बार_बार रफू करता रहता हूँ
जिन्दगी की जेब..
फिर भी निकल जाते हैं
खुशियों के कुछ लम्हें.....
बचपन में जहाँ चाहा हँस लेते थे
जहाँ चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
किसी ने पूछा कि
"उम्र" और "जिन्दगी"
में क्या फर्क है ?
जो अपनों के बिना बीती
वो "उम्र" और
जो अपनों के साथ बीती
वो "जिन्दगी"....😊😊
जिन्दगी की जेब..
फिर भी निकल जाते हैं
खुशियों के कुछ लम्हें.....
बचपन में जहाँ चाहा हँस लेते थे
जहाँ चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
किसी ने पूछा कि
"उम्र" और "जिन्दगी"
में क्या फर्क है ?
जो अपनों के बिना बीती
वो "उम्र" और
जो अपनों के साथ बीती
वो "जिन्दगी"....😊😊
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