Monday, April 26, 2021

      *!! मन चंगा तो कठौती में गंगा !!*

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एक बार की बात है, एक परिवार में पति, पत्नी एवं बहू-बेटा चार प्राणी रहते थे। समय आराम से बीत रहा था। चंद वर्षो बाद सास ने गंगा स्नान करने का मन बनाया वो भी अकेले पति पत्नी। बहू बेटा को भी साथ ले जाने का मन नहीं बनाया। उधर बहू मन में सोच विचार करती है कि भगवान मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है जो मैं गंगा स्नान करने से वंचित रह रही हूँ। 


सास ससुर गंगा स्नान हेतु काशी के लिए रवाना होने की तैयारी करने लगे तो बहू ने सास से कहा कि माँ आप अच्छी तरह गंगा स्नान एवं यात्रा करिएगा। इधर घर की चिंता मत करिएगा। मेरा तो अभी अशुभ कर्म का उदय है वरना में भी आपके साथ चलती। सारी तैयारी करके दोनों काशी के लिए रवाना हुए। मन ही मन बहू अपने कर्मों को कोस रही थी कि आज मेरा भी पुण्य कर्म होता तो मैं भी गंगा स्नान को जाती। खैर मन को ढांढस बंधाकर घर में रही। 


उधर सास जब गंगाजी में स्नान कर रही थी। स्नान करते करते घर में रखी अलमारी की तरफ ध्यान गया और मन ही मन सोचने लगी कि अरे अलमारी खुली छोडकर आ गई, कैसी बेवकूफ औरत हूँ बंद करके नहीं आई। पीछे से बहू सारा गहना निकाल लेगी। यही विचार करते करते स्नान कर रही थी कि अचानक हाथ में पहनी हुई अँगूठी हाथ से निकल कर गंगा में गिर गई। अब और चिंता बढ़ गई कि मेरी अँगूठी गिर गई। उसका ध्यान गंगा स्नान में न होकर सिर्फ घर की अलमारी में था। 


उधर बहू ने विचार किया कि देखो मेरा शुभ कर्म होता तो मैं भी गंगा जी जाती। सासु माँ कितनी पुण्यवान है जो आज गंगा स्नान कर रही है। ये विचार करते करते एक कठौती लेकर आई और उसको पानी से भर दिया और सोचने लगी सासु माँ वहाँ गंगा स्नान कर रही है और मैं यहाँ कठौती में ही गंगा स्नान कर लूँ। 


यह विचार करके ज्योंही कठौती में बैठी तो उसके हाथ में सासु माँ के हाथ की अँगूठी आ गई और विचार करने लगी ये अँगूठी यहाँ कैसे आई ये तो सासु माँ पहन कर गई थी। इतना सब करने के बाद उसने उस अँगूठी को अपनी अलमारी में सुरक्षित रख दी और कहा कि सासु माँ आने पर उनको दे दूँगी। 


उधर सारी यात्रा एवं गंगा स्नान करके सास लौटी तब बहू ने उनकी कुशल यात्रा एवं गंगा स्नान के बारे में पूछा... तो सास ने कहा कि बहू सारी यात्रा एवं गंगा स्नान तो की पर मन नहीं लगा। बहू ने कहा कि क्यों माँ ? मैंने तो आपको यह कह कर भेजा था कि आप इधर की चिंता मत करना मैं अपने आप संभाल लूँगी। 


सास ने कहा कि बहू गंगा स्नान करते करते पहले तो मेरा ध्यान घर में रखी अलमारी की तरफ गया और ज्योंही स्नान कर रही थी कि मेरे हाथ से अँगूठी निकल कर गंगाजी में गिर गई। अब तूँ ही बता बाकी यात्रा में मन कैसे लगता। इतनी बात बता ही रही थी कि बहू उठकर अपनी अलमारी में से वह अँगूठी निकाल सास के हाथ में रख कर कहा की माँ इस अँगूठी की बात कर रही है क्या ? सास ने कहा, हाँ ! यह तेरे पास कहाँ से आई, इसको तो मैं पहन कर गई थी और मेरी अंगुली से निकल कर गंगाजी में गिरी थी। 


बहू ने जबाब देते हुई कहा कि, माँ जब गंगा स्नान कर रही थी तो मेरे मन में आया कि देखो माँ कितनी पुण्यवान है जो आज गंगा स्नान हेतु गई। मेरा कैसा अशुभ कर्म आड़े आ रहा था जो मैं नहीं जा सकी। इतना सब सोचने के बाद मैंने विचार किया कि क्यों न मैं यही पर कठौती में पानी डाल कर उसको ही गंगा समझकर गंगा स्नान कर लूँ। जैसे ही मैंने ऐसा किया और कठौती में स्नान करने लगी कि मेरे हाथ में यह अँगूठी आई। मैं देखी यह तो आपकी है और यह यहाँ कैसे आई। इसको तो आप पहन कर गई थी। फिर भी मैं आगे ज्यादा न सोचते हुए इसे सुरक्षित मेरी अलमारी में रख दी। 


सास ने बहू से कहा, बहू में बताती हूँ कि यह तुम्हारी कठौती में कैसे आई। बहू ने कहा, माँ कैसे ? सास ने बताया, बहू देखो *"मन चंगा तो कठौती में गंगा"*। मेरा मन वहाँ पर चंगा नहीं था। मैं वहाँ गई जरूर थी परंतु मेरा ध्यान घर की आलमारी में अटका हुआ था... और मन ही मन विचार कर रही थी कि अलमारी खुली छोडकर आई हूँ कहीं बहू ने आलमारी से मेरे सारे गहने निकाल लिए तो। तो बता ऐसे बुरे विचार मन में आए तो मन कहाँ से लगने वाला और अँगूठी जो मेरे हाथ से निकल कर गिरी वह तेरे शुद्ध भाव होने के कारण तेरी कठौती में निकली। 


*शिक्षा:-*

जीवन में पवित्रता निहायत जरूरी है। वर्तमान में हर प्राणी का मन अपवित्र है, हर व्यक्ति का चित्त अपवित्र है। चित्त और चेतन में काम, क्रोध, मोह, लोभ जैसे विकार इस तरह हावी है कि हम उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं। उस विकृति के कारण हमारा जीना बहुत दुर्भर हो रहा है। 


बाहर की गंदगी को हम पसंद नहीं करते, वह दिखती है, तत्क्षण हम उसे दूर करने के प्रयास में लग जाते हैं। हमारे भीतर में जो गंदगी भरी पड़ी है उस और हमारा ध्यान नहीं जाता है। आज जिस पवित्रता की बात की जाती है, उस पवित्रता का

 आज का प्रेरक प्रसंग*👇👇
*सफलता की तैयारी*
*शहर  से  कुछ  दूर   एक  बुजुर्ग  दम्पत्ती   रहते  थे .  वो  जगह  बिलकुल  शांत  थी  और  आस -पास  इक्का -दुक्का  लोग  ही  नज़र  आते  थे .*
*एक  दिन  भोर  में  उन्होंने  देखा  की  एक  युवक  हाथ  में  फावड़ा  लिए  अपनी  साइकिल  से  कहीं   जा  रहा  है , वह  कुछ  देर  दिखाई  दिया  और  फिर  उनकी  नज़रों  से  ओझल  हो  गया .दम्पत्ती   ने  इस  बात  पर  अधिक  ध्यान  नहीं  दिया , पर  अगले  दिन  फिर  वह  व्यक्ति  उधर  से  जाता  दिखा .अब  तो  मानो  ये  रोज  की  ही  बात  बन  गयी , वह  व्यक्ति  रोज  फावड़ा  लिए  उधर  से  गुजरता  और  थोड़ी  देर  में  आँखों  से  ओझल  हो  जाता .*
 
*दम्पत्ती   इस  सुन्सान  इलाके  में  इस  तरह  किसी  के  रोज  आने -जाने  से  कुछ  परेशान  हो गए  और  उन्होंने  उसका  पीछा  करने   का  फैसला  किया .अगले  दिन  जब  वह  उनके  घर  के  सामने  से  गुजरा  तो  दंपत्ती   भी  अपनी  गाडी  से  उसके  पीछे -पीछे   चलने  लगे . कुछ  दूर  जाने  के  बाद  वह  एक  पेड़  के  पास  रुक  और  अपनी  साइकिल  वहीँ  कड़ी  कर  आगे  बढ़ने  लगा . १५-२० कदम चलने के बाद वह रुका  और अपने  फावड़े  से ज़मीन  खोदने लगा .*
*दम्पत्ती को  ये  बड़ा  अजीब  लगा  और  वे  हिम्मत  कर  उसके  पास  पहुंचे  ,“तुम  यहाँ  इस  वीराने  में   ये  काम  क्यों   कर  रहे  हो ?”*
*युवक  बोला  , “ जी,  दो  दिन  बाद  मुझे  एक  किसान  के  यहाँ  काम  पाने  क  लिए  जाना  है , और  उन्हें  ऐसा  आदमी  चाहिए  जिसे  खेतों  में  काम  करने  का  अनुभव  हो , चूँकि  मैंने  पहले  कभी  खेतों  में  काम  नहीं  किया इसलिए  कुछ  दिनों  से  यहाँ  आकार  खेतों में काम करने की तैयारी कर रहा हूँ!!”*
 *दम्पत्ती  यह  सुनकर  काफी  प्रभावित  हुए  और  उसे  काम  मिल  जाने  का  आशीर्वाद  दिया .*
*शिक्षा :-  किसी  भी  चीज  में  सफलता  पाने  के  लिए  तैयारी  बहुत  ज़रूरी   है . जिस  sincerity के  साथ   युवक  ने  खुद  को  खेतों  में  काम करने  के  लिए  तैयार  किया  कुछ  उसी  तरह  हमें  भी अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए खुद  को  तैयार  करना  चाहिए।*
           *!! असली सौंदर्य !!*
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युवराज भद्रबाहु को अपनी सुंदरता पर बहुत अभिमान था। एक दिन वह महामंत्री के पुत्र सुकेशी के साथ घूमते हुए शमशान पहुंच गए, जहां मुर्दे जल रहे थे। भद्रबाहु ने पूछा- ये लोग यहां पर क्यों एकत्रित हुए हैं?  सुकेशी ने जवाब दिया- मित्रवर इनका एक स्नेही जन मर गया है। ये लोग उसका दाह संस्कार कर रहे हैं। अभिमानी भद्रबाहु ने कहा- लगता है वह कुरूप व्यक्ति रहा होगा तभी ये लोग उसे जला रहे हैं। यदि सुदंर होता तो उसे सहेज कर रखते। सुकेशी ने कहा- युवराज चाहे कितना भी सुंदर क्यों न हो, यदि व्यक्ति प्राण मुक्त हो चुका होता है तो उसे कोई घर में नहीं रखता।
यह सुनते ही भद्रबाहु विचार करने लगा क्या मेरा भी यह हश्र होगा। वह इसी चिंता में घुलने लगा। राजा ने उसकी खिन्नता दूर करने के बहुत प्रयास किए, किंतु वे सफल नहीं हो पाए। अंत में राजा युवराज को गुरु महाआचार्य के पास ले गए। महाआचार्य ने कहा- वत्स यह बताओ जिस भवन में तुम निवास करते हो, वह भवन जीर्ण शीर्ण हो जाए तो उस भवन में तुम रहोगे या दूसरे भवन में जाओगे। भद्रबाहु ने जवाब दिया- गुरुदेव वह भवन तो बदलना ही पड़ेगा। तब महाआचार्य ने कहा- यह शरीर भी भवन के समान है। जब तक वह शरीर नष्ट नहीं होता तब तक आत्मा इसमें रहती है। 
शरीर नाशवान है, इसलिए उदास मत होओ। आत्मा को पहचानो। महाआचार्य की बात सुनकर भद्रबाहु के ज्ञानचक्षु खुल गए।
*शिक्षा:-*
मनुष्य कायिक सौंदर्य के प्रति चिंतित व अभिमान से भरा रहता है जबकि वह नाशवान है। हमेशा आत्मा को सुदंर बनाने की चिंता करनी चाहिए।

 


   !! *सत्य का साथ कभी न छोड़े* !!

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स्वामी विवेकानंद जी प्रारंभ से ही मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे | जब वह अपने साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे | एक दिन कक्षा में वो कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया | मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी | “कौन बात कर रहा है ?” मास्टर जी ने तेज आवाज़ में पूछा |


सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ़ इशारा कर दिया | मास्टर जी क्रोधित हो गए | उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबंधित प्रश्न पूछने लगे | जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया तब मास्टर जी ने स्वामी जी से वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हो | उन्होनें आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया | यह देख कर मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात – चीत कर रहे थे |


फिर क्या था | उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी | सभी छात्र एक एक कर बेंच पर खड़े होने लगे | स्वामी जी ने भी यही किया | मास्टर जी बोले नरेन्द्र तुम बैठ जाओ ! नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था | स्वामी जी ने आग्रह किया | सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए |



*कहानी से सीख* :-  

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मार्ग कितना भी कठिन क्यों न हों | सदा सत्य का साथ देना चाहिए |

 


               *!! कर्म-भाग्य !!*

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एक चाट वाला था। जब भी चाट खाने जाओ ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है जल्दी चाट लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती।


एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।


तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैंने सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलॉसफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।


मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से? और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।


कहने लगा, आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा? उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लॉकर की दो चाभियाँ होती हैं। एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास। आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य। जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नहीं खुल सकता।


आप कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान। आप को अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्य वाली चाभी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाभी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये।


 


                *!! कर्मों का खेल !!*

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एक बार एक गरीब लकड़हारा सूखी लकडि़यों की तलाश में जंगल में भटक रहा था। साथ में बोझा ढोने के लिये उसका गधा भी था। लकडि़याँ बटोरते-बटोरते उसे पता ही नहीं चला कि दिन कब ढल गया। शाम का अंधेरा तेजी से बढ़ता जा रहा था लेकिन वह अपने गाँव से बहुत दूर निकल आया था और उधर मौसम भी बिगड़ रहा था। ऐसे में वापस गाँव पहुँचना सम्भव न था, इसलिये वह उस जंगल में आसरा ढूंढने लगा। अचानक उसे एक साधु की कुटिया नजर आई। वह खुशी-खुशी अपने गधे के साथ वहाँ जा पहुँचा और रात काटने के लिये साधु से जगह माँगी। साधु ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया और सोने की जगह के साथ भोजन- पानी की व्यवस्था भी कर दी। वह लकड़हारा सोने की तैयारी करने लगा लेकिन तभी एक और समस्या खड़ी हो गई। दरअसल उसने काफी ज्यादा लकड़ी इकट्ठा कर ली थी और उसे बाँधने के लिये उसने सारी रस्सी इस्तेमाल कर ली थी। यहाँ तक कि अब उसके पास गधे को बाँधने के लिये भी रस्सी नहीं बची थी। उसकी परेशानी देखकर वह साधु उसके पास आये और उसे एक बड़ी रोचक युक्ति बताई। उन्होंने कहा कि गधे को बाँधने के लिये रस्सी की कोई जरूरत नहीं, बस उसके पैरों के पास बैठकर रोज की तरह बाँधने का क्रम पूरा कर लो। इस झूठ-मूठ के दिखावे को गधा समझ नहीं पायेगा और सोचेगा कि उसे बाँध दिया गया है। फिर वह कहीं जाने के लिये पैर नहीं उठायेगा। लकड़हारे ने और कोई चारा न देखकर घबराते-सकुचाते साधु की बात मान ली और गधे को बाँधने का दिखावा करके भगवान से उसकी रक्षा की प्रार्थना करता हुआ सो गया।


रात बीती, सुबह हुई, मौसम भी साफ हो गया। जंगल में पशु-पक्षियों की हलचल शुरू हो गई। आहट से लकड़हारे की नींद खुल गई। जागते ही उसे गधे की चिन्ता हुई और वह उसे देखने के लिये बाहर भागा। देखा तो गधा बिल्कुल वहीं खड़ा था जहाँ रात उसने छोड़ा था। लकड़हारा बड़ा खुश हुआ और साधु को धन्यवाद करके अपने गधे को साथ लेकर जाने लगा लेकिन यह क्याॽ गधा तो अपनी जगह से हिलने को तैयार ही नहीं। लकड़हारे ने बड़ा जोर लगाया, डाँटा-डपटा भी लेकिन गधा तो जैसे अपनी जगह पर जमा हुआ था। उसकी मुश्किल देखकर साधु ने आवाज लगाकर कहा- अरे भई, गधे को खोल तो लो। लकड़हारा रात की बात भूल चुका था, बोला- महाराज, रस्सी तो बाँधी ही नहीं फिर खोलूं क्याॽ


साधु बोले- रस्सी छोड़ो, बन्धन खोलो जो रात को डाले थे। जैसे बाँधने का दिखावा किया था वैसे ही खोलने का भी करना पड़ेगा। उलझन में पड़े लकड़हारे ने सुस्त हाथों से रस्सी खोलने का दिखावा किया और गधा तो साथ ही चल पड़ा। आश्चर्यचकित लकड़हारे को समझाते हुये साधु ने कहा- कर्म तो कर्म हैं चाहे वह स्थूल हों या सूक्ष्म। हम भले ही अपने कर्मों को भूल जायें पर उनका फल तो सामने आता ही है और फिर उसका भुगतान करने के लिये, उसे काटने के लिये नया कर्म करना पड़ता है। वहाँ कोई मनमर्जी या जोर-जबर्दस्ती नहीं चलती।


कर्म मात्र में ही मनुष्य का अधिकार है कर्मानुसार फल तो प्रकृति स्वयं ही जुटा देती है किन्तु फल की प्राप्ति पुन: कर्म की प्रेरणा देती है। अत: एक प्राणी का कर्तव्य है कि प्रत्येक कर्म विचार पूर्वक तथा जिम्मेदारी के साथ करे। कर्म के रहस्य को समझ कर ही हम सुखी हो सकते हैं अन्यथा पग-पग पर हमें उलझन का ही सामना करना पड़ेगा!


