Monday, April 26, 2021

   ☀️'इंसानियत और मानवता'☀️
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एक गिद्ध का बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता था। 
एक दिन गिद्ध का बच्चा अपने पिता से बोला- "पिताजी, मुझे भूख लगी है।‘‘
"ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर। मैं अभी भोजन लेकर आता हूू।‘‘ कहते हुए गिद्ध उड़ने को उद्धत होने लगा। 
तभी उसके बच्चे ने उसे टोक दिया, "रूकिए पिताजी, आज मेरा मन इन्सान का गोश्त खाने का कर रहा है।‘‘
"ठीक है, मैं देखता हूं।‘‘ कहते हुए गिद्ध ने चोंच से अपने पुत्र का सिर सहलाया और बस्ती की ओर उड़ गया।
बस्ती के पास पहुंच कर गिद्ध काफी देर तक इधर-उधर मंडराता रहा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। 
थक-हार का वह सुअर का गोश्त लेकर अपने घोंसले में पहुंचा। 
उसे देख कर गिद्ध का बच्चा बोला, "पिताजी, मैं तो आपसे इन्सान का गोश्त लाने को कहा था, और आप तो सुअर का गोश्त ले आए?‘‘
पुत्र की बात सुनकर गिद्ध झेंप गया। 
वह बोला, "ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर।‘‘ कहते हुए गिद्ध पुन: उड़ गया। 
उसने इधर-उधर बहुत खोजा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। 
अपने घोंसले की ओर लौटते समय उसकी नजर एक मरी हुई गाय पर पड़ी। 
उसने अपनी पैनी चोंच से गाय के मांस का एक टुकड़ा तोड़ा और उसे लेकर घोंसले पर जा पहुंचा।
यह देखकर गिद्ध का बच्चा  एकदम से बिगड़ उठा, "पिताजी, ये तो गाय का गोश्त है।
मुझे तो इन्सान का गोश्त खाना है। क्या आप मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?‘‘
यह सुनकर गिद्ध बहुत शर्मिंदा हुआ।
उसने मन ही मन एक योजना बनाई और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकल पड़ा।
गिद्ध ने सुअर के गोश्त एक बड़ा सा टुकड़ा उठाया और उसे मस्जिद की बाउंड्रीवाल के अंदर डाल दिया।
उसके बाद उसने गाय का गोश्त उठाया और उसे मंदिर के पास फेंक दिया। 
मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों ने अपना काम किया और देखते ही पूरे शहर में आग लग गयी।
रात होते-होते चारों ओर इंसानों की लाशें बिछ गयी। यह देखकर गिद्ध बहुत प्रसन्न हुआ। उसने एक इन्सान के शरीर से गोश्त का बड़ा का टुकड़ा काटा और उसे लेकर अपने घोंसले में जा पहुंचा। 
यह देखकर गिद्ध का पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ।
वह बोला, "पापा ये कैसे हुआ? इन्सानों का इतना ढेर सारा गोश्त आपको कहां से मिला?"
गिद्ध बोला, "बेटा ये इन्सान कहने को तो खुद को बुद्धि के मामले में सबसे श्रेष्ठ समझता है, 
पर जरा-जरा सी बात पर ‘जानवर‘ से भी बदतर बन जाता है और बिना सोचे-समझे मरने-मारने पर उतारू हो जाता है।
इन्सानों के वेश में बैठे हुए अनेक गिद्ध ये काम सदियों से कर रहे हैं। 
मैंने उसी का लाभ उठाया और इन्सान को जानवर के गोश्त से जानवर से भी बद्तर बना दियाा।‘‘
साथियों, क्या हमारे बीच बैठे हुए गिद्ध हमें कब तक अपनी उंगली पर नचाते रहेंगे?
और कब तक हम जरा-जरा सी बात पर अपनी इन्सानियत भूल कर मानवता का खून बहाते रहेंगे?
अगर आपको यह कहानी सोचने के लिए विवश कर दे, तो प्लीज़ इसे दूसरों तक भी पहुंचाए।
क्या पता आपका यह छोटा सा प्रयास इंसानों के बीच छिपे हुए किसी गिद्ध को इन्सान बनाने का कारण बन जाए।
 प्रेरक प्रसंग
*जिन्दगी हंसाये तो समझना अच्छे कर्मो का फल है,*
*जब रुलाये तो समझना अच्छे कर्म करने का समय आ गया।*
*आत्म_संतुष्टी*
पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। 
दोनों ही बहुत गरीब थे, 
दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, 
दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।
अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पे मृत्यु हो गयी। 
यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। 
उन दोनों को भगवान के पास लाया गया। 
भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, 
”#अब_तुम्हे_क्या_चाहिये, 
तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, 
और 
अब तुम्हें क्या बना के मैं पुनः संसार में भेजूं।”
भगवान की बात सुनकर उनमे से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, ” हे भगवान! 
आपने इस जन्म में मुझे बहुत कष्टमय ज़िन्दगी दी थी। 
आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। 
पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। 
जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। 
देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।”
उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, 
”#तो_अब_क्या_चाहते_हो 
तुम, इस जन्म में 
#मैं_तुम्हे_क्या_बनाऊँ।”
भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला, 
”*भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। 
#मुझे_तो_केवल_चारो_तरफ_से_पैसा_ही_पैसा_मिले।”*
अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान से उसकी बात सुनी और कहा, 
*”#तथास्तु,* 
तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।”
उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, 
”#तुम_बताओ_तुम्हे_क्या_बनना_है, 
तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, *#तुम_क्या_चाहते_हो?”*
उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, 
”#हे_भगवन_आपने_मुझे_सबकुछ_दिया_है
#मैं_आपसे_क्या_मांगू। 
आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपे मेहनत से काम करके मैंने अपना परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पे कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे। भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। 
ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”
#प्रभुजी_इतना_दीजिये
#जा_में_कुटुम्ब_समाय !
#में_भी_भूखा_न_रहूँ
#साधू_भी_भूखा_न_जाये !!
भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, 
”#तो_अब_क्या_चाहते_हो_तुम, इस जन्म में 
#मैं_तुम्हें_क्या_बनाऊँ।” 
किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, ” हे प्रभु! 
आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।
”#भगवान_ने_कहा, 
“#तथास्तु, 
#तुम_जाओ_तुम्हारे_द्वार_से_कभी_कोई_भूखा_प्यासा_नहीं_जायेगा।”
अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। 
दोनों बड़े हुए।
पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारो तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। 
अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, 
और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।
और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।
*#कथा_सार* 
#मित्रो_ईश्वर_ने_जो_भी_दिया_है_उसी_में_संतुष्ट_होना_बहुत_जरुरी_है। 
अक्सर देखा जाता है कि सभी लोगों को हमेशा दूसरे की चीज़ें ज्यादा पसंद आती हैं और इसके चक्कर में वो अपना जीवन भी अच्छे से नहीं जी पाते। मित्रों हर बात के दो पहलू होते हैं –
#सकारात्मक_और_नकारात्मक, अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से। 
अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये, चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा भाव रखिये !! 
मित्रो सब कुछ इकट्ठा भी उन्हीं के पास होता है जो बाँटनां जानते हैं 
वह चाहे भोजन हो धन हो या मान सम्मान हो !!
 *#माँ_का_पल्लू_अनमोल* 
*मुझे नहीं लगता, कि आज के बच्चे यह जानते हों*
           *कि पल्लू क्या होता है ?*
इसका कारण यह है, कि आजकल की माताएं
अब साड़ी नहीं पहनती हैं पल्लू बीते समय की 
बातें हो चुकी हैं.
माँ के पल्लू का सिद्धाँत माँ को गरिमामयी 
छवि प्रदान करने के लिए था इसके साथ ही 
यह गरम बर्तन को चूल्हा से हटाते समय 
गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था.
पल्लू की बात ही निराली थी पल्लू पर तो बहुत कुछ
लिखा जा सकता है पल्लू बच्चों का पसीना, 
आँसू पोंछने,गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी 
इस्तेमाल किया जाता था.
माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए तौलिया के 
रूप में भी इस्तेमाल का लेती खाना खाने के बाद 
पल्लू से  मुँह साफ करने का अपना ही आनंद होता था.
कभी आँख मे दर्द होने पर माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, 
फूँक मारकर, गरम करके आँख में लगा देतीं थी,
दर्द उसी समय गायब हो जाता था.
माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चादर का काम करता था जब भी कोई 
अंजान घर पर आता तो बच्चा उसको माँ के पल्लू की 
ओट ले कर देखता था.
जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से 
अपना मुँह ढक कर छुप जाता था जब बच्चों को बाहर 
जाना होता तब 'माँ का पल्लू' एक मार्गदर्शक का काम 
करता था.
जब तक बच्चे ने हाथ में पल्लू थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती थी जब मौसम ठंडा होता था ...
माँ उसको अपने चारों ओर लपेट कर  ठंड से बचाने की कोशिश करती और, जब वारिश होती माँ अपने पल्लू में 
ढाँक लेती.
पल्लू --> एप्रन का काम भी करता था माँ इसको 
हाथ तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल कर लेती थी.
पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले जामुन और 
मीठे सुगंधित फूलों को लाने के लिए किया जाता था.
पल्लू में धान, दान, प्रसाद भी संकलित किया जाता था.
पल्लू घर में रखे समान से धूल हटाने में भी बहुत सहायक
 होता था.
कभी कोई वस्तु खो जाए, तो एकदम से पल्लू में गांठ 
लगाकर निश्चिंत हो जाना कि जल्द मिल जाएगी.
पल्लू में गाँठ लगा कर माँ एक चलता फिरता बैंक या 
तिजोरी रखती थी, और अगर सब कुछ ठीक रहा, 
तो कभी-कभी उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे.
मुझे नहीं लगता, कि विज्ञान इतनी तरक्की करने के 
बाद भी पल्लू का विकल्प ढूँढ पाया है पल्लू कुछ और 
नहीं, बल्कि एक जादुई एहसास है. 
आधुनिकता ने हमारी मूल धरोहर हमारे संस्कारों को, 
हमारी संस्कृति को धूमिल अवश्य किया है संस्कार एवं 
संस्कृति फिर वही पल्लू वाला समय ले आए, जिससे
बच्चे अपने बचपन को पुनः प्राप्त कर सकें यही विनती है.
पुरानी पीढ़ी से संबंध रखने वाले अपनी माँ के इस प्यार 
और स्नेह को हमेशा महसूस करते हैं, जो कि आज की 
पीढ़ियों की समझ से  शायद गायब है।
 🌸🌺 आज का प्रेरक प्रसङ्ग 🌺🌸
    !! सोच बदलो, जिंदगी बदल जायेगी !!
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एक गाँव में सूखा पड़ने की वजह से गाँव के सभी लोग बहुत परेशान थे, उनकी फसले खराब हो रही थी, बच्चे भूखे-प्यासे मर रहे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था की इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाय। उसी गाँव में एक विद्वान महात्मा रहते थे। गाँव वालो ने निर्णय लिया उनके पास जाकर इस समस्या का समाधान माँगने के लिये, सब लोग महात्मा के पास गये और उन्हें अपनी सारी परेशानी विस्तार से बतायी, महात्मा ने कहा कि आप सब मुझे एक हफ्ते का समय दीजिये मैं आपको कुछ समाधान ढूँढ कर बताता हूँ।
गाँव वालो ने कहा ठीक है और महात्मा के पास से चले गये। एक हफ्ते बीत गये लेकिन साधू महात्मा कोई भी हल ढूँढ न सके और उन्होंने गाँव वालो से कहा कि अब तो आप सबकी मदद केवल ऊपर बैठा वो भगवान ही कर सकता है। अब सब भगवान की पूजा करने लगे भगवान को खुश करने के लिये, और भगवान ने उन सबकी सुन ली और उन्होंने गाँव में अपना एक दूत भेजा। गाँव में पहुँचकर दूत ने सभी गाँव वालो से कहा कि “आज रात को अगर तुम सब एक-एक लोटा दूध गाँव के पास वाले उस कुवे में बिना देखे डालोगे तो कल से तुम्हारे गाँव में घनघोर बारिश होगी और तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जायेगी।” इतना कहकर वो दूत वहा से चला गया।
गाँव वाले बहुत खुश हुए और सब लोग उस कुवे में दूध डालने के लिये तैयार हो गये लेकिन उसी गाँव में एक कंजूस इंसान रहता था उसने सोचा कि सब लोग तो दूध डालेगें ही अगर मैं दूध की जगह एक लोटा पानी डाल देता हूँ तो किसको पता चलने वाला है। रात को कुवे में दूध डालने के बाद सारे गाँव वाले सुबह उठकर बारिश के होने का इंतेजार करने लगे लेकिन मौसम वैसा का वैसा ही दिख रहा था और बारिश के होने की थोड़ी भी संभावना नहीं दिख रही थी। 
देर तक बारिश का इंतेजार करने के बाद सब लोग उस कुवे के पास गये और जब उस कुवे में देखा तो कुवा पानी से भरा हुआ था और उस कुवे में दूध का एक बूंद भी नहीं था। सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे और समझ गये कि बारिश अभी तक क्यों नहीं हुई। और वो इसलिये क्योँकि उस कंजूस व्यक्ति की तरह सारे गाँव वालो ने भी यही सोचा था कि सब लोग तो दूध डालेगें ही, मेरे एक लोटा पानी डाल देने से क्या फर्क पड़ने वाला है। और इसी चक्कर में किसी ने भी कुवे में दूध का एक बूँद भी नहीं डाला और कुवे को पानी से भर दिया।
Moral of the Story :-
इसी तरह की गलती आज कल हम अपने real life में भी करते रहते हैं, हम सब सोचते है कि हमारे एक के कुछ करने से क्या होने वाला है लेकिन हम ये भूल जाते है कि “बूंद-बूंद से सागर बनता है।“
अगर आप अपने देश, समाज, घर में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं, कुछ बेहतर करना चाहते हैं तो खुद को बदलिये और बेहतर बनायिये बाकी सब अपने आप हो जायेगा जायेगा।
 1. Walmart के संस्थापक कौन है ?
Answer - सैम वॉल्टन (Sam Walton) 1962
2. Paytm के संस्थापक कौन है ?
Answer - विजय शेखर शर्मा (2010)
3. Google के संस्थापक कौन है ?
Answer - लैरी पेज, सर्फ ब्रिन (1998)
4. Microsoft के संस्थापक कौन है ?
Answer - बिल गेट्स, पॉल एलन (1975)
5. WhatsApp के संस्थापक कौन है ?
Answer - ब्रायन ऐक्टन ,जैन कौम (2009)
6. Amazon के संस्थापक कौन है ?
Answer - जैफ बेजोस (Jef bez0s) 1994
7. Flipkart के संस्थापक कौन है ?
Answer - सचिन बंसल और बिन्नी बंसल (2007)
8. Yahoo के संस्थापक कौन है ?
Answer - David filo, Jerry yang (1994)
9. Apple के संस्थापक कौन है ?
Answer - स्टीव जॉब्स (1976)
10. Wikipedia के संस्थापक कौन है ?
Answer - जिमी वेल्स (2001)
11. Motorola के संस्थापक कौन है ?
Answer - Paul & Joseph Gablin (1928)
12. Facebook के संस्थापक कौन है ?
Answer - मार्क जुकरबर्ग (2004)
13. Alibaba के संस्थापक कौन है ?
Answer - जैक मा (1999)
14. Nokia के संस्थापक कौन है ?
Answer - Fredrik Idestam, Leo Mechelin
15. Reliance के संस्थापक कौन है ?
Answer - धीरूभाई अम्बानी (1997)
16. Ebay के संस्थापक कौन है ?
Answer - Pierre Omidyar (1995)
17. Twitter के संस्थापक कौन है ?
Answer - जैक डॉर्स (2006)
18. Instagram के संस्थापक कौन है ?
Answer - केविन सिस्ट्रोम, माइक करिजर (2010)
19. YouTube के संस्थापक कौन है ?
Answer - Jawed KarimStee Chen (2005)
20. Skype के संस्थापक कौन है ?
Answer - Niklas Zennstrom Janus Friis (2003)
21. Tesla के संस्थापक कौन है ?
Answer - एलोन मस्क (2003)
22. Intel के संस्थापक कौन है ?
Answer - गॉर्डन मूरे (1968)
23. Samsung के संस्थापक कौन है ?
Answer - Lee Byungchul (1938)
24. Xiaomi के संस्थापक कौन है ?
Answer - Lie Jun (2010)
 Sharing 13 learnings  in my 13 years of wealth management career.
 1. Making money is about system solving, not working hard.
 2. Make money while you sleep or you will never be rich.
 3. It takes the same amount of effort to make 10 lakhs or 1 crore.
 4. Ideas are worthless without extended execution.
 5. Instead of cutting down costs, focus on incoming income.
 6. Rs.10000 in passive income is worth more than Rs.100000 of worked income.
 7. Over 50% of your income should go towards investments.
 8. Rs.50 lacs CTC per year isn’t a lot of money.
 9. A wall gets built brick by brick – same is wealth.
 10. Never borrow money that doesn’t go towards making more money.
 11. Keeping money is harder than making money.
 12. Business people hire good-professionals to make them rich.
 13. You need at least 3 income streams to feel safe. Active income, cashflow income, appreciation income.
 Ex. President Of India Dr. Abdul Kalam Says:
"When I was a kid, my Mom cooked food for us. One night she had made dinner after a long hard day's work, Mom placed a plate of 'subzi' and extremely burnt roti in front of my Dad.
I was waiting to see if anyone noticed the burnt roti. But Dad just ate his roti and asked me how was my day at school. I don't remember what I told him that night, but I do remember I heard Mom apologizing to Dad for the burnt roti.
And I'll never forget what he said: "Honey, I love burnt roti."
Later that night, I went to kiss Daddy, good night & I asked him if he really liked his roti burnt. He wrapped me in his arms & said: "Your momma put in a long hard day at work today and she was really tired.
And besides... A burnt roti never hurts anyone but HARSH WORDS DO!"
"You know son - life is full of imperfect things... & imperfect people..."
I'M NOT THE BEST & I HAVE LEARNT TO ACCEPT THAT LIFE IS NOT PERFECT AND NOR ARE PEOPLE NEAR & DEAR TO YOU. 
What I've learnt over the years is: To Accept Each Others Faults & Choose To Celebrate Relationships".
Life Is Too Short To Wake Up With Regrets..👍 🙏
Give Gratitude Now...for what U already have.

