दिल्ली का इवन-ऑड प्लान
विगत कई दिनों से
चर्चा का विषय बना हुआ है.
टीवी पर
तर्क-वितर्क चल रहे हैं,
लेकिन
यदि इवन-ऑड प्रसंग पर
हमारे समस्त महान कविगण
कविता लिखते
तो क्या निकल कर आता..
शायद कुछ ऐसा..
कुमार विश्वास..
कोई सक्सेस समझता है,
कोई फेल्योर कहता है,
मगर टीवी की बहसों में
हमारा शोर चलता है,
कहा भक्तों ने क्या इस
बात में क्या आनी-जानी है,
इधर अरविन्द दीवाना,
उधर दिल्ली दीवानी है.
रहीम..
रहिमन इवन-ऑड की
महिमा करो बखान,
जबरन ओहि सक्सेस कहो,
चलती रहे दुकान.
कबीर..
कबिरा इवन-ऑड की
ऐसी चली बयार,
सब आपस में लड़ि मरें
भली करें करतार.
बच्चन..
कार्यालय जाने की खातिर,
घर से चलता मतवाला,
असमंजस है कौन सवारी
चढ़ जाए भोला-भाला,
कोई कहता मेट्रो धर लो,
कोई कहता बस धर लो,
मैं कहता हूँ ऑफिस त्यागो,
पहुँचो सीधे मधुशाला.
गुलज़ार..
धुएँ की चादर की
सिलवटों में लिपटी दिल्ली,
सुरमई धूप सेंक रही है आज,
आज दिखी नहीं,
मोटरों की परछाइयाँ,
जिनसे गुफ्तगू करती थीं
ये सड़कें,
जो देखा करती थीं,
इन सड़कों की स्याह पलकों को,
किसी ने कह दिया उनको
कि इवन-ऑड जारी है.
मैथिलीशरण गुप्त..
इवन-ऑड कहानी
विषमय वायु हुई नगरी की,
खग-मृग पर छाई मुरधानी,
इवन-ऑड कहानी
जन हैं हठी चढ़े सब वाहन,
दिल्ली नगरी रही न पावन,
अश्रु बहाते लोचन मेरे,
जन करते नादानी,
इवन-ऑड कहानी,
हुआ विवाद सदय-निर्दय का,
अँधियारा छाया है भय का,
उषा-किरण से निकलें विषधर,
व्यथित हुआ यह पानी
इवन-ऑड कहानी.
काका हाथरसी..
गैरज में कारें खड़ी,
जाना है अस्पताल,
धुआँ घुसता नाक में
आँख हो रही लाल,
आँख हो रही लाल,
पास ना इवन गाड़ी,
सरकारी माया से
कक्का हुए कबाड़ी,
कह काका कविराय
कोई तो मुझे बचाए,
अपनी इवन कार चला
हमें अस्पताल पहुँचाए.
दिनकर..
हो मुद्रा गर तो आधा दो,
उसमें भी हो गर बाधा तो,
फिर दे दो हमको ऑड कार,
मेरे गैरेज में इवन चार,
था वचन कि बसें चलाओगे
अपना कर्तव्य निभाओगे,
पर भीड़ देख होता प्रतीत,
इससे अच्छा था वह अतीत,
जब मनुज पाँव पर चलता था,
आचरण उसे न खलता था,
अब भूमि नहीं जो रखे पाँव,
आहत करता शासकी दाँव,
जाने कैसे दिन आयेंगे,
इस मनुज हेतु क्या लायेंगे,
यह इवन-ऑड कब टूटेगा,
यह महावज्र कब फूटेगा,
हो सावधान ओ रायतामैन,
कर कुछ सबको आये जो चैन,
अन्यथा नागरिक लिए रोष,
मढ़ देगा तेरे शीश दोष.
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