      !! *पांच मिनिट* !!

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एक व्यक्ति को रस्ते में यमराज मिल गये वो व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं सका। यमराज ने पीने के लिए व्यक्ति से पानी माँगा, बिना एक क्षण गवाए उसने पानी पिला दिया। पानी पीने के बाद यमराज ने बताया कि वो उसके प्राण लेने आये हैं लेकिन चूँकि तुमने मेरी प्यास बुझाई है इसलिए मैं तुम्हें अपनी किस्मत बदलने का एक मौका देता हूँ | यह कहकर यमराज ने एक डायरी देकर उस आदमी से कहा कि तुम्हारे पास 5 मिनट का समय है | इसमें तुम जो भी लिखोगे वही हो जाएगा लेकिन ध्यान रहे केवल 5 मिनट |


उस व्यक्ति ने डायरी खोलकर देखा तो उसने देखा कि पहले पेज पर लिखा था कि उसके पड़ोसी की लॉटरी निकलने वाली है और वह करोड़पति बनने वाला है | उसने वहां लिख दिया कि उसके पड़ोसी की लॉटरी न निकले | अगले पेज पर लिखा था कि उसका एक दोस्त चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाला है, तो उसने लिख दिया कि उसका दोस्त चुनाव हार जाए | 


इस तरह, वह पेज पलटता रहा और, अंत में उसे अपना पेज दिखाई दिया | जैसे ही उसने कुछ लिखने के लिए अपना पेन उठाया यमराज ने उस व्यक्ति के हाथ से डायरी ले ली और कहा वत्स तुम्हारा पांच मिनट का समय पूरा हुआ , अब कुछ नहीं हो सकता | तुमने अपना पूरा समय दूसरों का बुरा करने में व्यतीत दिया और अपना जीवन खतरे में डाल दिया | अंतत: तुम्हारा अंत निश्चित है | यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत पछताया लेकिन सुनहरा मौका उसके हाथ से निकल चुका था |



*शिक्षा* – 

यदि ईश्वर ने आपको कोई शक्ति प्रदान की है तो कभी किसी का बुरा न सोचे, और न ही बुरा करें | दूसरों का भला करने वाला सदा सुखा रहता है और, ईश्वर की कृपा सदा उस पर बनी रहती है |


 


               *!! बहुमत का सत्य !!*

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एक साधु वर्तमान शासन तंत्र की आलोचना कर रहे थे, तब एक तार्किक ने उनसे पूछा- कल तो आप संगठन शक्ति की महत्ता बता रहे थे, आज शासन की बुराई! शासन भी तो एक संगठन ही है।


 इस पर महात्मा ने एक कहानी सुनाई- एक वृक्ष पर उल्लू बैठा था, उसी पर आकर एक हंस भी बैठ गया और स्वाभाविक रूप में बोला- आज सूर्य प्रचंड रूप से चमक रहा है, इससे गरमी तीव्र हो गई है। उल्लू ने कहा सूर्य कहाँ है, गरमी तो अंधकार बढ़ने से होती है, जो इस समय भी हो रहा है। उल्लू की आवाज सुनकर एक बड़े वटवृक्ष पर बैठे अनेक उल्लू वहाँ आकर हंस को मूर्ख बताने लगे और सूर्य के अस्तित्व को स्वीकार न कर हंस पर झपटे। हंस यह कहता हुआ उड़ गया कि यहाँ तुम्हारा बहुमत है, बहुमत में समझदार को सत्य के प्रतिपादन में सफलता मिलना दुष्कर ही है।


 तार्किक संगठन और बहुमत के अंतर को समझकर चुप हो गया।


 *👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇*


                  *!! पानी की बून्द !!*

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एक राजा जंगल में प्यास से व्याकुल हुआ, तो एक वृक्ष की डाली से पानी की बून्द गिर रही थी। राजा ने पत्तों का दोना बनाकर उन बूंदों से दोने को भरने लगा। जब दोना भर गया तो एक तोते ने दोने को गिरा दिया। राजा ने दूसरी बार दोना भरा तो फिर तोते ने गिरा दिया पर तीसरी बार राजा ने दोना गिराने पर तोते को चाबुक से मार दिया।


उसके बाद राजा उस डाली के पास गया, जहां से पानी टपक रहा था तो राजा के पाँवो की जमीन खिसक गई, वहाँ एक भयंकर अजगर सोया हुआ था और उस अजगर के मुँह से लार टपक रही थी, राजा जिसको पानी समझ रहा था वह अजगर की जहरीली लार थी। राजा के मन में पश्चात्ताप का समन्दर उठने लगता है। हे प्रभु! मैंने यह क्या कर दिया, जो पक्षी बार-बार मुझे जहर पीने से बचा रहा था, भ्रम वश मैंने उसे ही मार दिया। 


संगत का असर जी, आपके साथ जो होता है उसमें हमारा भला छुपा होता है लेकिन हम उस पर ध्यान नहीं दे पाते हैं।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

   !! मकड़ी, चींटी और जाला !!
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मकड़ी (Spider)अपना जाला बनाने के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में थी. वह चाहती थी कि उसका जाला ऐसे स्थान पर हो, जहाँ ढेर सारे कीड़े-मकोड़े और मक्खियाँ आकर फंसे. इस तरह वह मज़े से खाते-पीते और आराम करते अपना जीवन बिताना चाहती थी. उसे एक घर के कमरे का कोना पसंद आ गया और वह वहाँ जाला बनाने की तैयारी करने लगी. उसने जाला बुनना शुरू ही किया था कि वहाँ से गुजर रही एक बिल्ली उसे देख जोर-जोर से हँसने लगी. मकड़ी ने जब बिल्ली से उसके हंसने का कारण पूछा, तो बिल्ली बोली, ”मैं तुम्हारी बेवकूफ़ी पर हँस रही हूँ. तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता कि ये स्थान कितना साफ़-सुथरा है।
यहाँ न कीड़े-मकोड़े हैं, न ही मक्खियाँ. तुम्हारे जाले में कौन फंसेगा?” बिल्ली की बात सुनकर मकड़ी ने कमरे के उस कोने में जाला बनाने का विचार त्याग दिया और दूसरे स्थान की तलाश करने लगी. उसने घर के बरामदे से लगी एक खिड़की देखी और वह वहाँ जाला बुनने लगी. उसने आधा जाला बुनकर तैयार कर लिया था, तभी एक चिड़िया वहाँ आई और उसका मज़ाक उड़ाने लगी, “अरे, तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है क्या, जो इस खिड़की पर जाला बुन रही हो. तेज हवा चलेगी और तुम्हारा जाला उड़ जायेगा.।
मकड़ी को चिड़िया की बात सही लगी. उसने तुरंत खिड़की पर जाला बुनना बंद किया और दूसरा स्थान ढूंढने लगी। ढूंढते-ढूंढते उसकी नज़र एक पुरानी अलमारी पर पड़ी. उस अलमारी का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था. वह वहाँ जाकर जाला बुनने लगी. तभी एक कॉकरोच वहाँ आया और उसे समझाइश देते हुए बोला, “इस स्थान पर जाला बनाना व्यर्थ है. यह अलमारी बहुत पुरानी हो चुकी है. कुछ ही दिनों में इसे बेच दिया जायेगा. तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी.” मकड़ी ने कॉकरोच की समझाइश मान ली और अलमारी में जाला बनाना बंद कर दूसरे स्थान की ख़ोज करने लगी. लेकिन इन सबके बीच पूरा दिन निकल चुका था।
वह थक गई थी और भूख-प्यास से उसका हाल बेहाल हो चुका था. अब उसमें इतनी हिम्मत नहीं रह गई थी कि वह जाला बना सके. थक-हार कर वह एक स्थान पर बैठ गई. वहीं एक चींटी भी बैठी हुई थी. थकी-हारी मकड़ी को देख चींटी बोली, “मैं तुम्हें सुबह से देख रही हूँ. तुम जाला बुनना शुरू करती हो और दूसरों की बातों में आकर उसे अधूरा छोड़ देती हो. जो दूसरों की बातों में आता है, उसका तुम्हारे जैसा ही हाल होता है.” चींटी बात सुनकर मकड़ी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह पछताने लगी।
सीख:– 
अक्सर ऐसा होता है कि हम नया काम शुरू करते हैं और नकारात्मक मानसिकता के लोग आकर हमें हतोत्साहित करने लगते हैं. वे भविष्य की परेशानियाँ और समस्यायें गिनाकर हमारा हौसला तोड़ने की कोशिश करते हैं. कई बार हम उनकी बातों में आकर अपना काम उस स्थिति में छोड़ देते हैं, जब वह पूरा होने की कगार पर होता है और बाद में समय निकल जाने पर हम पछताते रह जाते हैं. आवश्यकता है कि जब भी हम कोई नया काम शुरू करें, तो पूर्ण सोच-विचार कर करें और उसके बाद आत्मविश्वास और दृढ़-निश्चय के साथ उस काम में जुट जायें. काम अवश्य पूरा होगा. जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो लक्ष्य के प्रति ऐसा ही दृष्टिकोण रखना होगा।

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 *आज का प्रेरक प्रसङ्ग*
       !! *बेईमान दूधवाला* !!
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एक गाँव में एक दूधवाला रहता है. उसके पास 4 गायें थी, जिनका दूध निकाल कर वह शहर जाकर बेचा करता था. शहर जाने के लिए दूधवाले को गाँव की नदी पार करनी पड़ती थी. वह नाव से नदी पार कर शहर जाता था और अपने ग्राहकों को दूध बेचकर नाव से ही वापस गाँव आ जाता था. दूधवाला एक बेईमान व्यक्ति था. नदी पार करते समय वह रोज़ दूध में नदी का पानी मिला देता और पानी मिला दूध अपने ग्राहकों को बेचा करता था. इस तरह वह बहुत मुनाफ़ा कमाया करता था।
एक दिन ग्राहकों से दूध के पैसे इकठ्ठे कर दूधवाला शहर के बाज़ार चला गया. कुछ ही दिनों में उसके बेटे का विवाह था. उसने बाज़ार से ढेर सारे कीमती कपड़े, गहनें और आवश्यक सामग्रियाँ ख़रीदी. ख़रीददारी करते-करते उसे शाम हो गई. शाम को सारा सामान लेकर वह गाँव लौटने के लिए नाव से नदी पार करने लगा. नाव में लदे सामान का भार अधिक था, जिसे नाव झेल नहीं पाई और असंतुलित होकर पलट गई. दूधवाले ने जैसे-तैसे अपनी जान बचा ली।
किंतु कीमती सामानों को नहीं बचा पाया. सारा सामान नदी की तेज धार में बह गया. कीमती सामान से हाथ धो देने के बाद दूधवाला दु:खी हो गया और नदी किनारे बैठकर जोर-जोर से विलाप करने लगा. तभी नदी से एक आवाज़ आई, “रोते क्यों हो भाई? तुमने वही गंवाया है, जो धोखा देकर कमाया था. दूध में पानी मिलाकर जो तुमने कमाया, वो पानी में ही चला गया. अब रोना बंद करो. ये तुम्हारी बेईमानी का फ़ल था.”

*सीख* :- 
अपने काम में सदा ईमानदारी रखे. बेईमानी से कमाया हुआ धन कभी नहीं टिकता।
   *!!   एक नियम...   !!*
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रात के ढाई बजा था, एक सेठ को नींद नहीं आ रही थी। वह घर में चक्कर पर चक्कर लगाये जा रहा था, पर चैन नहीं पड़ रहा था। आखिर थक कर नीचे उतर आया और कार निकाली।
शहर की सड़कों पर निकल गया। रास्ते में एक मंदिर दिखा, सोचा थोड़ी देर इस मंदिर में जाकर भगवान के पास बैठता हूँ। प्रार्थना करता हूं तो शायद शांति मिल जाये।
वह सेठ मंदिर के अंदर गया तो देखा, एक दूसरा आदमी पहले से ही भगवान की मूर्ति के सामने बैठा था। मगर उसका उदास चेहरा आंखों में करूणा दर्शा रही थी। सेठ ने पूछा "क्यों भाई इतनी रात को मन्दिर में क्या कर रहे हो ?"
आदमी ने कहा "मेरी पत्नी अस्पताल में है, सुबह यदि उसका आपरेशन नहीं हुआ तो वह मर जायेगी और मेरे पास आपरेशन के लिए पैसा नहीं है।
उसकी बात सुनकर सेठ ने जेब में जितने रूपए थे, वह उस आदमी को दे दिए। अब गरीब आदमी के चहरे पर चमक आ गईं थीं। सेठ ने अपना कार्ड दिया और कहा इसमें फोन नम्बर और पता भी है और जरूरत हो तो नि:संकोच बताना।
उस गरीब आदमी ने कार्ड वापिस दे दिया और कहा, "मेरे पास उसका पता है" इस पते की जरूरत नहीं है सेठजी।
आश्चर्य से सेठ ने कहा "किसका पता है भाई" उस गरीब आदमी ने कहा, "जिसने रात को ढाई बजे आपको यहां भेजा उसका।"
इतने अटूट विश्वास से सारे कार्य पूर्ण हो जाते हैं। घर से जब भी बाहर जाये, तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर मिलकर जाएं और जब लौट कर आएं तो उनसे जरूर मिलें। क्योंकि, उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार रहता है।
"घर" में यह नियम बनाइए कि जब भी आप घर से बाहर निकलें, तो घर में मंदिर के पास दो घड़ी खड़े रह कर "प्रभु चलिए... आपको साथ में रहना हैं।" ऐसा बोल कर ही निकलें; क्यूँकि आप भले ही "लाखों की घड़ी" हाथ में क्यूँ ना पहने हो, पर "समय" तो "प्रभु के ही हाथ" में है..!!
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
 