 According to an old legend, a king went to visit his neighboring kingdom here.  The neighboring king hosted the guest king very well.  


After staying there for a few days when the king returned to his kingdom, the neighboring king gifted him two beautiful pigeons.


The king took the two pigeons to his palace.  There a servant was appointed to look after the pigeons.  


The servant would arrange food and water for the pigeons in the morning.  A few days later, when the king arrived to know the condition of those pigeons.


The servant said that one pigeon flies to a very high height, but the other one is sitting on a branch of the tree.  


The king was very sad to know why the other pigeon is not flying.


The king immediately summoned his ministers, but no one could understand what had happened to the other pigeon. 


Then someone advised the king that anyone from the kingdom should be called and honoured accordingly.  A Poor farmer has responded to the call of the king.


 The farmer was familiar with birds, saw the area around the pigeon and cut the branch of the tree on which he sat.


After this, the second pigeon also started flying high in the sky.  The farmer told the king that this pigeon was trapped in the fascination of this branch, afraid of taking the risk of flying, when this branch was cut, it had no other option but to fly.


 Due to this, he has started flying to high altitude.  The king was pleased to see this and honored the farmer with gold coins.


 Lesson from story


Those who are afraid to take up risks, do not want to give up their comfort zone,

They just remain there only.


They don't achieve remarkable in life.


If you also want to ACHIEVE YOUR GOALS,  then Leave Your Comfort Zone. WAKE UP

Start your day EARLY.

Sleep early

Burn calories

Think positive

Talk positive

Ignore all those who talk low 

Avoid all those who talk shit

Leave all the past which stop you from doing BIG


One Life

One Opportunity


 If you cannot agree with others, you can at least refrain from quarreling with them.
When you are involved in a dispute with someone else, it may be the only time doing nothing is better than doing something. 
There’s a practical reason for this: 
When you quarrel with others — even if you win the argument — you place a great deal of unnecessary stress upon yourself. 
It is impossible to maintain a Positive Mental Attitude when you allow negative emotions such as anger or hate to dominate your thoughts. 
No one can upset you or make you angry unless you allow them to do so. 
Instead of arguing with others, try asking non-threatening questions, such as,
🦋Why do you feel this way? 
🦋What have I done to make you angry? 
🦋What can I do to help? 
You may find that the entire situation has resulted from a simple misunderstanding that can be quickly rectified. 
Even if problems are more serious, your positive behavior will go a long way toward helping resolve them.

Tuesday, April 13, 2021

 🍃त खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है
🍃 🍃🍃🍃
जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
समझ न इन को वस्त्र तू 
जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
समझ न इन को वस्त्र तू 
ये बेड़ियां पिघाल के
बना ले इनको शस्त्र तू
बना ले इनको शस्त्र तू
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है
🍃 🍃🍃🍃
चरित्र जब पवित्र है
तोह क्यों है ये दशा तेरी
चरित्र जब पवित्र है
तोह क्यों है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक़ नहीं
की ले परीक्षा तेरी
की ले परीक्षा तेरी
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है तू चल, तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
🍃 🍃🍃🍃
जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है
जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है
तू आरती की लौ नहीं
तू क्रोध की मशाल है
तू क्रोध की मशाल है
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है
🍃 🍃🍃🍃
चूनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी कपकाएगा 
चूनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी कपकाएगा 
अगर तेरी चूनर गिरी
तोह एक भूकंप आएगा
एक भूकंप आएगा
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है |🍃
 'पढ़िए बहुत रहस्मय... सच्चाई'☀️
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मेरे मन में सुदामा के सम्बन्ध में एक बड़ी शंका थी कि एक विद्वान् ब्राह्मण जो जीवन भर कष्ट भोगता रहा अपने बाल सखा कृष्ण से छुपाकर चने कैसे खा सकता है ..?_
आज एक भुदेव् की कृपा से ज्ञात हुआ तो सोचा आप सबका भी ज्ञान वर्धन करूँ इसके पीछे की कथा बताकर...
बताते हैं सुदामा की दरिद्रता, और चने की चोरी के पीछे एक बहुत ही रोचक और त्याग-पूर्ण कथा है- एक अत्यंत गरीब निर्धन बुढ़िया भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते उसे रात हो गयी। बुढ़िया ने सोंचा अब ये चने रात मे नही, प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर खाऊँगी ।
यह सोंचकर उसने चनों को कपडे में बाँधकर रख दिए और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। बुढ़िया के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये। चोरों ने चनों की पोटली देख कर समझा इसमे सोने के सिक्के हैं अतः उसे उठा लिया। चोरो की आहट सुनकर बुढ़िया जाग गयी और शोर मचाने लगी। शोर-शराबा सुनकर गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे। चने की पोटली लेकर भागे चोर पकडे जाने के डर से संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। इसी संदीपन मुनि के आश्रम में भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
चोरों की आहट सुनकर गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता ने पुकारा- कौन है ?? गुरुमाता को अपनी ओर आता देख चोर चने की पोटली छोड़कर वहां से भाग गये। इधर भूख से व्याकुल बुढ़िया ने जब जाना कि उसकी चने की पोटली चोर उठा ले गए हैं, तो उसने श्राप दे दिया- "मुझ दीनहीन असहाय के चने जो भी खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा"।
 
