Sunday, August 28, 2016

चंचल मन जरा संभल के चल
.
अपनी चिंता में खोया है
जग जाग चूका तू सोया है
अब और न आने वाला कल
चंचल मन जरा संभल के चल
.
झूठी अभिलाषा पाने को
औरों को नीच दिखाने को
तू सदा मुझे करता विह्वल
चंचल मन.....................
.
अब और नहीं चल पाता मैं
अनुसरण तेरा न कर पाता मैं
अपनों से आया दूर निकल
चंचल मन जरा -------------

No comments:

Post a Comment