           *!! चिड़ियाघर का ऊंट !!*
एक ऊंटनी और उसका बच्चा एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे. बच्चे ने पूछा, “माँ, हम ऊँटों का ये कूबड़ क्यों निकला रहता है?”
“बेटा हम लोग रेगिस्तान के जानवर हैं, ऐसी जगहों पर खाना-पानी कम होता है, इसलिए भगवान ने हमें अधिक से अधिक फैट स्टोर करने के लिए ये कूबड़ दिया है. जब भी हमें खाना या पानी नहीं मिलता हम इसमें मौजूद फैट का इस्तेमाल कर खुद को जिंदा रख सकते हैं” ऊंटनी ने उत्तर दिया.
बच्चा कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, “अच्छा, हमारे पैर लम्बे और पंजे गोल क्यों हैं?”
“इस तरह का आकार हम ऊँटों को रेत में आराम से लम्बी दूरी तय करने में मदद करता है, इसलिए” माँ ने समझाया.
बच्चा फिर कुछ देर सोचता रहा और बोला, “अच्छा माँ ये बताओ कि हमारी पलकें इतनी घनी और लम्बी क्यों होती हैं?”
*“ताकि जब तेज हवाओं के कारण रेत उड़े तो वो हमारी आँखों के अन्दर ना जा सके” माँ मुस्कुराते हुए बोली.*
*बच्चा थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, “अच्छा तो ये कूबड़ फैट स्टोर करने के लिए है… लम्बे पैर रेगिस्तान में तेजी से बिना थके चलने के लिए है… पलकें रेत से बचाने के लिए है… लेकिन तब हम इस चिड़ियाघर में क्या कर रहे हैं?”*
*शिक्षा:-*
*दोस्तों, यही सवाल हमें खुद से पूछना चाहिए. ईश्वर ने हर एक इंसान को विशेष बनाया है. हर व्यक्ति में इतनी क्षमता है कि वह कुछ बड़ा… कुछ महान कर सकता है. लेकिन ज्यादातर लोग चिड़ियाघर का ऊंट बन जाते हैं… अपने अन्दर मौजूद अपार योग्यताओं का प्रयोग ही नहीं करते… बेजुबान जानवर तो मजबूर हैं… लेकिन एक इंसान होने के नाते हमें मजबूर नहीं मजबूत बनाना चाहिए और अपने अन्दर के गुणों को पहचान कर अपना सुंदर जीवन जीने की हर कोशिश करनी चाहिए.*

 


                 *!! सच्चा प्रेम !!*            

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एक बार एक ग्वालन दूध बेच रही थी और सबको दूध नाप नाप कर दे रही थी। उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो ग्वालन ने बिना नापे ही उस नौजवान का बरतन दूध से भर दिया।


वही थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला लेकर मनको को गिन गिन कर माल फेर रहा था। तभी उसकी नजर ग्वालन पर पड़ी और उसने ये सब देखा और पास ही बैठे व्यक्ति से सारी बात बताकर इसका कारण पूछा।

उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस ग्वालन ने बिना नाप के दूध दिया है वह उस नौजवान से प्रेम करती है, इसलिए उसने उसे बिना नाप के दूध दे दिया।


यह बात साधु के दिल को छू गयी और उसने सोचा कि एक दूध बेचने वाली ग्वालन जिससे प्रेम करती है तो उसका हिसाब नहीं रखती और मैं अपने जिस ईश्वर से प्रेम करता हूँ, उसके लिए सुबह से शाम तक मनके गिन गिन कर माला फेरता हूँ। मुझसे तो अच्छी यह ग्वालन ही है और उसने माला तोड़़कर फेंक दी।


*शिक्षा:-*

जीवन भी ऐसा ही है। जहाँ प्रेम होता है वहाँ हिसाब किताब नहीं होता है, और जहाँ हिसाब किताब होता है वहाँ प्रेम नहीं होता है, सिर्फ व्यापार होता है।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

 👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇*
                 *!! बुद्धिमान साधू !!*
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किसी राजमहल के द्वारा पर एक साधु आया और द्वारपाल से बोला कि भीतर जाकर राजा से कहे कि उनका भाई आया है।
द्वारपाल ने समझा कि शायद ये कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो जो संन्यास लेकर साधुओं की तरह रह रहा हो!
सूचना मिलने पर राजा मुस्कुराया और साधु को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया।
साधु ने पूछा – कहो अनुज*, क्या हाल-चाल हैं तुम्हारे?
“मैं ठीक हूँ आप कैसे हैं भैया?”, राजा बोला।
साधु ने कहा- जिस महल में मैं रहता था, वह पुराना और जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे 32 नौकर थे वे भी एक-एक करके चले गए। पाँचों रानियाँ भी वृद्ध हो गयीं और अब उनसे कोई काम नहीं होता…
यह सुनकर राजा ने साधु को 10 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।
साधु ने 10 सोने के सिक्के कम बताए।
तब राजा ने कहा, इस बार राज्य में सूखा पड़ा है, आप इतने से ही संतोष कर लें।
साधु बोला- मेरे साथ सात समंदर पार चलो वहां सोने की खदाने हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा… मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।
अब राजा ने साधु को 100 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।
साधु के जाने के बाद मंत्रियों ने आश्चर्य से पूछा, “ क्षमा करियेगा राजन, लकिन जहाँ तक हम जानते हैं आपका कोई बड़ा भाई नहीं है, फिर आपने इस ठग को इतना इनाम क्यों दिया?”
राजन ने समझाया, “ देखो,  भाग्य के दो पहलु होते हैं। राजा और रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा।
जर्जर महल से उसका आशय उसके बूढ़े शरीर से था… 32 नौकर उसके दांत थे और 5 वृद्ध रानियाँ, उसकी 5 इन्द्रियां हैं।
समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा राजकोष सूख गया…क्योंकि मैं उसे मात्र दस  सिक्के दे रहा था जबकि मेरी हैसियत उसे सोने से तौल देने की है। इसीलिए उसकी बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर मैंने उसे सौ सिक्के दिए और कल से मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूँगा।
*शिक्षा:-*
मित्रों, इस प्रसंग से हमें ये सीख मिलती है कि किसी व्यक्ति के बाहरी रंग रूप से उसकी बुद्धिमत्ता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता इसलिए हमें सिर्फ किसी ने खराब कपडे पहने हैं या वो देखने में अच्छा नहीं है; उसके बारे में गलत विचार नहीं बनाने चाहियें।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
 *👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇*
              *!! मालिक कौन !!*
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एक आदमी एक गाय को घर की ओर ले जा रहा था। गाय जाना नहीं चाहती थी। वह आदमी लाख प्रयास कर रहा था, पर गाय टस से मस नहीं हो रही थी। ऐसे ही बहुत समय बीत गया।
एक संत यह सारा माजरा देख रहे थे। अब संत तो संत हैं, उनकी दृष्टि अलग ही होती है, तभी तो दुनिया वाले उनकी बातें सुन कर अपना सिर ही खुजलाते रह जाते हैं।
संत अचानक ही ठहाका लगाकर हंस पड़े। वह आदमी कुछ तो पहले ही खीज रहा था, संत की हंसी उसे तीर की तरह लगी। वह बोला- "तुम्हें बड़ी हंसी आ रही है?"
संत ने कहा- "भाई! मैं तुम पर नहीं हंस रहा। अपने ऊपर हंस रहा हूँ।" अपना झोला हाथ में उठा कर संत ने कहा- "मैं यह सोच रहा हूँ कि मैं इस झोले का मालिक हूँ, या यह झोला मेरा मालिक है?"
वह आदमी बोला- "इसमें सोचने की क्या बात है? झोला तुम्हारा है, तो तुम इसके मालिक हो। जैसे ये गाय मेरी है, मैं इसका मालिक हूँ।"
संत ने कहा- "नहीं भाई! ये झोला मेरा मालिक है, मैं तो इसका गुलाम हूँ। इसे मेरी जरूरत नहीं है, मुझे इसकी जरूरत है। तुम गाय की रस्सी छोड़ दो। तब मालूम पड़ेगा कि कौन किसका मालिक है? जो जिसके पीछे गया, वो उसका गुलाम।" इतना कहकर संत ने अपना झोला नीचे गिरा दिया और जोर जोर से हंसते हुए चलते बने।
सन्त  कहते हैं कि हम भी अपने को बहुत सी वस्तुओं और व्यक्तियों का मालिक समझते हैं, पर वास्तव में हम उनके मालिक नहीं, गुलाम हैं। मालिक वे हैं। क्योंकि उनकी आवश्यकता हमें है। 
जो जितनी रस्सियाँ पकड़े हैं, वो उतना ही गुलाम है। जिसने सभी रस्सियाँ छोड़ दी हैं, जिसे किसी से कुछ भी अपेक्षा न रही, वही असली मालिक है।
*शिक्षा:-*
इसलिए अपना जीवन उसके भरोसे रखिए जो सबका मालिक है...
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
 ★ 🎂जन्म दिवस विशेष :-
    !! भारत की प्रथम महिला शिक्षिका – सावित्रीबाई फुले !!
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सावित्रीबाई फुले भारत की एक समाज-सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी।
परिचय -
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। 
ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।
‘सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।
महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
विद्यालय की स्थापना
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।
निधन
10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।

 👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇*


           *!!   यह संसार क्या है?   !!*

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एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा, 'गुरुदेव, आपकी दृष्टि में यह संसार क्या है?' इस पर गुरु ने एक कथा सुनाई। 'एक नगर में एक शीशमहल था। महल की हरेक दीवार पर सैकड़ों शीशे जडे़ हुए थे। एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया। महल के भीतर उसे सैकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दु:खी लग रहे थे। उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा। उसे सैकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे। वह डरकर वहां से भाग गया। कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि इससे बुरी कोई जगह नहीं हो सकती।


कुछ दिनों बाद एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा। वह खुशमिजाज और जिंदादिल था। महल में घुसते ही उसे वहां सैकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे। उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा तो उसे सैकड़ों कुत्ते खुशी जताते हुए नजर आए। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। जब वह महल से बाहर आया तो उसने महल को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ स्थान और वहां के अनुभव को अपने जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना। वहां फिर से आने के संकल्प के साथ वह वहां से रवाना हुआ।'


कथा समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा, 'संसार भी ऐसा ही शीशमहल है जिसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है। जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं, वे यहां से हर प्रकार के सुख और आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं। जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं उनकी झोली में दु:ख और कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

 🛑Best Motivational Quotes🛑*

✅जब भी रास्ते में मुसीबतें आए तो घबराना मत। नदी की तरह अपने रास्ते से सब कुछ हटाते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाना।
✅अभी तक मिली असफलताओं से निराश ना हो, दुगुने उत्साह से लगे रहो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
✅तम अभी तक अपनी असली औकात नही जानते, वरना ऐसे न बैठे रहते।
✅अपने सपनो को पाने के लिए आपमे एक ज़िद होनी चाहिए। केवल फॉर्मेलिटी करने से कुछ नही होने वाला।

✅अगर अभी आप पर दुनिया वाले हंसते हैं, तो चिंता मत कीजिये। जिस दिन आप सफल हो गए, या तो वे आपके आगे पीछे घूमेंगे या फिर कभी शक्ल नही दिखाएंगे।
✅आप खुद में दृढ़ विश्वास करे, अच्छा महसूस करे और कड़ी मेहनत करते रहे, यही रहस्य है किस्मत के दरवाजे को खोलने का।
✅बड़ा सोचो, बड़े सपने देखो, लेकिन शुरुआत छोटे से ही करनी होती हैं।
✅य शिकायते मत करो कि तुम्हारे पास फलाना नही हैं, ढिमका नही हैं। अपने मौजूदा संशाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल करो और बेहतरीन आउटपुट दो।
✅अगर वाकई में तुमको कामयाब होना हैं तो अपने बीते कल में जीना छोड़ दो।
✅बहाने बनाने से आप दूसरों को नही, खुद को मूर्ख बना रहे हो।
✅आपकी जिंदगी एक फ़िल्म की तरह है। इसके लिए एक शानदार कहानी लिखो, इसे फ्लॉप मत होने दो।
✅आपको नदी की तरह बहते रहना होगा, रुक गए तो सड़ जाओगे।
✅अपनी तुलना किसी से मत करो, आप अपने आप मे नायाब हो, बेशकीमती हो।
✅एक जहाज किनारे पर सबसे ज्यादा सुरक्षित होता हैं। लेकिन ये इसके लिए तो नही बना हैं। इसलिए अपना कंफर्ट जोन आज ही छोड़ दो।
✅अपनी ज़िंदगी की सारी हदें आपने खुद बनाई हैं। इन हदो को तोड़ने के बाद आप कामयाब हो जाओगे।
 
Ⓜ️अपनी ज़िंदगी की सारी हदें आपने खुद बनाई हैं। इन हदो को तोड़ने के बाद आप कामयाब हो जाओगे।
Ⓜ️एक दिन आपका सारा जीवन आपकी आंखों के सामने से होकर गुजरेगा। सुनिश्चित करें कि यह देखने लायक हो।
Ⓜ️यह आपकी सोच ही है जो आपको राजा भी बना सकती हैं और रंक भी बना सकती हैं। इसलिए अपनी सोच बदलो जिंदगी बदलो।
Ⓜ️गलती होने के डर से कुछ भी ना करना सबसे बड़ी गलती हैं।
Ⓜ️लगातार प्रैक्टिस, आपको उस काम मे महान बना देगी।
Ⓜ️खद को इतना काबिल बना दो कि कामयाबी आपके पास आने के लिये मजबूर हो जाये।
Ⓜ️जयादा सोचने से बचो क्योकि ये आपको अंदर ही अंदर खोखला कर देगा।
Ⓜ️अपने शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाओ, क्योकि पुरी जिंदगी आपको इसी के साथ रहना हैं।
Ⓜ️खद को शांत कर लो, आपमे गजब की शक्ति आ जायेगी।
Ⓜ️आप जो कुछ भी बनना चाहते हो, वो बनने के लिए कभी भी देर नही होती हैं।
Ⓜ️आपमे अपनी खुद की दुनिया बनाने का सामर्थ्य हैं। आप असंभव को भी सम्भव बना सकते हो।
Ⓜ️जब भी रास्ते में मुसीबतें आए तो घबराना मत। नदी की तरह अपने रास्ते से सब कुछ हटाते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाना।
Ⓜ️अभी तक मिली असफलताओं से निराश ना हो, दुगुने उत्साह से लगे रहो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
Ⓜ️ तम अभी तक अपनी असली औकात नही जानते, वरना ऐसे न बैठे रहते।
Ⓜ️ अभी आप पर दुनिया वाले हंसते हैं, तो चिंता मत कीजिये। जिस दिन आप सफल हो गए, या तो वे आपके आगे पीछे घूमेंगे या फिर कभी शक्ल नही दिखाएंगे।
Ⓜ️आप खुद में दृढ़ विश्वास करे, अच्छा महसूस करे और कड़ी मेहनत करते रहे, यही रहस्य है किस्मत के दरवाजे को खोलने का।
 🔰परेरणादायी  मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स🔰*
🔰शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।
सुझाव :  किसी भी विषय को मज़ेदार बनाने के लिए उसके प्रायोगिक उपयोग को समझे | 
🔰शिक्षा भविष्य का पासपोर्ट है कल का उन लोगों के लिए  जो आज इसकी तैयारी करते हैं 
सुझाव : पड़ने  के लिए बैठने से पहले क्रिस्टल क्लियर प्लान बनाएं।
🔰तम जहां हो वहीं से  शुरू करो। जो तुम्हारे पास है, उसका उपयोग करो। जो तुम कर सकतो हो वो करो
सुझाव :  आलस्य के कारण कल पर अपनी पढ़ाई  को  न टाले | 
🔰शरू करने के लिए आपको महान नहीं होना चाहिए, लेकिन शुरू करके आपको महान बनना होगा। 

सुझाव :   अपने बड़े लक्ष्य को छोटे लक्ष्यों में विभाजित करें।
🔰शरुआत करने का तरीका है कि आप बात करना छोड़ दें और करना शुरू करें
सुझाव :   एक समय में एक चीज पर ध्यान दें। 
🔰आज से एक साल बाद आप कामना कर सकते हैं कि  काश आप आज ही शुरू हो गए होते