उधर प्रात:काल आश्रम में झाडू लगाते समय गुरुमाता को वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली  खोल के देखी तो उसमे चने थे। उसी समय सुदामा जी और श्री कृष्ण जंगल से लकडी लाने जा रहे थे। गुरुमाता ने वह चने की पोटली सुदामा को देते हुए कहा बेटा! जब भूख लगे तो दोनो यह चने खा लेना।
सुदामा जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। उन्होंने ज्यों ही चने की पोटली हाथ मे ली, सारा रहस्य जान गए। सुदामा ने सोचा- गुरुमाता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना, लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो मेरे प्रभु के साथ साथ तीनो लोक  दरिद्र हो जाएंगे। नही-नही मै ऐसा नही होने दूँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा। मै ये चने स्वयं खा लूँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा और सुदामा ने कृष्ण से छुपाकर सारे चने खुद खा लिए। अभिशापित चने खाकर सुदामा ने स्वयं दरिद्रता ओढ़ ली लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को बचा लिया।
अद्वतीय त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले सुदामा, चोरी-छुपे चने खाने का अपयश भी झेलें तो यह बहुत अन्याय है पर आज मन की इस गहन शंका का निवारण हो गया.!
गलती  आपकी  हो  या  मेरी रिश्ता  तो  हमारा  है  ना....!!
 ⇣⇣ कितना_जरुरी_है_लक्ष्य_बनाना ⇣⇣👌
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एक बार एक आदमी सड़क पर सुबह सुबह दौड़ (Jogging) लगा रहा था, अचानक एक चौराहे पर जाकर वो रुक गया उस चौराहे पे चार सड़कें थीं जो अलग-अलग रास्ते पे जाती थीं। एक बूढ़े व्यक्ति से उस आदमी ने पूछा – सर ये रास्ता कहाँ जाता है ? तो बूढ़े व्यक्ति ने पूछा- आपको कहाँ जाना है? आदमी – पता नहीं,
 बूढ़ा व्यक्ति – तो कोई भी रास्ता चुन लो क्या फर्क पड़ता है । वो आदमी उसकी बात को सुनकर निःशब्द सा रह गया, कितनी सच्चाई छिपी थी उस बूढ़े व्यक्ति की बातों में। सही ही तो कहा जब हमारी कोई मंजिल ही नहीं है तो जीवन भर भटकते ही रहना है।
✶ जीवन में बिना लक्ष्य के काम करने वाले लोग हमेशा सफलता से दूर रह जाते हैं जबकि सच तो ये है कि इस तरह के लोग कभी सोचते ही नहीं कि उन्हें क्या करना है? हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में किये गए सर्वे की मानें तो जो छात्र अपना लक्ष्य बना कर चलते हैं वो बहुत जल्दी अपनी मंजिल को प्राप्त कर लेते हैं क्यूंकि उनकी उन्हें पता है कि उन्हें किस रास्ते पर जाना है।
✶ अगर सफलता एक पौधा है तो लक्ष्य ऑक्सीजन है, आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे कि लक्ष्य कितना महत्वपूर्ण है? कितना जरुरी है लक्ष्य बनाना ?
1.➨  लक्ष्य एकाग्र बनाता है – अगर हमने अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लिया है तो हमारा दिमाग दूसरी बातों में नहीं भटकेगा क्यूंकि हमें पता है कि हमें किस रास्ते पर जाना है? सोचिये अगर आपको धनुष बाण दे दिया जाये और आपको कोई लक्ष्य ना बताया जाये कि तीर कहाँ चलना है तो आप क्या करेंगे, कुछ नहीं तो बिना लक्ष्य के किया हुआ काम व्यर्थ ही रहता है। कभी देखा है की एक कांच का टुकड़ा धूप में किस तरह कागज को जला देता है वो एकाग्रता से ही सम्भव है।
2.➨  आपकी प्रगति का मापक है लक्ष्य- सोचिये की आपको एक 500 पेज की किताब लिखनी है, अब आप रोज कुछ पेज लिखते हैं तो आपको पता होता है कि मैं कितने पेज लिख चूका हूँ या कितने पेज लिखने बाकि हैं। इसी तरह लक्ष्य बनाकर आप अपनी प्रगति (Progress) को माप (measure) सकते हैं और आप जान पाएंगे कि आप अपनी मंजिल के कितने करीब पहुंच चुके हैं। बिना लक्ष्य के नाही आप ये जान पाएंगे कि आपने कितना progress किया है और नाही ये जान पाएंगे कि आप मंजिल से कितनी दूर हैं?
3.➨  लक्ष्य अविचलित रखेगा- लक्ष्य बनाने से हम मानसिक रूप से बंध से जाते हैं जिसकी वजह से हम फालतू की चीज़ों पर ध्यान नहीं देते और पूरा समय अपने काम को देते हैं। सोचिये आपका कोई मित्र विदेश से जा रहा हो और वो 9:00 PM पे आपसे मिलने आ रहा हो और आप 8 :30 PM पे अपने ऑफिस से निकले और अगर स्टेशन जाने में 25 -30 मिनट लगते हों तो आप जल्दी से स्टेशन की तरफ जायेंगे सोचिये क्या आप रास्ते में कहीं किसी काम के लिए रुकेंगे? नहीं, क्यूंकि आपको पता है कि मुझे अपनी मंजिल पे जाने में कितना समय लगेगा। तो लक्ष्य बनाने से आपकी सोच पूरी तरह निर्धारित हो जाएगी और आप भटकेंगे नहीं।
4.➨ लक्ष्य आपको प्रेरित करेगा – जब भी कोई व्यक्ति सफल होता हैं, अपनी मंजिल को पाता है तो एक लक्ष्य ही होता है जो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। आपका लक्ष्य आपका सपना आपको उमंग और ऊर्जा से भरपूर रखता है।
︶︿︶ तो मित्रों बिना लक्ष्य के आप कितनी भी मेहनत कर लो सब व्यर्थ ही रहेगा जब आप अपनी पूरी energy किसी एक point एक लक्ष्य पर लगाओगे तो निश्चय ही सफलता आपके कदम चूमेगी।
 📚★(प्रेरणादायक कहानी )★📚
                🙏🏼दो शब्द प्रेम  के....🙏🏼
_🌻एक देवरानी और जेठानी में किसी बात पर जोरदार बहस हुई और दोनो में बात इतनी बढ़ गई कि दोनों ने एक दूसरे का मुँह तक न देखने की कसम खा ली और अपने-अपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर लिया।। परन्तु थोड़ी देर बाद जेठानी के कमरे के दरवाजे पर खट-खट हुई।  जेठानी तनिक ऊँची आवाज में बोली कौन है, बाहर से आवाज आई दीदी मैं !   जेठानी ने जोर से दरवाजा खोला और बोली अभी तो बड़ी कसमें खा कर गई थी। अब यहाँ क्यों आई हो ?_
_★देवरानी ने कहा दीदी सोच कर तो वही गई थी, परंतु माँ की कही एक बात याद आ गई कि जब कभी किसी से कुछ कहा सुनी हो जाए तो उसकी अच्छाइयों को याद करो और मैंने भी वही किया और मुझे आपका दिया हुआ प्यार ही प्यार याद आया और मैं आपके लिए चाय ले कर आ गई। बस फिर क्या था दोनों रोते रोते, एक दूसरे के गले लग गईं और साथ बैठ कर चाय पीने लगीं।_
★जीवन में क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता, बोध से जीता जा सकता है।
                         ●क्योंकि
★अग्नि अग्नि से नहीं बुझती बल्कि जल से बुझती है।
★समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगड़ती स्थितियों को दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं। हर स्थिति में संयम और बड़ा दिल रखना ही श्रेष्ठ है ll

 ★ प्रेरणादायक कहानियाँ ★📚🇮🇳
            🙏🏼★प्यार की पराकाष्ठा★🙏🏼
★"कोरोना" काल की एक सुंदर व्याख्या....★                🙏 डॉ.भैरों सिंह गुर्जर
● वे लोग पिछले कई दिनों से इस जगह पर खाना बाँट रहे थे । हैरानी की बात ये थी कि एक कुत्ता हर रोज आता था और किसी न किसी  के हाथ से खाने का पैकेट छीनकर ले जाता था ।  आज उन्होने एक आदमी की ड्यूटी  भी लगाई थी कि खाने को लेने के चक्कर में कुत्ता किसी आदमी को न काट ले ।
● लगभग ग्यारह बजे का समय हो चुका था और वे लोग अपना खाना वितरण शुरू कर चुके थे । तभी देखा कि वह कुत्ता तेजी से आया और एक आदमी के हाथ से खाने की थैली झपटकर भाग गया।  वह लड़का  जिसकी ड्यूटी थी कि कोई जानवर किसी पर हमला न कर दे , वह उस कुत्ते का पीछा करते हुए कुत्ते के पीछे भागा । कुत्ता भागता हुआ एक झोंपड़ी में घुस गया । वह आदमी उसका पीछा करता हुआ झोंपड़ी तक आ गया।  कुत्ता खाने की  थैली झोंपड़ी में रख के बाहर आ चुका था ।
● वह आदमी बहुत हैरान था । वह झोंपड़ी में घुसा तो देखा कि एक आदमी अंदर लेटा हुआ है । चेहरे पर बड़ी सी दाढ़ी है और उसका एक पैर भी नहीं है। गंदे से कपड़े हैं उसके ।
● "ओ भैया ! ये कुत्ता तुम्हारा है क्या ?"
● "मेरा कोई कुत्ता नहीं है । कालू तो मेरा बेटा है । उसे कुत्ता मत कहो । " भिखारी बोला ।
● "अरे भाई ! हर रोज खाना छीनकर भागता है वो । किसी को काट लिया तो ऐसे में कहाँ डॉक्टर मिलेगा ....उसे बांध के रखा करो । खाने की बात है तो कल से मैं खुद दे जाऊंगा तुम्हें ।"  वह लड़का बोला ।
● "बात खाने की नहीं है । मैं उसे मना नहीं कर सकूँगा। मेरी भाषा भले ही न समझता हो लेकिन मेरी भूख को समझता है ।  जब मैं घर छोड़ के आया था तब से मेरे साथ है । मैं नहीं कह सकता कि मैंने उसे पाला है या उसने मुझे पाला है । मेरे तो बेटे से भी बढ़कर है । मैं तो रेड लाइट पर पैन बेचकर अपना गुजारा करता हूँ..... पर अब सब बंद है। "
● वह लड़का एकदम मौन हो गया । उसे ये संबंध समझ ही नहीं आ रहा था । उस आदमी ने खाने का पैकेट खोला और आवाज लगाई , "कालू ! ओ बेटा कालू ..... आ जा  खाना खा ले । "
● कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उस आदमी का मुँह चाटने लगा । खाने को उसने सूंघा भी नहीं । उस आदमी ने खाने की थैली खोली और पहले कालू का हिस्सा निकाला , फिर अपने लिए खाना रख लिया ।_
● "खाओ बेटा !"  उस आदमी ने कुत्ते से कहा । मगर कुत्ता उस आदमी को ही देखता रहा ।  तब उसने अपने हिस्से से खाने का निबाला लेकर खाया । उसे खाते देख कुत्ते ने भी खाना शुरू कर दिया । दोनों खाने में व्यस्त हो गए । उस लड़के के हाथ से डंडा  छूटकर नीचे गिर पड़ा था । जब तक दोनों ने खा नहीं लिया वह अपलक उन्हें देखता रहा ।
● "भैया जी ! आप भले भिखारी हों , मजबूर हों , मगर आपके जैसा बेटा किसी के पास नहीं होगा ।" उसने जेब से पैसे निकाले और उस भिखारी के हाथ में रख दिये ।
● "रहने दो भाई , किसी और को ज्यादा जरूरत होगी इनकी । मुझे तो कालू ला ही देता है। मेरे बेटे के रहते मुझे कोई चिंता नहीं ।" भिखारी बोला ।
● वह लड़का हैरान था कि आदमी , आदमी से छीनने को आतुर है, और ये कुत्ता ... बिना अपने मालिक के खाये ....खाना भी नहीं खाता है । उसने अपने सिर को ज़ोर से झटका और वापिस चला आया । अब उसके हाथ में कोई डंडा नहीं था। प्यार पर कोई वार कर भी कैसे सकता है ....और ये तो प्यार की पराकाष्ठा थी ।🙏🏼
 ☀️'प्रेरणादायक कहानी...👌
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एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।
एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी।
ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौन सा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया।
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा. जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई. और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई,  जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था।
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।
तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी।
कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।
खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया।
कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया।
चूहा अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ....।
शिक्षा-अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।
समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।
ये जरूरी थोड़े है मतलब पड़े तब ही किसी काम आये..बिना मतलब के भी तो किसी के काम आया जा सकता है यही तो इंसानियत है.
 छाता बारिश नहीं रोक सकता
परन्तु बारिश में खड़े रहने का
हौसला अवश्य देता है।
उसी तरह आत्मविश्वास
सफलता की गारन्टी तो नहीं देता,
परन्तु सफलता के लिए 
संघर्ष करने की प्रेरणा अवश्य देता है।

क्या फर्क पड़ता है,
हम किसी को जानें न जानें!
वो हमें जानतें हैं,
ये क्या कम है!!

