Thursday, October 13, 2016

*कर्म...*
कुछ कर्म बदले जा सकते हैं और कुछ नहीं।
जैसे हलवा बनाते समय चीनी या घी की मात्रा यदि कम हो, पानी अधिक या कम हो, उसे ठीक किया जा सकता है। पर हलवा पक जाने पर उसे फिर से सूजी में नहीं बदला जा सकता।
 मट्ठा यदि अधिक खट्टा हो, उसमें दूध या नमक मिलाकर पीने लायक बनाया जा सकता है। पर उसे वापस दूध में बदला नहीं जा सकता।
प्रारब्ध कर्म बदले नहीं जा सकते। संचित कर्म को आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा बदला जा सकता है।
सत्संग(ईस्वर का ध्यान) सभी बुरे कर्मों के बीज को ख़त्म करता है।

*जब तुम किसी की प्रशंसा करते हो*, तुम उसके अच्छे कर्म ले लेते हो।

*जब तुम किसी की बुराई करते हो*, तुम उसके बुरे कर्म के भागीदार बनते हो।
*इसे जानो, और अपने अच्छे और बुरे, दोनों ही कर्मो को ईश्वर को समर्पित करके स्वयं मुक्त हो जाओ।*


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