Sunday, February 15, 2015

किसी मजार पर एक फकीर रहते थे।
सैंकड़ों भक्त उस मजार पर आकर दान-
दक्षिणा चढ़ाते थे। उन भक्तों में एक
बंजारा भी था। वह बहुत गरीब था फिर
भी नियमानुसार आकर
माथा टेकता फकीर की सेवा करता और
फिर अपने काम पर जाता उसका कपड़े
का व्यवसाय
था कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर
लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में
फेरी लगाता। एक दिन उस फकीर को उस
पर दया आ गई उसने अपना गधा उसे भेंट कर
दिया। अब तो बनजारे
की आधी समस्याएं हल हो गई।
वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक
जाता तो खुद भी गधे पर बैठ जाता। यूं
ही कुछ महीने बीत गए एक दिन गधे
की मृत्यु हो गई। बनजारा बहुत दुखी हुआ,
उसने उसे उचित स्थान पर दफनाया,
उसकी कब्र बनाई और फूट-फूट कर रोने
लगा। समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने
जब यह दृश्य देखा तो सोचा जरूर
किसी संत की मजार होगी। तभी यह
बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है।
यह सोचकर उस व्यक्ति ने कब्र पर
माथा टेका और अपनी मन्नत हेतू
वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से
चला गया। कुछ दिनों के उपरांत ही उस
व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई। उसने
खुशी के मारे सारे गांव में
डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण
फकीर की मजार है। वहां जाकर
जो अरदास करो वह पूर्ण होती है। मन
चाही मुरादे बख्शी जाती हैं वहां।
उस दिन से उस कब्र पर
भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया।
दूर-दराज से भक्त अपनी मुरादे बख्शाने
वहां आने लगे। बनजारे
की तो चांदी हो गई, बैठे-बैठे उसे कमाई
का साधन मिल गया था।
एक दिन वही फकीर जिन्होंने बंजारे
को अपना गधा भेंट स्वरूप
दिया था वहां से गुजर रहे थे। उन्हें देखते
ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और
बोला,"आपके गधे ने
तो मेरी जिंदगी बना दी। जब तक
जीवित था तब तक मेरे रोजगार में
मेरी मदद करता था और मरने के बाद
मेरी जीवीका का साधन बन गया है।"
फकीर हंसते हुए बोले," बच्चा ! जिस मजार
पर तू नित्य माथा टेकने आता था वह
मजार इस गधे की मां की थी।"

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