🔨हथौड़ा_और_चाबी🗝
Short Hindi Stories With Moral 
नैतिक शिक्षा देती हिंदी कहानी
 
शहर की तंग गलियों के बीच एक पुरानी ताले की दूकान थी। लोग वहां से ताला-चाबी खरीदते और कभी-कभी चाबी खोने पर डुप्लीकेट चाबी बनवाने भी आते। ताले वाले की दुकान में एक भारी-भरकम हथौड़ा भी था जो कभी-कभार ताले तोड़ने के काम आता था।
हथौड़ा अक्सर सोचा करता कि आखिर इन छोटी-छोटी चाबियों में कौन सी खूबी है जो इतने मजबूत तालों को भी चुटकियों में खोल देती हैं जबकि मुझे इसके लिए कितने प्रहार करने पड़ते हैं?
एक दिन उससे रहा नहीं गया, और दूकान बंद होने के बाद उसने एक नन्ही चाबी से पूछा, “बहन ये बताओ कि आखिर तुम्हारे अन्दर ऐसी कौन सी शक्ति है जो तुम इतने जिद्दी तालों को भी बड़ी आसानी से खोल देती हो, जबकि मैं इतना बलशाली होते हुए भी ऐसा नहीं कर पाता?”
चाबी मुस्कुराई और बोली,
दरअसल, तुम तालों को खोलने के लिए बल का प्रयोग करते हो…उनके ऊपर प्रहार करते हो…और ऐसा करने से ताला खुलता नहीं टूट जाता है….जबकि मैं ताले को बिलकुल भी चोट नहीं पहुंचाती….बल्कि मैं तो उसके मन में उतर कर उसके हृदय को स्पर्श करती हूँ और उसके दिल में अपनी जगह बनाती हूँ। इसके बाद जैसे ही मैं उससे खुलने का निवेदन करती हूँ, वह फ़ौरन खुल जाता है।
दोस्तों, मनुष्य जीवन में भी ऐसा ही कुछ होता है। यदि हम किसी को सचमुच जीतना चाहते हैं, अपना बनाना चाहते हैं तो हमें उस व्यक्ति के हृदय में उतरना होगा। जोर-जबरदस्ती या forcibly किसी से कोई काम कराना संभव तो है पर इस तरह से हम ताले को खोलते नहीं बल्कि उसे तोड़ देते हैं ….यानि उस व्यक्ति की उपयोगिता को नष्ट कर देते हैं, जबकि प्रेम पूर्वक किसी का दिल जीत कर हम सदा के लिए उसे अपना मित्र बना लेते हैं और उसकी उपयोगिता को कई गुना बढ़ा देते हैं।
इस बात को हमेशा याद रखिये-
हर एक चीज जो बल से प्राप्त की जा सकती है उसे प्रेम से भी पाया जा सकता है लेकिन हर एक जिसे प्रेम से पाया जा सकता है उसे बल से नहीं प्राप्त किया जा सकता।
  एक सच्ची रात्रि कहानी 🌌
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रमेश चंद्र शर्मा, जो पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर चलाते थे, उन्होंने अपने जीवन का एक पृष्ठ खोल कर सुनाया जो पाठकों की आँखें भी खोल सकता है और शायद उस पाप से, जिस में वह भागीदार बना, उस से बचा सकता है।
रमेश चंद्र शर्मा का पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर था जो कि अपने स्थान के कारण काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था। लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई।
रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी। अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली। लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं बल्कि कई गुना कमाई होती है।
शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक जाती है। लेकिन अगर कोई मुझसे कभी दो रुपये भी कम करने को कहता तो मैं ग्राहक को मना कर देता। खैर, मैं हर किसी के बारे में बात नहीं कर रहा हूं, सिर्फ अपनी बात कर रहा हूं।
वर्ष 2008 में, गर्मी के दिनों में एक बूढ़ा व्यक्ति मेरे स्टोर में आया। उसने मुझे डॉक्टर की पर्ची दी। मैंने दवा पढ़ी और उसे निकाल लिया। उस दवा का बिल 560 रुपये बन गया। लेकिन बूढ़ा सोच रहा था। उसने अपनी सारी जेब खाली कर दी लेकिन उसके पास कुल 180 रुपये थे। मैं उस समय बहुत गुस्से में था क्योंकि मुझे काफी समय लगा कर उस बूढ़े व्यक्ति की दवा निकालनी पड़ी थी और ऊपर से उसके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे।
बूढ़ा दवा लेने से मना भी नहीं कर पा रहा था। शायद उसे दवा की सख्त जरूरत थी। फिर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मेरी मदद करो। मेरे पास कम पैसे हैं और मेरी पत्नी बीमार है। हमारे बच्चे भी हमें पूछते नहीं हैं। मैं अपनी पत्नी को इस तरह वृद्धावस्था में मरते हुए नहीं देख सकता।"  
लेकिन मैंने उस समय उस बूढ़े व्यक्ति की बात नहीं सुनी और उसे दवा वापस छोड़ने के लिए कहा।
 यहां पर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि वास्तव में उस बूढ़े व्यक्ति की दवा की कुल राशि 120 रुपये ही बनती थी। अगर मैंने उससे 150 रुपये भी ले लिए होते तो भी मुझे 30 रुपये का मुनाफा ही होता। लेकिन मेरे लालच ने उस बूढ़े लाचार व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा। 
फिर मेरी दुकान पर खड़े एक दूसरे ग्राहक ने अपनी जेब से पैसे निकाले और उस बूढ़े आदमी के लिए दवा खरीदी। लेकिन इसका भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने पैसे लिए और बूढ़े को दवाई दे दी।
समय बीतता गया और वर्ष 2009 आ गया। मेरे इकलौते बेटे को ब्रेन ट्यूमर हो गया। पहले तो हमें पता ही नहीं चला। लेकिन जब पता चला तो बेटा मृत्यु के कगार पर था। 
पैसा बहता रहा और लड़के की बीमारी खराब होती गई। प्लॉट बिक गए, जमीन बिक गई और आखिरकार मेडिकल स्टोर भी बिक गया लेकिन मेरे बेटे की तबीयत बिल्कुल नहीं सुधरी। उसका ऑपरेशन भी हुआ और जब सब पैसा खत्म हो गया तो आखिरकार डॉक्टरों ने मुझे अपने बेटे को घर ले जाने और उसकी सेवा करने के लिए कहा। उसके पश्चात 2012 में मेरे बेटे का निधन हो गया। मैं जीवन भर कमाने के बाद भी उसे बचा नहीं सका।
2015 में मुझे भी लकवा मार गया  और मुझे चोट भी लग गई। आज जब मेरी दवा आती है तो उन दवाओं पर खर्च किया गया पैसा मुझे काटता है क्योंकि मैं उन दवाओं की वास्तविक कीमतों को जानता हूं। 
एक दिन मैं कुछ दवाई लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर गया और 100 रु का इंजेक्शन मुझे 700 रु में दिया गया। लेकिन उस समय मेरी जेब में 500 रुपये ही थे और इंजेक्शन के बिना ही मुझे मेडिकल स्टोर से वापस आना पड़ा। उस समय मुझे उस बूढ़े व्यक्ति की बहुत याद आई और मैं घर चला गया।
मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि ठीक है कि हम सभी कमाने के लिए बैठे हैं क्योंकि हर किसी के पास एक पेट है। लेकिन वैध तरीके से कमाएं। गरीब लाचारों को लूट कर कमाई करना अच्छी बात नहीं क्योंकि नरक और स्वर्ग केवल इस धरती पर ही हैं, कहीं और नहीं। और आज मैं नरक भुगत रहा हूं। 
पैसा हमेशा मदद नहीं करता। हमेशा ईश्वर के भय से चलो। उसका नियम अटल है क्योंकि कई बार एक छोटा सा लालच भी हमें बहुत बड़े दुख में धकेल सकता है।
 🌹शहीद दिवस 🌹

लिए होंठो पर मुस्कान चढ़े, वे फांसी के फन्दों पर
 ये देश सारा गर्व करे, भारत के इन बंदों पर
 'इंक़लाब' का नारा था औ' इंक़लाब ही लाना था
मौत का कैसा भय, वह देश का गजब दीवाना था।
अंग्रेजो के हिय में, भय का तूफान जो ला दिया
अंग्रेजी शासन भी, मुँह छिपाये तिलमिला गया।
सिंह की दहाड़ सुन जैसे सारा जंगल हिल जाता
भगतसिंह की आहट से, अंग्रेजी शासन घबराता।
देशभक्ति के मद में डूबा, वह बड़ा दीवाना था
हँसकर झूल गया  भगतसिंह मस्ताना था।
राजगुरु और सुखदेव भी साथ साथ मुस्कुराते चल दिये
जैसे वे निकले ही थे घर से, हथेली पर प्राण लिए।
सब शोक में थे डूबे, वह प्रेम गान का अभिलाषी था
देश के हृदय में जलने वाले, हजारों मशालों का साक्षी था।
 बसंती चोले को रंगने, वह मृत्यु-समर में कूद गया
एक हल्की सी आहट लिए, यह सूरज भी डूब गया।
कहा हम तो जाते हैं लेकिन ये वतन संभाल लेना
ये चोला बसन्ती दिल में, हाथो में कफ़न संभाल लेना।
ये मृत्यु तो सब एक शैय्या है, सबको ही सो जाना है
मृत्यु वह सार्थक हो, जिसे देश के काम आना है।
इंक़लाब कर चलते यारों, होंठो पर मुस्कान लिए
झूल गए वे फांसी पर, देश पर न्यौछावर जान किये।
ऐसे महान वीरो को, आओ हृदय से नमन करे
इंक़लाब का नारा और हिय में श्रध्दा सुमन लिए।
जय जय जय माँ भारती, तूने ऐसे वीरों को जन्म दिया
वीरो से भरी तेरी गोदी, जिन्होंने मुस्कुराकर विष पिया।
 एक समय था जब देशी घी गरम किया जाता था या बनाया जाता था तो आसपास के तीन चार घरों तक उसकी महक फैल जाती थी
इतनी सुंदर महक होती थी कि पूरा मन मस्तिष्क सब गमगमा जाते थे, जिस पात्र में घी रखा जाता था मात्र वही खुल जाए तब भी आसपास के वातावरण में घी की सुंदर महक फैल जाती थी
लेकिन आज कितने भी अच्छे ब्रांड का घी लाओ लेकिन कोई महक नहीं, यहाँ तक कि उसमें नाक भी घुसा लो तब भी वह महक नहीं मिलती जो आज के 20 से 30 वर्ष पहले मिलती थी
कितना मिलावट हम खाते हैं, यह सोचने वाली बात है
गाँवों में भी कमोबेश यही स्थिति हो गयी है शुद्ध घी बनाने पर भी वह महक नहीं मिल पाती जो पहले होती थी
कारण एकमात्र यही है कि पहले गायों को चराया जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति ग्रहण करती थी वह भी बिना किसी रासायनिक खाद और उर्वरकों से युक्त
जो भी था शुद्ध ग्रहण करती थी, जितना भी वनस्पति या औषधि खाती या चरती थी वह सब दूध में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा बन कर व्याप्त हो जाती थी
पूरा दूध ही औषधि युक्त होता था
तब तो दूध भी ऑक्सीटोनिक इंजेक्शन घोंप कर जबरदस्ती नहीं निकाला जाता था लेकिन आज ठीक इसके विपरीत है, अब तो दूध में कोई औषधीय गुण ही नहीं बचा
ऑक्सीटोनिक इंजेक्शन से जबरदस्ती निकाले हुए रासायनिक खाद से पोषित वनस्पतियों से बने दूध का हश्र धीरे धीरे धीमे जहर में बदलता जा रहा है
अरे आजकल तो दही तक केमिकल डालकर बनाया जाता है, जो पहले जामन से बनाया जाता था जो बिल्कुल प्रकृतिक और शुद्ध पद्धति से बनता था
धनिया, पुदीना अगर घर में आ बस जाता था तो पूरा घर महकता था लेकिन आज 😑😑
चने का साग इतना खट्टा होता था कि चटकारे लगा कर खाया जाता था लेकिन अब 😑😑
बहुत दुख होता है कि हम कहाँ से कहाँ आ गए और हैरानी की बात यह है कि इसी को हम क्रमिक विकास और आधुनिकता का नाम देते हैं
हवा, पानी, जल, नदी, झरना, वनस्पति, आकाश, मिट्टी इत्यादि कोई एक भी ऐसा तत्व बता दे जिसको हमने ज़हर न बना दिया हो
हमने विनाश का दरवाजा स्वयं खोल दिया है लेकिन यही तथाकथित विकास है और आधुनिकता की सीढ़ी है
पछतायेगा पछतायेगा फिर गया समय नहीं आएगा
 भगवान विश्वकर्मा।
विश्वकर्मा एक महान ऋषि और ब्रह्मज्ञानी थे। ऋग्वेद में उनका उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि उन्होंने ही देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि का निर्माण किया था। वे महान शिल्पकार थे। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें। 25 फरवरी 2021 यानी माघ शुक्ल त्रयोदशी तिथि को भगवान विश्‍वकर्माजी का प्राकट्य हुआ। 
1.प्राचीन काल में जनकल्याणार्थ मनुष्य को सभ्य बनाने वाले संसार में अनेक जीवनोपयोगी वस्तुओं जैसे वायुयान, जलयान, कुआं, बावड़ी कृषि यन्त्र अस्त्र-शस्त्र, भवन, आभूषण, मूर्तियां, भोजन के पात्र, रथ आदि का अविष्कार करने वाले महर्षि विश्वकर्मा जगत के सर्व प्रथम शिल्पाचार्य होकर आचार्यों के आचार्य कहलाए।

2. प्राचीन समय में 1.इंद्रपुरी, 2.लंकापुरी, 3.यमपुरी, 4.वरुणपुरी, 5.कुबेरपुरी, 6.पाण्डवपुरी, 7.सुदामापुरी, 8.द्वारिका, 9.शिवमण्डलपुरी, 10.हस्तिनापुर जैसे नगरों का निर्माण विश्‍वकर्मा ने ही किया था। कहते हैं कि उन्होंने ही कर्ण का कुंडल, विष्णु का सुदर्शन चक्र, पुष्पक विमान, शंकर भगवान का त्रिशुल, यमराज का कालदंड आदि वस्तुओं का निर्माण किया था। उन्होंने ही ऋषि दधिचि की हड्डियों से दिव्यास्त्रों का निर्माण किया था।

3. भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूपों का उल्लेख पुराणों में मिलता हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु और दस बाहु वाले विश्‍वकर्मा। इसके अलावा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले विश्‍वकर्मा। 

4. पुराणों में विश्वकर्मा के पांच अवतारों का वर्णन मिलता है- 1.विराट विश्वकर्मा- सृष्टि के रचयिता, 2.धर्मवंशी विश्वकर्मा- महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र, 3.अंगिरावंशी विश्वकर्मा- आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र, 4.सुधन्वा विश्वकर्म- महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र और 5.भृंगुवंशी विश्वकर्मा- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)।

5. ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। धर्म की वस्तु नामक पत्नी से उत्पन्न वास्तु सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। स्कंद पुराण के अनुसार धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह देव गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से हुआ। भगवान विश्वकर्मा का जन्म इन्हीं की कोख से हुआ। महाभारत आदिपर्व अध्याय 16 श्लोक 27 एवं 28 में भी इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वराह पुराण के अ.56 में उल्लेख मिलता है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा परमेश्वर ने बुद्धि से विचारकर विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया।

6. विश्‍वकर्मा के पुत्रों से उत्पन्न हुआ महान कुल ब्रह्मणों का उपवर्ग है। राजा प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत ये 3 पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के 10 पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये 3 नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।

7. विश्वकर्मा के पांच महान पुत्र:-
मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र थे। ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। मनु को लोहे में, मय को लकड़ी में, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे में, शिल्पी को ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी में महारात हासिल थी।

8. विश्वकर्मा की जयंती कन्या संक्रांति (17 सितंबर के आसपास) के दिन आती है जबकि विश्‍वकर्मा समाज के मतानुसार माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को उनकी जयंती आती है।   
माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।
अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च॥- वशिष्ठ पुराण

9. वायु पुराण अध्याय 4 के पढ़ने से यह बात सिद्ध हो जाती है कि वास्तव में विश्वकर्मा संतान भृगु ऋषि कुल उत्पन्न हैं।

10. भारत में विश्वकर्मा समाज के लोगों को जांगिड़ ब्राह्मण का माना जाता है। सानग, सनातन, अहमन, प्रत्न और सुपर्ण नामक पांच गोत्र प्रवर्तक ऋषियों से प्रत्येक के 25-25 सन्तानें उत्पन्न हुईं जिससे विशाल विश्वकर्मा समाज का विस्तार हुआ है।
 हाँ भगवान है..!! 
 
एक मेजर के नेतृत्व में 15 जवानों की एक टुकड़ी 
हिमालय के अपने रास्ते पर थी 
बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ 
एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती 
 
लेकिन रात का समय था आपस कोई बस्ती भी नहीं थी 
लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक 
जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी  
लेकिन अफ़सोस उस पर *ताला* लगा था. 
भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर 
मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गया 
खैर ताला तोडा गया, 
तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया 
जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी । 
थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे 
लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी.. 
 
उन्होंने अपने पर्स में से एक हज़ार का नोट निकाला 
और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए.  
 
तीन महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी 15 जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में 
उसी रास्ते से वापिस आ रहे थे 
 
रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां विश्राम करने के लिए रुक गए 
 
उस दुकान का *मालिक* एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा     
 
चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच वो बूढ़े चाय वाले से उसके जीवन के  
अनुभव पूछने लगे खास्तौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में     
 
बूढ़ा उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का शुक्र अदा करता रहा  
 
तभी एक जवान बोला ” *बाबा आप भगवान को इतना मानते हो 
अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हे इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ है”*  
 
बाबा बोला *”नहीं साहब ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे में, 
भगवान् तो है और सच में है …. मैंने देखा है” 
 
आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बूढ़े की ओर देखने लगे 
 
बूढ़ा बोला “साहब मै बहुत मुसीबत में था एक दिन मेरे इकलौते बेटे को 
आतंकवादीयों ने पकड़ लिया उन्होंने उसे बहुत मारा पिटा लेकिन 
उसके पास कोई जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने उसे मार पीट कर छोड़ दिया” 
 
“मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया मै बहुत तंगी में था साहब  
और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दिया” 
 
“मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती थी 
उस रात साहब मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी “और साहब …  
उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आए” 
 
“मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा की 
मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गया” 
 
” *मै दुकान में घुसा तो देखा  1000 रूपए का एक नोट, 
चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ है”*   

 
“साहब ….. उस दिन एक हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थी शायद मै बयान न कर पाऊं .. 
लेकिन भगवान् है साहब … भगवान् तो है”*  बूढ़ा फिर अपने आप में बड़बड़ाया 
  
भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था 
यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया ….. 
 
पंद्रह जोड़ी आंखे मेजर की तरफ देख रही थी 
जिसकी आंख में उन्हें अपने  लिए स्पष्ट आदेश था *”चुप  रहो “ 
 
मेजर साहब उठे, चाय का बिल अदा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले 
“हाँ बाबा मै जनता हूँ भगवान् है…. और तुम्हारी चाय भी शानदार थी” 
 
और उस दिन उन पंद्रह जोड़ी आँखों ने पहली बार मेजर की आँखों में 
चमकते पानी के दुर्लभ दृश्य का साक्ष्य किया 
 
और 
 
सच्चाई यही है की भगवान तुम्हे कब किसी का भगवान बनाकर कहीं भेज दे 
ये खुद तुम भी नहीं जानते………..
 *वाह रे जिंदगी*
""”"""""""""""""""'""""
* दौलत की भूख ऐसी लगी की कमाने निकल गए *
* ओर जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए *
* बच्चो के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी *
* ओर जब फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए * 
         *वाह रे जिंदगी*
         ""”"""""""""""""""'""""

*वाह रे जिंदगी*
""”"""""""""""""""'""""
* जिंदगी की आधी उम्र तक पैसा कमाया*
*पैसा कमाने में इस शरीर को खराब किया * 
* बाकी आधी उम्र उसी पैसे को *
* शरीर ठीक करने में लगाया * 
* ओर अंत मे क्या हुआ *
* ना शरीर बचा ना ही पैसा *
""""‛"""''""""""""'''''''''''''''''''''''''''''''''""""""""""
           *वाह रे जिंदगी*
             ""”"""""""""""""""'""""

*वाह रे जिंदगी*
""”"""""""""""""""'""""
* शमशान के बाहर लिखा था *
* मंजिल तो तेरी ये ही थी *
* बस जिंदगी बित गई आते आते *
* क्या मिला तुझे इस दुनिया से * 
 * अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते *
            *वाह  रे जिंदगी*
              ""”"""""""""""""""'""""
 यदि "महाभारत" को पढ़ने का समय न हो तो भी इसके नौ सार- सूत्र को ही समझ लेना हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है
1. संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे - कौरव
2. आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अधर्म के साथ हो तो, आपकी विद्या, अस्त्र-शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा - कर्ण
3. संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे - अश्वत्थामा
4. कभी किसी को ऐसा वचन मत दो  कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े - भीष्म पितामह
5. संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है - दुर्योधन
6. अंध व्यक्ति - अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी विनाश की ओर ले जाती है - धृतराष्ट्र
7. यदि व्यक्ति के पास विद्या, विवेक से बँधी हो तो विजय अवश्य मिलती है - अर्जुन
8. हर कार्य में छल, कपट, व प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते - शकुनि
9. यदि आप नीति, धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे, तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती - युधिष्ठिर
श्रीं कृष्णं कृष्णाय नम : 🙏🌹 🌿 🌾 🚩
 वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""
दौलत की भूख ऐसी लगी की कमाने निकल गए 
ओर जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए 
बच्चो के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी 
ओर जब फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए 
         
वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""
जिंदगी की आधी उम्र तक पैसा कमाया*
पैसा कमाने में इस शरीर को खराब किया 
बाकी आधी उम्र उसी पैसे को 
शरीर ठीक करने में लगाया 
ओर अंत मे क्या हुआ 
ना शरीर बचा ना ही पैसा 
        
वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""

वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""
शमशान के बाहर लिखा था 
मंजिल तो तेरी ये ही थी 
बस जिंदगी बित गई आते आते 
क्या मिला तुझे इस दुनिया से 
 अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते 
         
   वाह  रे जिंदगी
                 ""”"""""""""""""""'"
 ✤ *विचारों का प्रभाव* ✤
✦ जहां पर अग्नि जलती है वहां तीन प्रकार का प्रभाव होता है। एक तो धुआँ बनता है जो वायुमंडल में फैलता है, दूसरा आस पास के वातारण को गरमाहट मिलती है, रोशनी फैलती है तथा जिस पदार्थ से अग्नि जल रही है वह वस्तु नष्ट हो रही है या परिवर्तन हो रही है।
✦ ऐसे ही हमारे सभी विचार जाने अनजाने जो भी हमारे मन में चलते है वह सात प्रकार से प्रभावित करते हैं.....
*1)* जिस व्यक्ति, वस्तु व लक्ष्य के बारे में हम सोचते हैं, हमारे विचार उन्हें प्रभावित करते हैं।
*2)* हमारे सभी विचार हमारे सूक्ष्म संस्कारों में रिकाॅर्ड होते रहते हैं।
*3)* हमारे विचारों से हमारा स्थूल शरीर भी प्रभावित होता है। हमारा शरीर और कुछ नही सिर्फ विचारों का स्थूल रुप है। हर संकल्प तरल रुप में परिवर्तित होता रहता है। यह जो हमारे मुख में थूक बनती है यह भी हमारे विचारो का स्थूल रुप है। अगर हम बुरे विचार करते है तो शरीर बीमारी के रुप से नष्ट होता है। अगर अच्छे विचार करते है तो शरीर हृष्ट पुष्ट बनता है।
*4)* हमारे जो सब से नज़दीक भाई-बहने या सगे संबधी हैं, चाहे घर मे हैं या बाहर, वे भी हमारे विचारों से प्रभावित होते हैं।
*5)* हमारे विचार उनको भी प्रभावित करते हैं जिनके हम पूर्वज रहे हैं। पूरे 84 जन्मों में जो हमारे माँ-बाप थे, सास-ससुर, पति- पत्नी या बेटा - बेटी थे उनके हम पूर्वज कहलाते हैं। वे लोग चाहे अब कहीं भी भिन्न-भिन्न जन्मों में हैं और हम नहीँ जानते वे कहां हैं तो भी हमारा हर संकल्प अनजाने में उनको भी पहुँचता हैं और वह उसी अनुसार प्रेरित होते हैं।
*6)* जिन लोगो के हम मुखिया हैं जैसे परिवार, समूह, संघ, ऑफिस, दुकान, व्यापार, टीचर, प्रशासक, नेता, मालिक, कर्मचारी, पुजारी वा संस्था के मुखिया रुप में कहीं ना कहीं वे सब लोग भी हमारे विचारों से प्रभावित होते हैं।
*7)* हमारे वर्तमान परिवार के लोगो पर हमारे विचारों का तुरंत प्रभाव पड़ता है। जिसे हम शांति व आशांति के रुप में महसूस करते हैं।
✦ अभी संसार नहीं बदल रहा है तो उसका कारण और कुछ नहीं सिर्फ यही है कि हम मन से नहीं बदले हैं। हम सिर्फ बोलते अच्छा है मन से वैसे नहीं हैं इसलिये लोग भी बोलते अच्छा है और करते उल्टा है।
✦ एक टीचर स्कूल में बच्चों को बीड़ी ना पीने का प्रचार करता था। उसका सारे स्कूल में बहुत मान था। एक दिन उसने देखा कि कुछ बच्चे छिप कर बीड़िया पी रहे थे। वह दुखी था परंतु गहराई से सोचने पर उस ने पाया कि वे खुद छिप कर बीड़ी पीते थे।
✦ याद रखें कि आपका जीवन औरों के लिए प्रेरणा दायक है। लोग वह बनते है जो आप वास्तव में है, ना कि वह जो आप बोलते वा सिखाते हैं। आपके नकारात्मक संस्कार भी सभी पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यदि आप डरपोक है, आलसी है, स्वार्थी है, पक्षपाती है या फिर केवल प्रचारक हैं योगी नही, क्रोधी है शांत नही, ईर्ष्यालु हैं स्नेही वा सहयोगी नही है, तो आपको मानने वाले वही बनेंगे जो आप वास्तव में हैं...चाहे आप कितना भी स्वयं को छिपा लें।
✦ इसलिए अपने मूल गुणों शांति, प्रेम, सुख, आनद के संकल्पों में रहिए क्योंकि बिना जाने भी लोग आपके विचारों के माध्यम से आप से प्रभावित हो रहे हैं। आपके शुद्ध सात्विक विचारों की खुशबू सारे वातावरण को महकाती है। यह भी महान सेवा है।
 एक बाप अपनी बेटी के लिए  वर  खोजता है
जहाँ सुकून मिले जिंदगी भर का वो दर खोजता है।
एक बाप अपनी बेटी के लिए........।
जो पढ़ लिया होता है एम बीए पास
वो तो हो जाता है दुनिया के लिए खास
जहाँ लगे दहेज कम ऐसा घर ढूढता है ।
एक बाप अपनी बेटी के......।
जिस घर मे एक भी नौकरी है सरकारी
वहाँ होती है दहेज की लम्बी लिस्ट जारी
उस घर का लड़का पैसा वाला ससुर ढूढता है
एक बाप अपनी बेटी.......।
जिस लड़की को पाला पोसा जिसका किया जतन
कैसे सौप दू ऐ बेटी  उस दुनिया को जो ओढ़े है दहेज का कफ़न
इसी कसमकस में है बाप देखो अब ज़हर ढूढता है
एक बाप अपनी बेटी के लिए वर  खोजता है।।

 👌🏽👌🏽यही सत्य है 👌🏽👌🏽


*कंद-मूल खाने वालों से*

मांसाहारी डरते थे।।


*पोरस जैसे शूर-वीर को*

नमन 'सिकंदर' करते थे॥


*चौदह वर्षों तक खूंखारी* 

वन में जिसका धाम था।।


*मन-मन्दिर में बसने वाला* 

शाकाहारी *राम* था।।


*चाहते तो खा सकते थे वो* 

मांस पशु के ढेरो में।।


लेकिन उनको प्यार मिला

' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥


*चक्र सुदर्शन धारी थे*

*गोवर्धन पर भारी थे*॥


*मुरली से वश करने वाले*

*गिरधर' शाकाहारी थे*॥


*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*

चोटी पर फहराया था।।


*निर्धन की कुटिया में जाकर* 

जिसने मान बढाया था॥


*सपने जिसने देखे थे*

मानवता के विस्तार के।।


*नानक जैसे महा-संत थे*

वाचक शाकाहार के॥


*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो* 

गौरवमय इतिहास को।।


*आदम से आदी तक फैले*

इस नीले आकाश को॥


*दया की आँखे खोल देख लो*

पशु के करुण क्रंदन को।।


*इंसानों का जिस्म बना है*

शाकाहारी भोजन को॥


*अंग लाश के खा जाए*

क्या फ़िर भी वो इंसान है?


