हम संभलकर भी चले तो ठोंकरों में आ गये,
आप क्यों पत्थर उठाकर रास्तों में आ गये ।
यूं सितारे टूटते हैं, नाचती है रौशनी,
जैसे तेरे तमाम वादें तजरिबां में आ गये ।
जो किसी के कुछ नहीं लगते हैं, उनसे पूछ लो,
किसकी आहट पर तड़क कर खिड़कियों में आ गये ।
चांदनी रातें, सुलगते पेड़ अपनी वहशतें,
कैसे-कैसे रंग अपने रतजगों में आ गये ।
सुबह की पहली किरन है हम, चिराग़े-शब नहीं,
क्या हुआ जो हम बिखर के आंधियों में आ गये ।।
: मस्ती भरी नज़र का नशा है मुझे अभी
ये जाम दूर रख दो पी लूंगा फिर कभी ।
दिल को जला के बज़्म में रोशन न किजीये
उस महज़बीं को आने में कुछ देर है अभी ।
हमने तो अश्क़ पी के गुज़ारी है सारी उम्र
हमसे ख़फ़ा है आखिर किसलिए ये ज़िंदगी ।
जामे-सुबू को दूर ही रहने दे साक़िया
मुझको उतारना है कल का नशा अभी ।
मस्ती भरी नज़र का नशा है मुझे अभी
ये जाम दूर रख दो.....
पी लूंगा फिर कभी ।।
आप क्यों पत्थर उठाकर रास्तों में आ गये ।
यूं सितारे टूटते हैं, नाचती है रौशनी,
जैसे तेरे तमाम वादें तजरिबां में आ गये ।
जो किसी के कुछ नहीं लगते हैं, उनसे पूछ लो,
किसकी आहट पर तड़क कर खिड़कियों में आ गये ।
चांदनी रातें, सुलगते पेड़ अपनी वहशतें,
कैसे-कैसे रंग अपने रतजगों में आ गये ।
सुबह की पहली किरन है हम, चिराग़े-शब नहीं,
क्या हुआ जो हम बिखर के आंधियों में आ गये ।।
: मस्ती भरी नज़र का नशा है मुझे अभी
ये जाम दूर रख दो पी लूंगा फिर कभी ।
दिल को जला के बज़्म में रोशन न किजीये
उस महज़बीं को आने में कुछ देर है अभी ।
हमने तो अश्क़ पी के गुज़ारी है सारी उम्र
हमसे ख़फ़ा है आखिर किसलिए ये ज़िंदगी ।
जामे-सुबू को दूर ही रहने दे साक़िया
मुझको उतारना है कल का नशा अभी ।
मस्ती भरी नज़र का नशा है मुझे अभी
ये जाम दूर रख दो.....
पी लूंगा फिर कभी ।।
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