अपना दर्द गैर को सुनाएं क्यों
दास्तां ज़माने को बताएं क्यों ।
तुमको ना मेरी तलब, ना मेरा ख़्याल
फिर नमी आंखों में सजाएं क्यों ।
लोग ताजीर नमक के बन बैठे
अपना ज़ख़्म किसी को दिखाएं क्यों ।
दिन निकल जाएं, ना कुछ हासिल
रात ये आंखों को भिगोए क्यों ।
रास्ता पूरखार खुद हमने चुना
पांव के छाले किसी को दिखाएं क्यों ।
दास्तां ज़माने को बताएं क्यों ।
तुमको ना मेरी तलब, ना मेरा ख़्याल
फिर नमी आंखों में सजाएं क्यों ।
लोग ताजीर नमक के बन बैठे
अपना ज़ख़्म किसी को दिखाएं क्यों ।
दिन निकल जाएं, ना कुछ हासिल
रात ये आंखों को भिगोए क्यों ।
रास्ता पूरखार खुद हमने चुना
पांव के छाले किसी को दिखाएं क्यों ।
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