Wednesday, August 17, 2016

( कभी माँ को भी ये घर मायका सा लगने दो )

ठीक है, ये उसका घर है। उसी का घर है।
लेकिन
फिर भी कभी माँ को ये घर, मायका सा लगने दो।।

जागने दो कभी उसे भी देर से
नल आने का समय हो या बाई छुट्टी पर हो।
छोटी छोटी समस्याओं से उसे भी कभी मुक्ति दो।
कभी माँ को भी ये घर, मायका सा लगने दो।।

आज बना लेने दो उसको सब्जी पसंद की अपनी।
अधिक नहीं, बस थोड़ी सी, मदत करो तुम उसकी।।
उसकी पसंद और नापसंद पर ध्यान ज़रा तुम दो।
कभी माँ को भी ये घर, मायका सा लगने दो।

कभी सुबह उसके लिए तुम चाय बना लो।
पास बैठ कर अपने मन की बात कभी कह लो।
कभी उसकी बातें भी ध्यान से सुन लो।
अपना बड़प्पन उसे भी कभी महसूस होने दो।
कभी माँ को भी ये घर, मायका सा लगने दो।।

माँ को भी कभी आराम करने दो।
जिन हाँथों ने प्यार से तुम्हें पाला,
कभी उन्हीं हाँथों पर, अपना हाँथ रख दो।
कभी माँ को भी ये घर, मायका सा लगने दो।।☺-🙏❗


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