Sunday, August 7, 2016

झाँक रहे सब सबके आँगन
 अपने आँगन झांकें कौन ?

ढ़ूंढ़ रहे दुनियाँ में खामी ।
अपने मन में ताके कौन ?

सबके भीतर चोर छुपा है ।
 उसको अब ललकारे कौन ?

दुनियाँ सुधरे सब चिल्लाते ।
 खुद को आज सुधारे कौन ?

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ।
 खुद पर आज विचारे कौन ?

हम सुधरें तो जग सुधरेगा
 इसी बात पे सब हैं मौन !...........यह एक छोटा सा संदेश है सब के लिए 🌹🌹🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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