Saturday, January 9, 2016

 चार जानिब कड़ी नज़र रखना
फ़सल पकने को है ख़बर रखना ।

काम आएँगी कल ये तहरीरें
उँगलियों को लहू में तर रखना ।


ख़ाली घर तो बुरा-सा लगता है
ख़्वाब आँखों में कोई भर रखना ।

चाँद तारों से मश्विरा करके
शब की दहलीज़ पर सहर रखना ।

लम्हए-इज्ज़ आनेवाला है
अपने क़दमों पे अपना सर रखना ।

जानलेवा बहुत है बाख़बरी
ख़ुद को थोड़ा-सा बेख़बर रखना ।।


अभी रौशनी का सवाली न हो
हवा इस तऱफ आनेवाली न हो ।

है सबको यहाँ इंतज़ारे-सहर
कहीं बेसबब रात काली न हो ।

मैं वह मुजरिमे-ज़िदगी हूँ कि जो सज़ा काट ले और बहाली न हो ।

समझने लगा हूँ जिसे जाने क्या
कहीं उसकी रौशन-ख़याली न हो ।।



No comments:

Post a Comment