कुछ पंक्तियां:
मै सूरज के साथ रहकर भी भूला नहीं अदब.....
लोग जुगनू का साथ पाकर मगरूर हो गये.....
खुद में काबिलियत हो तो भरोसा कीजिये.....
सहारे कितने भी अच्छे हों साथ छोड़ जाते हैं.....
सच की हालत किसी तवायफ सी है....
तलबगार बहुत हैं तरफदार कोई नही......
आदमी ही आदमी का रास्ता काट रहा है.....
बिल्लियाँ तो बेचारी बेरोजगार बैठी हैं......
मुद्दतों बाद किसी ने पूछा- कहाँ रहते हो......
मैने मुस्करा कर कहा- अपनी औकात में.......
मै सूरज के साथ रहकर भी भूला नहीं अदब.....
लोग जुगनू का साथ पाकर मगरूर हो गये.....
खुद में काबिलियत हो तो भरोसा कीजिये.....
सहारे कितने भी अच्छे हों साथ छोड़ जाते हैं.....
सच की हालत किसी तवायफ सी है....
तलबगार बहुत हैं तरफदार कोई नही......
आदमी ही आदमी का रास्ता काट रहा है.....
बिल्लियाँ तो बेचारी बेरोजगार बैठी हैं......
मुद्दतों बाद किसी ने पूछा- कहाँ रहते हो......
मैने मुस्करा कर कहा- अपनी औकात में.......
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