*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*

या कोई कब्रिस्तान है?


*आँखे कितना रोती हैं जब* 

उंगली अपनी जलती है


*सोचो उस तड़पन की हद*                    

जब जिस्म पे आरी चलती है॥


*बेबसता तुम पशु की देखो* 

बचने के आसार नही।।


*जीते जी तन काटा जाए*,

उस पीडा का पार नही॥


*खाने से पहले बिरयानी*,

चीख जीव की सुन लेते।।


*करुणा के वश होकर तुम भी*

गिरी गिरनार को चुन लेते॥


*शाकाहारी बनो*...!


 *❤️ पिता पुत्री के संबंध❤️*
❤️बटी की विदाई के वक्त बाप ही सबसे आखिरी में रोता है क्यों, चलिए आज आपको विस्तार से बताता हूं ।।
बाकी सब भावुकता में रोते हैं, पर बाप उस बेटी के बचपन से विदाई तक के बीते हुए पलों को याद कर कर के रोता है।। 
❇️माँ बेटी के रिश्तों पर तो बात होती ही है, पर बाप ओर बेटी का रिश्ता भी समुद्र से गहरा है ।।हर बाप घर के बेटे को गाली देता है, धमकाता है, मारता है, पर वही बाप अपनी बेटी की हर गलती को नकली दादागिरी दिखाते हुए नजर अंदाज कर देता है ।। 
❇️बटे ने कुछ मांगा तो एक बार डांट देता है पर बेटी ने धीरे से भी कुछ मांगा तो बाप को सुनाई दे जाता है, और जेब मे हो न हो पर बेटी की इच्छा पूरी कर देता है ।।दुनिया उस बाप का सब कुछ लूट ले, तो भी वो हार नही मानता पर अपनी बेटी के आंख के आंसू देख कर खुद अंदर से बिखर जाए उसे बाप कहते हैं ।।
❇️और बेटी भी जब घर मे रहती है तो उसे हर बात में बाप का घमंड होता है, किसी ने कुछ कहा नहीं कि वो बेटी तपाक से बोलती है, पापा को आने दे फिर बताती हूं ।।बेटी घर मे रहती तो माँ के आंचल में है,पर बेटी की हिम्मत उसका बाप रहता है ।।
❇️बटी की जब शादी में विदाई होती है तब वो सबसे मिलकर रोती तो है पर जैसे ही विदाई के वक्त कुर्सी समेटते बाप को देखती है, जाकर झूम जाती है और लिपट जाती है और ऐसा कस के पकड़ती है अपने बाप को जैसे माँ अपने बेटे को, क्योंकि उस बच्ची को पता है ये बाप ही है जिसके दम पर मैने अपनी हर जिद पूरी की थी ।।
❇️खर बाप खुद रोता भी है और बेटी की पीठ ठोक कर फिर हिम्मत देता है, कि बेटा चार दिन बाद आ जाऊँगा तुझको लेने और खुद जान बूझकर निकल जाता है किसी  कोने में और उस कोने में जाकर वो बाप कितना फूट फूट कर रोता है, ये बात सिर्फ एक बेटी का बाप ही समझ सकता है ।।
❇️जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है और घर मे भी जिद कर लेती है और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है, पर जैसे ही बाप मरता है ओर बेटी आती है तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि, सारे रिश्तेदार समझ जाते है कि बेटी आ गई है ।।
❇️और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका बाप ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं ।।  बाप की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई के घर जिद नही करती है, जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसका बाप था तब तक सब कुछ उसका था यह बात वो अच्छी तरह से जानती है ।।
🙏🙏आगे लिखने की हिम्मत नही है, बस इतना ही कहना चाहती  हूं कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नही, और बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है ।।
बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है....
 "बैकुंठ चतुर्दशी"
पौराणिक मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आये। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर के उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।
भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हजार कमल पुष्प चढाने थे। एक पुष्प की कमी देख कर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के समान ही हैं। मुझे 'कमलनयन' और 'पुण्डरीकाक्ष' कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढाने को तत्पर हुए तभी विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न हो कर देवाधिदेव महादेव प्रगट हो कर बोले - 'हे विष्णु! तुम्हारे समान जगत में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
भगवान शिव ने इसी बैकुंठ चतुर्दशी को कोटि सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र विष्णु जी को प्रदान किया।
देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु सृष्टि की सत्ता का कार्यभार भगवान शिव को सौंप कर पाताल लोक के राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं, इसलिए इन दिनों में शुभ कार्य नहीं होते। इस समय सत्ता शिव के पास होती है एवं बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता भगवान विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं। जब सत्ता भगवान विष्णु जी के पास आती है तो सृष्टि के कार्य आरंभ हो जाते हैं। इसी दिन को बैकुंठ चतुर्दशी या हरि-हर मिलन कहते हैं।
                                             
                        🌷जय श्री हरिहर।🌷🙏
 तुलसी विवाह
एकादशी के दिन तुलसी विवाह  की परंपरा रही है। माता तुलसी की सालिग्राम जी से विवाह की जाती है। कई घरों में इस दिन एक दम विवाह जैसा माहौल रहता है। अगर आपके घर में भी तुलसी पैधा है तो आप आज तुलसी विवाह करके सुख-समृद्धि में वृद्धि कर सकती हैं। कहा जाता है कि जिनके विवाह में देरी हो रही है या जो योग्य वर और वधू चाहते हैं इस दिन विधि विधान से पूजा करें। तो आइए जानते हैं कैसे करें तुलसी विवाह
शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
* तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
* तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
* तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
* गमले में सालिग्राम जी रखें। अगर सालिग्राम नहीं है तो भगवान विष्णु की फोटो भी रख सकती हैं।
* सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
* तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
* गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
* अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
* देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
* कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलसा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
* तुलसी माता पर प्रसाद चढ़ाएं।
* 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
* प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
* प्रसाद वितरण अवश्य करें।
* पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जा सकता है-
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
तुलसी के ये मंत्र
भगवान कृष्ण से साक्षात्कार
 हिन्दू धर्म में तुलसी का बड़ा ही महत्व है। इसे बड़ा पूजनीय माना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार तुलसी का नाम मात्र उच्चारण करने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं। साथ ही मान्यता है कि जिस घर के आंगन में तुलसी होती हैं वहां कभी कोई कष्ट नहीं आता है। पुराणों के जानकारों की मानें तो तुलसी की पूजा से सीधे भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं। वे भक्तों की बात सुनते हैं। पद्मपुराण के अनुसार द्वादशी की रात को जागरण करते हुए तुलसी स्तोत्र को पढऩा चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु जातक के सभी अपराध क्षमा कर देते हैं। तुलसी महिमा को सुनने से भी समान पुण्य मिलता है।
तुलसी पूजा के मंत्र
तुलसी जी को जल चढाने का मंत्र 
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
तुलसी जी का ध्यान मन्त्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
धन-संपदा, वैभव, सुख, समृद्धि की प्राप्ति के लिए तुलसी नामाष्टक मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी के पत्ते तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए
ॐ सुभद्राय नमः 
ॐ सुप्रभाय नमः
- मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
यदि आपके आंगन में है तुलसी तो आप एक खास मंत्र के जरिए और आत्मविश्वासी हो सकते हैं। यह गायत्री मंत्र, जो तुलसी पूजन में उपयुक्त होता है
ऊँ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
ये है पूजन विधि
– सुबह स्नान के बाद घर के आंगन या देवालय में लगे तुलसी के पौधे की गंध, फूल, लाल वस्त्र चढ़ाकर पूजा करें। फल का भोग लगाएं।
– धूप व दीप जलाकर उसके नजदीक बैठकर तुलसी की ही माला से तुलसी गायत्री मंत्र का श्रद्धा से, सुख की कामना से 108 बार स्मरण करें। तब अंत में तुलसी की पूजा करें ।
– पूजा व मंत्र जप में हुई त्रुटि की प्रार्थना आरती के बाद कर फल का प्रसाद ग्रहण करें।
– संध्या समय तुलसी के पास दीपक प्रज्वलित अवश्य ही करना चाहिए। इससे सदैव घर में सुख शांति का वातावरण बना रहता है।
तुलसी जी के अन्य नाम और उनके अर्थ
वृंदा - सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी
वृन्दावनी - जिनका उद्भव व्रज में हुआ
विश्वपूजिता - समस्त जगत द्वारा पूजित
विश्व
 सबसे_कीमती_चीज
एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.
फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर  उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” 
और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और  फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.
“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ? ” और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.
” क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक  बार  फिर हाथ उठने शुरू हो गए.
” दोस्तों  , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.
जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है.
 लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.
कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये. याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.
 तो साथियों आप आपकी ज़िंदगी के मालिक आप ही हो इस जिंदगी की कीमत भी आपको ही समझनी है
 अवसर
एक बार एक ग्राहक चित्रो की दुकान पर गया। 
उसने वहाँ पर अजीब से चित्र देखे। 
पहले चित्र मे चेहरा पूरी तरह बालो से ढँका हुआ था और पैरोँ मे पंख थे। 
एक दूसरे चित्र मे सिर पीछे से गंजा था। 

ग्राहक ने पूछा- "यह चित्र किसका है?" दुकानदार ने कहा- "अवसर का।
ग्राहक ने पूछा- "इसका चेहरा बालो से ढका क्यो है?" 
दुकानदार ने कहा- "क्योंकि अक्सर जब अवसर 
आता है तो मनुष्य उसे पहचानता नही है।
ग्राहक ने पूछा-और इसके पैरो मे पंख क्यो है?" 