सुझाव :   समय बहुत कीमती है। इसकी कद्र करे
🔰मरी सलाह है, कल कभी मत करो जो तुम आज  कर सकते हो। प्रोक्रिस्टिनेशन समय का चोर है। पकड़ो इसे
सुझाव :   कल करे सो आज कर , आज करे सो अभी
🔰यदि आप उड़ नहीं सकते, तो दौड़े। अगर आप दौड़ नहीं सकते, तो चलिए। यदि आप नहीं चल सकते हैं, तो रेंगे   , लेकिन आप जो भी करे ..आगे बढ़ते रहे
सुझाव :   रोज़  कम से कम 1 घंटा ज़रूर पड़े
🔰मने सुना और मै भुल गया । मैंने देखा और मुझे याद है। जब मै करता हूं,तब मैं समझता हूं। 

सुझाव :   दोहराना सीखने की कुंजी है। 
सफलता सकारात्मक सोच के साथ आपकी सकारात्मक कार्रवाई से मिलती है।   

सुझाव :   केवल सोचने से कुछ नहीं होता है आपको कुछ करना होगा| 
हमें हार नहीं माननी चाहिए और हमें समस्या को हमें हराने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। 

सुझाव :   जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं 
🔰यदि आप इसे सरलता से नहीं समझा सकते , तो आप इसे अच्छी तरह से समझे नहीं है  

सुझाव :   अपनी सीख को दूसरों के साथ बांटे 
शिक्षक दरवाजा खोलते हैं, लेकिन आपको प्रवेश खुद करना होता है 

सुझाव :   खुद पढ़ाई करे, यह बहुत ज़रूरी है 
बीता हुए कल  से सीखो। आज के लिए जियो। आने वाले कल की आशा करो 
सुझाव :   अपनी असफलताओं से सीखें। 
🔰सीखने की खूबसूरत बात यह है कि कोई भी इसे आपसे दूर नहीं कर सकता है। 

सुझाव :   आप अपने भविष्य के लिए पढ़ाई कर रहे हैं। 

🔰अपने बहाने की तुलना में मजबूत हो।

सुझाव :   अपने मन को नियंत्रित करना सीखें।  
🔰तयारी सफलता की कुंजी है। 
सुझाव :   अपने अध्ययन के लिए एक समय सारणी बनाएं। 
🔰सफलता बार-बार और दिन-प्रतिदिन के छोटे प्रयासों का योग है
सुझाव :  दिन के अंत में अपने पूरे दिन का विश्लेषण करें।
🔰यह हमेशा असंभव सा लगता है जब तक कि पूरा न हो जाय
सुझाव :   शीशे के सामने खड़े होकर बोले मै टॉपर  हूँ 
🔰जानना पर्याप्त नहीं है; हम लागू करना चाहिए। कामना पर्याप्त नहीं है; हमें करना चाहिए 
सुझाव :   जो कुछ भी आप सीखते हैं, उसे  कागज पर व्यक्त करें।
🔰असफलता मुझे कभी भी पछाड़ नहीं पाएगी यदि सफल होने का मेरा संकल्प काफी मजबूत है 
सुझाव :   खुद के प्रति वचनबद्ध रहें
 *आज का प्रेरक प्रसङ्ग*
          *!! मन !!*
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सुबह होते  ही, एक भिखारी नरेन्द्रसिंह के घर पर भिक्षा मांगने के लिए पहुँच गया।  भिखारी ने  दरवाजा खटखटाया, नरेन्द्रसिंह बाहर आये पर उनकी जेब में देने के लिए कुछ न निकला।  वे कुछ दु:खी होकर घर के अंदर गए और एक बर्तन उठाकर भिखारी को दे दिया। भिखारी के जाने के थोड़ी देर बाद ही वहां नरेन्द्रसिंह की पत्नी आई और बर्तन न पाकर चिल्लाने लगी- “अरे! क्या कर दिया आपने चांदी का बर्तन भिखारी को दे दिया।  दौड़ो-दौड़ो और उसे वापिस लेकर आओ।”
नरेन्द्रसिंह दौड़ते हुए गए और भिखारी को रोककर कहा- “भाई मेरी पत्नी ने मुझे जानकारी दी है कि यह गिलास चांदी का है, कृपया इसे सस्ते में मत बेच दीजियेगा। ”वहीँ पर खड़े नरेन्द्रसिंह के एक मित्र ने उससे पूछा- मित्र! जब आपको  पता चल गया था कि ये गिलास चांदी का है तो भी उसे गिलास क्यों ले जाने दिया?” नरेन्द्रसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा- “मन को इस बात का अभ्यस्त बनाने के लिए कि वह बड़ी से बड़ी हानि में भी कभी दुखी और निराश न हो!”
शिक्षा– मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें।  मन उदास हो गया तो आपके कार्य करने की गति धीमी हो जाएगी। इसलिए मन को हमेशा प्रसन्न रखने का प्रयास करें।

 *आज का प्रेरक प्रसङ्ग*


    *!! मदद का जज्बा : सीख सुहानी !!*

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मैं ऑफिस बस से ही आती जाती हूँ। ये मेरी दिनचर्या का हिस्‍सा है। उस दिन भी बस काफी देर से आई, लगभग आधे-पौने घंटे बाद। खड़े-खड़े पैर दुखने लगे थे। पर चलो शुक्र था कि बस मिल गई। देर से आने के कारण भी और पहले से ही बस काफी भरी हुई थी। बस में चढ़कर मैंने चारों तरु नजर दौड़ाई पाया कि सभी सीटें भर चुकी थी। उम्‍मीद की कोई किरण नजर नहीं आई। तभी एक मजदूरन ने मुझे आवाज लगाकर अपनी सीट देते हुए कहा ‘मेडम आप यहां बैठ जाइए’। मैंने उसे धन्‍यवाद देते हुए उस सीट पर बैठकर राहत की सांस ली। 


वो महिला मेरे साथ बस स्‍टॉप पर खड़ी थी तब मैंने उस पर ध्‍यान नहीं दिया था। कुछ देर बाद मेरे पास वाली सीट खाली हुई, तो मैंने उसे बैठने का इशारा किया। तब उसने एक महिला को उस सीट पर बिठा दिया जिसकी गोद में एक छोटा बच्‍चा था वो मजदूरन भीड़ की धक्‍का-मुक्‍की सहते हुए एक पोल को पकड़कर खड़ी थी। थोड़ी देर बाद बच्‍चे वाली औरत अपने गन्‍तव्‍य पर उतर गई। इस बार वही सीट एक बुजुर्ग को दे दी, जो लम्‍बे समय से बस में खड़े थे।


मुझे आश्‍चर्य हुआ कि हम दिन-रात बस की सीट के लिए लड़ते हैं और ये सीट मिलती है और दूसरे को दे देती है। कुछ देर बाद वो बुजुर्ग भी अपने स्‍टॉप पर उजर गए, तब वो सीट पर बैठी। मुझसे रहा नहीं गया, तो उससे पूछ बैठी, ‘तुम्‍हें तो सीट मिल गई थी एक या दो बार नहीं, बल्कि तीन बार, फिर भी तुमने सीट क्‍यों छोड़ी? तुम दिन भर ईंट-गारा ढोती हो, आराम की जरूरत तो तुम्‍हें भी होगी, फिर क्‍यों नहीं बैठी ?’ मेरी इस बात का जो जवाब उसने दिया उसकी उम्‍मीद मैंने कभी नहीं की थी। उसने कहा ‘मैं भी थकती हूँ। आप से पहले स्‍टॉप पर खड़ी थी, मेरे भी पैरों में दर्द होने लगा था। 


जब मैं बस में चढ़ी थी तब यही सीट खाली थी। मैंने देखा आपके पैरों में तकलीफ होने के कारण आप धीरे-धीरे बस में चढ़ी। ऐसे में आप कैसे खड़ी रहतीं इसलिए मैंने अपको सीट दी। उस बच्‍चे वाली महिला को सीट इसलिए दी उसकी गोद में छोटा बच्‍चा था जो बहुत देर से रो रहा था। उसने सीट पर बैठते ही सुकून महसूस किया। बुजुर्ग के खड़े रहते मैं कैसे बैठती, सो उन्‍हें दे दी। मैंने उन्‍हें सीट देकर ढेरो आशीर्वाद पाए। कुछ देर का सफर है मैडम जी, सीट के लिए क्‍या लड़ना। वैसे भी सीट को बस में ही छोड़ कर जाना है, घर तो नहीं ले जाना ना। 


मैं ठहरी ईंट-गारा ढोने वाली, मेरे पास क्‍या है, न दान करने लायक धन है, कोई पुण्‍य कमाने लायक करने के लिए। रास्‍ते से कचरा हटा देती हूँ, रास्‍ते के पत्‍थर बटोर देती हूँ, कभी कोई पौधा लगा देती हूँ। यहां बस में अपनी सीट दे देती हूँ। यही है मेरे पास, यही करना मुझे आता है।’ वो तो मुस्‍करा कर चली गई पर मुझे आत्‍ममंथन करने को मजबूर कर गई। मुझे उसकी बातों से एक सीख मिली कि हम बड़ा कुछ नहीं कर सकते तो समाज में एक छोटा सा, नगण्‍य दिखने वाला कार्य तो कर ही सकते हैं। मुझे लगा ये मजदूर महिला उन लोगों के लिए सबह है जो अपना रूतबा दिखाने, अपनी प्रतिष्‍ठा का प्रदर्शन करने और आयकर बचाने के लिए अपनी काली कमाई को दान के नाम पर खपाते हैं, या फिर वो लोग जिनके पास पर्याप्‍त पैसा होते हुए भी ग़रीबी का रोना रोते हैं। 


हम समाज सेवा के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं परन्‍तु इन छोटी-छोटी बातों पर कभी ध्‍यान नहीं देते। मैंने मन ही मन उस महिला को नमन किया तथा उससे सीख ली यदि हमें समाज के लिए कुछ करना हो, तो वो दिखावे के लिए न किया जाए बल्कि खुद की संतुष्टि के लिए हो।


 👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇*
                 *!! परम संतोषी !!*
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एक बहुत विद्वान संत थे। वे कहीं भी ज्यादा दिन नहीं रहते थे, पैदल ही एक शहर से दूसरे शहर जाकर लोगों को प्रवचन दिया करते थे। लोग भी उन्हें बहुत मानते थे और सम्मान करते थे। 
एक बार संत पैदल ही दूसरे शहर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक सोने का सिक्का मिला। महात्मा ने उसे उठा लिया और अपने पास रख लिया। उन्होंने सोचा कि ये सिक्का मैं सबसे गरीब इंसान को ही दूंगा।
संत कई दिनों तक ऐसे किसी इंसान की तलाश करते रहे, जो बहुत गरीब हो। लेकिन उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नजर नहीं आया। इस तरह कुछ समय और बीत गया। संत भी वो बात भूल गए।
एक दिन संत ने देखा कि एक राजा अपनी सेना सहित दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। तभी साधु को सोने के सिक्के की याद आई। उन्होंने वो सिक्का निकाला और राजा के ऊपर फेंक दिया।
संत को ऐसी हरकत करते देख राजा नाराज भी हुआ और आश्चर्यचकित भी। राजा ने संत से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि- राजा, कुछ समय पहले ये सोने का सिक्का मुझे रास्ते से मिला था। मैं इसे सबसे गरीब इंसान को देना चाहता था। लेकिन मुझे अभी तक कोई गरीब मनुष्य नहीं दिखाई दिया। आज जब मैंने तुम्हें देखा तो लगा कि तुम ही सबसे गरीब मनुष्य हो।
राजा ने संत से पूछा कि- आपको ऐसा क्यों लगा, क्योंकि मैं तो राजा हूं। मेरे पास तो अकूत धन-संपत्ति है। संत ने कहा- इतना धन होने के बाद भी तुम दूसरे राज्य पर अधिकार करना चाह रहे हो। वो भी सिर्फ उस राज्य का धन पाने के लिए तो तुमसे बड़ा गरीब और कौन हो सकता है। राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो अपनी सेना लेकर अपने देश लौट गया।
*शिक्षा:-*
कभी किसी दूसरे के धन पर नजर नहीं रखनी चाहिए। हमेशा अपनी मेहनत से कमाए गए धन में ही संतोष करना चाहिए। इस दुनिया में संतोषी व्यक्ति ही सबसे सुखी है। संतोषी व्यक्ति को अपने पास जो साधन होते हैं, वे ही पर्याप्त लगते हैं।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

 *आज का प्रेरक प्रसङ्ग*


   !! *भगवान सबको देखता हैं* !!

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एक बार एक गाँव में एक भला आदमी बिक्री से दुखी था| यह देख एक चोर को उस पर दया आ गई| वह उस बेरोजगार आदमी के पास गया और बोला, “मेरे साथ चलो, चोरी में बहुत सारा धन मिलेगा” आदमी बैकर बैठे-बैठे परेशान हो गया था| इसलिए वह उस चोर के साथ चोरी करने को तैयार हो गया| लेकिन अब समस्या यह थी की उसे चोरी करना आती नहीं थी| उसने साथी से कहा, “मुझे चोरी करना आती तो नहीं है, फिर कैसे करूँगा|” चोर ने कहा” तुम उसकी चिंता मत करो, मैं तुम्हें सब सिखा दूंगा”


अगले दिन दोनों रात के अँधेरे में गाँव से दूर एक किसान का पका हुआ खेत काटने पहुँच गए| वह खेत गाँव से दूर जंगल में था, इसीलिए वहां रात में कोई रखवाली के लिए आता जाता न था| लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिहाज़ से उसने अपने नए साथी को खेत की मुंडेर पर रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और किसी के आने पर आवाज लगाने को कहकर खुद खेत में फसल चोरी करने पहुँच गया| नए साथी ने थोड़ी ही देर में अपने साथी को आवाज लगे, “भर जल्दी उठो, यहाँ से भाग चलो…खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है” चोर ने जैसे ही अपने साथी की बात सुनी वह फसल काटना छोड़ उठकर भागने लगा|


कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पुछा, “मालिक कहाँ खड़ा था? कैसे देख रहा था? नए चोर ने सहजता पूर्वः जवाब दिया, “मित्र! इश्वर हर जगह मौजूद है| इस संसार में जो कुछ भी है उसी का है और वह सब कुछ देख रहा है| मेरी आत्मा ने कहा, इश्वर यह भी मौजूद है और हमें चोरी करते हुए देख रहा है…इस स्थती में हमारा भागना ही उचित था| पहले चोर पर बेरोजगार आदमी की बातों का इतना प्रभाव पड़ा की उसने चोरी करना ही छोड़ दिया|

 👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇*
                  *!! बकरी चोर !!*
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एक बार एक किसान ने बाज़ार से एक बकरी ख़रीद लीं और उसे काँधे पर लेकर वो खेतों से चलते चलते घर जाने लगा। तभी तीन चोरों की नज़र उस पर पड़ी। बकरी चुराने के लिए उन्होंने एक तरकीब लगायीं।
पहले पहला चोर किसान के पास गया और बोला, “अरे आप तो बहुत दयालु हैं। इस कुत्ते को काँधे पर लेकर जा रहें हो।” किसान ने हँसी में उसे टाल दिया।
थोड़ी देर बाद दूसरा चोर किसान के पास गया और उसने पूछा, “आप इस कुत्ते को काँधे पर क्यों ले जा रहे हो?” किसान के मन में अब थोडी शंका उत्पन्न हुई।
थोड़ी देर बाद तीसरा चोर उसे मिला, “यह कुत्ता बीमार है क्या? आप इसे काँधे पर उठा कर क्यों ले जा रहे हो?” अब तो किसान डर गया। यहाँ तो कुछ गड़बड़ है। इस कुत्ते ने ज़रूर ही बकरी का रूप लिया है। ये सोचकर उसने बकरी वहीं फेंक दी और दौड़ते हुए घर वापस गया। इस तरह तीनों चोरों ने बड़ीं चालाकी से बकरी चुरा ली।
*शिक्षा:-*
हमारे आस पास भी कितने बकरी चोर नज़र आते हैं। उनके फ़ायदे के लिए हमें भटकाने वाले कभी वो आपके बॉस की निंदा करेंगे, कभी अपने काम के बारे में बुरा भला कहेंगे, कभी आप को ग़लत सलाह देंगे, कभी आपके दोस्तों के बारे में ग़लत बतायेंगे। आख़िर आपका खुद पर अटूट विश्वास ही आपको सफल बनाता है ।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
 आज की कहानी🦚🌳*


