खुशियां कम और अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,
करीब से देखा तो है रेत का घर,
दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,
कहते हैं सच का कोई सानी नहीं,
आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,
तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन,
जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,
वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात,
वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत हैं।
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,
करीब से देखा तो है रेत का घर,
दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,
कहते हैं सच का कोई सानी नहीं,
आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,
तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन,
जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,
वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात,
वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत हैं।
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