Sunday, February 22, 2015

मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीन हूँ मैं
मगर उसे तो खबर है कि कुछ नहीं हूँ मैं

अजीब लोग है मेरी तलाश में मुझको
वहां पर ढूंढ रहें हैं जहाँ नहीं हूँ मैं

मैं आइनों से तो मायूस लौट आया था
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं

वो ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद है मगर मैं भी
कहीं कहीं हूँ कहाँ हूँ कहीं नहीं हूँ मैं

वो एक किताब जो मंसूब* तेरे नाम से है
उसी किताब के अन्दर कहीं कहीं हूँ मैं

सितारों आओ मेरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुकुम है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं

यहीं हुसैन भी गुज़रे यहीं यजीद भी था
हज़ार रंग में डूबी हुई ज़मीन हूँ मैं

ये बूढ़ी कब्रें तुम्हें कुछ नहीं बतायेंगी
मुझे तलाश करो दोस्तों यहीं हूँ मैं

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