.         *💐💐ईमानदारी का फल💐💐*
सात वर्षीय बेटी दूसरी कक्षा में प्रवेश पा गयी. *क्लास में  हमेशा से अव्वल आती रही है !* पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो *मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने के लिए बाज़ार ले गया !*
बेटी ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया की *पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरुरत है वो अभी इस साल काम दे सकते हैं..!!* अपने जूतों की बजाये उसने मुझे *अपने दादा की कमजोर हो चुकी नज़र के लिए नया चश्मा बनवाने को कहा !* मैंने सोचा *बेटी अपने दादा से शायद बहुत प्यार करती है इसलिए अपने जूतों की बजाय उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रही है !*
खैर मैंने कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और *उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचा..* दुकानदार ने बेटी के साइज़ की सफ़ेद शर्ट निकाली... *डाल कर देखने पर शर्ट एक दम फिट थी* फिर भी बेटी ने *थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा !!*
मैंने बेटी से कहा : *बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों ?* बेटी ने कहा : *पिता जी मुझे शर्ट स्कर्ट के अंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा...लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी....पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रही !*
मैं खामोश रहा !!
घर आते वक़्त मैंने बेटी से पूछा : *तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा ?*
बेटी ने कहा: *पिता जी मैं अक्सर देखती हूँ कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को छोडकर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ो पर पैसे खर्च कर दिया करते हैं !*
गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं..
*जब सब लोग आपकी तारीफ़ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है* ..., *मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं !*
पिता जी मैं चाहती हूँ कि मुझे *कभी जीवन में नए कपडे, नए जूते मिले या न मिले.. लेकिन कोई आपको चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर या कुत्ता न कहे...!! मैं आपकी ताक़त बनना चाहती हूँ पिता जी, आपकी कमजोरी नहीं !*
बेटी की बात सुनकर मैं निरुतर था!
*आज मुझे पहली बार मुझे मेरी ईमानदारी का इनाम मिला था !!*
आज बहुत दिनों बाद आँखों में ख़ुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे ।
 
 
 
💐 💐

 
  
 
*सदैव प्रसन्न रहिये!!* 
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!* 
🙏🙏🙏🙏🙏🌳🌳🙏🙏🙏🙏

  सफलता की तैयारी 🔶


शहर  से  कुछ  दूर   एक  बुजुर्ग  दम्पत्ती   रहते  थे .  वो  जगह  बिलकुल  शांत  थी  और  आस -पास  इक्का -दुक्का  लोग  ही  नज़र  आते  थे .


एक  दिन  भोर  में  उन्होंने  देखा  की  एक  युवक  हाथ  में  फावड़ा  लिए  अपनी  साइकिल  से  कहीं   जा  रहा  है , वह  कुछ  देर  दिखाई  दिया  और  फिर  उनकी  नज़रों  से  ओझल  हो  गया .दम्पत्ती   ने  इस  बात  पर  अधिक  ध्यान  नहीं  दिया , पर  अगले  दिन  फिर  वह  व्यक्ति  उधर  से  जाता  दिखा .अब  तो  मानो  ये  रोज  की  ही  बात  बन  गयी , वह  व्यक्ति  रोज  फावड़ा  लिए  उधर  से  गुजरता  और  थोड़ी  देर  में  आँखों  से  ओझल  हो  जाता .


 दम्पत्ती   इस  सुन्सान  इलाके  में  इस  तरह  किसी  के  रोज  आने -जाने  से  कुछ  परेशान  हो गए  और  उन्होंने  उसका  पीछा  करने   का  फैसला  किया .अगले  दिन  जब  वह  उनके  घर  के  सामने  से  गुजरा  तो  दंपत्ती   भी  अपनी  गाडी  से  उसके  पीछे -पीछे   चलने  लगे . कुछ  दूर  जाने  के  बाद  वह  एक  पेड़  के  पास  रुक  और  अपनी  साइकिल  वहीँ  कड़ी  कर  आगे  बढ़ने  लगा . १५-२० कदम चलने के बाद वह रुका  और अपने  फावड़े  से ज़मीन  खोदने लगा .


दम्पत्ती को  ये  बड़ा  अजीब  लगा  और  वे  हिम्मत  कर  उसके  पास  पहुंचे  ,“तुम  यहाँ  इस  वीराने  में   ये  काम  क्यों   कर  रहे  हो ?”


युवक  बोला  , “ जी,  दो  दिन  बाद  मुझे  एक  किसान  के  यहाँ  काम  पाने  क  लिए  जाना  है , और  उन्हें  ऐसा  आदमी  चाहिए  जिसे  खेतों  में  काम  करने  का  अनुभव  हो , चूँकि  मैंने  पहले  कभी  खेतों  में  काम  नहीं  किया इसलिए  कुछ  दिनों  से  यहाँ  आकार  खेतों में काम करने की तैयारी कर रहा हूँ!!”


दम्पत्ती  यह  सुनकर  काफी  प्रभावित  हुए  और  उसे  काम  मिल  जाने  का  आशीर्वाद  दिया .


शिक्षा :-  किसी  भी  चीज  में  सफलता  पाने  के  लिए  तैयारी  बहुत  ज़रूरी   है . जिस  sincerity के  साथ   युवक  ने  खुद  को  खेतों  में  काम करने  के  लिए  तैयार  किया  कुछ  उसी  तरह  हमें  भी अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए खुद  को  तैयार  करना  चाहिए।


 *आज का प्रेरक प्रसंग👇👇👇*
                           *!! मदद !!* 
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*उस दिन सवेरे आठ बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला. मैं रेलवे स्टेशन पँहुचा, पर देरी से पँहुचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी. मेरे पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नहीं था . मैंने सोचा कही नाश्ता कर लिया जाए .*
*बहुत जोर की भूख लगी थी . मैं होटल की ओर जा रहा था . अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी . दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे . बच्चों की हालत बहुत खराब थी .* 
*कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे . वे भूखे लग रहे थे . छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था . मैं अचानक रुक गया . दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये .*
*जीवन को देख मेरा मन भर आया . सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाएँ . मैं उन्हें दस रु. देकर आगे बढ़ गया . तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं . दस रु. का क्या मिलेगा ? चाय तक ढंग से न मिलेगी . स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा . मैंने बच्चों से कहा - कुछ खाओगे ?*
*बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए . मैंने कहा बेटा ! मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ , तुम भी कर लो . वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए . मेरे पीछे पीछे वे होटल में आ गए . उनके कपड़े गंदे होने से होटल वाले ने डांट दिया और भगाने लगा .* 
*मैंने कहा भाई साहब ! उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो , पैसे मैं दूँगा . होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा..! उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी .* 
*बच्चों ने नाश्ता मिठाई व लस्सी माँगी . सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया . बच्चे जब खाने लगे, उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ निराली ही थी . मैंने भी एक अजीब आत्म संतोष महसूस किया . मैंने बच्चों को कहा बेटा ! अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिए हैं उसमें एक रु. का शैम्पू लेकर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना और फिर दोपहर शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना . और मैं नाश्ते के पैसे चुका कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला .*
*वहाँ आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे . होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे . मैं स्टेशन की ओर निकला, थोडा मन भारी लग रहा था . मन थोडा उनके बारे में सोच कर दुखी हो रहा था .* 
*रास्ते में मंदिर आया . मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा - हे भगवान ! आप कहाँ हो ? इन बच्चों की ये हालत ! ये भूख आप कैसे चुप बैठ सकते हैं  ! !!*
*दूसरे ही क्षण मेरे मन में विचार आया, अभी तक जो उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था ? क्या तुम्हें लगता है तुमने वह सब अपनी सोच से किया ? मैं स्तब्ध हो गया ! मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गए .*
*ऐसा लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो ! मुझे समझ आ चुका था हम निमित्त मात्र हैं . उसके कार्य कलाप वो ही जानता है , इसीलिए वो महान है ! !!*
*भगवान हमें किसी की मदद करने तब ही भेजता है , जब वह हमें उस काम के लायक समझता है . यह उसी की प्रेरणा होती है . किसी मदद को मना करना वैसा ही है जैसे भगवान के काम को मना करना .*
*खुद में ईश्वर को देखना ध्यान है ! दूसरों में ईश्वर को देखना प्रेम है ! ईश्वर को सब में और सब में ईश्वर को देखना ज्ञान है !*
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
 *→कृपया आप सभी इस मैसेज पर विशोष ध्यान दें।*
🙏 Everyone must Read MSG 🙏
*🙏🏻 परा विश्व इस  समय बहुत की गंभीर परिस्थिति  से गुज़र रहा है।*
🙏🏻 हर तरफ डर और नकारात्मक ऊर्जा का वातावरण है (जिसमे बहुत बड़ा हाथ social media का bhi hae)
🙏🏻 भय और नकारात्मक वातावरण से रोग प्रतिरोध हक़ ( immunity) क्षमता कमज़ोर होती है जबकि समय की मांग है उसको ज्यादा शक्तिशाली बनाने की 
🙏🏻तो क्यूँ  ना हम सब mil kar कुछ  प्रयास करे 
🙏🏻 Science को, सरकार को अपना काम करने dae, हम 1जागरूक और मानवता पूर्ण इंसान की तरह मिल कर कुछ प्रयास करते है.. 
🙏🏻 हम सबसे बड़ी सत्ता ईश्वरीय सत्ता और universal लॉ पर विश्वास करते हुए सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण  निडर और जागरूक वातावरण बनाने का प्रयास kare,, 
Instruction to be followed
🙏🏻सरकार द्वारा और WHO द्वारा जो सावधानी बताये गए है उनको follow करते hua ( precautionary measure)
🙏🏻 हमें खुछ सकरात्मक पंक्तिया (lines) रोज़ 1 hi वक़्त पर 1साथ सब को बोलनी है ( आप चाहे तोह लिख भी सकते है )
जिससे यूनिवर्स में collective vibration जाए और वोह पलट कर वापस आए 
*❤️ हर लाइन को 5 बार रिपीट करिए* 
2 से 5 min का वक़्त hi लगेगा ज्यादा नहीं 
आप जहा पर है वही से यह रिपीट कर सकते hae..किसी विशेष स्थान की ज़रूरत नहीं है 
Apko यह msg अपने हर 1 contact को भेजना है और unko अपने contacts ko
सकारात्मक लाइन्स जो रोज़ बोलनी hae
1  में स्वस्थ और तंदरुस्त हु 
2  मेरी रोग प्रिरोधक क्षमता मजबूत है 
3 हम सबके परमपिता परमात्मा जो  ""शक्ति""  के सागर है,, हमेशा अपनी शक्ति से mujhae और मेरे परिवार को परिपूर्ण करते रहते है 
4  मेरे तथा मेरे परिवार के हर सदस्य kae चारो तरफ एक मजबूत आभा मण्डल बन गया है जो हम सबको इस ख़तरनाक  virus से सुरक्षित रख रहा hae.. 
5 इस खरतरनक virus का प्रभाव धीरे धीरे कम  ho रहा है ,, और बहुत जल्द खत्म हो जाएगा 
6  परमात्मा की हीलिंग energy और  शक्ति  उन सब तक भी  पहुंच रही और उनको ठीक कर रही  है जो इस virus से ग्रसित (effected) हो  गए hae,,  
(6 लाइन  बोलना miss  मत करिएगा, जब तक हम सर्व का भला नहीं सोचेंगे  परमात्मा और universe,, हमें मदद नहीं करेंगे 
6am, 12 pm,, 6 pm 12am 
In चारो time में एक साथ सबको एक सी vibration यूनिवर्स (ब्रह्माण्ड ) में भेजनी hae
India से बाहर के लोग Indian स्टैण्डर्ड time से अपना time set कर ले 
बहुत से लोगो को 6 am या 12 pm wala ना suit करे वोह चाहे तोह miss कर सकते hae.. लेकिन अगर कोशिश करेंगे तोह सराहनीय होगा. 
20March से शुरुआत करते hae, तब तक आप सब isko ज्यादा से ज्यादा circulate करे 
*Lets try it for atleast 21 days.*
Positive affirmations in English
1   I am healthy  being
2 i have strong Immunity 
3 My supreme Father who is ocean of power is always blessing me and my family members with his powerful energy
4  A power Aura has develped around me and my family member, which is protecting us from dangerous Virus
5 The effect of this virus is decreasing day by day and it will disappear soon
God Father healing energy and power is also flowing to people who r already infected.. and curing them
Dont t forget to say last affirmation cause unless and until we  pray for all.. universe wont help us

 तुम साथ हो.....तो जैसे


हर खुशी से बनता है नाता

गम को कोसो दूर भगाता

हर घड़ी मिलता है सुकून

जैसे सावन की हो पहली बून्द

घिरे अंधेरे में एक चिराग

जैसे कोई सुनहरा ख्वाब

दिल की धड़कनों की राहत

तुम ही हो मेरी चाहत।


तुम  हो.....जैसे


यकीन है, उम्मीद है, विश्वास है

तुमसे ही मेरी हर साँस है

खुशियों जैसे कोई जखीरा हो

या फिर कोहिनूर का हीरा हो

तू ही सबसे प्यारा है

मेरे आसमान का चमकता सितारा है 

तुम अब मेरी आन बान शान हो

तुम प्राणप्रिय, तुम ही प्राण हो।



तुम साथी हो जो इस जीवन में

खुशी बसने लगी है कानन में

फूल खिले कई इस रेतीले जमीं पर

तुम रब हो, सब हो मेरे दिलबर

मेरी सारी खुशियो के पिटारे हो तुम

दिल कहता है, कितने प्यारे हो तुम

बस एक ही गुजारिश है कि हमेशा साथ रहना

मैं तुम्हारा रहूंगा, तुम मुझे अपना कहना।


तुम साथ हो तो सब साथ है

जीवन तरंग लिए नवविश्वास है

है अतुलित, अतुलनीय प्रेम तुम्हारा

मुझे मिलती श्रद्धा की नई सांस है।

तुम जीवनऊर्जा की नव संचार

तुमसे ही जुड़ा है मन मेरा

तुम साथ हो तो सब हासिल

तुम  ही  हो  धन  मेरा।


 दिलकश हसीं सब होते अगर
तुम सा फिर नही होता मगर
बिछड़े हैं गुलशन तुम्हारे बिना
आशिक़ी है अधूरी तुम्हारे बिना
इश्क़ समझो मेरा तुम ओ जाने-जाँ
मर जायेंगे हम ये तो समझो जरा
ऐसे न तड़पाओ हमको पिया
सोचो हमारा अब होगा क्या
हम तो मरने को मिटने को तैयार हैं
ये न समझो ऐसे ही बेकार है
तुमसे मिलने को दिल ये बेकरार है
कह दो कि तुमको भी "हाँ प्यार है!"
अब ना सही जाए ये तड़पन प्रिये
आग सी लगी जो ये लगन है प्रिये!
समझो हालत मेरी, अब ना नादान बनो
अपने आशिक़ तो ना अनजान बनो
तुम पे जाँ लुटाने का वादा करूँ
तुम्हें अपना बनाने का इरादा करूँ
पतझड़ घेरे है दिल के आंगन को
अब ना सोचो, बरसने दो सावन को
अरे खुद न खुद को छिपा जालिमा
तेरे दिल में क्या है,  बता  जालिमा
कह दो के तुझको भी मेरा इंतज़ार है
इश्क़नामे पे  मेरे  ये  इजहार है
बेकरारी का आलम, दिल बेकरार है
कह दो कि तुमको भी "हाँ प्यार है!"

