।



No comments:

Post a Comment