Wednesday, October 28, 2015

कुम्हारन बैठी सड़क किनारे,
लेकर दीये दो- चार |
जाने क्या होगा अबकी,
करती मन में विचार ||

याद करके आँख भर आई,
पिछली दीवाली त्योहार |
बिक न पाया आधा समान,
चढ गया सर पर उधार ||

सोंच रही है अबकी बार,
दूँगी सारे कर्ज उतार |
सजा रही है,
सारे दीये करीने से बार बार ||

पास से गुजरते लोगों को देखे
कातर निहार |
बीत जाए न अबकी दीवाली
जैसा पिछली बार ||

नम्र निवेदन मित्रों जनों से,
करता है सारण मनुहार |
मिट्टी के ही दीये जलाएँ,
दीवाली पर अबकी बार ||

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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