फूल सारे खिले, उसमें तू गुलाब है
वाजिब हैं सब मगर तू लाजवाब है
मेरे हाथों में हाथ तेरा इक खिताब है
तू खुली आँखों से देखा, सुनहरा ख्वाब है
नज़्म लाखों लिख दूं पर कह न सकूँ
तारीफ तेरी लफ़्ज़ों में कर न सकूँ
दिल जलता है मेरा, सुकून दिला
आ रूबरू हो, मुझे मुझसे मिला
तेरी आँखों मेरे देखा करूँ जो सच है
तू वो ना छिपा, जो सच है
मोहब्बत है जो अगर तो कह के बता
होंठो से ना सही निगाहों से जता
ये जताना कि करती तू इकरार है
कह दो कि तुमको भी "हाँ प्यार है!"
तू किसी से कमज़ोर नही
क्या तू मेरे सांसो की डोर नही
धड़कता है दिल मेरा 
तेरी मुस्कुराहटों की ओट से
क्या तुझे इतना भी पता नही
जी सकता नही हूं मैं तेरे बगैर कभी

वो अतीत है उसे भूल
जो है भविष्य तेरा उसे
क्यों हार मान रहा है तू यूँ ही किसी से
ज़िन्दगी से जरा लड़कर तो दिखा

तुझसे भी मजबूत होंगे जब इरादे तेरे
तोड़ न तो जो खुद से है वादे तेरे
तेरे दर्द का एहसास मुझे भी है हमदम
पर निबाह के दिखा जो है वादे तेरे

टूटूंगा मैं भी साथ ही तेरे
यकीन कर मैं भी हूँ पास ही तेरे
इस क़दर दर्द न दे खुद को ख्यालो में लाकर
मेरे ख्यालो में भी मैं हूँ पास तेरे

कोई कह रहा है कि कमज़ोर है तू
मजबूत बन, ना कि मजबूर है तू
कोई अनकही सी किताब ना बन
मेरी ज़िंदगी की कहानी जरूर है तू

अब तो समझ जा जज्बात मेरे
हर दर्द में बराबर का हिस्सेदार हूं तेरे
जो कह नही सका किसी से मुझे बता
मैं ही गम का पहरेदार तेरे

तेरे आंखों में आंसुओ को देख नही सकता
तुझे टूटते हुए कभी सरेख नही सकता
मुझे मालूम है पार कर लेगा हर चुनौती को तू
पर मेरे जज्बातों को तू निरेख नही सकता

सम्भल जा, ज़िन्दगी की डोर बड़ी नाज़ुक है
दिल का हाल मेरा तेरे ही जैसा है
अब उठ और लड़ जा खुद से
इस लड़ाई में हर कदम पर मैं साथ तेरे हूँ

 *करवाचौथ कथा*
वैसे तो हमारा बहुत कम ही झगड़ा होता था पर उस रोज़ किस बात पे हुआ हमें बिलकुल भी याद नहीं। बस इतना याद है कि ना प्राची हमसे बात कर रही थी और ना हम प्राची से। वजह शायद हमारी भूलने की बीमारी ही थी। हमें ठीक से याद नहीं।
प्राची पड़ोसन थी हमारी। हमारे चक्कर को दो साल होने को थे और इन दो सालों में हमने इतना तो जान ही लिया था कि प्राची भूखी नहीं रह पाती। पिछले साल हमने उसे बस इसीलिए डाँटा था कि बिन बियाह के हमारे लिए करवाचौथ का व्रत रखी हुई थी। पर वो मानती ही नहीं थी। पिछले साल तो पाँच रुपए वाली डेरीमिल्क से व्रत तोड़वाया था उसका।
जो लड़की खाए बिना एक घंटा नहीं रह सकती उस लड़की के लिए बिन पानी पिए करवा व्रत बर्दाश्त करना मल्लब असम्भव सी बात थी। वो फ़्लपी थी। गोलू मोलू सी। मेरा पर्सनल टेडीबीयर। ना डायटिंग का शौक़ था ना हेल्थ कोंसेस होने का दिखावा।
पर इस साल तो हमारा झगड़ा हो गया था। नवम्बर स्टार्ट की जिंगाट सर्दी और ये करवाचौथ का व्रत। क़हर था साहब क़हर।
अब करवा वरवा क्या होता है हमसे क्या मतलब? हम निकल गए सीनियर तेवारी जी के साथ ठेका पे। छः पेग टाइट होने के बाद भरी नमकीन के पैकेट में से नमकीन ढूँढते हुए बोले,
“कुछ भी हो जाए साला बियाह मत करना! सारी आज़ादी बंद हो जाएगी तुम्हारी!”
“अच्छा! अपना तो कूद के कर लिए। वो भी लवमैरिज” (हमने घूँट मारते हुए जवाब दिया)
“कर लिए तभी तो बता रहे हैं..” (तेवारी जी ने अपना दुःख कंठ मे समेटते हुए कहा)
“क्यों? क्या हुआ?” (हमने फिर से सवाल किया)
“अब सुबह से सुधा करवाचौथ का व्रत है। और चाहती थी कि हम भी रहें। अब बताओ यार हम रहेंगे तो मम्मी क्या बोलेंगी? क्या सोचेंगी? कहेंगी कि सन्तोसवा तो मेहंन्दरा हो गया है। एक्को बार बोली भी नहीं और चाहती है कि हम सब समझ भी जाएँ! बताओ भला होता है ऐसा कभी?” (तेवारी जी ने ओम् पुरी के अन्दाज़ मे एक झोंके मे अपनी गाथा गा दी!)
साला करवा चौथ सुनते ही हमारा माथा टनक गया। हमने आश्चर्यचकित मुद्रा में कहा “आज करवा है?” और ठेके से बाहर निकलने लगे। जाते जाते तेवारी जी को धीरे से बोले: “एक्को बार बोली भी नहीं और चाहती है कि हम सब समझ भी जाएँ! तो लड़कियों की इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है भैया। ये मल्लब इनबिल्ड है” और निकल लिए। तेवारी जी आवाज़ देते रहे पर हमने एक ना सुनी।
मुटरसाइकिल स्टार्ट की और फरफ़राते हुए घर पहुँचे। टाईम देखे तो साढ़े दस होने को थे।
हम तड़तड़ा के छत की तरफ भागे। और ऊपर पहुँच के गेट के पास खड़े हो गए और अंदर से झाँकने लगे। सामने नजा रा वही था जैसा हमने सोचा था। मख़मल का कुर्ता पहने और रेशम का शोल चढ़ाए मैडम कभी आसमान में चाँद को निहारती कभी हमारी छत की तरफ़। नीचे से उनकी मम्मी अवधी में आवाज़ लगायी जा रही थीं, “प्राचिया! चाँद निकला के नाय?(प्राची चाँद निकला की नहीं?)”
“नाहीं मम्मी! अब्बय नाय! (नहीं मम्मी अभी नहीं!)
“का जानि कब निकलेगा! पापौ नहीं आए अबहिन तक तोहरे(क्या पता कब निकलेगा! पापा भी नहीं आए अभी तक तुम्हारे!)”
पता नही दुनिया को चाँद की क्या ज़रूरत थी जबकि प्राची तो इस जहान में मौजूद ही थी। प्राची बार बार आसमान में देखती और फिर बार बार मेरे छत के गेट पे। कुछ देर हम उसे ख़ुद का इंतजार करते हुए निहारते रहे और फिर हमने गेट खोल ही दिया।
“रे प्राचिया! चाँद निकला के नाय?” (उसकी मम्मी ने फिर से वही सवाल दोहराया)
“हाँ मम्मी निकल आवा चाँद”(हाँ मम्मी निकल आया चाँद) प्राची ने छत के जाल से एक टक़ हमको देखते हुए कहा।
“मेरा माल!” (हमने मस्कुरा के बुदबुदा के कहा)
इतनी में आंटी दौड़ते भागते छत पे आगयी।
ऊपर देखा तो चाँद नदारद था। और प्राची की नज़रें हमारी छत पे। प्राची के सर पे हल्के से हाथ मरते हुए अंटी ने कहा
“सुबह से भूखी हयी, दुई दावँ नहायेन है। जड़ात हई और तोहें मज़ाक़ सूझत बा(सुबह से भूखे हैं, दो बार नहा चुके हैं, जाड़ा लग रहा है और तुम्हें मज़ाक़ सूझ रहा है!)”
आंटी ने हमको देखा और कहा
“भाइया निकले के ना निकले चाँद?(बेटा चाँद निकलेगा कि नहीं?)”
“अभी तो निकला था आंटी, फिर छुप गया।”
“हाँ हमका देखतय लुकाए गा कहूँ!(हाँ हमको देखते ही छिप गया कहीं) कहकर आंटी वापस नीचे चली गयीं।
प्राची ने हमारी तरफ़ झूठे ग़ुस्से वाली अदा बिखेरते हुए कहा “हुँह” हम मुस्कुराए और जेब से एक पैकेट निकाल के उसकी छत पे फ़ेक दिए। पैकेट खोल के वो जोर से हँसी। पैकेट खोला तो उसमें मीठा पान था। अपने दुपट्टे की आँड़ से हमको देखी और पान चबाने लगी।
हमने दिल पे दोनो हाथ रख के उसके क़ातिल होने का इशारा किया। और वो हुँह करते हुए दोबारा क़त्ल कर गयी।
इतने में हमारा छोटा भाई छत पे आया और बोला कि “भैया तेवारी भैया बार बार फ़ोन कर रहे हैं!” हम भाग के नीचे पहुँचे। वापस काल किया तो तेवारी जी बोले
"यार आज तो हम तुम्हारे भरोसे दारू पीने आए थे हम और तुम चले गए। पईसा नहीं है हमारे पास।
ये सब हमको जाने नहीं दे रहे और वहाँ सुधा बेचारी भूखी प्यासी मेरा इंतज़ार कर रही है।”
सुधा भाभी का नाम ना लेते तेवारी जी तो घण्टा ना जाते ठेके पे हम। पर भाभी बहुत मानती थीं हमको तो जाना पड़ा।
हमने मुटरसाइकिल स्टार्ट की और ठेका पहुँच के तेवारी जी की ज़मानत ली। पीछे बैकग्राउण्ड में गाना बज रहा था..
“पान खाए सइयाँ हमारो! मख़मल के कुर्ता और होंठ लाल लाल। पान खाए सइयाँ हमारो।”
करवा मुबारक!
 एक दिन थॉमस एल्वा एडिसन जो कि प्रायमरी स्कूल का विद्यार्थी था,अपने घर आया और एक कागज अपनी माताजीको दिया और बताया:-
" मेरे शिक्षक ने इसे दिया है और कहा है कि इसे
अपनी माताजी को ही देना..!"
उक्त कागज को देखकर माँ की आँखों में आँसू आ
गये और वो जोर-जोर से पड़ीं,जब एडीसन ने पूछा कि
"इसमें क्या लिखा है..?"
तो सुबकते हुए आँसू पोंछ कर बोलीं:-
इसमें लिखा है..
"आपका बच्चा जीनियस है हमारा स्कूल छोटे
स्तर का है और शिक्षक बहुत प्रशिक्षित नहीं है, इस प्रतिभाशाली बच्चे को हम नही पढ़ा पा रहें,इसे आप स्वयं शिक्षा दें ।
कई वर्षों के बाद उसकी माँ का स्वर्गवास हो
गया।थॉमस एल्वा एडिसन जग प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन
गये।उसने कई महान अविष्कार किये,एक दिन वह अपने पारिवारिक वस्तुओं को देख रहे थे, तभी आलमारी के एक कोने में उसने कागज का एक टुकड़ा देखा.. उत्सुकतावश उसे खोलकर देखा और पढ़ने लगा।
वो वही काग़ज़ था..
उस काग़ज़ में लिखा था-
"आपका बच्चा बौद्धिक तौर पर बहुत कमजोर है, पढ़ाई के लायक नहीं है...और उसे अब और इस स्कूल में नहीं आना है।"
एडिसन आवाक रह गये और घण्टों रोते रहे,
फिर अपनी डायरी में लिखा
*
"एक महान माँ ने
बौद्धिक तौर पर कमजोर बच्चे को सदी का
महान वैज्ञानिक बना दिया"
*
यही सकारात्मकता और सकारात्मक माता-पिता की शक्ति है ।।
 😝😝😝😝😝🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣
आज हिंदी के प्रोफेसर साहब ने  हरिया से प्रश्न पूछा 
🤔🤔🤔🤔
.
निम्नलिखित पद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या करो हरिया..??
.
जब लगावेलु तू लपिस्टिक....
हिलेला आरा डिस्टिक....
जिल्हा टॉप लागेलू ....
.
*हरिया* :- जी प्रोफेसर सर 
प्रस्तुत पद्यांश हमारे समाज में व्याप्त टैम्पो, टैक्सी, ट्रैक्टर, ट्राली, नाई व पान की दुकानों पर बजने वाले....
और....
श्रमजीवी वर्ग के आमोद प्रमोद में प्रयुक्त......
भोजपुरी गीतों की श्रेणी के एक अति-प्रचलित गीत से लिया गया है.....
.
 प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका के अनुपम सौंदर्य का घनघोर वर्णन किया है....
और....
उसके कृत्रिम सौंदर्य की तुलना स्थान विशेष पर आने वाले भूकम्प से की है.....
.
प्रस्तुत पद्यांश में नायक अपनी प्रेयसी के रूप को.....
देख अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा है....
और....
वह इस प्रसन्नता में नायिका के श्रृंगार की तुलना रिक्टर पैमाने पर......
प्रमाणित करने को अति आतुर प्रतीत हो रहा है.....
नायक अपनी नायिका के सौंदर्य के विषय में.....
भाव-विह्वल हो कर प्रख्यापित करता है.....
.
कि.....
.
हे लॉलीपॉप रुपी जिले की उच्च सुंदरी.....
जब भी तुम अपने अधरों पर कृत्रिम रंगों का लेपन करती हो....
 तो तुम्हारे मुख की कांति दर्शनीय होती है....
और....
तुम्हारे रूप के इस समग्र भार से.....
आरा जिले के समस्त निवासियों के हृदय में....
एक भूचाल सा आ जाता है....
.
रूप को रिक्टर पैमाने पे नापा गया है.....
यह वैज्ञानिक सोच है.....
.
अधरों पर किये गये लेपन की तुलना....
अमेरिका द्वारा आई एस पर गिराये गये बम से की जा सकती है.....
.
लपिस्टिक और डिस्टिक जैसे अंग्रेजी शब्दों से....
आये भाषा का प्रवाह अतुलनीय है....
.
इस पद्यांश में श्रृंगार रस का समावेश है....
.
संयोग श्रृंगार विशिष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है....
.
पद्यांश में लपिस्टिक-डिस्टिक जैसे शब्द....
अन्त्यानुप्रास अलंकार दर्शाते हैं....
अधरों पर लेपित कृत्रिम रंग का भार....
और...
उससे आने वाला भूचाल अतिशयोक्ति अलंकार दिखाता है....
.
जिल्हा-टॉप में तत्पुरुष समास 
('में' विभक्ति शब्द के लोप से) है.....
.
प्रोफेसर साहब इधर कई दिन से गायब है।हरिया का नाम साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए भेजा जा रहा है।
 *एक वकील साहब  बहुत दिनों पर कोर्ट गए थे औऱ अपने काम से निवृत होकर कोर्ट  से घर लौट रहे थे।* 
रास्ते में एक नदी पड़ती थी। नदी पार करने लगे तो वहाँ का दृश्य बड़ा मनोरम लगा और उन्हें जाने क्या सूझा। एक पत्थर पर बैठकर अपने पौकेट से पेन और फाइल से कागज निकालकर एक बेल लिखने लगे ।
*अचानक….,* 
हाथ से पेन 🖊 फिसला और डुबुक ….
पानी में डूब गया। वकील साहब  परेशान। आज ही सुबह पूरे 10 रूपये में खरीदा था।
कातर दृष्टि से कभी इधर कभी उधर देखते, पानी में उतरने का प्रयास करते, फिर डर कर कदम खींच लेते।
एकदम नया पेन था, छोड़कर जाना भी मुनासिब न था ।
*अचानक…….* 
पानी में एक तेज लहर उठी और साक्षात् *वरुण देव* सामने थे।
वकील साहब हक्के -बक्के रह गये।
*कुल्हाड़ी वाली कहानी याद आ गई।* 🤔🤔
वरुण देव ने कहा, ”वकील साहब , इतने परेशान क्यों हैं ?
 क्या चाहिए आपको  ?
वकील साहब अचकचाकर बोले,  "प्रभु ! आज ही सुबह एक पेन खरीदा था ।पूरे 10 रूपये का था वह ।
देखिए ढक्कन भी मेरे हाथ में है।
यहाँ पत्थर पर बैठा बेल लिख रहा था कि अचानक  पानी में गिर गया।
प्रभु बोले, ”बस इतनी सी बात ! अभी निकाल लाता हूँ ।”घबराइए मत आपकी पसीने की कमाई यूं ही नहीं बर्बाद होगी ।
प्रभु ने डुबकी लगाई और चाँदी का एक चमचमाता पेन लेकर बाहर आ गए।
बोले – ये है आपका पेन ?
वकील साहब  बोले – ना प्रभु। मुझ गरीब को कहाँ ये चांदी का पेन नसीब। ये मेरा नहीं।
प्रभु बोले – कोई बात नहीं, एक डुबकी और लगाता हूँ।
डुबुक …..
इस बार प्रभु सोने का रत्न जड़ित पेन लेकर आये और बोले, “लीजिये वकील साहब  अपना पेन।”
वकील साहब बोले – ”क्यों मजाक कर रहे हैं  प्रभु। इतना कीमती पेन और वो भी मेरा। मैं एक वकील हूँ कोई राजनेता नहीं ।
थके हारे प्रभु ने कहा,  "चिंता ना करो वकील साहब 
अबकी बार  फाइनल डुबकी होगी और आपकी पेन आपके पास होगी ।
डुबुक …. 
बड़ी देर बाद प्रभु पानी से उपर आये तो
हाँथमें वकील साहब का वहीं था जो उन्होनें आज ही सुबह दस रुपए में खरीदा था ।
बोले – ये है क्या ?
वकील साहब चिल्लाए – हाँ यही है, यही है प्रभु ।
प्रभु ने कहा – आपकी इमानदारी ने मेरा दिल जीत लिया वकील साहब 
आप सच्चे वकील हैं। आप ये तीनों पेन ले लो।
वकील साहब ख़ुशी-ख़ुशी घर को चले।
कहानी अभी बाकी है दोस्तों 🤞
वकील साहब ने घर आते ही सारी कहानी पत्नी जी को सुनाई और
चमचमाते हुए कीमती पेन भी दिखाए।
पत्नी को विश्वास नहीं हुआ और
बोली कि नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता आप किसी के चुराकर लाये हो। 😡
बहुत समझाने पर भी जब पत्नी ना मानी तो वकील साहब उसे घटना स्थल की ओर ले गये।
दोनों उस पत्थर पर बैठे, 
वकील साहब ने बताना शुरू किया था कि कैसे-कैसे सबकुछ हुआ। 
पत्नी एक-एक कड़ी को किसी शातिर पुलिसिये की तरह जोड़ रही थी  और घटना स्थल की मुआयना कर रही थी कि
अचानक …
डुबुक.. !!!
पत्नी का पैर फिसला और वो गहरे पानी में समा गई। वकील साहब की आँखों के आगे तारे नाचने लगे ये क्या हुआ ! डर लगने लगा कि कहीं ससुराल वाले 304 (B) का उन पर केस ना कर दें । 
जोर -जोर से रोने लगे।
तभी अचानक ……
पानी में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगीं। नदी का सीना चीरकर साक्षात वरुण देव प्रकट हुए।
बोले – क्या हुआ वकील साहब  ? अब क्यों रो रहे हो ?
वकील साहब  ने रोते हुए घटना प्रभु को सुनाई। बोले प्रभु मैं तो बर्बाद हो जाऊँगा और नाहक ही आजीवन कारावास को झेलुँगा।क्यूँकि मेरी पत्नी पानी में डूब गई है।  और उसके मायके वाले दहेज हत्या के मुकदमे में मुझे बर्बाद कर देंगे।
 
