Sunday, February 22, 2015

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के
लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक
महामना ने इसके लिhए चंदा एकत्र किया था,
जो उस समय करीब एक करोड़ 64 लाख रुपए
हुआ था।
काशी नरेश ने जमीन दी थी तो दरभंगा नरेश ने
25 लाख रुपएसे सहायता की थी।
वहीं हैदराबाद के निजाम ने कहा कि इस विवि से
पहले ‘हिंदू’ शब्द हटाओ फिर दान दूंगा।
महामना ने मना कर दिया तो निजाम ने
कहा कि मेरी जूती ले जाओ।
महामना उसकी जूति ले गए और हैदराबाद में
चारमीनार के पास उसकी नीलामी लगा दी।
निजाम की मां को जब पता चला तो वह बंद
बग्घी में पहुंची और करीब 4 लाख रुपए
की बोली लगाकर निजाम का जूता खरीद लिया।
उन्हें लगा कि उनके बेटे की इज्जत बीच शहर में
नीलाम हो रही है।
‘ मियां की जूती, मियां के सर’
मुहावरा उसी घटना के बाद से प्रचलित हो गया।
**महामना (मदन मोहन मालवीय)

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