Sunday, January 10, 2016

एक कंजूस पति की स्वीट सी कविता...

प्रिय क्यूँ तुम नए-नए सूट सिलाती हो !

पुरानी साडी में भी तुम अप्सरा सी नजर आती हो !!!

इन ब्यूटी पार्लरों के चक्करों में ना पडा करो !

अपने चांद से चेहरे को क्रीम पाउडर से यूँ ना ढका करो !!!

रेस्टोरेंट होटल के खाने में क्या रखा है !

तुम्हारे हाथों से बना बैंगन का भर्ता, इनसे लाख गुना अच्छा है !!!

इन सैर सपाटों में वो बात कहाँ !

तुम्हारे मायके जैसा ऐशो-आराम कहाँ !!!

नौकरों से खिटपिट में, मत सेहत तुम अपनी खराब करो !

झाडू-पौछा लगा हल्का सा व्यायाम करो !!!

सोने-चांदी में मिलती अब सो सो खोट है !

तुम्हारी सुन्दरता ही 24 कैरेट प्योर गोल्ड है !!!

माया-माया मत किया कर पगली, यह तो महा ठगिनी है !

मेरे इस घर-आंगन की तो, तू ही असली धन लक्ष्मी है !!!
🙏🙏🙏


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