प्रभु बोले – रोओ मत। धीरज रखो। मैं अभी आपकी पत्नी को निकाल कर लाता हूँ।
प्रभु ने डुबकी लगाईं,
और …..
थोड़ी देर में,
वो कैटरीना कैफ को लेकर प्रकट हुए।💃
बोले –वकील साहब 
क्या यही आपकी पत्नी जी हैं ?
वकील साहब  ने एक क्षण सोचा और चिल्लाए, "हाँ यही है, यही है।"
अब चिल्लाने की बारी प्रभु की थी 
बोले – दुष्ट वकील ठहर अभी तुझे श्राप देता हूँ ।😡
वकील साहब  बोले – माफ़ करें प्रभु। 🙏🙏
मेरी कोई गलती नहीं। अगर मैं इसे मना करता तो आप अगली डुबकी में रिया चक्रवर्ती को ले लाते। 💃
मैं फिर भी मना करता तो आप मेरी पत्नी को लाते। फिर आप खुश होकर तीनों मुझे दे देते। 
अब आप ही बताओ प्रभु,
इस कोरोना के कारण हम वकीलों को जीने के लाले पड़े हैं। इस कोरोना ने हम वकीलों की हालत पहले ही खराब कर रखी है ।अब मैं तीन-तीन बीबियाँ कैसे पालता?
क्षमा करें प्रभु।
इसलिये सोचा, कैटरीना ही ठीक है।
प्रभु बेहोश होकर पानी में गिर गये।
 ☀️...अपना काम स्वयं करिए...☀️
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एक बुद्धिमान लवा पक्षी का परिवार किसान के खेतों में रहता था। उनका घोंसला बहुत आरामदेह था। परिवार में सभी सदस्यों में अथाह प्रेम था
एक सुबह अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में जाने से पहले बच्चों की मां ने कहा- देखो बच्चों किसान बहुत जल्दी अपनी फसल काट कर आएगा। ऐसी स्थिति में हमें अपना नया घर खोजना पड़ेगा। तो तुम सब अपने कान और आंखें खुली रखना और जब मैं शाम को लौटकर आऊं तो मुझे बताना कि तुमने क्या देखा और क्या सुना?
शाम को जब लवा अपने घर लौटी तो उसने अपने परिवार को परेशान हाल में पाया। उसके बच्चे कहने लगे- हमें जल्दी ही यह स्थान छोड़ देना चाहिए। किसान अपने पुत्रों के साथ अपने खेत की जांच करने आया था। वह अपने पुत्रों से कह रहा था। फसल तैयार है, हमें कल अपने सभी पड़ोसियों को बुलाकर फसल काट लेनी चाहिए।
लवा ने अपने बच्चों की बातें ध्यानपूर्वक सुनीं, फिर बोली- अरे कोई खतरा नही। कल भी होशियार रहना। किसान जो कुछ करे या कहे, वह मुझे शाम को बताना।
दूसरे दिन शाम को जब लवा वापस लौटी तो उसने अपने बच्चों को बहुत भयभीत पाया। मां को देखते ही वे चिल्लाए- किसान दुबारा यहां आया था। कह रहा था, यह फसल जल्दी ही काटी जानी चाहिए। अगर हमारे पड़ोसी हमारी सहायता नहीं करते तो हम अपने रिश्तेदारों को बुलाएंगे। जाओ, अपने चाचा और चचेरे भाइयों आदि से कहो कि कल आकर फसल काटने में हमारी सहायता करें।
लवा मुस्कराई बोली- प्यारे बच्चों चिन्ता मत करो। किसान के रिश्तेदारों के पास तो उनकी अपनी ही फसल काटने के लिए पड़ी है। वे भला यहां फसल काटने क्यों आएंगे।
अगले दिन लवा फिर बाहर चली गई। जब वह शाम को लौटी तो बच्चे उसे देखते ही चिल्लाए- ओह मां यह किसान आज कह रहा था कि यदि उसके रिश्तेदार और पड़ोसी फसल काटने नहीं आते तो वह खुद अपनी फसल काटेगा। तो अब तो यहां रहने का कोई लाभ नहीं है।
तब तो हमें शीघ्र ही यहां से चलना चाहिए। लवा बोली- यह मैं इसलिए कह रही हूं कि जब कोई किसी कार्य के लिए किसी अन्य पर निर्भर करता है तो वह कार्य कभी पूरा नहीं होता। परंतु वही व्यक्ति जब उस कार्य को स्वयं करने की ठान लेता है तो संसार की कोई भी शक्ति उसे उस कार्य को करने से नहीं रोक सकती। तो यही वह समय है,जब हमें अपना घर बदल लेना चाहिए।
शिक्षा- यदि अपना काम स्वयं करने की आदत खुद में विकसित कर लें,तो हर क्षेत्र में सफलता की उम्मीद रहेगी.
 ☀️'बुरे समय में सयंम रखें'☀️
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जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।
वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।
उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।
मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ?
क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ? वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?
हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।
शिक्षा - हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। निर्णय ईश्वर करता है हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।
 ☀️'आसानी से विश्वास नहीं करें'☀️
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एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया।
शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”
शिकारी बोला, “ मैं तुम्हे मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।”
बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।”
“बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।
बाज ने बताना शुरू किया-
मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना।
पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना।
और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुखी मत होना।
शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रस्ते आगे बढ़ने लगा।
कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “ शिकारी, एक बात बताओ…अगर मैं तुम्हे कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”
शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “ क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?”
बाज बोला, “ दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा इसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीबी भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।”
यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।
बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची साखा पर जा बैठा और बोला, “ कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हे एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नही किया…दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।
यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा…तभी बाज फिर बोला, तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।
 इस कहानी - से हमें ये सीख मिलती है कि हमे किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुक्सान होने या असफलता मिलने पर दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।
 
    'जो बोएगा वही पाएगा'....✍️
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एक गांव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का कार्य करता था ! एक दिन उसकी बीवी ने उसे मक्खन तैयार करके दिया वह उसे बेचने शहर गया वह मक्खन गोल पेड़े की शक्ल में था तथा हर पेड़े का वजन 1 किलो था !
शहर में किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को बेच  दिया और दुकानदार से चाय चीनी तेल साबुन वगैरह खरीदकर अपने गांव रवाना हो गया
 
किसान के जाने के बाद दुकानदार ने एक पेड़े का वजन किया तो पेड़ा 900 ग्राम का निकला फिर तो उस दुकानदार ने हर पेड़े का वजन किया परंतु सभी 900 ग्राम के निकले अगले हफ्ते किसान फिर से हमेशा की तरह मक्खन लेकर दुकानदार की दहलीज पर चढ़ा तो दुकानदार ने चिल्लाते हुए किसान से कहा दफा हो जाओ किसी बेईमान और धोखेबाज शख्स से मुझे कारोबार नहीं करना 900 ग्राम मक्खन को 1 किलो बताकर बेचने वाले शख्स की शक्ल भी नहीं देखना चाहता तब किसान बड़ी विनम्रता से बोला भाई हम तो गरीब,बेचारे लोग हैं हमारे पास माल तोलने के लिए बाट (वजन)  खरीदने की हैसियत कहां है ! मैं तो आपसे जो 1 किलो चीनी लेकर जाता हूं ! उसी को तराजू के एक पलड़े में रखकर दूसरे पलड़े में उतने ही वजन का मक्खन तोल कर ले आता हूं.
भाइयों हम दूसरों को देंगे वही लौटकर आएगा चाहे वह..इज्जत हो,सम्मान हो या चाहे धोखा हो !
    ☀️'पेड़ का इंकार☀️'
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एक बड़ी सी नदी के किनारे कुछ पेड़ थे जिसकी टहनियां नदी के धारा के ऊपर तक भी फैली हुई थीं।
एक दिन एक चिड़ियों का परिवार अपने लिए घोसले की तलाश में भटकते हुए उस नदी के किनारे पहुंच गया।
 
चिड़ियों ने एक अच्छा सा पेड़ देखा और उससे पूछा, “हम सब काफी समय से अपने लिए एक नया मजबूत घर बनाने के लिए वृक्ष तलाश रहे हैं, आपको देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई, आपकी मजबूत शाखाओं पर हम एक अच्छा सा घोंसला बनाना चाहते हैं ताकि बरसात शुरू होने से पहले हम खुद को सुरक्षित रख सकें। क्या आप हमें इसकी अनुमति देंगे?”
पेड़ ने उनकी बातों को सुनकर साफ इनकार कर दिया और बोला-
मैं तुम्हे इसकी अनुमति नहीं दे सकता…जाओ कहीं और अपनी तलाश पूरी करो।
चिड़ियों को पेड़ का इनकार बहुत बुरा लगा, वे उसे भला-बुरा कह कर सामने ही एक दूसरे पेड़ के पास चली गयीं।
उस पेड़ से भी उन्होंने घोंसला बनाने की अनुमति मांगी।
 