दुकानदार ने कहा- "वह इसलिये कि यह तुरंत वापस भाग जाता है, यदि इसका उपयोग न हो तो यह तुरंत उड़ जाता है।" 
ग्राहक ने पूछा- "और यह दूसरे चित्र मे पीछे से गंजा सिर किसका है?" 
दुकानदार ने कहा- "यह भी अवसर का है। 
यदि अवसर को सामने से ही बालो से पकड़ लेँगे तो वह आपका है। 
 आपने उसे थोड़ी देरी से पकड़ने की कोशिश की तो पीछे का गंजा सिर हाथ आयेगा और वो फिसलकर निकल जायेगा।"
वह ग्राहक इन चित्रो का रहस्य जानकर हैरान था पर अब वह बात समझ चुका था। 
आपने कई बार दूसरो को ये कहते हुए सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि 'हमे अवसर ही नही मिला लेकिन ये अपनी जिम्मेदारी से भागने और अपनी गलती को छुपाने का बस एक बहाना है।
सन्तमत विचार-भगवान ने हमे ढेरो अवसरो के बीच जन्म दिया है। 
अवसर हमेशा हमारे सामने से आते जाते रहते है पर हम उसे पहचान नही पाते या पहचानने मे देर कर देते है। 
और कई बार हम सिर्फ इसलिये चूक जाते है क्योकि हम बड़े अवसर के ताक मे रहते हैं। 
पर अवसर बड़ा या छोटा नही होता है। हमे हर अवसर का भरपूर उपयोग करना चाहिये!
 🌹जीवन के 5 सत्य:-🌹
1. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने खूबसूरत हैं क्योंकि..लँगूर और गोरिल्ला भी अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं..
2. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका शरीर कितना विशाल और मज़बूत है क्योंकि...श्मशान तक आप अपने आपको नहीं ले जा सकते....
3. आप कितने भी लम्बे क्यों न हों मगर आने वाले कल को आप नहीं देख सकते....
4. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी त्वचा कितनी गोरी और चमकदार है क्योंकि...अँधेरे में रोशनी की जरूरत पड़ती ही है...
5. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने अमीर हैं और दर्जनों गाड़ियाँ आपके पास है क्योंकि...घर के बाथरूम तक आपको चल के ही जाना पड़ेगा...
 इसलिए संभल के चलिए ...
 👌अनमोल👌
💥 “ये बिल क्या होता है माँ ?” 
       8 साल के बेटे ने माँ से पूछा।
💥 माँ ने समझाया -- “जब हम किसी से कोई सामान 
     लेते हैं या काम कराते हैं, तो वह उस सामान या काम
     के बदले हम से पैसे लेता है, और हमें उस काम या
     सामान की एक सूची बना कर देता है, 
     इसी को हम बिल कहते हैं।”
💥 लड़के को बात अच्छी तरह समझ में आ गयी। 
      रात को सोने से पहले, उसने माँ के तकिये के नीचे 
      एक कागज़ रखा, 
      जिस में उस दिन का हिसाब लिखा था।
💥 पास की दूकान से सामान लाया             5रु 
      पापा की bike पोंछकर बाहर निकाली।  5 रु 
      दादाजी का सर दबाया                         10 रु 
      माँ की चाभी ढूंढी                                10 रु
      कुल योग                                           30 रु 
💥 यह सिर्फ आज का बिल है , 
      इसे आज ही चुकता कर दे तो अच्छा है।
 💥 सबह जब वह उठा तो उसके तकिये के नीचे 30 रु.   
      रखे थे। यह देख कर वह बहुत खुश हुआ 
      कि ये बढ़िया काम मिल गया।
💥 तभी उस ने एक और कागज़ वहीं रखा देखा।
      जल्दी से उठा कर, उसने कागज़ को पढ़ा। 
      माँ ने लिखा था --
😘 जन्म से अब तक पालना पोसना --       रु 00
💥बीमार होने पर रात रात भर 
      छाती से लगाये घूमना --                     रु 00
😘 सकूल भेजना और घर पर 
       होम वर्क कराना  --                          रु 00
💥 सबह से रात तक खिलाना, पिलाना, 
      कपड़े सिलाना, प्रेस करना --               रु 00 
💥 अधिक तर मांगे पूरी करना --              रु 00
      कुल योग                                         रु 00 
💥 य अभी तक का पूरा बिल है, 
      इसे जब चुकता करना चाहो कर देना।
💥 लड़के की आँखे भर आईं
      सीधा जा कर माँ के पैरों में झुक गया
      और मुश्किल से बोल पाया --
     “तेरे बिल में मोल तो लिखा ही नहीं है माँ,
      ये तो अनमोल है,"
      इसे चुकता करने लायक धन तो
      मेरे पास कभी भी नहीं होगा। 
      मुझे माफ़ कर देना , माँ।“

👌माँ ने," हँसते हुए" उसे गले से लगा लिया ।
💥  बच्चों को ज़रूर पढ़ायें यह मेरा निवेदन है ......
       भले ही आपके बच्चे माँ बाप बन गए हो ।🚩👍
 *एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये | दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे |*
*सन्यासी ने  एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए* *दुकानदार" से पूछा, "इसमें क्या है?"*
*दुकानदार ने कहा, "इसमें नमक है।"*
*सन्यासी ने फिर पूछा, "इसके* *पास वाले में क्या है ?"*
*दुकानदार ने कहा, "इसमें हल्दी है।"*
*इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा।*
*अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा,* *"उस अंतिम डिब्बे में क्या है?"*
*दुकानदार बोला, "उसमें श्रीकृष्ण हैं।"*
*सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा, "श्रीकृष्ण !! भला यह* *"श्रीकृष्ण" किस वस्तु का नाम है भाई? मैंने तो इस नाम के* *किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !"*
*दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला,* *"महात्मन ! और डिब्बों मे तो* *भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं | पर यह* *डिब्बा खाली है| हम खाली को खाली नहीं कहकर* *श्रीकृष्ण कहते हैं !"*
 
*संन्यासी की आंखें खुली की* *खुली रह गई ! जिस बात के* *लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वो बात मुझे आज एक व्यापारी से समझ आ रही है।* *वो सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों* *में गिर पड़ा, ओह, तो खाली में श्रीकृष्ण रहता है !*
 *सत्य है ! भरे हुए में श्रीकृष्ण को स्थान कहाँ ?*
*काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख की बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ?*
हरे कृष्ण😊🙏
 महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कृष्ण और भीष्म पितामह की अंतिम वार्ता👇

भीष्म बोले, "एक बात बताओ कन्हैया! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या?"

- "किसकी ओर से पितामह? पांडवों की ओर से?"

- "कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया, पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था? आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती का चीरा जाना, जयद्रथ के साथ हुआ छल, निहत्थे कर्ण का वध, सब ठीक था क्या? यह सब उचित था क्या?"

- इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया। उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम, उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन, मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह!

- "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है, पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है। मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा

कृष्ण!" - "तो सुनिए पितामह! कुछ बुरा नहीं हुआ, कुछ अनैतिक नहीं हुआ। वही हुआ जो होना चाहिए था।"

- " यह तुम कह रहे हो केशव? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है? यह क्षल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे हो गया? "

- "इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह, पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर ही लेना पड़ता है। हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकताओं के आधार पर अपना नायक चुनता है। राम त्रेता युग के नायक थे, मेरे भाग में द्वापर आया था। एक ही परिस्थिति में हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह।"

-" नहीं समझ पाया कृष्ण! तनिक समझाओ तो..."

-" राम और कृष्ण के काल खण्डों की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह! राम के युग में खलनायक भी 'रावण' जैसा शिवभक्त होता था। तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण और कुम्भकर्ण जैसे सन्त हुआ करते थे। तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे।

उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था। इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया।

किंतु मेरे द्वापर युग के इस भाग में में कंस, जरासन्ध, दुर्योधन, दुःशासन, शकुनी, जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं। उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह। पाप का अंत आवश्यक है पितामह, वह चाहे जिस विधि से भी हो।"

- "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा?"

-" भविष्य तो इससे भी और अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह। कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा। वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा, नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा।

जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह! तब महत्वपूर्ण होती है विजय, केवल विजय। भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह।"

-"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव? और यदि धर्म का नाश होना ही है, तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है?"

-"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता, सब मनुष्य को ही करना पड़ता है।"

"आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न! तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या? सब पांडवों को ही करना पड़ा न? यही प्रकृति का संविधान है। युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से। यही परम सत्य है।"

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे। उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी। उन्होंने कहा- "चलो कृष्ण! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है, कल सम्भवतः चले जाना हो... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण!"

कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले, पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था

जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है।


आत्महत्या




जिंदगी का हाथ छोड़कर तुमने

मौत को गले लगा लिया

ऐसा भी क्या था?

जो तुमने खुद की सांसो से दामन छुड़ा लिया

मुश्किलें आती हैं और परख कर चली जाती है

काश तुम समझ पाते सांसे जो रुक जाती हैं

वो वापस नहीं आती है।

तुम्हें ऐसा लगता है

तुमने खुद की की जान ली है,

अपनी सांसे तो मान ली तुमने

पर जाते-जाते कितनों की जिंदगी

वीरान की है तुमने।

वो बूढ़ा पिता जो तुमने अपने कल को देखा करता था

वो आज अपने जिंदगी हर पल को कोसा करता है।

वो मां जो अपने आंचल से तेरा मुखड़ा पोछा करती थी!

आज वो निशब्द चौखट को देखा करती है।

सांसे तो तेरी ही रुकी लेकिन

अब तेरी मां भी कहां जिंदा जिया करती है।

वो घटना जो उसके घर के चिराग को ले गई

रो-रो कर मां उसे

आत्महत्या कहां करती है !

 People are often unreasonable, illogical and self-centered;

FORGIVE THEM ANYWAY.🦋


If you are kind, people will accuse you of selfish motives;

BE KIND ANYWAY.🦋


If you are successful, you will win some false friends and some true enemies;

SUCCEED ANYWAY.🦋


If you are honest and sincere, people may deceive you;

BE HONEST AND SINCERE ANYWAY.


What you spend years building, someone could destroy overnight;

BUILD ANYWAY.🦋


If you find serenity and happiness, they may be jealous;

BE HAPPY ANYWAY.🦋


The good you do today, people will often forget tomorrow;

DO GOOD ANYWAY.🦋


Give the world the best you have and it may never be enough;

GIVE THEM YOUR BEST ANYWAY.🦋


In the final analysis, it is between you and God;

IT WAS NEVER BETWEEN YOU AND THEM ANYWAY.

 💧 BHAGAWAT GEETA 

🍥 Beautiful   Message !


💬   Stay   Away   From   Anger... It   Hurts ....Only   You !


💬   If    You    Are    Right    Then     There    is     No    Need    to    Get    Angry ...


💬   And    If    You    Are    Wrong    Then    You     Don't     Have    Any    Right    to    Get    Angry.


💬   Patience    With    Family    is   Love .....


💬   Patience    With    Others    is   Respect.


💬   Patience     With     Self     is   Confidence   And   Patience   With   GOD   is   Faith.


💬   Never    Think    Hard    About    The    PAST ,    It    Brings    Tears...


💬   Don't    Think    More    About   The   FUTURE ,   It   Brings   Fear...


💬  Live   This   Moment   With   A   Smile ,  It    Brings   Cheer.


💬  Every     Test     in    Our    Life   Makes   Us   Bitter   Or   Better .....


💬   Every   Problem   Comes   To   Make   Us   Or   Break   Us  !


💬   The      Choice     is       Ours   Whether   We   Become   Victims   Or   Victorious.


💬   Beautiful   Things    Are    Not   Always   Good   But   Good  Things   Are   Always   Beautiful ......


💬   Do   You   Know    Why    God  Created   Gaps  between  Fingers ?  So     That     Someone ,    Who    is     Special    To    You ,   Comes    And   Fills   Those    Gaps ,   By   Holding   Your   Hand   Forever.


💬   " Happiness "   Keeps   You ....  Sweet   But   Being   Sweet   Brings   Happiness.


🛡️ 🛡️

💢 *(The way to success)*💢

 फ़िक्र उसकी करो जो क़रीब है,

दूर की चीज़ों का ज़िक्र भुलाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर,

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

काँटें तो तय हैं ही सफ़र में

उन्हें फूलों की तरह सजाना होगा,

चेहरे पर एक लेकर मुस्कान

ग़मों से रिश्ता मिटाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

तेरी ख़ामोशियों को मिटा कर

तुझे तेरे शोर को बढ़ाना होगा,

शब्दों की क़ायनात का हुनर

अब दुनिया को दिखाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

नहीं बनना है तुझे कोई भीड़

तेरे अन्दर भी एक ज़माना होगा,

तू कर यक़ीन एक ख़ुद पर भी

तुझे नहीं ख़ुद को आज़माना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

वक़्त को मानकर तेरा हमसफ़र

तुझे क़दम से क़दम मिलाना होगा,

तेरे पल पल को समेटकर बना

तेरा ख़ुद का एक आशियाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

खुल कर साँसें लेने के लिए

तुझे तेरे हर डर को हराना होगा,

कर एक ज़िद तू आँसुओं से भी

कि रो कर भी तुझे मुसकुराना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

जो जुड़ा है सिर्फ़ तुझसे ही

उसे तो तुझे मिल ही जाना होगा,

खड़ी होगी मौत जब बाँहें फैलाकर

न चाहते हुए भी तुझे जाना होगा !

