Tuesday, January 5, 2016

मैने जब सोचा कि तुम बिन जिना मुश्किल बात नही,
दिन तो मुश्किल से ही गुज़रा, तुम बिन गुज़री रात कहाँ ?

ज़हर समय का वह पी लेगा, कहता है तो कहने दो..
लीडर है वो सच न मानें, अब कोई सुकरात कहाँ ।

मेरी आँखों मे बुंदे थी, जब तितली के पंख नुचे,
जी तो चाहे शहर डुबो दूँ, आँखों में बरसात कहाँ ।

तेरी याद के नाखूनों से, रोज उधेड़े जख़्मों को,
मिलन की मरहम की चाहत है, पर ऐसी कोई रात कहाँ ।

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