इस बार पेड़ आसानी से तैयार हो गया और उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी वहां रहने की अनुमति दे दी।
चिड़िया का घोंसला
चिड़ियों ने उस पेड़ की खूब प्रशंसा की और अपना घोंसला बना कर वहां रहने लगीं।
समय बीता… बरसात का मौसम शुरू हो गया। इस बार की बारिश भयानक थी…नदियों में बाढ़ आ गयी…नदी अपने तेज प्रवाह से मिटटी काटते-काटते और चौड़ी हो गयी…और एक दिन तो ईतनी बारिश हुई कि नदी में बाढ़ सा आ गयी तमाम पेड़-पौधे अपनी जड़ों से उखड़ कर नदी में बहने लगे।
और इन पेड़ों में वह पहला वाला पेड़ भी शामिल था जिसने उस चिड़ियों को अपनी शाखा पर घोंसला बनाने की अनुमति नही दी थी।
उसे जड़ों सहित उखड़कर नदी में बहता देख चिड़ियों कर परिवार खुश हो गया, मानो कुदरत ने पेड़ से उनका बदला ले लिया हो।
चिड़ियों ने पेड़ की तरफ उपेक्षा भरी नज़रों से देखा और कहा, “एक समय जब हम तुम्हारे पास अपने लिए मदद मांगने आये थे तो तुमने  साफ इनकार कर दिया था, अब देखो तुम्हारे इसी स्वभाव के कारण तुम्हारी यह दशा हो गई है।”
इसपर इस पेड़ ने मुस्कुराते हुए उन चिड़िया से कहा-
मैं जानता था कि मेरी उम्र हो चली है और इस बरसात के मौसम में मेरी कमजोर पड़ चुकी जडें टिक नहीं पाएंगी… और मात्र यही कारण था कि मैंने तुम्हें इनकार कर दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारे ऊपर विपत्ति आये।
फिर भी तुम्हारा दिल दुखाने के लिए मुझे क्षमा करना… और ऐसा कहते-कहते पेड़ पानी में बह गया।  
चिड़ियाँ अब अपने व्यवहार पर पछताने के अलावा कुछ नही कर सकती थीं।
बंधुओ,अक्सर हम दूसरों के रूखे व्यवहार या ‘ना’ का बुरा मान जाते हैं, लेकिन कई बार इसी तरह के व्यवहार में हमारा हित छुपा होता है। खासतौर पे जब बड़े-बुजुर्ग या माता-पिता बच्चों की कोई बात नहीं मानते तो बच्चे उन्हें अपना दुश्मन समझ बैठते हैं जबकि सच्चाई ये होती है कि वे हमेशा अपने बच्चों की भलाई के बारे में ही सोचते हैं।
इसलिए, यदि आपको भी कहीं से कोई ‘इनकार’ मिले तो उसका बुरा ना माने क्या पता उन चिड़ियों की तरह एक ‘ना’ आपके जीवन से भी विपत्तियों को दूर कर दे!
 ☀️'आलस को दूर कर देने वाली कहानी'☀️
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दुर्गादास नाम का एक धनी किसान था, वह बहुत आलसी था वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था
उसके आलस और कुप्रबन्ध से उसके घर की व्यवस्था बिगड़ गयी उसको खेती में हानि होने लगी गायों के दूध-घी से भी उसे कोई अच्छा लाभ नहीं होता था
एक दिन दुर्गादास का मित्र हरिश्चंद्र उसके घर आया हरिश्चंद्र ने दुर्गादास के घर का हाल देखा उसने यह समझ लिया कि समझाने से आलसी दुर्गादास अपना स्वभाव नहीं छोड़ेगा इसलिये उसने अपने मित्र दुर्गादास की भलाई करने के लिये उससे कहा- मित्र तुम्हारी विपत्ति देखकर मुझे बड़ा दुःख हो रहा है तुम्हारी दरिद्रता को दूर करने का एक सरल उपाय मैं जानता हूँ
दुर्गादास- कृपा करके वह उपाय तुम मुझे बता दो मैं उसे अवश्य करूँगा
हरिश्चंद्र उससे कहा सब पक्षियों के जागने से पहले ही मानसरोवर रहने वाला एक सफेद हंस पृथ्वी पर आता है वह दो पहर दिन चढ़े लौट जाता है यह तो पता नहीं कि वह कब कहाँ आवेगा; किन्तु जो उसका दर्शन कर लेता है, उसको कभी किसी बात की कमी नहीं होती
दुर्गादास बोला कुछ भी हो, मैं उस हंस का दर्शन अवश्य करूँगा
हरिश्चंद्र चला गया, दुर्गादास दूसरे दिन बड़े सबेरे उठा, वह घर से बाहर निकला और हँस की खोज में खलिहान में गया वहाँ उसने देखा कि एक आदमी उसके ढेर से गेहूँ अपने ढेर में डालने के लिये उठा रहा है दुर्गादास को देखकर वह लज्जित हो गया और क्षमा माँगने लगा
खलिहान से वह घर लौट आया और गोशाला में गया, वहाँ का रखवाला गाय का दूध दुहकर अपनी स्त्री के लोटे में डाल रहा था दुर्गादास ने उसे डांटा घरपर जलपान करके हंस की खोज में वह फिर निकला और खेत पर गया उसने देखा कि खेत पर अबतक मजदूर आये ही नहीं थे, वह वहाँ रुक गया जब मजदूर आये तो उन्हें देर से आने का उसने उलाहना दिया इस प्रकार वह जहाँ गया, वहीं उसकी कोई-न-कोई हानि रुक गयी
सफेद हंस की खोज में दुर्गादास प्रतिदिन सबेरे उठने और घुमने लगा अब उसके नौकर ठीक काम करने लगे उसके यहाँ चोरी होनी बंद हो गयी पहले वह रोगी रहता था अब उसका स्वास्थ्य भी ठीक हो गया
जिस खेत से उसे थोडा बहुत अन्न मिलता था, उससे अब ज्यादा मिलने लगा गोशाला से दूध बहुत अधिक आने लगा
एक दिन फिर दुर्गादास का मित्र हरिश्चंद्र उसके घर आया, दुर्गादास ने कहा- मित्र सफेद हंस तो मुझे अब तक नहीं दिखा किन्तु उसकी खोज में लगने से मुझे लाभ बहुत हुआ है
हरिश्चंद्र हँस पड़ा और बोला- परिश्रम करना ही वह सफेद हंस है परिश्रम के पंख सदा उजले होते हैं जो परिश्रम न करके अपना काम नौकरों पर छोड़ देता है, वह हानि उठाता है और जो स्वयं करता है, वह सम्पत्ति और सम्मान पाता है
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह कहानी आपके आलस को अवश्य दूर कर देगी...
 
            ''आप जमा करेंगे वही आपको 
              आखरी समय काम आयेगा''
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1 दिन एक राजा ने अपने 3 मन्त्रियो को दरबार में बुलाया, और तीनो को आदेश  दिया के एक एक थैला ले कर बगीचे  में  जाएं और वहां से अच्छे अच्छे फल जमा  करें .  
वो तीनो अलग अलग बाग़ में प्रविष्ट हो  गए ,
पहले  मन्त्री  ने  कोशिश  की  के  राजा  के  लिए  उसकी पसंद  के अच्छे अच्छे  और मज़ेदार फल जमा किए जाएँ ,उस ने  काफी मेहनत के बाद बढ़िया और ताज़ा  फलों से थैला भर लिया ,
दूसरे मन्त्री ने सोचा राजा हर फल का परीक्षण तो करेगा नहीं , इस लिए उसने  जल्दी जल्दी थैला भरने  में ताज़ा ,कच्चे ,गले सड़े फल भी थैले में भर  लिए ,
तीसरे मन्त्री ने सोचा राजा की नज़र तो  सिर्फ भरे हुवे थैले  की तरफ होगी  वो  खोल कर देखेगा भी नहीं कि इसमें क्या  है , उसने  समय बचाने  के  लिए  जल्दी  जल्दी  इसमें  घास,और पत्ते भर लिए और वक़्त बचाया .
दूसरे दिन राजा ने तीनों मन्त्रियो को उनके थैलों समेत दरबार में बुलाया और उनके  थैले खोल कर भी नही देखे और आदेश दिया कि , तीनों  को उनके थैलों  समेत  दूर स्थान के एक जेल में ३ महीने क़ैद  कर दिया जाए .
अब जेल में उनके पास खाने पीने  को  कुछ भी नहीं था सिवाए उन थैलों  के ,
तो  जिस मन्त्री ने अच्छे अच्छे फल  जमा किये वो तो मज़े से खाता रहा और 3 महीने गुज़र भी गए ,
फिर दूसरा मन्त्री जिसने ताज़ा ,कच्चे  गले सड़े फल जमा किये थे, वह कुछ  दिन तो ताज़ा फल  खाता रहा फिर  उसे ख़राब फल खाने पड़े ,जिस  से  वो  बीमार हो गया और बहुत तकलीफ  उठानी पड़ी .
और तीसरा मन्त्री जिसने थैले में सिर्फ  घास और पत्ते जमा किये थे वो कुछ  ही दिनों में भूख से मर गया .
अब आप अपने आप से पूछिये  कि  आप क्या जमा कर रहे  हो  ??
आप  इस समय जीवन के बाग़ में हैं , जहाँ  चाहें  तो अच्छे कर्म जमा करें .चाहें तो बुरे कर्म...
मगर याद रहे...जो आप जमा करेंगे वही आपको आखरी समय काम आयेगा,क्योंकि दुनिया क़ा
राजा आपको चारों ओर से देख रहा है..
   'संतुष्ट जीवन ही ईश्वर का प्रसाद हैं!
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एक गाँव में एक व्यक्ति था जिसका एक छोटा सा घर था और वो बस आज में जीने जितना कमाता था उसे कल का कोई भय ना था! उसकी ईश्वर में अपार भक्ति थी उसका मानना था ईश्वर जो करता हैं भले के लिए करता हैं! उसके चेहरे पर ये शांति का भाव देखकर कई लोगो को उस पर क्रोध आता था सच तो यह था लोग उससे जलते थे! आज के समय में कोई किसी को संतुष्ट देखकर भी जलता हैं पर वह व्यक्ति सभी को सिखाता था ईश्वर में विश्वास रखे वो जो करता हैं अच्छे के लिए करता हैं!
एक दिन गाँव में एक बच्चे की उंगली दरवाजे में फँस गई और कट गई वो बहुत रोया, पास के दवाखाने ले जा कर उसकी मलहम पट्टी की गई लेकिन उसकी आधी ऊँगली को नहीं जोड़ा जा सका! उसकी माँ बहुत रो रही थी उसके पिता भी बहुत दुखी थे तभी वो संतुष्ट व्यक्ति वहाँ से गुजरा उसने पूरी बात सुनी और बच्चे और उसके माता- पिता को समझाया और कहा- भगवान में विश्वास रखे वो जो करता अच्छे के लिए करता! यह सुनकर बच्चे के माँ-बाप और गाँव के लोगों को गुस्सा आ गया! हमारे बच्चे की ऊंगली कट गई इसमें आपको और आपके भगवान को क्या अच्छा दिख रहा हैं! वो व्यक्ति मुस्कुराता हुआ बोलता देखों सज्जन वक्त तुम्हे सब बताएगा और वहाँ से चला जाता हैं!
 
छह महीने बाद ……
गाँव में कुछ अन्धविश्वासी जंगली लोगों की टोली के कारण भय उत्पन्न हो गया. वे लोग हर एक गाँव से एक बच्चे को ले जाते और उसकी बलि देते उनका मानना था इससे खुशहाली आती हैं! अब इस गाँव की बारी थी. वे लोग उसी बच्चे को उठाकर बलि देने ले गए जिसकी छोटी ऊँगली कट गई थी. उसके माँ बाप का रो रोकर बुरा हाल था पर उन लोगो ने एक ना सुनी उनके अनुसार जिसकी बलि दी जाती हैं वो शहीद माना जाता हैं. जब उस बच्चे को बलि के लिए तैयार किया गया तब उस टोली के मुखियाँ ने देखा बच्चे कि एक ऊँगली कटी हुई हैं. इस तरह उन लोगो ने इस बच्चे को छोड़ दिया और वहाँ से चले गये क्यूंकि उन्हें एक गाँव से एक ही बच्चा लेना था. बच्चा सही सलामत घर पहुँचाया गया. सभी ख़ुशी का ठिकाना ना था.तभी वो संतुष्ट व्यक्ति आया. बच्चे के माँ बाप ने उसके हाथ जोड़कर कहा भाई आप सही थे ईश्वर जो करता हैं अच्छे के लिए करता हैं.
 
Moral Of  The Hindi Story....
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ऐसा नहीं कि अन्धविश्वासी बने और भगवान पर सब कुछ छोड़ कर्महीन बन जाए. लेकिन अगर कोई दुर्घटना घटी है तो उसे लेकर ना बैठे ! आगे की ओर देखें क्यूंकि जीवन में जो होता हैं उसका कोई न कोई मकसद या रहस्य जरुर होता हैं

 ☀️"अहंकार"☀️

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बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक मूर्तिकार ( मूर्ति बनाने वाला ) रहता था| वह ऐसी मूर्तियाँ बनता था, जिन्हें देख कर हर किसी को मूर्तियों के जीवित होने का भ्रम हो जाता था ! आस-पास के सभी गाँव में उसकी प्रसिद्धि थी, लोग उसकी मूर्तिकला के कायल थे ! इसीलिए उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था.


जीवन के सफ़र में एक वक़्त एसा भी आया जब उसे लगने लगा की अब उसकी मृत्यु होने वाली है, वह ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाएगा ! उसे जब लगा की जल्दी ही उसकी मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी में पड़ गया ! यमदूतों को भ्रमित करने के लिए उसने एक योजना बनाई ! उसने हुबहू अपने जैसी दस मूर्तियाँ बनाई और खुद उन मूर्तियों के बीच जा कर बैठ गया !


यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी ग्यारह आकृतियों को देखकर दंग रह गए| वे पहचान नहीं कर पा रहे थे की उन मूर्तियों में से असली मनुष्य कौन है ! वे सोचने लगे अब क्या किया जाए ! अगर मूर्तिकार के प्राण नहीं ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिए मूर्तियों को तोड़ा गया तो कला का अपमान हो जाएगा ! अचानक एक यमदूत को मानव स्वाभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार को परखने का विचार आया| उसने मूर्तियों को देखते हुए कहा, “कितनी सुन्दर मूर्तियाँ बने है।


लेकिन मूर्तियों में एक त्रुटी है ! काश मूर्ति बनाने वाला मेरे सामने होता, तो में उसे बताता मूर्ति बनाने में क्या गलती हुई है” यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा, उसने सोचा “मेने अपना पूरा जीवन मूर्तियाँ बनाने में समर्पित कर दिया भला मेरी मूर्तियों में क्या गलती हो सकती है” वह बोल उठा “कैसी त्रुटी”… झट से यमदूत ने उसे पकड़ लिया और कहा “बस यही गलती कर गए तुम अपने अहंकार में, कि बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करती”…!!


शिक्षा.....कहानी का तर्क यही है, कि “इतिहास गवाह है, अहंकार ने हमेशा इन्सान को परेशानी और दुःख के सिवा कुछ नहीं दिया” !!

   ☀️'इंसानियत और मानवता'☀️
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एक गिद्ध का बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता था। 
एक दिन गिद्ध का बच्चा अपने पिता से बोला- "पिताजी, मुझे भूख लगी है।‘‘
"ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर। मैं अभी भोजन लेकर आता हूू।‘‘ कहते हुए गिद्ध उड़ने को उद्धत होने लगा। 
तभी उसके बच्चे ने उसे टोक दिया, "रूकिए पिताजी, आज मेरा मन इन्सान का गोश्त खाने का कर रहा है।‘‘
"ठीक है, मैं देखता हूं।‘‘ कहते हुए गिद्ध ने चोंच से अपने पुत्र का सिर सहलाया और बस्ती की ओर उड़ गया।
बस्ती के पास पहुंच कर गिद्ध काफी देर तक इधर-उधर मंडराता रहा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। 
थक-हार का वह सुअर का गोश्त लेकर अपने घोंसले में पहुंचा। 
उसे देख कर गिद्ध का बच्चा बोला, "पिताजी, मैं तो आपसे इन्सान का गोश्त लाने को कहा था, और आप तो सुअर का गोश्त ले आए?‘‘
पुत्र की बात सुनकर गिद्ध झेंप गया। 
वह बोला, "ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर।‘‘ कहते हुए गिद्ध पुन: उड़ गया। 
उसने इधर-उधर बहुत खोजा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। 
अपने घोंसले की ओर लौटते समय उसकी नजर एक मरी हुई गाय पर पड़ी। 
उसने अपनी पैनी चोंच से गाय के मांस का एक टुकड़ा तोड़ा और उसे लेकर घोंसले पर जा पहुंचा।
यह देखकर गिद्ध का बच्चा  एकदम से बिगड़ उठा, "पिताजी, ये तो गाय का गोश्त है।
मुझे तो इन्सान का गोश्त खाना है। क्या आप मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?‘‘
यह सुनकर गिद्ध बहुत शर्मिंदा हुआ।
उसने मन ही मन एक योजना बनाई और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकल पड़ा।
गिद्ध ने सुअर के गोश्त एक बड़ा सा टुकड़ा उठाया और उसे मस्जिद की बाउंड्रीवाल के अंदर डाल दिया।
उसके बाद उसने गाय का गोश्त उठाया और उसे मंदिर के पास फेंक दिया। 
मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों ने अपना काम किया और देखते ही पूरे शहर में आग लग गयी।
रात होते-होते चारों ओर इंसानों की लाशें बिछ गयी। यह देखकर गिद्ध बहुत प्रसन्न हुआ। उसने एक इन्सान के शरीर से गोश्त का बड़ा का टुकड़ा काटा और उसे लेकर अपने घोंसले में जा पहुंचा। 
यह देखकर गिद्ध का पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ।
वह बोला, "पापा ये कैसे हुआ? इन्सानों का इतना ढेर सारा गोश्त आपको कहां से मिला?"
गिद्ध बोला, "बेटा ये इन्सान कहने को तो खुद को बुद्धि के मामले में सबसे श्रेष्ठ समझता है, 
पर जरा-जरा सी बात पर ‘जानवर‘ से भी बदतर बन जाता है और बिना सोचे-समझे मरने-मारने पर उतारू हो जाता है।
इन्सानों के वेश में बैठे हुए अनेक गिद्ध ये काम सदियों से कर रहे हैं। 
मैंने उसी का लाभ उठाया और इन्सान को जानवर के गोश्त से जानवर से भी बद्तर बना दियाा।‘‘
साथियों, क्या हमारे बीच बैठे हुए गिद्ध हमें कब तक अपनी उंगली पर नचाते रहेंगे?
और कब तक हम जरा-जरा सी बात पर अपनी इन्सानियत भूल कर मानवता का खून बहाते रहेंगे?
अगर आपको यह कहानी सोचने के लिए विवश कर दे, तो प्लीज़ इसे दूसरों तक भी पहुंचाए।
क्या पता आपका यह छोटा सा प्रयास इंसानों के बीच छिपे हुए किसी गिद्ध को इन्सान बनाने का कारण बन जाए।