इसलिए कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

पहले तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

 ^🌈परेरणादायक प्रसंग-शिक्षा का निचोड़🌈^^^

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काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा... "गुरुवर! शिक्षा का निचोड़ क्या है? संत ने मुस्करा कर कहा..."एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।" कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा... "वत्स! इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।" शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा... "क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?" शिष्य ने कहा... "गुरुवर! कमरे में सांप है।" संत ने कहा... "यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।" शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला... "सांप वहां से जा नहीं रहा है।" संत ने कहा... "इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।" शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा... "गुरुवर! वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।" संत ने कहा... "वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है। यही शिक्षा का निचोड़ है।" वास्तव में अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रमजाल पाल लेते हैं और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश निरंतर स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।

 तुम और वो लड़की रात के तीसरे पहर चैट कर रहे हो।   

बात करते करते तुम्हे कामुकता का अहसास होता है। 

तुम बिना सोचे बिना एक पल गवाए उससे एक न्यूड फोटो की मांग कर देते हो। 

वो कहती है की वो नहीं दे सकती। 

तुम अपने जिद्द पर अड़े रहते हो। 

वो तुम्हे समझाने की कोशिश करती है। 

तुम उसे तुमपर यकींन करने को कहते हो। 

वो कहती है शादी के बाद देख लेना वो तुम्हारी ही तो है। 

तुम फिर भी नहीं मानते। 


फिर वो तुम्हे वेट करने को कहती है। 

तुम बड़े सब्र से इंतज़ार करते हो। 

फिर वो तस्वीरें भेज देती है। 

तुम खुश हो जाते हो। 

तुम उसे देख कर थोड़ी देर के हस्थमैथुन के बाद शांत हो जाते हो। 

अब वो तस्वीरें तुम्हे भद्दी लगने लगती है। 

फिर तुम अपने दोस्तों में रोब ज़माने के लिए उसकी तस्वीरें अपने दोस्तों को भेजते हो ये कह कर की वो देख कर डिलीट कर देंगे। लेकिन उनमे से कोई उसे कही और फॉरवर्ड कर देता है। फिर वो एक ऐसे हाथो में पहुँचता है जो उसे शोशल साइट पर उपलोड कर देता है  

और तो और वो उसे टैग भी कर देता है।  

वो उन तस्वीरों को देखती है। 

तुम्हे मैसेज करती है और मिन्नतें करती है और डिलीट करने को कहती है। लेकिन तुम कहते हो की ये तुमने नहीं किया है। 

वो फिर कहती है की तुम डिलीट कर दोगे तो वो तुम्हे और सारी तस्वीरें देगी। 

तुम कहते हो की तुम्हे नहीं पता की वो तस्वीरें कैसे लीक हो गयी।  

 लोग अब उन तस्वीरों को लाइक और रियेक्ट करना शुरू करते है। 

कुछ लोग गंदे कमेंट करते है ,कुछ बचाव करते है ,कुछ देख के उदास होते है,कुछ देख के हसंने लगते है। 

उस लड़की की सहेलिया अब उसकी न्यूड तस्वीर देखती है ,कुछ हताश हो जाती है कुछ को बेहद ख़ुशी मिलती है। 

कुछ उसके बचाव में कुछ कहती है लेकिन क्या फायदा लोग उसे देख चुके थे। 

कुछ लोग उन तस्वीरों को शेयर कर देते है तो कुछ सेव कर लेते है तो कुछ उस लोग उसके रिलेटिव को फॉरवर्ड कर देते है। 


अगले दिन वो स्कूल जाती है। 

उसे देख कर उसके ही साथी फब्तियां कसना शुरू करते है। 

क्लास टीचर ने खड़ा हो कर सब कुछ क्लास के सामने ही बताने का आर्डर दे डाला है उसे अब। 

लेकिन उसके मुंह से बोल नहीं निकल रहे। 


आखिर में उसे प्रिंसिपल ऑफिस में सारे टीचरों के सामने लाया जाता है जहा वो सुन्न खड़ी है। 

आखिर में उसके पेरेंट्स को बुलाया जाता है ,माँ बाप हाथ जोड़ते है लेकिन प्रिंसिपल को अपने स्कूल की इज्जत प्यारी है ,और इन बैठकों का रिजल्ट ये निकला की उसे स्कूल से निकाल दिया गया। 


वो घर आयी ,और पहला काम ये हुआ की उसे जी भर कर पीटा गया ,पहले बाप ने पीटा फिर उसी भाई ने उन्ही हाथों से मुक्के बरसाए जिसपर उसने राखी बाँधी थी। 

उसका फ़ोन छीन लिया गया ,उसकी जिंदगी अब लगभग बर्बाद हो चुकी थी। 

उसने कई दिनों तक कमरे में खुद को बंद रखने के बाद बाहर निकलने की सोची। 

बाहर लोग उसे देख कर इशारे करने लगे थे ,उनकी फुसफुसाहट उसके कानो में गूंज की तरह थी। 

वो घर वापस आ गयी। 

बहुत सोचा उसने ,बहुत हिम्मत जुटाई मगर ख़ुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आया। 

शायद यही उसे अब आराम दे सकता था। 

उसने चूहे मारने की दवा ढुंढी और बिना एक पल गवाए गले में उतार लिया ,दस मिनट के अंदर वो इस दुनिया से निकल चुकी थी। 


उसके माँ बाप ने उसके रूम का दरवाजा खटखटाया मगर कोई जवाब नहीं मिला। जब जवाब कुछ देर तक नहीं आया तो दरवाजा तोड़ा गया ,वो पलंग के एक कोने में मरी पड़ी थी। 

उसकी लाश देख कर माँ बाप को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ की अभी जो लड़की चल फिर रही थी ,लाश बन चुकी है। 


रिलेटिव दोस्त सहेलियों  टीचर सबको ये खबर जल्द ही मिल गयी उस लड़के को भी। 

सभी को बुरा लगा उस लड़के को भी। 

उसे पछतावा हुआ वो रोने लगा और खुद को कोसने लगा लेकिन वक़्त मुड़कर  वापस कहा आता है। 

उसकी लाश सफेद कफ़न में सबके सामने रखी थी , जो उसे देख कर फब्तियां कस रहे थे ,सभी रो रहे थे .

लेकिन अब उसे फर्क नहीं पड़ने वाला कुछ , वो अब जा चुकी है। 


जिंदगी बिजली जैसी है ,आपका अपना भी इससे झटके दे सकता है। 

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 🌹 अतरात्मा की आवाज़ 🌹


एक दिन, एक गरीब किसान, एक व्यापारी जो उपरवाले का परम भक्त था, उसके पास अपनी जमीन बेचने गया और बोला, ''सेठजी, मेरी 2 एकड़ जमीन आप रख लो। ''


व्यापारी बोला, ''क्या कीमत है ?''


गरीब बोला, ''50 हजार रुपये। ''


व्यापारी थोड़ी देर सोच कर बोला, ''वो ही खेत जिसमें ट्यूबवेल लगा है ?''


गरीब, ''जी, आप मुझे 50 हजार से कुछ कम भी देंगे, तो जमीन आपको दे दूँगा। ''


व्यापारी ने आँखें बंद कीं, 5 मिनट सोच कर बोला, ''नहीं, मैं उसकी कीमत 2 लाख रुपये दूँगा। ''


गरीब, ''पर मैं तो 50 हजार मांग रहा हूँ, आप 2 लाख क्यों देना चाहते हैं ?''


व्यापारी बोला, ''तुम जमीन क्यों बेच रहे हो ?''


गरीब बोला, ''बेटी की शादी करनी है, इसीलिए मज़बूरी में बेचना है, पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं ?''


व्यापारी बोला, ''मुझे जमीन खरीदनी है, किसी की मजबूरी नहीं। अगर आपकी जमीन की कीमत मुझे मालूम है तो मुझे आपकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाना, मेरा ऊपरवाला कभी खुश नहीं होगा। ये मेरी अंतरात्मा की आवाज़ है। ''


ऐसी जमीन या कोई भी साधन, जो किसी की मजबूरियों को देख के खरीदा जाये, वो जिंदगी में सुख नहीं देता, आने वाली पीढ़ी मिट जाती है। 


व्यापारी ने कहा, ''मेरे मित्र, तुम खुशी खुशी, अपनी बेटी की शादी की तैयारी करो, 50 हजार की व्यवस्था हम गांव वाले मिलकर कर लेंगे, तेरी जमीन भी तेरी ही रहेगी। 

मेरे उपरवाले ने सदा ही हारे का साथ निभाया है तो मै किसी की भी मजबूरी का क्यूँ फायदा उठाऊं, देने वाला ऊपरवाला है, मेरा क्या है। ''


गरीब किसान दोनों हाथ जोड़कर, नीर भरी आँखों के साथ दुआयें देता चला गया।


शिक्षा :

दोस्तो, उपरवाले ने हमारे देश को हर प्रकार की वस्तु और अपार प्राकर्तिक सम्पदा से नवाज़ा है। लोग भोले-भाले और मेहनती हैं। दुनिया, हमारे युवाओं और उद्यमियों का लोहा मानती है। यदि हमारे नेता अंतरात्मा की आवाज़ सुन, निस्वार्थ सच्ची जनसेवा करते तो भारत कब का दुनिया का सबसे खुशहाल देश बन गया होता।


दोस्तो, किसी की मजबूरी न खरीदें। किसी के दर्द, मजबूरी को समझ कर, परोपकार करना ही सच्चा तीर्थ है, उपरवाले की सच्ची भक्ति की निशानी है।

 प्रारम्भ की कहानी-बेताल पच्चीसी 


बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करते थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा।


उस नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था। एक दिन देवता ने प्रसन्न होकर उसे एक फल दिया और कहा कि इसे जो भी खायेगा, वह अमर हो जायेगा। ब्रह्मण ने वह फल लाकर अपनी पत्नी को दिया और देवता की बात भी बता दी। ब्राह्मणी बोली, “हम अमर होकर क्या करेंगे? हमेशा भीख माँगते रहेंगें। इससे तो मरना ही अच्छा है। तुम इस फल को ले जाकर राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ।”


यह सुनकर ब्राह्मण फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास गया और सारा हाल कह सुनाया। भर्तृहरि ने फल ले लिया और ब्राह्मण को एक लाख रुपये देकर विदा कर दिया। भर्तृहरि अपनी एक रानी को बहुत चाहता था। उसने महल में जाकर वह फल उसी को दे दिया। रानी की मित्रता शहर-कोतवाल से थी। उसने वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वेश्या के पास जाया करता था। वह उस फल को उस वेश्या को दे आया। वेश्या ने सोचा कि यह फल तो राजा को खाना चाहिए। वह उसे लेकर राजा भर्तृहरि के पास गई और उसे दे दिया। भर्तृहरि ने उसे बहुत-सा धन दिया; लेकिन जब उसने फल को अच्छी तरह से देखा तो पहचान लिया। उसे बड़ी चोट लगी, पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं। उसने महल में जाकर रानी से पूछा कि तुमने उस फल का क्या किया। रानी ने कहा, “मैंने उसे खा लिया।” राजा ने वह फल निकालकर दिखा दिया। रानी घबरा गयी और उसने सारी बात सच-सच कह दी। भर्तृहरि ने पता लगाया तो उसे पूरी बात ठीक-ठीक मालूम हो गयी। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने सोचा, यह दुनिया माया-जाल है। इसमें अपना कोई नहीं। वह फल लेकर बाहर आया और उसे धुलवाकर स्वयं खा लिया। फिर राजपाट छोड, योगी का भेस बना, जंगल में तपस्या करने चला गया।


भर्तृहरि के जंगल में चले जाने से विक्रम की गद्दी सूनी हो गयी। जब राजा इन्द्र को यह समाचार मिला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की रखवाली के लिए भेज दिया। वह रात-दिन वहीं रहने लगा।


भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका। राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते होते?”

देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो।”

दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।”


इसके बाद देव ने कहा, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल का राज करता था। कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर शम्शान में पिशाच बना सिरस के पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।”


इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। राजा फिर राज करने लगा।


एक दिन की बात है कि शान्तिशील नाम का एक योगी राजा के पास दरबार में आया और उसे एक फल देकर चला गया। राजा को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी को बताया था, कहीं यह वही तो नहीं है! यह सोच उसने फल नहीं खाया, भण्डारी को दे दिया। योगी आता और राजा को एक फल दे जाता।


संयोग से एक दिन राजा अपना अस्तबल देखने गया था। योगी वहीं पहुँच और फल राजा के हाथ में दे दिया। राजा ने उसे उछाला तो वह हाथ से छूटकर धरती पर गिर पड़ा। उसी समय एक बन्दर ने झपटकर उसे उठा लिया और तोड़ डाला। उसमें से एक लाल निकला, जिसकी चमक से सबकी आँखें चौंधिया गयीं। राजा को बड़ा अचरज हुआ। उसने योगी से पूछा, “आप यह लाल मुझे रोज़ क्यों दे जाते हैं?”

योगी ने जवाब दिया, “महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी, इनके घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।”


राजा ने भण्डारी को बुलाकर पीछे के सब फल मँगवाये। तुड़वाने पर सबमें से एक-एक लाल निकला। इतने लाल देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। उसने जौहरी को बुलवाकर उनका मूल्य पूछा। जौहरी बोला, “महाराज, 

Monday, January 25, 2021

 एक राजा के पास कई हाथी थे, 

लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी,समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। 


बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था, 

इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था। 


समय गुजरता गया  ...


और एक समय ऐसा भी आया, 

जब वह वृद्ध दिखने लगा। 

        

 अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था। इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे।


 एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया। 


उस हाथी ने बहुत कोशिश की, 

लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।


 उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है। 


हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।

 

राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे। 


जब बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं निकला तो राजा ने अपने सबसे अनुभवी मंत्री को बुलवाया।


 मंत्री ने आकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ। 


सुनने वालोँ को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा, जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया।


आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा। 


पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया। 


अब मंत्री ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी।


☀️"सिख :- हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यदि हमारे मन में एक बार उत्साह - उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता।


जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे।


कभी - कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है।